प्रति दिवस दीपावली- डी कुमार -अजस्र (दुर्गेश मेघवाल ,बूंदी /राजस्थान ) विधा -कविता /पद्य

दीपक

एक-एक कई दीप जलाकर,
दीपावली हमने मनाई ।

अगणित दीप हृदय में जल गए,
खुशियां मन में हर्षाई।

मन-आंगन कई दीप जले थे,
अंधियारा ठहर न पाया था ।

काफी दिनों में दीन भी उस दिन,
बाद वर्ष , मन से हर्षाया था ।

‘अवध’ दीपों की कीर्ति बनाकर,
दुनियां में इठलाता है ।

एक दिवस जो हुआ उजाला,
क्यों.. शेष बरस तरसाता है..??

शुभकामनाएं, मिठाई-बधाई,
उस दिन ढेरों-ढेर असीम।

दिवस गुजर गया ,दीपक बुझ गया ,
बाकी रह गई मन में सीम(नमी)।

तेल नहीं है या, दीप है टूटा,
क्यों अंधियारा बलशाली …??

एक दिवस जब सब जग-जगमग ,
बन सकती प्रति-दिवस दीपावली।

प्रयास अथक हो ,ईमान से समृद्ध ,
दीन की न हो, कोई रात फिर काली।

मिलकर आओ,संग *अजस्र* मनाएं ,
हम-तुम वो प्रति- दिवस दीपावली।

✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*

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