पेड़ पूर्वज पौध प्रिय संतान है –रेखराम साहू

पेड़ पूर्वज, पौध प्रिय संतान है।
सिद्धकृत अध्यात्म है, विज्ञान है।।
सभ्यता-शैशव पला मृदु छाँव में,
कंद-फल संपन्न तरु के गाँव में।
स्नेह-शाखाएँ बनी आवास थीं,
मूलतः थी शक्ति-गहरी,पाँव में।।
प्राण का आदिम यही रस पान है…
वन धरा का साज है श्रृंगार है ,
प्राणियों के हित इला का प्यार है।
है नियंता शुद्धतम जलवायु का,
सृष्टि का अनमोल यह उपहार है।।
यह नहीं तो,भाँति किस उत्थान है?
तरु-लताओं का अमोलक दान है,
किंतु हमने क्या दिया प्रतिदान है?
काटते हैं शीश उस आशीष का,
प्राण का जिससे मिला वरदान है।।
लोभ से अंधा,बधिर अब ज्ञान है।
पौधरोपण का चलो अब प्रण करें’
वन्य -अभयारण्य स़ंरक्षण करें।
शस्य से हो यह धरित्री श्यामला,
श्रम अहर्निश विश्व के जन-गण करें।
लक्ष्यगामी कर्म ही अभियान है।
पेड़ पूर्वज, पौध प्रिय संतान है।
सिद्धकृत, अध्यात्म है, विज्ञान है।