Send your poems to 9340373299

नव्यवर्ष का अभिनंदन

0 225

नव्यवर्ष का अभिनंदन

उत्तर प्रत्युत्तर गढ़ने में
बीत गया बाकी जीवन।
किंतु संपुटित हो न सका
विचलित, विह्वल, औघड़ मन।।

CLICK & SUPPORT

कल था नूतन, आज पुरातन
विस्मयकारी नवजीवन।
विषय, विषाद, विवाद मुक्त
हो सकल अंकुरित स्पंदन।।

नई चेतना, नवविचार अरु
आत्मबोध, आत्मचिंतन।
आरोहित हों नवपल्लव
हों अवरोहित झूठे दर्पण।।

नवाचार हो, निर्विकार हो
करतल ध्वनि से उद्बोधन।
नव्यवर्ष का अभिनंदन
नव्यवर्ष का अभिनंदन।।

Leave A Reply

Your email address will not be published.