Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • नोनी के लाज

    नोनी के लाज

    नोनी के लाज

    beti

    *देख ले रावण दुशासन, चीर बर तइयार हे….*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    कोनला बइरी बरोबर, कोन हितवा जान हूँ।
    नातदारी के भरम मा, कोनला पहिचान हूँ।
    कोन पानी में नशा हे, कोन ला मैं छान हूँ।
    देख पाहूँ जब शिकारी, जाल ला मैं तान हूँ।

    *रोज के संसो परे हे, मोह के संसार हे…
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    आजकल के छोकरा हा, नेट ले बीमार हे।
    हाथ मोबाइल धरे हे, जेब ले देवार हे।
    बाँस जइसन हे गठनहा, देख ले खुसियार हे।
    वाह लइका तोर आघू, देवता के हार हे।

    *राधिका जाने नहीं अउ, कृष्ण जैसन प्यार हे…*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    जान डारे कोख़ बेटी, भ्रूण हत्या में मरे।
    कोख़ ले जब बाँच जाबे, नोच गिधवा कस धरे।
    हाय बेटी के लुटइया, काम ते कइसन करे।
    देख ले कलजुग जमाना, ईशवर ले नइ डरे।

    *रामजी के राज मा अब, घोर अत्याचार हे…*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    ==डॉ ओमकार साहू *मृदुल* 06/10/2021==

  • नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

    नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

    नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

    नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)
    हसदेव जंगल


    पेड़ लगाओ,पेड़ बचाओ ,
    खाली नारा भर ला हांकत हन।
    अऊ खेत जंगल के रुख राई ला,
    चकाचक टांगिया मां काटत हन।

    थोकिन रुपिया पईसा के लालच मा,
    सउघा रुख राई ला काट डरेन।
    दाई ददा बरोबर जियइया रुख ला,
    जीते जी मार डरेन।

    पर्यावरण बचाना हे,कहीके
    नारा ला कांख कांख के हांकत हन।
    नरवा, कुआं,नदिया,तरिया,ला,
    बिकास के धुन मा पाटत हन।

    विकास के चक्कर मा, मनखे मन,
    पहाड़ अऊ जंगल ला काटत हन।
    प्रकृति ला बेच के जम्मों,
    धन दौलत ला बांटत हन।

    प्रकृति से झन खिलवाड़ करव,
    ये हमर महतारी आय।
    जम्मो जीव जंतु मनखे के,
    सुग्घर पालनहारी आय।

    प्रकृति महतारी खिसियाही जब
    भयंकर परलय लाही।
    मनखे जीव सकल परानी,
    धरती घलो नई बच पाही।

    जम्मो मनखे मन मिलके,
    पर्यावरण ला बचाबो।
    अवईया पीढ़ी बर हमन ,
    ये धरती ला सुग्घर बनाबो।

    ✍️रचना –महदीप जंघेल

  • घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता

    घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना


    नदिया के तीर अमरइया के छांव हे।
    अब तो बिलम जा कइथव मोर नदी तीर गांव हे।।

    जेठ के मंझनिया के बेरा म तिपत भोंमरा हे।
    खरे मंझनिया के बेरा म उड़त हवा बड़ोरा हे।।
    बिन पनही के छाला परत तोर पांव हे।
    मोर मया पिरित के तोर बर जुर छांव हे।।


    खोर गली चवरा सब सुन्ना पर गे हे।
    तरिया नरवा डबरा सब सुख्खा पर गे हे।।
    सुरूज नारायण अंगरा बरसावत हे।
    नवटप्पा ले पान पतइ भाजी कस अइलावत हे।।


    ए घाम ले जम्मो चिरइ चिरगुन पानी बर तरपत हे।
    मनखे मन घलो पानी के एकक बूंद बर तरसत हे।।
    रद्दा रेंगइया रुख-राई के छइहां खोजत हे।
    ठौर ठौर म करसी हड़िया के पानी पियात हे।।


    लइका मन के गुरतुर सुघ्घर बोली हे।
    अमरइया म कुहुकत कारी कोइली हे।।
    घाम ले जम्मो परानी ल भुंजत महीना जेठ हे।
    मोर गाँव के मनखे म दया-मया के सुघ्घर बोली मीठ हे.


