Category: अन्य काव्य शैली

  • गाँधीजी पर कविता – बाबू लाल शर्मा

    गाँधीजी पर कविता – बाबू लाल शर्मा

    गाँधीजी पर कविता

    mahatma gandhi

    भारत ने थी ली पहन, गुलामियत जंजीर।
    थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।
    हाल हुए बेहाल जब, कुचले जन आक्रोश।
    देख दशा व्याकुल हुए, गाँधी वर मतिधीर।

    काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
    गोली गाली साथ ही , भर देते थे जेल।
    देशी राजा अधिक तर, मौज करे मदमस्त।
    गाँधी ने आवाज दी, कर खादी से मेल।

    याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
    कायर डायर क्रूर ने, खेला खूनी फाग।
    अंग्रेजों की दासता, जीना पशुता तुल्य।
    छेड़ा मोहन दास ने, सत्याग्रह का राग।

    मोहन, मोहन दास बन, मानो जन्मे देश।
    पढ़लिख बने वकीलजी, गुजराती परिवेश।
    भूले आप भविष्य निज, देख देश की पीर।
    गाँधी के दिल मे लगी, गरल गुलामी ठेस।

    देखे मोहन दास ने, साहस ऊधम वीर।
    भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।
    शेखर बिस्मिल से मिले, बने विचार कठोर।
    गाँधी संकल्पित हुए, मिटे गुलामी पीर।

    बापू के आदर्श थे, लाल बाल अरु पाल।
    आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।
    फाँसी जिनको भी मिली, काले पानी मौत।
    गाँधी सबको याद कर, करते मनो मलाल।

    अफ्रीका मे वे बने, आजादी के दूत।
    लौटे अपने देश फिर, मात भारती पूत।
    किया स्वदेशी जागरण, परदेशी दुत्कार।
    गाँधी ने चरखा चला, काते तकली सूत।

    अंग्रेजों की क्रूरता, पीड़ित लख निज देश।
    बैरिस्टर हित देश के, पहने खादी वेश।
    सामाजिक सद्भाव के, दिए सत्य पैगाम।
    ईश्वर सम अल्लाह है, सम रहमान गणेश।

    कूद पड़े मैदान में, चाह स्वराज स्वदेश।
    कटे दासता बेड़ियाँ, हो स्वतंत्र परिवेश।
    भारत छोड़ो नाद को, करते रहे बुलंद।
    गाँधी गाँधी कह रहा, खादी बन संदेश।

    सत्य अहिंसा शस्त्र से, करते नित्य विरोध।
    जनता को ले साथ में,किए विविध अवरोध।
    नाकों में दम कर उन्हे, करते नित मजबूर।
    गाँधी बिन हथियार के, लड़े करे कब क्रोध।

    सत्याग्रह के साथ ही, असहयोग हथियार।
    सविनय वे करते सदा, नाकों दम सरकार।
    व्रत उपवासी आमरण, सत्य अहिंसा ठान।
    गाँधी नित सरकार पर, करते नूतन वार।

    गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
    भारत का वो लाडला, गाँधी साधू वेश।
    हुआ चकित इंग्लैण्ड भी, बापू कर्म प्रधान।
    गाँधी भारत के लिए, सहते भारी क्लेश।

    गोरे काले भेद का, करते सदा विरोध।
    खादी चरखे कात कर, किए स्वदेशी शोध।
    रोजगार सब को मिले, बढ़े वतन उद्योग।
    गाँधी थे अंग्रेज हित, कदम कदम अवरोध।

    मान महात्मा का दिया, आजादी अरमान।
    बापू अपने देश का, लौटाएँ सम्मान।
    देश भक्त करते सदा, बापू का जयकार।
    गाँधी की आवाज पर, धरते सब जन कान।

    गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी ध्वस्त।
    दी आजादी देश को, पन्द्रह माह अगस्त।
    खुशी मन सब देश में, भाया नव त्यौहार।
    गाँधी ने हथियार बिन, किये विदेशी पस्त।

