अनेकता में एकता कविता- डॉ एन के सेठी
अनेकता में एकता कविता (1)हमे वतन से प्यार है ,भारत देश महान।अनेकता में एकता , इसकी है पहचान।।इसकी है पहचान , ये है रंग रंगीला।मिल जाते सबरंग…
अनेकता में एकता कविता (1)हमे वतन से प्यार है ,भारत देश महान।अनेकता में एकता , इसकी है पहचान।।इसकी है पहचान , ये है रंग रंगीला।मिल जाते सबरंग…
त्यौहार पर कविता आया कार्तिक मास अब, साफ करें घर द्वार।रंग बिरंगे लग रहे, आया है त्यौहार।।१।। गली गली में धूम है , जलती दीप कतार।सभी मनाये साथ में, दीवाली त्यौहार।।२।। श्रद्धा सुमन चढ़ा करें, पूजे लक्ष्मी मान।मेवा घर घर…
माँ लक्ष्मी वंदना चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा।धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा। जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये।तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये। पावन…
धनतेरस पर कविता सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारीधनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना। ✍ सुकमोती चौहान…
धनतेरस के दोहे (Dhanteras Dohe) धनतेरस का पुण्य दिन, जग में बड़ा अनूप।रत्न चतुर्दश थे मिले, वैभव के प्रतिरूप।। आज दिवस धनवंतरी, लाए अमृत साथ।रोग विपद को टालते, सर पे जिसके हाथ।। देव दनुज सागर मथे, बना वासुकी डोर।मँदराचल थामे…
भावभरे दोहे प्रकृति प्रदत्त शरीर में,नर-नारी का द्वैत।प्रेमावस्था में सदा,है अस्तित्व अद्वैत।। पावन व्रत करते नहीं,कभी किसी को बाध्य।व्रत में आराधक वही, और वही आराध्य ।। परम्पराएँ भी वहाँ,हो जाती निष्प्राण।जहाँ कैद बाजार में,हैं रिश्तों के प्राण।। एक हृदय से…
न आंसू न आहें न कोई गिला है न आंसू ,न आहें,न कोई गिला है,लिखा भाग्य में जो वही तो मिला है,पुकारूँ किसे पूछती है हथेली,कभी जो दिया था उसी का सिला है। उजाड़ा गया बाग ऐसे हमारा,कभी जो बना…
रत्न चतुर्दश मंदराचल को बना मथनी, रस्सी शेष को।देवदनुज सबने मिल करके,मथा नदीश को।।किया अथक प्रयास सभी ने,रहे वहां डटे।करलिया प्राप्त मधुरामृत जब,सभी तभी हटे।। रत्न चतुर्दश निकले उससे, जो…
मदन मोहन शर्मा सजल द्वारा रचित रचनाएँ अभी बाकी है धीरे चल जिंदगी ज्वलंत सवालों के जवाब अभी बाकी है, जिसने भी तोड़े दिल ऐसे चेहरों से हिसाब अभी बाकी है, अंधियारी गहन रातों में ही बेहिचक संजोए हसीन पल, पूनम की…
मां अमृता की कुर्बानी याद करो वो कहानी, मां अमृता की कुर्बानी ,काला था वो मंगल ,रोया घना जंगल । खेजराली हरियाली, पर्यावरण निराली, सुंदर वृक्षों का घर , रेतीली धरा पर। वारी हूं मैं बलिहारी, हार गए अहंकारी ,प्राण आहूति देकर ,शिक्षा दी है …