Category हिंदी कविता

माधुरी मंजरी में सपना पर आधारित कविता – माधुरी डड़सेना मुदिता

सपना पर आधारित कविता आँखों में सपने लिए , बढ़ती मैं हर रोज ।मंजिल मुझे पुकारती , करते मेरी खोज ।। साजन के सपने लिए ,मैं आई ससुराल ।रंग सभी भरने लगे , होती आज निहाल ।। हमने देखा है…

किताब की महत्ता पर रमा की कविता

किताब की महत्ता *किताब* नित किताब को मनुज पढ़, करले अर्जित ज्ञान।दिव्य आचरण तब बने, मिले जगत सम्मान।। सारे किताब श्रेष्ठ हैं, करना मत तू मोल।शिक्षित होने के लिए, दिव्य ज्ञान मन घोल।। पढ़ना लिखना सीख कर, करलो नेकी कार्य।पोथी…

स्वार्थी मत बन बावरे काम करो निःस्वार्थ- रामनाथ साहू ननकी के कुंडलियाँ

स्वार्थी मत बन बावरे काम करो निःस्वार्थ स्वार्थी मत बन बावरे , काम करो निःस्वार्थ ।शुद्ध भाव से कीजिए , जीवन में परमार्थ ।।जीवन में परमार्थ , बैरता बंधन खोलो ।बस मीठे शुचि बोल , सदा सबसे तुम बोलो ।।कह…

हिन्दी कविता: सीसीई (सतत् व्यापक मूल्यांकन) – मनीभाई नवरत्न

सतत व्यापक मूल्यांकन पर आधारित कविता, जिसे मैंने सन् 2013 में विज्ञान प्रशिक्षण के मास्टर ट्रेनर बनने के दौरान लिखा था ताकि शिक्षकों को सतत व्यापक मूल्यांकन की उपयोगिता पता चल सके.

हे नारी तू खास है

चोका:- नारी तू खास है★★★★★ हर युद्ध काजो कारण बनतालोभ, लालचकाम ,मोह स्त्री हेतुपतनोन्मुखइतिहास गवाहस्त्री के सम्मुखधाराशायी हो जाताबड़ा साम्राज्यशक्ति का अवतारनारी सबला।स्त्री चीर हरण सेकौरव नाशमहाभारत कालरावण अंतसीता हरण करस्त्री अपमानहर युग का अंत।आज का दौरनारी सब पे भारीगर…

पृथ्वी दिवस विशेष : ये धरा अपनी जन्नत है

ये धरा अपनी जन्नत है ये धरा,अपनी जन्नत है।यहाँ प्रेम,शांति,मोहब्बत है। ईश्वर से प्रदत्त , है ये जीवन।बन माली बना दें,भू को उपवन।हमें करना अब धरती का देखभाल।वरना पीढ़ी हमारी,हो जायेगी कंगाल।सब स्वस्थ रहें,सब मस्त रहें।यही “मनी” की हसरत है॥1॥…

ओ नारी- मनीभाई नवरत्न

ओ नारी- मनीभाई नवरत्न जिन्दगी चले ना, बिन तेरे ओ नारी!उठा ली तूने,  सिर अपने  ऐसी जिम्मेदारी । मर्दों ने नाहक किये खुद पे ऐतबार ।सच तो यह है कि नारी होती जग की श्रृंगार ।महक ऐसे , फूल जैसे…

आओं खेलें सब खेल

आओं खेलें सब खेल आओं खेलें सब खेल ।बन जाओ सब रेल।छुक छुक करते जाओ ।सवारी लेते जाओ ।कोई छुट  ना जाए ।हमसे रूठ ना जाए ।सबको ले जाना जरूरी ।तय करनी लम्बी दूरी ।सबको मंजिल पहुंचायेंगे ।घुम फिरकर घर…

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता सुधारू केहे-“कस रे मितान!तोला सफई के,नईये कछु भान।तोर आस-पास होवथे गंदगीइही च हावे सब्बो बीमारी के खान।” बुधारू कहे-“मय रेहेंव अनजान।लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों कान।लेकम येकर सती, का करना चाही संगी ?अहू बात के,  कर…

मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

हनुमान जंयती   “धरव -पकड़व -कुदावव”अउ सब्बो झन तोआवव।चढ़गय बेंदरा रूख म त,ढेला घलव बरसावव।अइसने करम करत हावे,आज के मनखे।मनावत हे “हनुमान जयंती”सीधवा अस बनके। सबों जीव के रखबो जीजूरमिल के मानबेंदरा घलव ल तोजानव हनुमानबड़ सुघ्घर नता हावे,बेंदरा अऊ…