    बँटवारे के खेल में, भारत पाकिस्तान।
    बापू जी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।
    हुए पलायन लड़ पड़े, हिन्दू मुस्लिम भ्रात।
    गाँधी ने कर शांत तब, दाव लगाई ज़ान।

    आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
    राष्ट्रपिता जनता कहे, बापू हुए महान।
    खुशियाँ देखी देश में, बदला सब परिवेश।
    गाँधी भारत देश में, जन्मे बन वरदान।

    तीस जनवरी को हुआ, उनका तन निर्वाण।
    सभा प्रार्थना में तजे, गाँधी जी ने प्राण।
    शोक समाया देश में, झुके करोड़ों शीश।
    गाँधी तुम बिन देश के, कौन करेगा त्राण।

    दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
    बापू तेरे देश का , अब रखवाला कौन।
    कीमत जानेंगे नही, आजादी का भाव।
    गाँधी तुम बिन हो गये, सूने भारत भौन।

    महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी गान।
    मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।
    याद रखें नव पीढ़ियाँ, मान तेज तप पुंज।
    गाँधी सा जन्मे पुन: , भारत भाग्य महान।

    बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
    धन्य भाग्य माँ भारती, गाँधी धीर महान।
    राजघाट में सो रहे, हुए देव सम तुल्य।
    गाँधी भारत देश की, है तुमसे पहचान।

    शर्मा बाबू लाल ने, लिख दोहे बाईस।
    बापू को अर्पित किये, नित्य नवाऊँ शीश।
    रघुपति राघव गान से, गुंजित सब परिवेश।
    गाँधी जी सूने लगें, अब वे तीनों कीस।


    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • राधा और मीरा पर लेख

    रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।

    कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।

    राधा और मीरा पर लेख

    *_आखिर माताएं राधा और मीरा क्यों नहीं चाहती?_*

    एक विचार प्रस्तुत किया गया कि “हर माँ चाहती है कि उनका बेटा कृष्ण तो बने मगर कोई माँ यह नहीं चाहती कि उनकी बेटी राधा बने”। यह कटु सत्य है और मैं इससे पूर्णतः सहमत हूँ। लेकिन यह विचार मात्र है विमर्श उससे आगे है। क्या राधा की माँ चाहती थी कि राधा कृष्ण की प्रेमिका बने? नहीं। क्या अन्य गोपियां जो कृष्ण के प्रेम में दीवानी थी जिनमें से अधिकांश विवाहित और उम्र में उनसे बड़ी थी उनके परिवार और पति में से किसी की ऐसी इच्छा थी की वे गोपियां कृष्ण से प्रेम करे? नहीं।

    तो क्या यह विशुद्ध व्यभिचार था? या प्रेम था ? राधा और गोपियां तो फिर भी खैर है उस पागल मीरा को क्या सनक चढ़ी कि कृष्ण के हज़ारों हज़ारो साल बाद पैदा होने के बावजूद उनसे ऐसा प्रेम कर बैठी कि उनके प्रेम में घर परिवार पति राजभवन का सुख त्याग कर वृन्दावन के मंदिरों में घुंघरू बांध कर नाचने लगी एक राजसी कन्या?क्या उनका परिवार ऐसा चाहता था? नहीं। फिर क्यों राधा, गोपियां और मीरा हुई? जवाब जानने के लिए प्रेम को जानना नहीं समझना होगा उसे महसूस करना होगा।

    प्रेम मुक्ति है सामाजिक वर्जनाओं से मुक्ति, लोकलाज से मुक्ति। प्रेम विद्रोह है सामाजिक रूढ़ियों से बंधनों से विद्रोह। प्रेम व्यक्ति के हृदय को स्वतंत्र करता है उसे तमाम बंधनो से मुक्त करता है। जिसे प्रेम में होकर भी सामाजिक वर्जनाओं का ध्यान है स्वयं के कुशलक्षेम का ध्यान है वह प्रेम में नहीं है केवल प्रेम होने के भ्रम में है। क्योंकि प्रेम एकनिष्ठता है “जब मैं था तो हरि नहीं, जब हरि है तो मैं नहीं’ की स्थिति प्रेम है, एकात्मता प्रेम है। कृष्ण का राधा हो जाना राधा का कृष्ण हो जाना प्रेम है।

