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  • हिंदी की है अद्भुत महिमा – उपमेंद्र सक्सेना

    हिंदी की है अद्भुत महिमा

    हिंदी की है अद्भुत महिमा

    गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    जिसको जीवन में अपनाया, उसपर हम होते बलिहारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी का गुणगान करें हम, हिंदी के गीतों को गाएँ
    हिंदी की मीठी बोली से, सबके मन को अब हम भाएँ

    सदा फले- फूले यह भाषा, लगती है यह हमको न्यारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी को जो लोग यहाँ पर, कभी न देखें निम्न दृष्टि से
    स्वयं देव करते हैं स्वागत, मानो उनका पुष्प- वृष्टि से

    बनी आज जन-जन की भाषा, सदा जन्म से रही हमारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी में सब काम करें हम, बच्चों को हिंदी पढ़वाएँ
    सोने में तब लगे सुहागा, जब वे खुद आगे बढ़ जाएँ

    हीन भावना कभी न आए, इतनी आज करें तैयारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    बाबा-दादी, नाना- नानी, से हम सुनते रहे कहानी
    हिंदी ने ऐसा रस घोला, याद हुईं वे हमें जुबानी

    करते बातें बहुत प्रेम से, हिंदी में इतने नर- नारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली( उ०प्र०)
    मोबा.- 98379 44187

    ( आकाशवाणी, बरेली से प्रसारित रचना- सर्वाधिकार सुरक्षित)

  • अनमोल मानव जीवन पर कविता

    अनमोल मानव जीवन पर कविता

    पकड़ प्यार सत्य धर्म की डोर ,
    बढ़ सर्वदा प्रकाश की ओर।
    मधुर वचन सबहिं से बोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    औरों से सद्गुण सम्भाल,
    निजका अवगुण दोष निकाल।
    सत्य वचन से कभी ना डोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    वैर- विरोध का नाम मिटाओ,
    आपस में सद्भाव बढा़ओ।
    मन कि गाँठें ज्ञान से खोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    पर – पीडा़ में हाथ बढा़ओ,
    जग में सुख सरस उपजाओ।
    मानवता महक का लेकर रोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    दीन – दुखिया ,अबला -अनाथ,
    सबको गले लगा लो साथ।
    पर पीड़ा में दया रस घोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    कर प्रभु में श्रध्दा – विश्वास,
    मत हो जीवन में निराश।
    हो न भक्ति से डांवा डोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    हर में हरि की कर पहचान,
    सब हैं प्रभुवर की संतान।
    यहीं है नर जीवन का मोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो०नं० – 9572105032

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  • मन हो रहा हताश – बाबूलाल शर्मा

    मन हो रहा हताश

    kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah


    . ✨✨१✨✨
    हम ही दुश्मन मीत, अपनी भाषा के बने।
    बस बड़ बोले गीत, सोच फिरंगी मन वही।।
    . ✨✨२✨✨
    बदलें फिर संसार, निज की सोच सुधार लें।
    दें शिशु हित संस्कार,अंग्रेजी की कार तज।।
    . ✨✨३✨✨
    चलें धरातल जान, उड़ना छोड़ें पंख बिन।
    तब ही हो पहचान, हिन्दी हिन्दुस्तान की।।
    . ✨✨४✨✨
    ज्ञान मरघटी तात, नशा उतरता शीघ्र ही।
    वही ढाँक के पात, गया दिवस हिन्दी मना।।
    . ✨✨५✨✨
    गाते हिन्दी फाग, एक दिवस त्यौहार बस।
    अपनी ढपली राग, बारह महिने फिर वही।।
    . ✨✨६✨✨
    अपनी हर सरकार, हम सब हैं दोषी बड़े।
    हिन्दी का प्रतिकार, स्वार्थ सनेही कर रहे।।
    . ✨✨७✨✨
    वृद्धाश्रम की शान, कहने को माता महा।
    हिन्दी का सम्मान, एक दिवस ही कर रहे।।
    . ✨✨८✨✨
    हो हिन्दी हित पुण्य, हिन्दी बिन्दी सम रखें।
    मत कर हिन्दी शून्य, ऊँचे उड़ कर स्वार्थ मे।।
    . ✨✨९✨✨
    मन हो रहा हताश, मातृभाष अवमान से।
    सत साहित्यिक मान, हिन्दी नेह प्रकाश हो।।
    . ✨✨१०✨✨
    हिन्दी कवि मन प्यास, लिखे सोरठे दस खरे।
    हिन्दी हित की आस, कवियों से ही बच रही।।
    . ✨✨🌞✨✨
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
    ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

  • हिंदी छा जाए दुनिया में – उपमेंद्र सक्सेना

    हिंदी छा जाए दुनिया में

    गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    जिससे हैं हम जुड़े जन्म से, वही हमारी प्यारी भाषा,
    हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।

    अपनी भाषा के हित में हम, अपना जीवन करें समर्पित
    जितनी उन्नति होगी इसकी, उतने ही हम होंगे गर्वित

    बच्चे हिंदी पढ़ें-लिखें जब, बदले जीवन की परिभाषा
    हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।

    अब अभियान चले कुछ ऐसा, लोग यहाँ पर कभी न भटकें
    किसी दूसरी भाषा में क्यों, फँसकर उच्चारण में अटकें

    करें विचार प्रकट हम जो भी, उसमें आए नहीं कुहासा
    हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।

    होता सही माध्यम है वह, जिससे अपनेपन का नाता
    जब संपर्क नहीं हो इससे, जीवन फिर बोझिल हो जाता

    जो स्वाभाविक लगे न उससे, मिलती केवल यहाँ दिलासा
    हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।

    नहीं विरोध किसी भाषा से, अपनी बात हमें है कहना
    सुनते और समझते उसको, जहाँ हमें पड़ता है रहना

    लिखा गया साहित्य यहाँ जो, पैदा करता है जिज्ञासा
    हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।

    रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ.प्र.)

  • संवाद पर कविता – सुकमोती चौहान रुचि

    संवाद पर कविता

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    तुमसे कर संवाद, सुकूं मन को मिलता है |
    मधुर लगे हर भाष्य, सुमन मन में खिलता है |
    कर्णप्रिय हर बात, प्रेरणा देती हरदम |
    करके जिसको याद, दूर हो जाती है गम ||
    उत्प्रेरक संवाद सब, नित्य सँजोया तुम करो |
    कठिन समय में याद कर, सत्य राह नित तुम वरो ||

    करके नित संवाद, हृदय को हल्का कर लो |
    करके मन की बात, प्रेम जीवन में भर लो ||
    सोच समझ कर बोल, अमर होती है वाणी |
    इसका प्रखर प्रभाव, रहे युग युग कल्याणी |
    सोच समझ कर बोलना, खट्टा मीठा बोल है |
    हर युग में स्थायी रहा, संवादों का मोल है ||

    जब तक है संवाद, खुले रहते हैं रास्ते |
    दिखे सुलह की राह, बने रहते हैं वास्ते ||
    खत्म हुआ संवाद, खत्म होती सब राहें |
    टूटी सब उम्मीद, सिर्फ भरते हैं आहें ||
    संवादों का सिलसिले, बंद न होने चाहिए |
    नफरत होता है क्षणिक, कुछ दिन धीरज धारिए ||

    सुकमोती चौहान रुचि