विस्तृत व्यापक आँचल तेरा – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
इस रचना में कवि ने अपनी माँ के विस्तृत जीवन का चित्रण किया है |
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम ”
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।
तेरा नारीत्व बालपन खेले।
सुबह सवेरे शाम सवेरे।
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।
नूर खिले मेरा तुझसे।
संस्कार बने मेरा तुझसे।
गिरूं तो मुझे संभाले तू।
डरूं तो मुझे बचा ले तू।
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।
विद्यमान तुझमे ईश्वरत्व है।
पलता तुझमे वात्सल्य है।
वैसे तो प्रथम शिक्षक है तू।
संस्कृति संस्कार की पोषक है तू।
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।
मातृत्व की पुण्यमूर्ति हो तुम।
ममत्व से परिपूर्ण हो तुम।
आस्तिकता की पुण्यमूर्ति हो तुम।
सौंदर्य से माँ परिपूर्ण हो तुम।
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।
शैशवावस्था से तुमने पाला है मुझे।
माधुर्य तेरा जीवन अलंकार हो गया मेरा।
समृद्धि मेरी विस्तार हो गया तेरा।
धीरज तेरा व्यवहार हो गया मेरा।
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।
माँ तेरा पातिव्रत्य मातृत्व
माँ तेरा नारीत्व ,ममत्व।
माँ तेरा अपनत्व नेतृत्व
जीवन साकार हो गया मेरा।
विस्तृत व्यापक आँचल तेरा।
पलता बचपन यौवन मेरा।।