    कृष्ण के जाने के बाद राधा का कृष्ण बन भटकना प्रेम है क्योंकि कृष्ण से राधा का विलगाव संभव ही नहीं। प्रेम सामाजिक मर्यादा की रक्षा नहीं उसका अतिक्रमण है। प्रेम सही गलत फायदा नुकसान नहीं समझता इसीलिए वह प्रेम है। जिसमें लाभ हानि का विचार किया जाए वह व्यापार है प्रेम नहीं। क्या मीरा अपने एकतरफा प्रेम की परिणति नहीं जानती थी? जानती थी फिर क्यों ? क्योंकि प्रेम सोच समझकर नहीं किया जाता, प्रेम लेनदेन नहीं है कि आप बदले में प्रेम देंगे तब ही प्रेम किया जाएगा, जो नि:शर्त हो निःस्वार्थ हो वही प्रेम है। हाँ ये सच है कि माताएं राधा नहीं चाहती मगर ये भी सच है कि जो राधा कृष्ण के प्रेम में सीमाओं को लांघ लेती है तमाम विरोधों के बावजूद वह ‘आराध्या’ ‘देवी’ की तरह एक दिन पूजी जाती है।

    कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाता है। जो मीरा कृष्ण के प्रेम में सामाजिक आलोचना रूपी विष का प्याला पी जाती है एकदिन उसी के भजन गा कर भक्त कृष्ण को प्रसन्न करने का प्रयास करते है। क्या यह राधा और मीरा की जीत नहीं है? क्या उन्हें व्यभिचारी या विद्रोही कह कर आप कटघरे में खड़ा कर सकते है? कुछ भी मुफ़्त में नहीं मिलता सबके लिए कीमत चुकानी पड़ती है। नीलकंठ कहलाने के लिए शिव को भी विषपान करना पड़ा था, मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाने के लिए राम को अपनी प्राणों से प्रिय सीता को निर्वासित करना पड़ा था वह भी तब जब वह गर्भवती थी।

    फिर प्रेम कैसे मुफ़्त में मिल सकता है? रूखमणी पत्नी होकर भी क्यों नहीं पूजी जाती है क्योंकि उसने वह अपमान वह वंचना नहीं झेली उसने उस प्रबल विरोध का सामना नहीं किया जिसका सामना राधा ने किया मीरा ने किया। माताएं राधा और मीरा होने की सलाह इसलिए नहीं देती क्योंकि वे जानती है कि देवियां रोज नहीं पैदा होती, ऐसी विद्रोहिणी सहस्त्र वर्षो में एक बार जन्म लेती है मगर जब जन्म लेती है तो इतिहास में अपनी छाप छोड़ जाती है। जिनकी मृत्यु के बाद भी मुझ जैसे कोई तुच्छ कलमकार उन पर लिख कर स्वयं को धन्य समझता है। माइकल मधुसूदन दत्त ने राधा कृष्ण के प्रेम के विषय में लिखा है-
    “जिसने कभी न साधा मोहन रूप बिना बाधा,
    वो ही न जान पाया है इस जग में क्यों कुल कलंकिनी हुई है राधा”

    ?राधे राधे?

    © कमल यशवंत सिन्हा ‘तिलसमानी'(kys)
    सहायक प्राध्यापक हिंदी
    शासकीय महाविद्यालय तमनार, रायगढ़ (छ.ग.)

