संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस पर कविता

जन्म जनवरी दस को इक दिन,राष्ट्र संघ बन जाता है।
शांति राह में चलने को ही,अपना कदम बढाता है।।

विश्वयुद्ध भड़काने वाले,लालच रख कर डोले थे।
साम्राज्य बढ़ाने उत्साहित,दुनिया से भी बोले थे।।

गुप्त संधि करके रखते थे,झगड़े खूब बढ़ाने को।
मित्र राष्ट्र सब के सब साथी,लड़ने और लड़ाने को।।

विश्वयुद्ध दुनिया का पहला,धीरे से छिड़ जाता है।
जान माल सब झोंके इसमें,नहीं समझ कोई पाता है।।

मारे जाते लोग करोड़ो,चिंता खूब सताती है।
दौर क्रांति की चलकर आगे,बढ़ती ही वह जाती है।।

हार जर्मनी की होते ही,राष्ट्र संघ बन जाते हैं।
संधि किए वर्साय वहाँ पर,भार बड़े भी लाते हैं।।

राष्ट्र विजेता बेकाबू हो,खूब दबाए हारे को।
करके कमजोर जर्मनी को,रोज दिखाते तारे को।।

राष्ट्र संघ से हिटलर नेता,आगे आकर उभरे थे।
तानाशाही उनके शासन,नहीं कहीं कुछ सुधरे थे।।

राजकिशोर धिरही
छत्तीसगढ़

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