पिता पर कविता~बाबूलाल शर्मा
पिता पर कविता-बूलालशर्मा पिता ईश सम हैं दातारी। कहते कभी नहीं लाचारी। देना ही बस धर्म पिता का। आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१ तरु बरगद सम छाँया देता। शीत घाम सब ही हर लेता! बहा पसीना तन जर्जर कर। जीता मरता सतत प्रणेता।२ संतति हित में जन्म गँवाता। भले जमाने से लड़ जाता। अम्बर सा समदर्शी … Read more