  • नमक पर व्यंग्य

    नमक पर व्यंग्य

    होटल में खाने के मेज पर छोटे छोटे छिद्रों वाले डिब्बे पड़े ही रहते हैं।कार्टून बने डिब्बे में नमक मिर्च भरे होते हैं, दाल सब्जी में नमक कम हो तो मन मर्जी डाल लो।लेकिन सब्जी में नमक ज्यादा होने पर सारा जायका बिगड़ जाता है।नमक को सब्जी का जान कह सकते हैं,पानी रंगहीन होता है लेकिन बहुत कम लोगो को पता रहता है कि शुद्ध नमक भी रंगहीन होता है।

    विज्ञान का विद्यार्थी साधारण नमक का सूत्र नहीं जानता है तो समझ लो विज्ञान में कमजोर है।समुद्र का पानी नमकीन होता है,पढ़े थे पर पढ़ा हुआ ज्ञान हमेसा याद कहाँ रहता है।एक बार दोस्तों के साथ समुद्र में नहाने चले गए मगर साबुन से झाग निकला ही नहीं,और शरीर को धोने के लिए पानी बोतल का सहारा लेना पड़ा।हमने एक बंदे से पूछ लिया नमक कैसे बनता है? बंदा था बड़ा विद्वान बताया झील,समुद्र के पानी से,नमक का खदान खैबर पाकिस्तान और भारत में राजस्थान के साँभर में पाया जाता है।

    नमकीन पानी से नहाए क्या,नमक के स्रोत की जानकारी मिल गई।समुद्री मछलियों को पकाते वक्त नमक डालना नहीं पड़ता अहा क्या स्वाद।वैसे दैनिक खुराक में नमक दो से तीन ग्राम ही खाना चाहिए मगर पिता श्री तो खाने को बैठते हैं तो नमक का डिब्बा साथ लेकर बैठते हैं।एक दिन हमने कहा-‘बाबूजी नमक ब्लडप्रेसर बढाता है।हमारी बात सुन कर गुस्साकर बोले-‘डॉक्टर तो कुछ भी कह देते हैं बताओ बिना नमक के खाना पचेगा कैसे?वैसे भी नमक कम होने से अल्जाइमर नामक रोग होता है।याददाश्त कमजोर हो जाती है।

    हमने कहा कुछ भी तर्क देकर नमक से प्रेम मत बढाओ वरना पछताना पड़ेगा।आपको पता नहीं पर विज्ञान के किताबो में सफेद रंग वालो से बचने को कहा गया है जिसमे मैदा और नमक है।पिताजी नमक मिलाकर खाने लगे,नमक का विरोध तो सब करते हैं पर काले नमक को खाने की सलाह भी देते हैं।मुमफली खरीदने वाले तो नमक की पुड़िया साथ माँगना नहीं भूलते।घर का बजट हो तो नमक उसमे अवश्य रहता है और भूल गए तो सब्जी पकाते वक्त नमक मांगे कैसे नमक माँगना अशुभ बताया जाता है और माँग ले तो हथेली में नमक लेना भी अशुभ माना जाता है फेकना तो चाहिए ही नहीं।होली में बदमाश लोग जिस सामान को पाते हैं,होली के साथ जला देते हैं होली जलने से पहले दूकान वाले सामान को अंदर सुरक्षित रख लेते हैं पर हमने देखा लाला सेठ के दूकान के बाहर नमक की बोरी पड़ी थी।

    हमने फोन कर कहा चाचा आपके दूकान के बाहर नमक की बोरी पड़ी है।चाचा कहने लगे भतीजे नमक की चोरी नहीं होती और हँसने लगे।मगर मोहल्ले के लड़कों ने उनके नमक की बोरी होली में डाल दिए।खड़ा नमक फटाके जैसे फूटने लगा धड़ाम।लोग चोरी तो सबकी करते हाँ पर नमक की नहीं करते इस चक्कर में लाला जी पड़े रहे। सुबक नमक की बोरी गायब होने पर रोने लगे।महँगाई के जमाने में नमक का जलाना तो हृदय को जलाएगा ही।लाला जी को हमने कहा चाचा जी हटाओ नमक की बात कुछ और सुनाओ लाला ने कहा जख्म पर नमक मत लगाओ,हम सुनते ही वहाँ से निकल लिए।नमक बहुत उपयोगी होता है मछली धोने के लिए,अर्थिंग के गड्ढे में डालने के लिए ओआरएस के घोल में दवा के रूप में बहुत ही काम आता है।

