Tag: #सुकमोती चौहान ‘रूचि’

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० सुकमोती चौहान ‘रूचि’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    विश्व मानवाधिकार दिवस पर कविता

    मिले कई अधिकार, जीवधारी को जग में|
    कुछ हैं ईश प्रदत्त, बने उपयोगी पग में |
    जीने का अधिकार, जगत में सबने पाया |
    भोजन पानी संग, भ्रमण का हक दिलवाया |
    अपने मन का नृप बने, जीव सभी इनसंसार में |
    अधिकारों का कर हनन, मस्त रहे व्यवहार में ||

    अधिकारों कीइन 5 बात, समझता जो बोया है |
    हक का पाकर नूर, भला किसने खोया है |
    करते भाषण खूब, गिनाते अधिकारों को |
    भूले निज कर्तव्य, भूलते आधारों को |
    एक दूसरे से जुड़े, जाल बना संसार रुचि |
    पृथक नहीं कर्तव्य से, कोई भी अधिकार रुचि ||

    तुमको है अधिकार, चलाये अपना सिक्का |
    पहन राज का ताज, चलाये अपना इक्टी का |
    नामंजूरी कौन, करे अब आगे तेरे |
    मिले तुझे वर्चस्व, मिला कानूनी घेरे |
    इस सत्ते ऊपर बना, सच्ची सत्ता ईश का |
    जो अंतिम सर्वोच्च है, न्याय तंत्र जगदीश का |

    सुकमोती चौहान रुचि

  • संवाद पर कविता – सुकमोती चौहान रुचि

    संवाद पर कविता

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    तुमसे कर संवाद, सुकूं मन को मिलता है |
    मधुर लगे हर भाष्य, सुमन मन में खिलता है |
    कर्णप्रिय हर बात, प्रेरणा देती हरदम |
    करके जिसको याद, दूर हो जाती है गम ||
    उत्प्रेरक संवाद सब, नित्य सँजोया तुम करो |
    कठिन समय में याद कर, सत्य राह नित तुम वरो ||

    करके नित संवाद, हृदय को हल्का कर लो |
    करके मन की बात, प्रेम जीवन में भर लो ||
    सोच समझ कर बोल, अमर होती है वाणी |
    इसका प्रखर प्रभाव, रहे युग युग कल्याणी |
    सोच समझ कर बोलना, खट्टा मीठा बोल है |
    हर युग में स्थायी रहा, संवादों का मोल है ||

    जब तक है संवाद, खुले रहते हैं रास्ते |
    दिखे सुलह की राह, बने रहते हैं वास्ते ||
    खत्म हुआ संवाद, खत्म होती सब राहें |
    टूटी सब उम्मीद, सिर्फ भरते हैं आहें ||
    संवादों का सिलसिले, बंद न होने चाहिए |
    नफरत होता है क्षणिक, कुछ दिन धीरज धारिए ||

    सुकमोती चौहान रुचि

  • गौरी पुत्र गणेश – सुकमोती चौहान

    गौरी पुत्र गणेश

    गणपति
    गणपति



    आओ हे गौरी पुत्र गणेश!
    हरने हम सब के क्लेश।

    अग्र पूजन के अधिकारी,
    ज्ञान विद्या के भंडारी,
    मंगल मूर्ति अतुल बलधारी,
    पधारो हे गजानन!
    भरने जीवन में आनंद।
    आओ हे गौरी पुत्र गणेश!
    हरने हम सबके क्लेश |

    शिव शक्ति के तुम दुलारे,
    देवगणों के हो नायक।
    कर्म को पूजा माने आप,
    अष्ट सिद्धि के दायक ।
    विराजो हे कृपा निधान!
    देने बुद्धि का वरदान।
    आओ हे गौरीपुत्र गणेश!
    हरने हम सबके क्लेश।

    शुभकर्ता, विघ्नहर्ता
    संग रिद्धि- सिद्धि लेकर
    धीर वीर हे ग्रंथकार!
    आओ हे लम्बोदर!
    दिलाने कलम में धार।
    आओ हे गौरी पुत्र गणेश!
    हरने हम सबके क्लेश।

    सुकमोती चौहान रुचि

  • सागर पर हिंदी कविता – सुकमोती चौहान रुचि

    सागर पर हिंदी कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सागर गहरा ज्ञान सा, बड़ा वृहद आकार |
    कौन भला नापे इसे, डूबा ले संसार |
    डूबा ले संसार, नहीं सीमा है कोई |
    कहलाये रत्नेश, यही कंचन की लोई |
    कहती रुचि यह बात , यही मस्ती का आगर |
    अनुपम दे आनंद,देख लो गहरा सागर ||

    सागर तट पर बैठकर ,लहरें गिनकर आज |
    भाव प्रफुल्लित कर रही, लहरों की आवाज ||
    लहरों की आवाज, सुखद पल और कहाँ है |
    खुले गगन के बीच , पनपता प्रीत यहाँ है ||
    करती रुचि फरियाद, बसायें अपना आगर |
    बने घरौंदा एक, रहे साक्षी ये सागर ||

    सागर साहिल पर सजे , सीपी शंख दुकान |
    सूरज की शुचि लालिमा, लगती रजत समान ||
    लगती रजत समान, झिलमिलाती है लहरें |
    मछुआरों की नाव , किनारे आकर ठहरे ||
    कहती रुचि करजोड़, ज्ञान का भरना गागर |
    कतरा कतरा जोड़ , बना अद्भुत यह सागर ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    आगर – घर

  • सर्द हवाएँ – सुकमोती चौहान रुचि

    सर्द हवाएँ – सुकमोती चौहान रुचि


    सर्द हवाएँ हृदय समाये, तन मन महका जाये |
    आ कानों में कुछ कहती है, मधुरिम भाव जगाये |

    हमको तुम कल शाम मिले थे, पसरी थी खामोशी |
    भाव अनेकों उमड़ पड़े थे, लब पर थी मदहोशी ||
    शांत सुखद मौसम लगता है, मन ये शोर मचाये |
    सर्द हवाएँ हृदय समाये, तन मन महका जाये ||

    तुमसे मिलकर होश गँवाये, आती कहीं न चैना |
    नित्य देखते ख्वाब तुम्हारा, जागे सारी रैना |
    नरम नरम कंबल में लिपटे, याद तुम्हारी आये |
    सर्द हवाएँ हृदय समाये, तन मन महका जाये ||

    धूप सुनहरी बड़ी सजीली, पंछी भरते आँहें |
    खड़े रहे थे तुम फैलाये , आलिंगन की बाँहें |
    खुली वादियाँ उड़ता आँचल, हरदम तुम्हें बुलाये |
    सर्द हवाएँ हृदय समाये, तन मन महका जाये |


    सुकमोती चौहान रुचि