Tag: Hindi Poem on Magh Basant Panchami

  • सभी विद्या की खान है माता

    सभी विद्या की खान है माता

    सभी विद्या, सुधी गुण की,
    अकेली खान है माता।
    इन्हे हम सरस्वती कहते,
    यही सब ज्ञान की दाता।
    इन्हे तो देव भी पूजें,
    पड़े जब काम कुछ उनका-
    सदा श्रद्धा रहे जिसमे,
    इन्हे वह भक्त है भाता।

    सदा माँ स्वेत वस्त्रों मे,
    गले मे पुष्प माला है।
    लिए पुस्तक तथा वीणा,
    वहीं पर हाथ माला है।
    स्वयं अभ्यास रत दिखतीं,
    यही संदेश है सबको —
    सही अभ्यास से खुलता,
    सदा यह भाग्य ताला है।

    पुरा प्रभु कंठ से निकलीं,
    बनी हर जीव की वाणी ।
    शुभ माघ की ही पंचमी,
    “ऐं” बोले सुधी प्राणी।
    ऋतुराज का भी आगमन,
    यहाँ उपवन सभी फूलें —
    दुनिया को देने ज्ञान,
    उदयी धीश्वरी वाणी ।

    मिला अभ्यास से ही है,
    हमे यह ज्ञान भी सारा ।
    यहाँ हम लिख रहे कविता,
    बजाते वाद्य भी प्यारा।
    कठिनतर नृत्य भी करते,
    जगत मे ख्याति है पाई–
    बनाया गुरु-सरस्वति ने,
    हमे जो आँख का तारा।

    नमन् है हर दिशा से माँ,
    मुझे आशीष यह देना ।
    बनूँ निज मातृभाषा का ,
    सही सेवक तथा सेना ।
    करूँ आराधना हरदम,
    चढ़ा मै भाव सुमनों को।
    हमारे दोष-दुर्गुण सब,

    पुराने भस्म कर देना ।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर

  • आया रे आया बसंत आया

    आया रे आया बसंत आया

    आया रे आया बसंत आया
    आया रे आया बसंत आया।
    पेड़-पौधों के लिये खुशहाली लेकर आया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    चारों तरफ छायी है खुशियाली।
    पेडो़ पर आयी है नयी हरियाली।।
    आया रे आया बसंत आया।

    आने वाली है रंगो की होली।
    बसंत की खुशी में पशु-पक्षी डोल रहे हैं डाली-डाली।।
    आया रे आया बसंत आया।

    बसंत की खुशी में पौधों पर नये फूल आ रहे बारी-बारी।
    इन नये फूल, पत्तों को देखकर झूम रही दुनिया सारी।।
    आया रे आया बसंत आया।

    किसानों के लिये खुशियाँ लाया।
    घर घर में है हरे रंग का उजाला छाया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    पेड़ों के लिये है बसंत नया जीवन लाया।
    पेड़ों पर नये फूल और पत्ती लाया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    बंसत को देखकर मुस्कराई जवानी।
    जिस तरफ देखो बसंत के रंगों की ही कहानी।।
    आया रे आया बसंत आया।

    नये नये फूलों ने अपनी सुगन्ध से बगियाँ को चहकाया।
    उसकी सुगन्ध से सारी दुनिया समझ गयी कि बसंत आया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    बसंत लाया मस्ताना मौसम और हवा मस्तानी।
    बसंत की हरियाली को देखकर दुनिया हो गयी दीवानी।।
    आया रे आया बसंत आया।

    चारों तरह हो रहा जंगल में बसंत का शोर।
    नाच रहे शेर, वाघ, कोयल और मोर।।
    आया रे आया बसंत आया।।

    किसानों के लिये सुनहरा मौसम आया।
    चारों तरफ हरियाली ही हरियाली लाया।।
    आया रे आया बसंत आया।


    धमेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
    जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश
    मोबाइल नं0-9557356773
    वाटसअप नं0-9457386364

  • माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता

    माघ शुक्ल की पंचमी,
    भी है पर्व पुनीत।
    सरस्वती आराधना,
    की है जग में रीति।।


