Author: कविता बहार

  • अजादी के अमरीत उत्सव- तोषण चुरेन्द्र दिनकर

    अजादी के अमरीत उत्सव- तोषण चुरेन्द्र दिनकर

    tiranga

    अजादी के अमरीत उत्सव भारत देश मनात हे
    साल पचहत्तर पूरा होगे झंडा तिरंग लहरात हे

    लाल बाल अउ पाल भगत सिंह
    बनके तँयहा ललकार भर
    भीड़ जा आघू बघवा बनके
    नाहर कस हूंकार कर
    शेर के पीला कोलिहा नोहव काबर गा डर्रात हे
    साल पचहत्तर पूरा होगे झंडा तिरंग लहरात हे

    हिमालय चोटी म डटे हे
    सेना वीर जवान मन
    हरियर खेती डोली सम्हाले
    मोर गंवइहा किसान मन
    मिले किसान जवान संगी विज्ञान घलो इतरात हे
    साल पचहत्तर पूरा होगे झंडा तिरंग लहरात हे

    छत्तीसगढ़ महतारी हमरो
    भारत माँ के दुलारी हे
    दया के सुरती मया के मुरती
    अपन जिनगी ले प्यारी हे
    ए भुंइया मा जनम धरके भाग अपन सँहरात हे
    साल पचहत्तर पूरा होगे झंडा तिरंग लहरात हे

    कतको बीर बलिदानी होगे
    लहू ले सींचिस भुंइया ल
    आँचआवन नइ दिस बैरी के
    रोक के रखदीस बंइहा ल
    आइस हजारों आघू बैरी मिलके धूर्रा चटात हे
    साल पचहत्तर पूरा होगे झंडा तिरंग लहरात हे

    त्याग साहस नस मा भरलौ
    शांति संदेश बगराना हे
    सुख समरिद्धि रहे भुंइया मा
    विश्व गुरु कहलाना हे
    तोषण दिनकर के लेखनी अतरी मया बगरात हे
    साल पचहत्तर पूरा होगे झंडा तिरंग लहरात हे

    तोषण चुरेन्द्र दिनकर
    धनगांव डौंडी लोहारा

  • भूख की कविताएँ -रमेश कुमार सोनी

    खाना खाने की इच्छा होने पर भूख लगती है। तृप्ति भूख का अभाव है। भूख की अनुभूति हाइपोथैलेमस से शुरू होती है जब यह हार्मोन जारी करता है। यह हार्मोन लीवर के रिसेप्टर के साथ प्रतिक्रिया करता है। हालाँकि एक सामान्य व्यक्ति भोजन के बिना कई हफ्तों तक जीवित रह सकता है। भोजन के कुछ घंटों बाद भूख लगने लगती है और व्यक्ति असहज महसूस करने लगता है।

    लेकिन यहाँ पर कवि रमेश कुमार सोनी ने भूख शब्द का प्रयोग किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का वर्णन करने के लिए किया गया है।

    ramesh kumar soni


    भूख का झण्डा

    भूखे बच्चों जैसे
    दौड़े आते हैं शब्द
    मेरी लेखनी और कागज की आहट पर
    किसी भंडारे की तलाश करते और
    सज जाते हैं
    पंगत की पंक्तियों सी
    परोसने का इंतजार करते
    कविता की पंक्तियों में ।

    यही इबारत एक दिन
    क्रांति लाएगी
    भूख का झंडा उठाए
    यही शब्द फिर
    टाँग दिए जाएँगे सूली पर
    फाँसी की सजा भुगतने
    क्योंकि भूख का नारा लगाना
    कभी भी मंजूर नहीं था
    भरे पेट वाले इंसानों को।

    इनका रोना पीटना भी
    नाजायज़ होता है ये शब्द सिर्फ
    हमाल की पीठ जैसे हैं
    जमाने का बोझ ढोने के लिए
    जो सिर्फ कराह सकती हैं
    आँसू नहीं बहा सकती
    व्यथा कह नहीं पाती
    परंतु ऐंठती आँतों में
    भूख का अनुवाद
    सिर्फ और सिर्फ भूख ही होता है।
    ……

    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़

    भूख का बीज

    सोचता हूँ कभी-कभी की
    भूख कैसी होती होगी?
    काली-कलूटी, स्याह-डरावनी
    किसी चुड़ैल की तरह या फिर
    गोरी-चिट्टी,सुन्दर
    किसी फिल्मी कलाकारों जैसी
    शायद
    अधों के हाथी जैसी है-भूख
    जिसने जैसा देखा वैसा बताया।

