संस्कारों का आधुनिकीकरण- पद्ममुख पंडा महापल्ली

कविता संग्रह
कविता संग्रह

“संस्कारों का आधुनिकीकरण”


बचपन से ही है मेरी नजर
समाज के रहन सहन पर
खान पान;जीवन शैली
संस्कारों की है जो धरोहर

अपनी संस्कृति है ऐसी
सुंदर और मनोहर
जो यह कहती है
संपूर्ण विश्व है अपना घर

भारतीय परंपरा में
सुबह चरण स्पर्श कर
बच्चे पाठशाला जाते
मात पिता के आशीष लेकर

पर पाश्चात्य सभ्यता का
अब हो रहा है असर
जिसका पड़ रहा दुष्प्रभाव
हमारे समाज पर

बच्चे बूढ़े जवान सभी
रंग बदल रहे हैं
चरण स्पर्श छोड़ कर
हाय हलो कर रहे हैं

खान पान का तरीका भी
कुछ ऐसे बदल रहा है
जैसे कि देश में कोई
नया एक्सपेरिमेंट चल रहा है

रोटी भात खीर पूरी
थाली से नदारद है
पिज्जा बर्गर टोस्ट की
हो रही खुशामद है

लोगों की अभिरुचि ही
कुछ ऐसी हो गई है
संस्कृति का आधुनिकीकरण
करने जैसी हो गई है

पद्ममुख पंडा महापल्ली

You might also like