Category: दिन विशेष कविता

  • हमारे देश में आना ( विश्व पर्यटन दिवस पर कविता )

    27 सितम्बर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है। विद्यालय में इस दिन पर्यटन का महत्व बताते हुए प्रान्त तथा देश के पर्यटन स्थलों की विस्तृत जानकारी करानी चाहिए। पर्यटन के विभिन्न साधनों से अवगत कराते हुए सड़क मार्ग तथा रेलमार्गों के नक्शे लगाकर महत्वपूर्ण स्थलों तक पहुँचने का मार्ग तथा समय, व्यय आदि भी बताने चाहिए। पर्यटन के समय क्या क्या सामग्री साथ में लेनी चाहिए, किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना है, इस प्रकार की सारी शिक्षा इस अवसर पर आसानी से दी जा सकती है। वर्ष में एक बार पर्यटन का कार्यक्रम रखना भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यह भी विद्यालय की गतिविधियों का विशेष अंग हो, जिसके लिए अर्थ-व्यवस्था तथा यात्रा क्रम, विश्राम स्थल आदि का प्रबन्ध पहले से किया जाना चाहिए।

    हमारे देश में आना (विश्व पर्यटन दिवस पर कविता )

    इंद्रधनुष

    हमारे देश में आना लगेगी धूप—छांव
    मिलेंगे रंग कई देखना शहर—ओ—गांव

    हमारा देश है हमारे ही मन का आंगन
    इस धरा के चरण को चूमता है नीलगगन
    न जाने कैसी है इस देश की माटी से लगन
    जो यहां आता है हो जाता है सब देख मगन

    घूम के देखो तुम भी देश मेरा पांव—पांव

    हमारे देश में आना लगेगी धूप—छांव
    मिलेंगे रंग कई देखना शहर—-ओ—गांव

    कई मौसम यहां जीवन के गीत गाते हैं
    सभी का प्रेम देख देव मुस्कुराते हैं
    रिश्ता कोई भी हो श्रद्धा से सब निभाते हैं
    अपने दुःख और तनाव पे जीत पाते हैं

    शांति का टापू है, नहीं है ज्यादा कांव—कांव

    हमारे देश में आना लगेगी धूप—छांव
    मिलेंगे रंग कई देखना शहर—ओ—गांव

    स्वरचित : आशीष श्रीवास्तव

  • हिंदी से ही भारत की शुभ पहचान है

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    हिंदी से ही भारत की शुभ पहचान है

    ★★★★★★★★
    जिसे बोल मान बढ़े,
    हिंदी से ही शान बढ़े ।
    हिंदी से ही भारत की,
    शुभ पहचान है।
    ★★★★★★★★
    प्रजातंत्र की है धूरी ,
    जिसे बोले हिंद पूरी।
    अनेकता में भी एक ,
    देश ये समान है ।
    ★★★★★★★★★
    हिंदी प्रीत की है डोरी,
    जैसे लगे माँ की लोरी।
    हिंदी से ही बने सब,
    विधि का विधान है ।
    ★★★★★★★★★
    जानता है पूरा देश ,
    हिंदी से ही परिवेश ।
    पावन बना है सभी ,
    भारत महान है।
    ★★★★★★★★
    रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)

  • हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘ की कवितायेँ

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘ की कवितायेँ हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    tiranga

    भारत महान हो

    पूजा हो मन्दिरों में,
    मस्जिद में अजान हो|
    सारे जहाँ से अच्छा,
    भारत महान हो ||


    फिर कोई तैमूर या
    बाबर न आ सके,
    कोई लुटेरा लूट कर
    हमको न जा सके |
    मजहब के नाम पर
    फिर यह मुल्क न बंटे –
    कोई न कौम प्यार की
    मोहताज रह सके |
    अरुणाभ छितिज से पुनः
    नूतन बिहान हो ||
    सारे जहाँ से अच्छा
    भारत महान हो ||1।।


    सांझ के सुअंक पर
    हो भोर की किरण नवल,
    नेह से सने – सने हों
    चारु-दृग -चषक -कंवल |
    झूम- झूम वात -चपल
    उर्वी श्रृंगार करे –
    धूप -छॉव लीन हो
    नित सृजन – विमल |
    उत्कर्ष के उद्धोष में
    संयम निदान हो |
    सारे जहाँ से अच्छा
    भारत महान हो ||2!।


    चांदनी पुलक भरे
    प्राण में अमरता,
    द्वार – द्वार बह चले
    ले मलय मधुरता |
    सूर्य के प्रताप से
    शस्य श्यामला ये सृष्टि –
    नित नये संधान हो।
    हर हृदय प्रचुरता
    चिर बसन्त के अधर
    पर देश गान हो ||
    सारे जहाँ से अच्छा
    भारत महान हो ||3!


