रूह की बस्ती में बसा लिया    

हम तुझे  छोड़  भी नहीं पाये, अलविदा  कहकर
दिल में तुम ही तुम हो, ख्वाबों-ख़यालों में रहकर
इब्तिसाम  तेरी  क़यामत, रह गयी  इन आँखों  में
भूलना   तो   चाहा   बहुत,   बेवफा   है   कहकर
हम तुझे छोड़ भी नहीं पाये…


ये शाम  और  ये शहर,  भाता  नहीं  अब  मुझको
जिन्दा हूँ  यादों के सहारे,  गुज़र जाने हैं  कहकर
इब्दिला   है   मेरी  के ,  इश्क़  कर   बैठा   तुझसे
सँवर जायेगी  ज़िन्दगी ,  खुशी – खुशी में कहकर
हम तुझे छोड़ भी नहीं पाये…


तक़ाज़ा उसकी चाहतों का, मिन्नतों में करता रहा
फासले कम न हुए उसके, दिलो दिमाग में रहकर
रूह की  बस्ती में  बसा लिया, मकाँ ए  गुलाब को
महकता रहे  जीवन उपवन,  काँटों बीच कहकर
हम तुझे छोड़ भी नहीं पाये…

जगत नरेश
बसना (छ.ग.)


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