Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • गणेश वंदना -दूजराम साहू

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    गणेश वंदना ( छत्तीसगढ़ी)

    जय ,जय ,जय ,जय हो गनेश !
    माता पारबती पिता महेश !!

    Ganeshji
    गणेशजी

    सबले पहिली सुमिरन हे तोर ,
    बिगड़े काज बना दे मोर !
    अंधियारी जिनगी में,
    हावे बिकट कलेश !!

    बहरा के बने साथी,
    अंधरा के हरस लाठी !
    तोर किरपा ले कोंदा ,
    फाग गाये बिशेष !!

    बांझ ह महतारी बनगे ,
    लंगड़ा ह पहाड़ चढ़गे !
    भिख मंगईया ह,
    बनगे नरेश !!

    दूजराम साहू
    निवास -भरदाकला (खैरागढ़)
    जिला_ राजनांदगाँव (छ. ग. )

  • वीर नारायण सिंह माटी के शान

    वीर नारायण सिंह माटी के शान

    वीर नारायण सिंह माटी के शान

    वीर नारायण सिंह माटी के शान

    देस बर अजादी, नइ रिहिस असान ।
    वीरमन लड़ीन अउ, हाेगिन बलिदान ।
    सबोदिन हे अगुआ म छत्तीसगढ़िया ।
    वीर नारायण सिंह ह, इ माटी के शान।

    इक बेला राज म, महा दुकाल छाइस।
    दुख पीरा घेरिस अउ सबला तड़पाइस।
    कइसे देखे भुखमरी हमर वीर सहासी।
    माखन ल लूटिस, फेर अनाज बटादिस।

    आंदोलन के बात म अगुआ रइथे वीर।
    सेना बनाइस अंग्रेज बर, जेल ला चीर।
    नारायण तोर चरन वंदन धन्न धन्न  वीर।
    देस खातिर लुटा दय तै,अपन के सरीर ।

    दाई बबा के गुन ह मिल जाथे सौगात म।
    देस परेम जिम्मेदारी, सौपे जाथे हाथ म। 
    हे सियानहा! धन्नबाद हे तोर जुझारूपना
    जेल म सपथ लेय ,भगाना अंग्रेजी सेना।

    रजधानी मांझा म,  जय स्तंभ देथे सुरता।
    कमती होही बखान ह नई होवे जी पूरता।
    हे सोनाखनिहा! अंग्रेज ल लगाय लगाम।
    आदिवासी बिंझवार ! तोला मोर प्रणाम।

    🖊️मनीभाई नवरत्न

  • हमर छेरछेरा तिहार पर कविता

    गीत – हमर छेरछेरा तिहार

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    सुख के सुरुज अंजोर करे हे,हम सबझन के डेरा म।
    हाँसत कुलकत नाचत गावत,झूमत हन छेरछेरा म।।
    //1//
    आज जम्मो झन बड़े बिहनिया, ले छेरछेरा कुटत हे।
    कोनलईका अउ कोन सियनहा,कोनो भी नई छूटत हे।
    ये तिहार म सब मितान हे,इही हमर पहचान हावय।
    मनखे मन ल खुशी देवैईया,सोनहा सुघ्घर बिहान हावय।
    है जुगजुग ले छत्तीसगढ़ ह, सुख सुमता के घेरा म।
    हाँसत कुलकत नाचत गावत,झूमत हन छेरछेरा म।।
    //2//
    थोरको फुरसद आज कहा हे,घर म हमर सुवारी ल।
    सुतउठ के लिपे हावय , घर अउ जमो दुवारी ल।
    रंग – रंग के रोटी पीठा , घर म बईठ चुरोवत हे।
    छेरछेरा बर टुकना-टुकना, ठीन्ना धान पुरोवत हे।
    अबड़ मंजा करथें लईका मन,ये तिहार के फेरा म।
    हाँसत कुलकत नाचत गावत,झूमत हन छेरछेरा म।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

  • महिमा वीर नारायण के

    महिमा वीर नारायण के

    महिमा वीर नारायण के ये,जे भुइँया म भारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    जन-जन के हितवा बनके,जे बेटा बिताईन जी।
    धन के लोभी छलिया मन ल,निसदिन यही सताइन जी।
    माल खजाना लूट लूट के, निर्धन मन ल दान करे।
    भांज अपन तलवार ल मेंछा,म साहस के ताव भरे।
    ममता दया करे जेकर बर, छत्तीसगढ़ महतारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    नाम अमर हे बलिदानी के,छत्तीसगढ़ परिपाटी म।
    आज भी जेहर हवय बिराजे,ये भुइँया के माटी म।
    सोनाखान धरा के धुर्रा,पबरित जइसे चंदन हे।
    बलिदानी के ये महिमा ल,कोहिनूर के वंदन हे।
    कल बलिदानी लड़ीस न्याय बर,अब हे हमरो पारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    वीर नारायण लड़ीस न्याय बर,अब हे हमरो पारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

  • तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना

    तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना

    तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना।
    पिया ला सुना देबे मोर गाना तरी हरी नाना।

    बेर उथे फेर , बेरा जुड़ाथे,
    रातके मोरे नीदियां उड़ाथे,
    अतक मया, मय काबर करें
    जतक करें ओतक तरसाथे।
    डाहर बैरी के देखत सुवाना
    जान डारिस सारा जमाना।
    तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना।

    भेंट होय रटीघटी, मुच ले हासें।
    धीरे धीरे आपन जाल मा फासें।
    कोन जानी काय ,मंतर मारे
    आवत कि भर जाए सांसें।
    निरमोही के जोग बता सुवाना
    कैसे डालिस मया के बाना।
    तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना।

    मनीभाई नवरत्न