    रचनाकार :-हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘

    कोरोना सम्बन्धी दोहे

    जीवन की यह त्रासदी,
    नहीं सकेंगे भूल,
    एक भाव दिखने लगा,
    माटी,सोना,फूल ।1।

    नहीं कोरोना थम रहा ,
    असफल सभी प्रयास ,
    राजनीति नेता करें,
    जनता हुई उदास ।2।

    राम-भरोसे चल रही,
    जीवन की हर सॉस,
    प्राण वायु बिन मर रहे,
    पड़ी गले में फॉस 3।

    अगर बहुत अनिवार्य तो,
    घर से बाहर जाय ,
    समझ-बूझ मुख-आवरण,
    तुरतहिं लेय लगाय।4।

    संक्रमण के दौर में,
    बचें बचायें आप,
    मास्क लगा दूरी बना,
    ना माई ना बाप ।5।

    कोरोना के नाश-हित ,
    इतना है अनुरोध,
    ए सी ,कूलर भूल कर,
    नहीं चलायें लोग ।6।

    जी भर काढ़ा पीजिये,
    सुबह-शाम लें भाप,
    कोरोना भग जाएगा,
    देखो अपने आप ।7।

    पोषण समुचित लीजिए,
    चाहें, रहें निरोग ,
    नहीं संक्रमण छू सके,
    करें अगर नित योग ।8।


    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ ‘हरीश’,

    संकल्पित जिज्ञासा हिन्दी है

    मातृभूमि प्रिय भरत भूमि पर ,
    मॉं की भाषा हिन्दी है।
    नित नूतन परिवेश सजाती,
    सबकी भाषा हिन्दी है।टेक।

    यदि करें सभी सम्मान,
    देश के संविधान का ,
    पंथ प्रशस्त स्वयम् हो जाये,
    हिन्दी के उत्थान का ।
    कोटि-कोटि कंठों में मचलती,
    मन की आशा हिन्दी है ।
    नित नूतन परिवेश सजाती ,
    सबकी भाषा हिन्दी है।1।

    शासन और प्रशासन सुन लो ,
    इतना अनुरोध हमारा है ,
    चुल्लू भर पानी ले डूबो,
    हिन्दी ने तुम्हें संवारा है ।
    थोथे नारे , संकल्पों में,
    बनी तमाशा हिन्दी है ।
    नित नूतन परिवेश सजाती,
    सबकी भाषा हिन्दी है।2।

    हमने ही तो प्रगतिशील बन,
    हिन्दी को ठुकराया है ,
    फूट डाल कर राज कराती,
    अंग्रेजी अपनाया है।
    चीर-हरण की आशंका में,
    उत्कट अभिलाषा हिन्दी है।
    नित नूतन परिवेश सजाती ,
    सबकी भाषा हिन्दी है।3।

    आओ स्नेह लुटाये मिलकर,
    हरें सभी की पीरा,
    इसके हर अक्षर में ढूँढें,
    तुलसी ,सूर,कबीरा ।
    भारतेन्दु व महावीर की,
    संकल्पित जिज्ञासा हिन्दी है।
    नित नूतन परिवेश सजाती ,
    सबकी भाषा हिन्दी है।4।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश,
    ई — 85
    मलिकमऊ नई कालोनी,
    रायबरेली 229010 (उप्र)
    9415955693,9125908549

  • राष्ट्र भाषा हिन्दी पर कविता -बाबूराम सिंह

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हिन्दी दिवसकीअग्रिम शुभकामनाएं  व हार्दिक बधाई
                            
                        राष्ट्र भाषा हिन्दी
                     ————————- 
              
    भारत  की  भाषा  हिन्दी ,सबसे सुन्दर जान।
    यही दिलासकती हमें,यश गुण मान सम्मान।।
    सभ्यता संस्कृति सुखद,सुधर्म शुचि परिवेश।
    हिन्दी  से  हीं  पा सकता ,प्यारा भारत देश।।

    अनुपम भाषा देश  की,अतिशय प्यार दुलार।
    मातृ  भाषा  हिन्दी  बनें ,हिन्द  गले  का हार।।
    सरल शुभ  है सदा सरस,हिन्दी मय व्यवहार।
    सभी  के  उर  हिन्दी  बसै ,फैले  सदा  बहार।।

    रचा बसा  है  हिन्दी  में,आपस  का सदभाव।
    हो सकता  इससे  सुखी ,शहर  देश हर गांव।।
    देश  भाषा  हिन्दी  बनें , सबका  हो  उत्थान।
    हिन्दी हीं  है रख सकती,भारत की पहचान।।

