सबसे बढ़कर देशप्रेम है

प्रेम की वंशी, प्रेम की वीणा।
प्रेम गंगा है……प्रेम यमुना ।।
प्रेम धरा की मधुर भावना।
प्रेम तपस्या,प्रेम साधना ।।
प्रेम शब्द है,प्रेम ग्रंथ है ।
प्रेम परम् है,प्रेम अनंत है।।
प्रेम अलख है,प्रेम निरंजन ।
प्रेम ही अंजन,प्रेम ही कंचन।।
प्रेम लवण है , प्रेम खीर है ।
प्रेम आनंद औ’प्रेम ही पीर है।।
प्रेम बिंदु है,प्रेम सिंधु है ।
प्रेम ही प्यास,प्रेम अंबु है।।
प्रेम दुःखदायी,प्रेम सहारा ।
प्रेम में डूबो.. मिले किनारा ।।
प्रेम धरा की मधुर आस है ।
प्रेम सृजन है,प्रेम नाश है ।।
प्रेम मानव को ‘मानव’ बनाता ।
प्रेम शिला में.. ईश्वर दिखाता ।।
प्रेम दया है,प्रेम भाईचारा।
प्रेम स्नेही….प्रेम दुलारा ।।
प्रेम प्रसून है,प्रेम गुलिस्तां ।
प्रेम से बनता पूरा हिंदोस्ताँ ।।
जित देखिए प्रेम ही प्रेम है
पर सबसे बढ़कर देशप्रेम है ।।
-@निमाई प्रधान ‘क्षितिज’
रायगढ़,छत्तीसगढ़