    सब्जी के साथ जानवरो के भोजन में नमक उपयोगी होता है।मुंशी प्रेमचंद की लघु कथा नमक का दरोगा बहुत प्रसिद्ध है।नमक कानून तोड़ने के लिए गाँधी जी को आंदोलन करना पड़ा था जो इतिहास में नमक सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध है।1996 में नमक पर फ़िल्म बनी,लेकिन नमक हलाल ने फ़िल्म इंडस्ट्री में धूम मचा दिया।गाली तो हर मुँह में होता है जरा सा गुस्सा हो लोग गाली देने लगते हैं धोखेबाज के लिए प्रसिद्ध गाली है ‘नमक हराम’ नमक हराम फ़िल्म से बच्चन साहब सुपरस्टार बन गए।नमक से किचन की गंदगी साफ कर सकते हैं,दाँत चमका सकते हैं,हाँथो की गंदगी साफ कर सकते हैं,फलो को सुरक्षित रख सकते हैं।आजकल बाजार में शुद्ध आयोडीन कहकर नमक बेचा जा रहा है,नमक की माँग इतनी बढ़ गई है कि सैकड़ो कम्पनिया नमक बेच रही है असली नकली में समझ ही नहीं आ पाता वैसे घेंघा रोग नमक के कमी से ही होता है।

    गाँव के पंचू बुजुर्ग को मृत्यु शैया पर लिटा कर श्मशान ले जाया गया,लकड़ी की महंगाई को देखकर जेसीबी मंगवाकर दफनाया जा रहा था।किसी बुजुर्ग ने कहा-नमक डालो पर नमक लाए नहीं थे गिरते पानी में दूकान से नमक लाया गया,नमक डाल कर दफनाया गया,किसी ने कहा-नमक से शरीर गल जाता है,नमक का सेवन जीवन भर और मृत्यु होने पर भी काम आता है।पर जले जले पर नमक छिड़कना अच्छी बात नहीं।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जांजगीर छत्तीसगढ़

  • निर्मल नीर के हाइकु

    निर्मल नीर के हाइकु

    निर्मल नीर के हाइकु

    हाइकु

    नूतन वर्ष~
    चारों तरफ़ छाया
    हर्ष ही हर्ष

    काम न दूजा~
    सबसे पहले हो
    गायों की पूजा

    है अन्नकूट~
    कोई न रहे भूखा
    जाये न छूट

    भाई की दूज~
    पवित्र है ये रिश्ता
    इसको पूज

    दिवाली आई~
    घर-घर में देखो
    खुशियाँ छाई


    निर्मल ‘नीर’

  • माधुरी डड़सेना के हाइकु

    माधुरी डड़सेना के हाइकु

    माधुरी डड़सेना के हाइकु

    हाइकु
    hindi haiku || हिंदी हाइकु


    1
    मौसमी ज्वर-
    फंदे में झूल रहे
    प्रेमी युगल

    2
    जलतरंग-
    सर्प के मुख आती
    टर्र ध्वनि

    3
    तांडव नृत्य-
    घर में तैर रहे
    सारा सामान

    4
    फटा बादल-
    घर मे दुबका है
    मगरमच्छ

    5
    व्यस्त सड़के-
    बैठे हैं सड़क में
    भैसों का झुंड

    6
    उत्तराषाढा-
    अरबी में चमके
    पानी की बूंदे

    7

    पहली वर्षा-
    नाग जोड़े करते
    प्रणय लीला

    8

    मावस रात-
    बूढ़ी गाय झेलती
    मक्खियाँ दँश

    9

    गुड्डी का फोटो-
    चौराहे में जलाते
    मोमबत्तियां

    10

    स्वेत बादल-
    कृष देख रहा है
    वर्षा मिज़ाज

    11

    खेतो में आग-
    अधजले चूजे है
    पेड़ के नीचे

    12

    गाल का तिल
    मन करे मोहित
    चाँद शोभित

    13

    दुवाओं भरा
    भरपूर विस्वास
    पापा का प्यार

    14

    गर्भ से झांका
    बुनती है स्वेटर
    मेरे लिए माँ

    15

    है गुलज़ार
    बजुर्ग खुशहाल
    घर संसार

    माधुरी डड़सेना