    यह बसंत की पंचमी,
    दिखलाती है राह।
    विद्या, गुण कुछ भी नया,
    सीखें यदि हो चाह।।


    रचना, इस संसार की,
    ब्रह्मा जी बिन राग।
    किये और माँ शक्ति ने,
    हुई स्वयं पचभाग।।


    राधा, पद्मा, सरसुती,
    दुर्गा बनकर मात।
    सरस्वती वागेश्वरी,
    हुईं जगत विख्यात।।


    सभी शक्ति निज अंग से,
    प्रकट किये यदुनाथ।
    सरस्वती जी कंठ से,
    पार्टी वीणा साथ।।


    सत्व गुणी माँ धीश्वरी,
    वाग्देवि के नाम ।
    वाणी, गिरा, शारदा,
    भाषा, बाच ललाम।।


    विद्या की देवी बनी,
    दें विद्या उपहार।
    भक्तों को हैं बाँटती,
    निज कर स्वयं सँवार।।


    लक्ष्मी जी भी साथ ही,
    पूजें, कर निज शुद्धि।
    धन को सत्गति ही मिले,

    विमल रहेगी बुद्धि।।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर


  • आया बसंत- कविता चौहान

    आया बसंत आया बसंत

    आया बसंत, आया बसंत
    छाई जग में शोभा अनंत।
    चारों ओर हरियाली छाई
    जब बसंत ऋतु है आई।
    रंग बिरंगे फूल खिलाए
    खेतों पर सरसों लहराए।
    फूलों पर भोरे मंडराए
    जब बसंत ऋतु है आए।

    सूरज की लाली सबको भाए।
    देख बसंत, शाखाएं लहराए।
    देख नीला आसमा मन हर्षाए।
    जब बसंत अपना रंग बिखराए।

    अलसी की शोभा निराली।
    कोयल कूके डाली डाली।
    देखो कैसी मस्ती है छाई।
    आई, बसंत ऋतु है आई।
    भौंरे गाते है नये नये गान।
    कोकिल छेड़ती मधुर तान।
    है सब जीवों के सुखी प्राण
    इस सुख का ना हो अब अंत।


    आया बसंत आया बसंत
    छाया जग में शोभा अनंत।

    कविता चौहान

  • प्रणय मिलन कविता-सखि वसंत में तो आ जाते

    प्रणय मिलन कविता-सखि वसंत में तो आ जाते- डॉ सुशील शर्मा

    सखि बसंत में तो आ जाते।
    विरह जनित मन को समझाते।

            दूर देश में पिया विराजे,
           प्रीत मलय क्यों मन में साजे,
           आर्द्र नयन टक टक पथ देखें
           काश दरस उनका पा जाते।
           सखि बसंत में तो आ जाते।

      सुरभि मलय मधु ओस सुहानी,
      प्रणय मिलन की अकथ कहानी,
      मेरी पीड़ा के घूँघट में ,
      मुझसे दो बातें कह जाते।
      सखि बसंत में तो आ जाते।

           सुमन-वृन्त फूले कचनार,
           प्रणय निवेदित मन मनुहार
          अनुराग भरे विरही इस मन को
          चाह मिलन की तो दे जाते ,
          सखि बसंत में तो आ जाते।

          दिन उदास विहरन हैं रातें
          मन बसन्त सिहरन सी बातें
          इस प्रगल्भ मधुरत विभोर में
          काश मेरा संदेशा पाते।
          सखि बसंत में तो आ जाते।

    बीत रहीं विह्वल सी घड़ियाँ,
    स्मृति संचित प्रणय की लड़ियाँ,
    आज ऋतु मधुमास में मेरी
    मन धड़कन को वो सुन पाते।
    सखि बसंत में तो वो आ जाते।

          तपती मुखर मन वासनाएँ।
          बहतीं बयार सी व्यंजनाएँ।
          विरह आग तपती धरा पर
         प्रणय का शीतल जल तो गिराते।
         सखि बसंत में तो आ जाते।

         मधुर चाँदनी बन उन्मादिनी
         मुग्धा मनसा प्रीत रागनी
         विरह रात के तम आँचल में
         नेह भरा दीपक बन जाते।
         सखि बसंत में तो आ जाते।

    डॉ सुशील शर्मा