सरहद पर कविता
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सरहदों पर
व्याप्त है
भयावह चुप्पी
की जा रही है
चुपचाप निगहबानी
की जाती हैं बाड़बंधी
नियन्त्रित करने को
इंसानों को
इंसानों की आवा-जाही को
कहा जाता है
की जा रही है सुरक्षा
स्वतंत्रता की
संप्रभुता की
सरहद नहीं होती प्रतीत
स्वतन्त्रता की परिचायक
सरहद तो
करती है नियंत्रित
इंसानों को
उनकी स्वतंत्रता को