मनीलाल पटेल की लघु कविता
मनीलाल पटेल की लघु कविता

किसके बादल?
स्वप्न घरौंदे तोड़के
उमड़ता, घुमड़ता ।।
बिना रथ के नभ में
ये घन किसे लड़ता?
नगाड़े ,आतिशबाजी
नभ गर्जन है शोर ।
सरपट ही जा रहा
किसके हाथों में डोर?
भीग रहे, कच्ची ईंटें
पकी धान की फसल
किसान का ये नहीं तो,
भला किसके बादल?
मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़
काम को काम सिखाता है
काम को काम सिखाता है ।
नाम ही नाम कमाता है ।
आदमी भी मदद अपनी खुद कर जाता है।
अपना काम आप करो हर काम तमाम करो ।
No pain, no gain. Try again.
कांटा को कांटा निकालता है ।
लोहा ही लोहा काटता है।
आदमी खुद के लिए खतरा बन जाता है।
बात को समझा करो खुद में ना उलझा करो
No pain, no gain. Try again.
बात को बात बढ़ाता है।
हाथ ही हाथ मिलाता है ।
आदमी अपनी भीड़ में खो जाता है ।
रास्ता न जाम करो , सब को सलाम करो
No pain, no gain. Try again.
मनीभाई नवरत्न
चलो ऐसा राष्ट्र बनाएं
चलो ऐसा राष्ट्र बनाएं,
जिसकी पहचान,
रंग, वर्ण, जाति से ना हो।
ना हो संप्रदाय, हमारे मूल पहचान में।
बांटें नहीं खुद को
नदी पर्वत के बहाने ।
भाषा, बोली को मानें हम तराने।
चलो ऐसा राष्ट्र बनाएं।
राष्ट्र तो है दीपक
आलोकित होता संपूर्ण विश्व ।
दीये से दीये जुड़ते जाएं
अंधेरा छंट जायें
मन की आंखों से ।
तभी जानेंगे तेरी रोशनी,
मेरी रोशनी से फर्क नहीं ।
आगे बढ़ें एक लक्ष्य लेके
हम मानस पुत्र
भक्षक नहीं रक्षक हैं
अखिल ब्रम्हांड का
जो हम सबका परिवार है।
मनीभाई नवरत्न

manibhai navratna
जब जिंदगी की हो जाएगी छुट्टी
जब जिंदगी की हो जाएगी छुट्टी ।
तब तू नहीं मैं नहीं रह जाएगी मिट्टी।
प्यार की फैली है खुशबू इस जहां में ।
कल बदल जाएगी क्या रखा है इस समां में ।
जाना होगा तुझे सब छोड़कर
भेज दे वह जब बुलावे की चिट्ठी ।
अपने करीब के माहौल को फिर से सजा लो।
कल क्या होगा किसने जाना आओ मजा लो ।
ढूंढे है तूने सुख चैन क्या वे मिलेंगे तुझे कभी।
जिंदगी की जब हो जाएगी छुट्टी
🖋मनीभाई नवरत्न
तृण-तृण चुन
तृण-तृण चुन।
स्वनीड़ बुन।
है जब जुनून ।
छोड़ कभी ना
अपनी धुन ।
ना रख पर आश।
ना बन तू दास ।
फैला स्वप्रकाश ।
स्वाभिमान रख पास ।
तज तू भेड़चाल ।
फैला ना कोई जाल।
पैसे का ना हो मलाल ।
नेकी कर दरिया में डाल।
कर्म पथ पर औंटा खून ।
दिल की बात अपनी सुन ।
मांग रोटी बस दो जून ।
भरा रहे मन संतोष सुकून ।
तृण-तृण चुन।
स्वनीड़ बुन।
है जब जुनून ।
छोड़ कभी ना अपनी धुन ।
यूं तो हर किसी का होता है एक परिवार
यूं तो हर किसी का होता है एक परिवार ।
पर मेरा परिवार बना है यह सारा संसार ।
कभी उलझी हुई, कभी सुलझी हुई ।
चारों ओर बिछी हुई, लोगों के प्यार ने हमको पाला।
यह जीवन मकड़ी का जाला,
सिरा जिसका हमें ना मिला ।।
कभी खिलती हुई कभी सिमटती हुई,
खुशबू से महकती हुई, धरती मां ने मुझमे जान डाला।
यह जीवन फूलों की माला,
सिरा जिसका हमें ना मिला ।।
कभी सुलगती हुई, कभी बुझती हुई,
खुशियों से चहकती हुई, दोस्तों का बोलबाला।
यह जीवन ग़मों का निवाला ,
सिरा जिसका हमें ना मिला ।।
यह जीवन मुझे लावारिस का ,
यह जीवन मेरे आंखों की बारिश का।
यह जीवन मेरी गुजारिश का ,
सिरा जिसका हमें ना मिला।।
-मनीभाई नवरत्न