    ✍️पुनीत सूर्यवंशी

  • पेड़ लगावव जिनगी बचावव-तोषण कुमार चुरेन्द्र

    पेड़ लगावव जिनगी बचावव-तोषण कुमार चुरेन्द्र

    poem on trees
    poem on trees

    रूख राई डोंगरी पहाड़ी रोवत हे पुरजोर…
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….

    पेड़ लगावव जिनगी बचावव
    धरती दाई के प्यास बुझावव
    नदिया नरवा सूख्खा परगे,
    अब तो थोरिक चेत लगावव

    गली मुहल्ला सुन्ना परगे सुन्ना होगे गा खोर….
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….

    कोरोना के कहर चलत हे
    मनखे तभो ले नइ चेतत हे
    सेंफो सेंफो जीव हर करथे,
    आक्सीजन ह कम परत हे

    कइसन बिपत के छाहे बादर ये घनघोर….
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….

    मनखे पीछू रूख ल लगावव
    जल जमीन जंगल बचावव
    जल हे तब कल हे गा भैय्या,
    यहू बात ल सब ला बतावव

    सावन मा बरसही पानी झूमही नाचही मोर….
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….



    तोषण कुमार चुरेन्द्र
    धनगांव डौंडी लोहारा

  • नंदा जाही का संगी -सुशील कुमार राजहंस

    नंदा जाही का संगी -सुशील कुमार राजहंस

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह



    हां संगवारी धीरे धीरे सब नंदात हे।
    मनखे मशीन के चक्कर म फंदात हे।
    किसानी के जम्मो काम अब इहि ले हो जात हे।
    कोनो कमात हे कोनो मशीन ले काम चलात हे।
    देखतो नवां नवां जमाना म का का आत हे।
    हमर पुरखा के कतको चिन्हारी ह लुकात हे।


    अब कहां पाबे घर म बैला नांगर।
    ताकत के बुता करोईया देशी जांगर।
    किसान के दौंरी धान मिसे के बेलन।
    चिकला म फंसे रहेय तेन ल धकेलन।
    लुका गे भईया बईला भैंसा के गाड़ी।
    चातर होगे तीरे तीर के जंगल झाड़ी।


    कहां हे पानी के पलोइया टेढ़ा फांसा।
    चुवां के पाटी अउ भीतरी के नंगत गांसा।
    डेंकी म कुटन संगवारी हमर चाऊर अउ धान।
    ये छूट गे घर, कुरिया,परछी ले अब कहां पान।
    उरीद, मूंग, तिंवरा के पिसोईया जांता।
    घर ले तोड़ दिस हे दिनों दिन के नाता।


    चिट्ठी पतरी के लिखोईया कोन मेर ले लाबे।
    संदेशा भेजे बर परेवा सुआ तैं कहां ले पाबे।
    अब तो बस एक्के घा तोर नंबर घूमाबे।
    दूरिहा रहोईया ल मोबईल म गोठियाबे।
    नाचा गम्मत ल छोड़ मनखे टी बी ले मोहागे।
    फूलझरी के डिस्को डांस म रेडियो ले अघागे।


    कहां पाबे भौंरा, बांटी,फुगड़ी जईसने जूना खेल।
    डोकरा डोकरी के धोती लुगरा म तईहा कस मेल।
    एईरसा,पूरी जईसने कतको तिहार के रोटी।
    ठेठरी अउ पानपुरवा ल खोजवं कोन कोति।
    संगी ई सब के दुःख ल कोन ल सुनावं।
    सुआरथ के दुनियां म कोन ल बुलावं।


    गुनत रहिथों कहूं मैं ह झिन फंस जावं।
    ये मया के जूना गांव फेर कोन मेरा ले लावं।


    रचयिता – सुशील कुमार राजहंस