अंकिता जैन की कविता

विचित्र दुनिया

     
ये बड़ी विचित्र दुनिया है,
यहाँ, विचित्र राग गाया जाता हैं।
अपने घाव रो रो कर दिखाते,
और दूसरे के घावो पर,
नमक लगाया जाता हैं।
ये बड़ी विचित्र दुनिया हैं,
यहां विचित्र राग गाया जाता हैं।
कभी मजहब पर झगड़े होते,
तो कभी जात को मुद्दा बनाया जाता हैं,
ये बड़ी विचित्र दुनिया है,
यहां विचित्र राग गाया जाता हैं।
अपनी-अपनी  ढंकते यहां,
और दूसरों का तमाशा बनाया जाता है,
ये बड़ी विचित्र दुनिया हैं,
यहां विचित्र राग गाया जाता हैं।
पैसा सर्वोच्च शक्ति यहां की,
पैसे से सबको नचाया जाता है,
ये बड़ी विचित्र दुनिया हैं,
यहां विचित्र राग गाया जाता हैं।

अंकिता जैन’अवनी’
(लेखिका/कवियत्री)
अशोकनगर(म.प्र)

शुरुआत नई करें कविता

नये संकल्प दरवाजे पर,
दस्तक दे रहे हैं।
नये प्रयास पास बुला रहे हैं।
नए राहगीर मिल गए,
जो नई दिशा में ले जा रहे हैं।
पुराने दु:ख, पुरानी तकलीफ,
रह-रह कर बाहर आती है।
पुरानी पीड़ा हर रोज हमें, रुलाती है,
पर दर्द की यही चुभन,
नई शुरुआत का आगाज कराती है।
हम भटके परिंदे वर्तमान में कम,
अतीत में ज्यादा गुम रहते हैं।
अच्छे नहीं कटु अनुभव,
हम ज्यादा कहते हैं,
चलो अब आगे बढ़े
क्यों पीछे रह गये हम,
भुला दे उस घड़ी को
जिसने आंखों को किया नम
अब आशावादी हो,
हमारा मन और नई खुशियों को,
समेट ले, ये दामन।

अंकिता जैन अवनी
अशोकनगर मप्र


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