    आओ  हम सब मिल करे,हिन्दी सतत प्रचार।
    सुचि  सेवा  सदभाव  का ,छुपा इसी में सार।।
    अनुपम भाषा देश  की,अतिशय प्यार दुलार।
    मातृ  भाषा  हिन्दी  बने, हिन्द  गले  का हार।।

    हिन्दी  हक  पाये अपना ,बने सभी का काम।
    हिन्दी  से  उज्वल  होगा, विश्व गुरू का नाम।।
    एकजुट होय  सब  कोई ,करो इधर भी कान।
    हिन्दी  बिन  गूंगा- बहरा ,अपना  देश महान।।

    हिन्दी  हित  सबका  करती,दे सुयश आलोक।
    आत्म  सात  करो  हिन्दी, बने  लोक परलोक।।
    पढो़  लिखो  बोलो  हिन्दी ,करो  हिन्दी प्रसार।
    गुणगान  चहुंदिश  इसका , गावत  है  संसार।।

    देश  भाषा  हिन्दी  बने ,सबका  होय  उत्थान।
    रख सकती  है  हिन्दी  ही, भारत की पहचान।।
    समाहित  कर कौम सभी,निज में अपने आप।
    शुभता समता का सुखद,हिन्दी छोडे सुछाप।।

    समाहित कर कौम सभी,निज में अपने  आप।
    शुभता समता का सुखद,हिन्दी छोड़े सु-छाप।।
    हिन्दी  का  हर रूप  भव्य ,यह भारत की हीर।
    पाये  यश बच्चन  दिनकर ,तुलसी सूर कबीर।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो॰नं॰ – 9572105032
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  • किसान दिवस पर कविता (23 दिसम्बर)

    तुझे कुछ और भी दूँ !

    रामअवतार त्यागी

    तन समर्पित, मन समर्पित

    और यह जीवन समर्पित

    चाहता हूँ, देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!

    माँ! तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन

    किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन,

    थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब

    स्वीकार कर लेना दयाकर वह समर्पण!

    गान अर्पित, प्राण अर्पित

    रक्त का कण-कण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!

    माँज दो तलवार को, लाओ न देरी

    बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी

    भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी

    शीश पर आशीष की छाया घनेरी

    स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित

    आयु का क्षण-क्षण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

    तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,

    गाँव मेरे, द्वार-घर आँगन क्षमा दो,

    आज बाएँ हाथ में तलवार दे दो,

    और सीधे हाथ में ध्वज को क्षमा दो!

    ये सुमन लो, यह चमन लो

    नीड़ का तृण-तृण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती तुझ कुछ और भी दूँ!

    श्रम के देवता किसान

    वीरेंद्र शर्मा

    जाग रहा है सैनिक वैभव, पूरे हिन्दुस्तान का,

    गीता और कुरान का ।

    मन्दिर की रखवारी में बहता ‘हमीद’ का खून है,

    मस्जिद की दीवारों का रक्षक ‘त्यागी’ सम्पूर्ण है।

    गिरजेघर की खड़ी बुर्जियों को ‘भूपेन्द्र’ पर नाज है,

    गुरुद्वारों का वैभव रक्षित करता ‘कीलर’ आज है।

    धर्म भिन्न हैं किंतु एकता का आवरण न खोया है,

    फर्क कहीं भी नहीं रहा है पूजा और अजान का।

    गीता और कुरान का, पूरे हिन्दुस्तान का।

    दुश्मन इन ताल तलैयों में बारूद बिछाई है,

    खेतों-खलियानों की पकी फसल में आग लगाई है।

    खेतों के रक्षक-पुत्रों को, मां ने आज जगाया है,

    सावधान रहने वाले सैनिक ने बिगुल बजाया है।

    पतझर को दे चुके विदाई, बुला रहे मधुमास हैं,

    गाओ मिलकर गीत सभी, श्रम के देवता किसान का ।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    सीमा पर आतुर सैनिक हैं, केसरिया परिधान में,

    संगीनों से गीत लिख रहे हैं, रण के मैदान में।

    माटी के कण-कण की रक्षा में जीवन को सुला दिया,

    लगे हुए गहरे घावों की पीड़ा तक को भुला दिया ।

    सिर्फ तिरंगे के आदेशों का निर्वाह किया जिसने,

    पूजन करना है ‘हमीद’ जैसे हर एक जवान का।

    गीता और कुरान का, पूरे हिन्दुस्तान का।

    खिलते हर गुलाब का सौरभ, मधुवन की जागीर है,

    कलियों और कलम से लिपटी, अलियों की तकदीर है।

    इसके फूल-पात पर, दुश्मन ने तलवार चला डाली,

    शायद उसको ज्ञान नहीं था, जाग गया सोया माली।

    गेंदे और गुलाबों से सब छेड़छाड़ करना छोड़ो,

    बेटा-बेटा जागरूक है, मेरे देश महान् का ।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।