    भूख रहती है सर्वत्र
    गरीबी रेखा से नीचे और ऊपर भी
    गाँव से शहर में
    झुग्गियों से अट्टालिकाओं तक
    रुपये डालर, यूरो, येन, फ्रेंच की
    सबकी अपनी-अपनी भूख
    भूख के सामने
    आत्मसमर्पण करते हैं-दिलोदिमाग।

    भूख के विषय भिन्न-भिन्न होते हैं
    पेट, जिस्म, दिल-दिमाग की
    आग, पानी, मुद्रा, सत्ता, यश की भूख
    कोख बिकवाती
    चाँद तक ले जाती है भूख
    भूख बना लेती है-
    नायाब स्मारक ताजमहल जैसा
    या तो लिख देती हैं
    जघन्य अपराधों की काली फेहरिस्त
    अनदेखी,अनसुनी किस्सों के जैसी।

    मैंने पहले भी कहा है कि-
    भूख का पौधा जिन्दा रहता है
    बिना खाद-पानी के
    शताब्दियों से हमेशा जवान
    यह कभी विलुप्त होगा भी नहीं
    इसी की टहनी पर
    झंडा लगाए लोग और
    सेनाएँ निकल पड़ती है
    अपनी-अपनी भूख की सीमा नापने
    लूट-खसोट करते हुए भूख मिटाने
    इसी तरह इंसान
    प्रकीर्णन करता ही रहा है
    भूख के बीजों का
    इस दुनिया से अनंत ब्रह्मांड तक।
    …..

    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़

    अजर अमर भूख

    जब मैं प्रणय गीत गुनगुनाता हूँ
    अप्सराएँ व्योम विहार भूलकर
    मेरे आँगन आ जातीं हैं
    पर जब भूख से अकुलाती मेरी आँतों से
    भूख-प्यास राग फूटता है
    तब पास मेरे
    कोई भी नहीं फटकता है।

    खूबसूरत महँगे आइने में भी
    मेरा भूखा चेहरा वैसा ही दिखता है
    लोग कहते हैं कि आदमी के संग
    भूख भी मर जाती है
    शमशान से लौटे हैं
    अभी-अभी लोग भूख को दफ़न कर
    यही वे लोग हैं जो पंगत में बैठे हैं।

    रीति-रिवाज,परम्पराओं की दुहाई देकर
    भूख इन सबके शरीर में
    पुनः जिंदा होकर लौट आती है
    भूख अजर-अमर है
    सभी इससे मुक्ति पाना चाहते हैं
    बावजूद इसके लोग भाग रहे है
    इस छोर से उस छोर तक
    अपनी भूख को जिंदा रखे हैं
    आखिरी हिचकी तक।
    ……
    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़

    भूख और नदियाँ

    गंगा-गंगोत्री से
    यमुना यमुनोत्री
    नर्मदा -अमरकंटक से और
    महानदी का सिहावा पर्वत से
    उद्गम होता है।

    पथरीली राहों,कंदराओं
    पर्वतों से झरती हुई
    बलखाती जीवनदायिनी
    ये नदियाँ विलीन हो ही जाती हैं
    महासागरों में।

    किंतु भूख का उद्गम
    कहीं से भी हो सकता है
    किसी भी दिशा में
    प्रवाहित हो सकती है और
    हर स्पंदन को
    दस्तक देती हुई यह
    पेट से निकलकर
    दिल, दिमाग और आत्मा में
    ज्वाला धधकाती हैं।

    भूख और नदियाँ
    चिरंतन प्रवाहमान हैं
    रोटी और बाँध
    इसके विश्राम स्थल हैं
    किंतु इसे नियंत्रित करना
    इंसानी शक्ति से परे है
    क्योंकि
    नदियाँ तो लुप्त हो सकती हैं
    परन्तु
    भूख सदासुहागन चिरयौवना है।
    ……

    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़

    भूख का गणित

    भीषण गर्मी में लू के थपेड़ों में
    पिघलती कोलतार की सड़कों के बीच
    बंद किवाड़ों के पीछे ऊँघते हुए शहर से
    अनजाने ढँके चेहरे
    निकल भागते हैं एकाएक
    दौड़ते वाहनों में
    शीतलता की तलाश में।

