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  • नन्हीं चिड़िया पर कविता – मीना रानी

    नन्हीं चिड़िया पर कविता – मीना रानी

    नन्हीं चिड़िया पर कविता

    beti

    माँ
    तेरे आंगन की
    मैं एक
    नन्हीं चिड़िया
    खेलती-चहचहाती
    आंगन में
    सुबह उठते ही
    कानों में
    रस भरती
    फुदकती फिरती
    मुझे देख
    भूल जाती तूं
    सारे गम जहान के
    काम दिन-रात
    मैं करती
    तेरी सेवा मैं करती
    बदले में कुछ न चाहती
    बड़ी हुई तो
    उड़ गई
    इस आंगन से
    माँ भूल न जाना
    इस नन्हीं चिड़िया को ।

    -मीना रानी, टोहाना
    हरियाणा

  • दीपावली : सुवा गीत/ छत्तीसगढ़ी रचना

    यहाँ पर दीपावली अवसर पर गए जाने वाला सुवा गीतों का संकलन किया गया है . छत्तीसगढ़ में सुआ गीत प्रमुख लोकप्रिय गीतों में से है।

    सुआ गीत का अर्थ है सुआ याने मिट्ठु के माध्यम से स्रियां सन्देश भेज रही हैं। सुआ ही है एक पक्षी जो रटी हुई चीज बोलता रहता है। इसीलिए सुआ को स्रियां अपने मन की बात बताती है इस विश्वास के साथ कि वह उनकी व्यथा को उनके प्रिय तक जरुर पहुंचायेगा। सुआ गीत इसीलिये वियोग गीत है।

    प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं।

    सुवा गीत 1

    तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
    कइसे के बन गे वो ह निरमोही
    रे सुअना
    कोन बैरी राखे बिलमाय
    चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
    रे सुअना
    मन के लहर लहराय
    देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
    रे सुअना
    बाती संग जाहंव लपटाय

    सुवा गीत 2

    तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    बिनती करंव मय चन्दा सुरुज के
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    चोंच तो दिखत हवय लाले ला कुदंरु
    रे सुअना
    आंखी मसूर कस दार…
    सास मोला मारय ननद गारी देवय
    रे सुअना
    मोर पिया गिये परदेस
    तरी नरी नना मोर नहा नारी ना ना
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव…….

    सुवा गीत 3

    तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
    तुलसी के बिरवा करै सुगबुग-सुगबुग
    रे सुअना
    नयना के दिया रे जलांव
    नयनन के नीर झरै जस औरवांती
    रे सुअना
    अंचरा म लेहव लुकाय
    कांसे पीतल के अदली रे बदली
    रे सुअना
    जोड़ी बदल नहि जाय

    सुवा गीत 4

    तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
    मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार
    रे सुअना तुलसी में दियना बार
    अग्धन महीना अगम भइये
    रे सुअना बादर रोवय ओस डार
    पूस सलाफा धुकत हवह
    रे सुअना किट-किट करय मोर दांत
    माध कोइलिया आमा रुख कुहके
    रे सुअना मारत मदन के मार
    फागुन फीका जोड़ी बिन लागय
    रे सुअना काला देवय रंग डार
    चइत जंवारा के जात जलायेंव
    रे सुअना सुरता में धनी के हमार
    बइसाख…….. आती में मंडवा गड़ियायेव
    रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय
    जेठ महीना में छुटय पछीना
    रे सुअना जइसे बोहय नदी धार
    लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका
    रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार
    सावन रिमझिम बरसय पानी
    रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय
    भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा
    रे सुआना कइसे के देईस बिसार
    कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय
    रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर
    कातिक महीना धरम के कहाइस
    रे सुअना आइस सुरुत्ती के तिहार
    अपन अपन बर सब झन पूछंय
    रे सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार

    दिवाली मनाबो

    सब के घर म उम्मीद के दिया जलाबो,
    युवा शक्ति के अपन लोहा मनवाबो,
    अपन शहर ल नावा दुल्हन कस सजाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    बेरोजगार ल रोजगार दिलवाबो,
    दू रोटी खाबो अउ सब ल खवाबो,
    रद्दा बिन गड्ढा, समतल बनाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    अमीर गरीब के फरक ल मेटा के,
    सब झन ल अपन अधिकार देवाबो,
    एक व्यक्ति-एक पेड़ के नारा ले,
    अपन शहर ल हरिहर बनाबो।

    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    © प्रकाश दास मानिकपुरी✒✍
    ? 8878598889 रायगढ़ (छ. ग.)

