शानदार बाल कवितायेँ
ताता थैयामोड़ा नाचे, हाथी नाचे, नाचे सोन चिरैया।
किलक-किलक कर बंदर नाचे, ताता-ताता देया॥
ठुमक ठुमक कर खरहा नाचे, ऊँट, मेमना गया।
आ पहुँचा जब शेर नाचने, मची हाय रे दैया
चिड़िया पर बाल कविता
रंग-बिरंगी, प्यारी चिड़िया
सुंदर-सुंदर न्यारी चिड़िया
उड़ती क्यारी-क्यारी चिड़िया
लगती बड़ी दुलारी चिड़िया ॥
जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते है
ज़मीं से भी होती है ताल्लुक़ात जहाँ बैठते है
ये जो फूल खिल रहे है ये जो भौंरे उड़ते हैं
अच्छा लगता है जब अपनो से अपने जुड़ते हैं
पत्ते झर झर करते हैं हवाए सायं सायं चलती है
मदहोस हो कर ये चिड़ियें अब दाए बाए चलती है
सफ़र भी सुहाना है मंज़िल ख़ुद को बनाना है
दूसरों का क्या उनको तो बस अहसान जताना है
वो जो दूर गाँव में हमारे लिए कोई जगता था
वो ही था एक जो हमें अपना सा लगता था
मेरा हर अपना बिछड़ा मुझसे और ग़ैर हो गया
महज़ इसी बात से मुझे अपने आप से बैर हो गया
-दीपक राज़
पोखर व झील देखो , जिसमें न गहराई ,
थोड़ा सा ही जल पाय, मारते उफान हैं I
सागर को देखो वहाँ , नदियाँ हैं कई जहाँ ,
सबको समेट हिय , करे न गुमान है I
जिसका न ओर छोर , दिल में अथाँह ठोर ,
सबको ही एक रस , देता सम्मान है I
तेरे सम और नहीं , जगत में दिखे कहीं ,
“माधव”विशाल हिय ,ग्यानियों की शान है I
जल धारा भिन्न-भिन्न,राह भी हैं भिन्न-भिन्न ,
सबका स्वभाव भिन्न , सागर में देखिये I
जगत में भिन्न जीव, कर्म पथ भिन्न – भिन्न ,
जाति धर्म मान भिन्न , मिलें प्रभु देखिये I
देता है चुनौती गर , प्रकृति को छेड़ नर ,
ज्वार से विनाशकारी , कोप जरा देखिये I
धन पद पाय सभी ,”माधव” न मद कभी,
सम्पदा अपार हिय , जलनिधि देखिये I
सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”