    वहीं लू से हो रही मौतों के बीच
    नीम के नीचे दुबकी बैठी छाया
    मुन्ने को दुलार रही थी और वह
    जूते, छाते की मरम्मत कर रहा था
    रोटी के आईने में
    अपना चेहरा तलाशने।

    झंगलू हमाल ढोता है
    पीठ पर पूरे गाँव का बोझ
    कंगलू बर्फ वाला
    विश्वास के चौराहे से
    चेतना की घंटी बजाता हुआ
    निकल पड़ा है सूर्य को अँगूठा दिखा
    चांद सी शीतलता बेचने।

    मंगलू रिक्शा लिये
    स्टैंड पर बाट जोह रहा था ग्राहक की
    जिसे मंजिल पर पहुँचा कर
    बुझानी थी अपने ही पसीने से
    पेट के भूख की आग;
    लू ते थपेड़ों से भी
    कहीं ज्यादा गर्म होती है
    पेट के भूख की आग
    जो सिखा ही देती है अनपढ़ों को भी
    भूख का गणित हल करना।

    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़

  • वीणा के हाइकु

    वीणा के हाइकु

    हाइकु

    वीणा के हाइकु

    1-
    कृष्णमुरारी
    बालभद्र,सुभद्रा
    रथ सवारी।
    2-
    हरितालिका
    पति की लम्बी आयु
    पत्नी निर्जला।
    3-
    स्वयं विश्वास
    मिलेगी सफलता
    मंजिल पास।
    4-
    लाल गुब्बारा
    बालक खेल रहा
    बम धमाका।
    5-
    मणिकर्णिका
    अंतरिक्ष पे बैठी
    हिन्द की नारी।
              *
    सविता बरई “वीणा”
    सीतापुर, सरगुजा,(छ.ग.)

  • केवरा यदु मीरा की कविता

    केवरा यदु मीरा की कविता

    कृष्ण के भजन

    सुन कान्हा मेरी याद
    तुमको आती तो होगी।
    ओ पूनम की रात तुम्हें
    रुलाती तो होगी ।
    सुन कान्हा—–

    तान छेड़ बंशी की
    तुम मुझे बुलाये थे।
    बाहों में बाँहे डाले
    तुम रास रचाये थे।
    वो पायल की रुन झुन
    तुम्हें बुलाती तो होगी ।
    सुन कान्हा मेरी याद
    तुमको आती तो होगी ।।

    बैठ कदंब के छाँव
    तुम बंशी बजाते थे।
    राधे राधे की धुन में
    तुम मुझे बुलाते थे ।
    राधा राधा नाम तुम्हें
    याद तड़पाती तो होगी।
    सुन कान्हा मेरी याद
    तुमको आती तो होगी ।।

    वो तिरछी नजर का जादू
    तुम ड़ाल गये मोहन।
    तन से दिल अरु जान
    निकाल गये मोहन ।
    मेरे दिन की धड़कन
    तुम्हें सुनाती तो होगी ।
    सुन कान्हा मेरी याद
    तुम को आती तो होगी ।

    तुम कह के गये कान्हा
    मैं लौट के आऊँगा।
    आकर मुरली की
    मधुर तान सुनाऊँगा।
    वो वादे वो कसमें
    याद दिलाती तो होगी ।
    सुन कान्हा मेरी याद
    तुमको आती तो होगी ।।

    मैं हुई बावरी श्याम
    इक बार चले आओ।
    भले चले जाना बस
    झलक दिखा जाओ।
    तुम भूल गये वो प्रीत
    तुम्हें रिझाती तो होगी ।
    सुन कान्हा मेरी याद
    तुमको आती तो होगी ।
    ओ पूनम की रात
    तुम्हें रुलाती तो होगी ।।
    सुन कान्हा मेरी—-

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम

    ओ मेरे मन मीत

    ओ मेरे मन मीत प्रीत तुम याद बहुत ही आते हो ।
    आने को कह गये आ जाओ क्यों रुलाते हो ।

    जब  से दूर  गये हो मुझसे जीवन में उल्लास नहीं ।
    सपने सारे बिखर गये जिन्दगी में सुवास नहीं ।
    अब लगता है ह्रदय के टुकड़े होकर बिखर गये ।
    बीती यादें ही बाकी है सपने तितर  बितर गये।
    आँखों में  तुम ही तुम हो निंदिया मेरी उड़ाते हो।।

