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श्रमिक-विकास की बुनियाद पर कविता

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श्रमिक-विकास की बुनियाद पर कविता

मजदूर दिवस
मजदूर दिवस

सूरज की पहली किरण से काम पर लग जाता हूँ।
ढलते सूरज की किरणों संग वापस घर को आता हूँ।
अपने घर परिवार के लिए,शरीर की चिंता छोड़ मैं।
हवा,पानी,धूप,छांह को हँसकर सह जाता हूँ।।1।।


नव निर्माण,नव विहान की शुरुआत हूँ मैं।
देश के विकास की पहली ईंट बुनियाद हूँ मैं।
सोचता हूँ गढ़ रहा हूँ खुद के विकास की इमारत।
पर मुझे क्या पता,अमीरों के लिए बिछा बिसात हूँ मैं।।2।।

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खुद के उगाए अन्न को भी न खाने को मजबूर हूँ मैं।
कंधों पर टिका जहां सारा,मेहनतकश मजदूर हूँ मैं।
सड़ रहे हैं गोदामों में पड़े पड़े मेरे उगाए हुए अनाज।
मुझे बताओ मधुर,कैसे आज भी निवाले से दूर हूँ मैं।।3।।


सुलगती सांसें,मचलता मन,गिरते पसीने भीगा तन।
दर्द से अकड़ा बदन,अश्रु की धारा से बहते नयन।
कड़कड़ाती हो सर्द रातें या बरसात में भीगा तन बदन।
रुकता नहीं,झुकता नहीं चाहे बढ़े मई जून की तपन।।4।।


धरा को धन्य बनाता,मैं अन्न उपजाता हूँ।
वैभव,सुख,सौंदयता देने,खनिज रत्न निकालता हूँ।
कड़ी धूप में देह तपाता,दर्द छुपाता;न अश्रु बहाता हूँ।
श्रम से सींचता धरा को,मैं मजदूर उर्वरा बनाता हूँ।।5।।


*सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ.
ग.)
मोब.- 8103535652
9644035652
ईमेल- [email protected]

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