  • हिन्दी वर्णमाला पर कविता – दुर्गेश मेघवाल

    हिन्दी वर्णमाला पर कविता- दुर्गेश मेघवाल

    अ से अनार ,आ से आम ,
    पढ़ लिख कर करना है नाम।

    इ से इमली , ई से ईख ,
    ले लो ज्ञान की पहली सीख ।

    उ से उल्लू ,ऊ से ऊन,
    हम सबको पढ़ने की धुन ।

    ऋ से ऋषि की आ गई बारी,
    पढ़नी है किताबें सारी।

    ए से एडी , ऐ से ऐनक ,
    पढ़ने से जीवन में रौनक ।

    ओ से ओखली , औ से औरत ,
    पढ़ने से मिलती है शोहरत ।

    अं से अंगूर , दो बिंदी का अः ,
    स्वर हो गए पूरे हः हः ।

    क से कबूतर , ख से खरगोश ,
    पढ़ लिखकर जीवन में जोश ।

    ग से गमला , घ से घड़ी ,
    अभ्यास करें हम घड़ी घड़ी ।

    ङ खाली आगे अब आए ,
    आगे की यह राह दिखाए ।

    च से चरखा , छ से छतरी ,
    देश के है हम सच्चे प्रहरी ।

    ज से जहाज , झ से झंडा ,
    ऊँचा रहे सदा तिरंगा ।

    ञ खाली आगे अब आता ,
    अभी न रुकना हमें सिखाता ।

    ट से टमाटर , ठ से ठठेरा ,
    देखो समय कभी न ठहरा ।

    ड से डमरू , ढ से ढक्कन ,
    समय के साथ हम बढ़ाये कदम ।

    ण खाली अब हमें सिखाए ,
    जीवन खाली नहीँ है भाई।

    त से तख्ती , थ से थन ,
    शिक्षा ही है सच्चा धन ।

    द से दवात , ध से धनुष ,
    शिक्षा से हम बनें मनुष ।

    न से नल , प से पतंग ,
    भारत-जन सब रहें संग-संग ।

    फ से फल , ब से बतख ,
    ज्ञान-मान से जग को परख ।

    भ से भालू , म से मछली ,
    शिक्षा है जीवन में भली ।

    य से यज्ञ , र से रथ ,
    पढ़ लिखकर सब बनों समर्थ ।

    ल से लट्टू , व से वकील ,
    ज्ञान से सबका जीतो दिल ।

    श से शलजम , ष से षट्कोण,
    खुलकर बोलो तोड़ो मौन ।

    स से सपेरा , ह से हल ,
    श्रम से ही मिलता मीठा फल ।

    क्ष से क्षत्रिय हमें यही सिखाए ,
    दुःख में कभी नहीँ घबराएँ ।

    त्र से त्रिशूल , ज्ञ से ज्ञानी ,
    बच्चों ‘अजस्र ‘ की यही जुबानी ।

    ✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*

  • मित्र और मित्रता पर कविता – बाबूराम सिंह

    मित्र और मित्रता पर कविता

    kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah



    हो दया धर्म जब मित्र में,सुमित्र उसको मानिए।
    ना मैल हो मन में कभी, कर्मों को नित छानिए।
    आदर सेवा दे मित्र को,प्यार भी दिल से करो।
    दुखडा उस पर कभी पड़े, दुःख जाकर के हरो।
    मित्रों से नाता कभी भी ,भूल कर तोड़ों नहीं।
    पथ बिचमें निज स्वार्थवश,ज्ञातरख छोड़ी नहीं।

    भाव रख उत्तम हमेशा , साथ चलना चाहिए।
    दीजीये सुख शान्ति उसे,आप भी सुख पाइए।
    कभी भूल मित्र से होजा ,उछाले ना फेकना।
    सुदामा कृष्ण मित्रता का, नमूना भी देखना।
    दे जुबान अपने मित्र को,पिछे कभी न डोलिए।
    मन खुशरख उसका सदा,सुमधुर वचन बोलिए।

    करना सहायता मित्र की ,हर बात मन से सुनो।
    अहम वहम सब छोड दो,मोड़ जीवन पथ चुनो।
    शुचि मित्र से महके जीवन,यह कभी भूलो नहीं।
    निज मान और सम्मान में,फँस नहीं फूलो कहीं।
    निज वचन बुद्धि विचारमें,नहीं तम गम हम घुसे।
    करो मित्र का कल्याण सदा,सुकर्म में जोड़ उसे।

    ना कर्म पथ छूटे कभी,जगत में जबतक रहो।
    विष पी अधर मुस्का सदा ,मित्र संग में सब सहो।
    मित्र भाव भव्य लगाव को ,कदापि न ठुकराइए।
    श्रध्दा प्रेम विश्वास आश , नित नूतन जगाइए।
    जग जीत चाहे हार हो , सार में कायम रहे।
    मिशाल मित्रों का अनूठा , है सदा सबही कहे।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार )841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
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  • रामधारी सिंह दिनकर/ बाबूराम सिंह

    रामधारी सिंह दिनकर जी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तेईस सितम्बर  सरस,सन उन्नीस सौ आठ।
    बालक एक जन्म लिया,शुभ सेमरिया घाट।।

    बेगु   सराय  बिहार  में ,  है  सेमरिया   घाट।
    होनहार बालक हुआ,मिला न जिनका काट।।

    मन में ज्ञानालोक ले ,सुख-दुख सह आघात।
    नाम रामधारी  पड़ा ,हुआ  जगत विख्यात।।

    महा  धर्मज्ञ   मर्मज्ञ   थे , राह  प्रदर्शक  नेक।
    सुकवि हृदय विशाल रहे,लख लाखों में एक।।

    शारद  यशस्वी  लाल  थे ,भव्य भारती भाल।
    शैली  लेखन की सरस,कौशल कला कमाल।।

    शुभ वाणी  विचार बुध्दि, उत्तम  नेक  उदार।
    साहित्य  में  लवलिन  हो ,करते सत्य प्रचार।।

    भाषा  सुन्दर  मृदु  वचन,रहे  गुणों की खान।
    दया  धर्म  सुमर्म  लिये , दिनकर  रहे  महान।।

    नाम  काम  उनका  सदा ,अमर रहे इतिहास।
    काव्य महक से उनके ,चहुँदिशि सदा सुवास।।

    दिनकरजी व्दारा सृजित,कालजयी हरशब्द।
    वैभव  हिन्दी   का  अहा , हूँ  बर्णन निःशब्द।।

    जन्म  जयंती  पर महा ,संस्मरण  कर  याद।
    हर्ष व  गौरव की सदा,सु-अनुभूति आबाद।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰नं॰ – 9572105032
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