    आने को कह गये-

    तुम सरहद पर जा रहे थे आँख मेरी भर आई।
    मुझसे पहले फर्ज वतन का मैं कुछ न कह पाई।
    मैं ठगी सी  देख रही थी हाय ये कैसी जुदाई ।
    वो गुनगुनाना मुस्कुराना याद बहुत तुम आते हो ।।

    आने को कह गये–

    जा रहा हूँ  प्रिय  अब होली   में ही आऊँगा ।
    ये लो ये अँगूठी  रख लो उसी समय पहनाऊँगा ।
    कभी उदास न होना तुम  घोड़ी में चढ़ कर आऊँगा।
    सैनिक की बनोगी संगिनी ड़ोली में  बिठा ले जाऊँगा।
    राह देखती  बैठी हूँ तुम क्यों न अभी तक आते हो ।।

    आने को कह गये–

    आये प्रिय तुम होली में तिरंगे में  लिपट कर आये हो ।
    मुझ पर क्या बीती मैं क्या कहूँ अँगूठी जो पकड़ाये हो।
    मेंहदी न रचेगी हाथों में न ही ड़ोली सजाऊँगी।
    सौ जन्मों तक इंतजार करूँगी तुम्ही से माँग भराऊँगी ।।
    क्यों न लौट कर आये प्रिय नैनों में तुम्ही समाये हो।।

    आने को कह गये आ जाओ क्यों रुलाते हो ।

    केवरा यदु “मीरा “

  • प्रियतम पर कविता

    प्रियतम पर कविता

    प्रियतम कितने प्यारे हो


    प्रियतम कितने प्यारे हो,मेरी आँखों से पूछो।
    पढ़ लो इन अँखियों में बस एक नजर देखो।
    बसे हो श्वांस श्वांस में न बिछुडे जन्मसात में,
    आरजू है मेरी ,रखें निज हाथ,हाथ में।


    है नेह तुमसे कितना , कैसे तुम्हें बताऊँ ।
    धड़कन में तुम बसे, दिल चीर कर दिखाऊँ।
    मेंहदी से रचो हाथ मे,बिंदी से सजो माथ में।
    बसे हो श्वांस श्वांस में,न बिछुडे जन्मसात में,


    मांगा जो मैंने विधि से,वैसा सजना है पाया।
    मेरे प्राण मेरे साथी,बस मेरे मन है भाया।
    जियेंगे साथ साथ में,लेकर हाथ हाथ में।
    बसे हो श्वांस श्वांस में न बिछुडे जन्मसात में

    तुम्ही मेरी खुशियाँ हो,तुम्ही मेरी बन्दगी हो।
    पलकों में छुपाया है,तुम्ही मेरी जिन्दगी हो।
    रहना नैनों के पास में,मिले हो सौगात में ।
    बसे हो श्वांस श्वांस में न बिछुडे जन्मसात में

    आरजू है दिल की, जब जब जनम मिले ।
    मेरे मीत संग मुझको सौ सौ जनम मिले।
    रहें खुश साथ साथ में,हँसे मेरी बात बात में।
    बसे हो श्वांस श्वांस में न बिछुडे जन्मसात में
    बसे हो — – – –

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम (छ0ग)

    जन्मदिन प्रियतम का

    प्रियतम प्राण अधार है,सुरसरगम सब साज।
    जन्मदिवस पे मैं करूँ,ये रुचि का शुभकाज।

    पावन पुन्य पुनीत पल,प्रणय प्रीत प्रतिपाल।
    जन्मदिवस है आपका,प्रियतम हो खुशहाल।

    प्रिय पत्नी प्रण पालती, प्राणनाथ पतिसंग।
    जन्मदिवस जुग जुग जपूँ,रहे सुहाग अभंग।।

    प्रियतम पाती प्रेमरस, पाइ पठाई पंथ।
    जागत जोहू जन्मदिन,जगत जनाऊँ कंत।।

    जनमे जग जो जानिए, जन्मदिवस जगभूप।
    प्रिय परिजन परिवार पर,प्यार प्रेम प्रतिरूप।

    जन्म दिवस शुभकामना, कैसे कहूँ विशेष।
    प्रियतम मैं तुझ में रहूँ, मेरे मनज महेश।।

    सत फेरे सातों वचन ,दोहे सात बनाय।
    सात बार न्यौछार दूँ,सात जन्म पिवपाय।।

    बाबू लाल शर्मा “बौहरा” विज्ञ