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शाकाहारी जीवन/ विनोद कुमार चौहान जोगी

छन्न-पकैया छन्न-पकैया छन्न-पकैया छन्न-पकैया, सुन लो बात हमारी।अच्छी सेहत चाहो जो तुम, बनना शाकाहारी।। छन्न-पकैया छन्न-पकैया, जो हो शाकाहारी।रक्तचाप में संयम रहता, होती नहीं बिमारी।। छन्न-पकैया छन्न-पकैया, सादा भोजन करना।लंबा जीवन मिलता जोगी, पड़े न पीड़ा सहना।। छन्न-पकैया छन्न-पकैया, बनो…

मातृ भाषा पर कविता – विनोद कुमार चौहान

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद…

कलम पर कवितायें

हाय! कलम क्यों थककर बैठी? ध्येय अधूरा है फिर भी तुम, कैसे करती हो विश्राम?हाय! कलम क्यों थककर बैठी? भूल गई क्या अपना काम? नहीं मरी भूखमरी भू की, विपन्नता भी हुई न दूर।शिक्षा से वंचित हैं बच्चे, धन अर्जन…

mahapurush

शहीदों पर कविता

शहीदों पर कविता , उस व्यक्ति को हम शहीद कहते हैं. ऐसे व्यक्ति जो कि किसी भी लड़ाई में देश की सुरक्षा करते हुए या देश के नागरिकों की सुरक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं. ऐसे व्यक्तियों को…

संविधान शुभचिंतक सबका

संविधान शुभचिंतक सबका (आल्हा छंद) विश्लेषकजन का विश्लेषण, सुधीजनों का है उपहार।संविधान शुभचिंतक सबका, बांटे जो जग में अधिकार।। जन मानस सब विधि के सम्मुख, कहते होते एक समान।अपने मत का पथ चुन लें हम, शिक्षा का भी मुक्त विधान।।समता…

mahatma gandhi

देख रहे हो बापूजी

देख रहे हो बापूजी देख रहे हो बापूजी,कैसा है आपके सपनों का भारत।निज स्वार्थ सिद्ध करने हेतु,जन-जन ने प्राप्त कर ली है महारत। देख रहे हो बापूजी,गांवों की हालत आपसे क्या कहें।इतना विकास हुआ ग्राम्य अंचल का,कि अब गांव, गांव…

विश्वकर्मा भगवान पर कविता -विनोद कुमार चौहान जोगी

विश्वकर्मा भगवान पर कविता (अमृत ध्वनि छंद) सुन्दर सर्जनकार हैं, भौमन है शुभ नाम।गढ़ना नित ही नव्य कृति, प्रभुवर पावन काम।।प्रभुवर पावन, काम सुहावन, गढ़ें अटारी।अस्त्र बनाते, शस्त्र सजाते, महिमा न्यारी।।हैं अभियंता, गढ़ते जंता, गढ़ें ककुंदर।पूज्य प्रजापति, तुम्हीं रूपपति, श्री…

हे गणनायक – विनोद कुमार चौहान

हे गणनायक (सार छंद) हे गणनायक हे लम्बोदर, गजमुख गौरी नंदन।लोपोन्मुख थाली से होते, अक्षत-रोली-चंदन।। हे शशिवर्णम शुभगुणकानन, छाई है लाचारी।बढ़ती मँहगाई से अब तो, हारी जनता सारी।। हे यज्ञकाय हे योगाधिप, भोग लगाऊँ कैसे।मोदक की कीमत तो बप्पा, बढ़े…