Category: दिन विशेष कविता

  • शिक्षक के महत्व पर कविता

    भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    गुरु शिष्य

    शिक्षक के महत्व पर कविता

    सपनों को सच होने दो ,
    जीवन को मत रोने दो ,
    जीवन है बहुमूल्य हीरा ,
    जीवन को जग से जीने दो ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    रह ना जाए कोई बेकार ,
    जीवन को मत भूलने दो ,
    जीवन है फूलों का हार ,
    जीवन को जग जितने दो ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    प्यार के चक्कर मे पडोगे तो ,
    मोबाइल मे रहोगे तुम ,
    जीवन दो पल की चीज है ,
    इस पल को बर्बाद करोगे तुम ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    जीवन मे ऐसा करो तुम ,
    तुम्हारे पीछे पूरी जहाँ घूमे ,
    ना किसी के प्यार के चक्कर मे पड़ो तुम ,
    ऐसा करो की तुम्हारे चक्कर मे दुनिया पड़े ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    कॉल करके रास्ते मे बुलाती हो ,
    मिलने के बहाने पढ़ने जाती हो ,
    अभी तक तुम ना सम्भलोगी तो तुम ,
    तुम्हारी दुनिया नर्क बन जाएगी एक दिन ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    शिक्षक तुम्हें ज्ञान सिखलाते ,
    कभी ना तुमको गलत राह दिखलाते ,
    तुम शिक्षकों का आदर करोगी तो ,
    प्रेम का चक्कर छोड़ पुस्तकों से प्रेम करोगी तुम ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    अभी भी समय है तुम्हारे पास ,
    पढ़ाई से प्रेम करोगी तुम ,
    जीवन मे शिक्षकों को आदर करोगी तो ,
    प्रेम से भी ज्यादा खुश रहोगी तुम ,
    सपनों को सच होने दो तुम !

    सभलना है तो संभल जाओ ,
    अभी भी समय है छात्रों ,
    नर्क से बच सकतें हो तुम ,
    जीवन मे खुशियाँ चाहों तो ,
    सपनों को सच होने दो !

    शिक्षक के कहें पथ पे चलो तुम ,
    सारी खुशियाँ तुम्हें मिलेगी ,
    सारा जहाँ तुम्हारे पीछे-पीछे घूमेगा ,
    ऐसा जीवन जियो तुम तुम !

  • आक्रोश पर निबंध – मनीभाई नवरत्न

    आक्रोश पर निबंध – मनीभाई नवरत्न

    “कभी रोष है ,तो कभी जोश है।

    मन में उफनता , वो ‘आक्रोश’ है।

    मदहोश यह, तो कहीं निर्दोष है।

    परदुख से उत्पन्न ‘आक्रोश’ है।”

    मनीभाई नवरत्न

    मानव अपने जन्म से लेकर मृत्युशैय्या तक किसी ना किसी घटनाओं से उद्वेलित होता रहता है।जिसके इर्दगिर्द ही उसके मन में भावनाओं का सागर समय और दशा के अनुरूप उमड़ता रहता है।अपनी भावनाओं को मानव कभी प्रेम, विश्वास, तो कभी शंका,घृणा व आक्रोश आदि कई रूपों में प्रकट करता है । इन सभी भावनाओं में  आक्रोश भाव का महत्वपूर्ण स्थान होता है । अक्सर आक्रोश की उत्पत्ति कार्य की अक्षमता व मनोवांछित कार्य न हो पाने की स्थिति में होता है ।लेकिन कभी कभी अन्याय के खिलाफ विरोध दर्ज करने के लिये प्रयुक्त की जाती है। जिससे परिवर्तन के मार्ग खुलने लगते हैं।  

    आक्रोश का सामान्य अर्थों में किसी स्थिति के प्रति उत्तेजना या आवेश व्यक्त करने से होता है।इसके साथ आक्रोश में आवेश के साथ चीख-पुकार या किसी को शापित करना भी शामिल किया जा सकता है। आज गंभीर प्रश्न यह है कि आक्रोश भाव  अच्छी आदत की श्रेणी में रखा जाय कि बुरी आदत की श्रेणी में रखा जाय।

    आक्रोश  की परिणाम  स्थिति,समय और आक्रोशी के इरादों से सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आक्रोश का प्रकटीकरण दो रूपों में होता है। एक तो जब आवेश प्रकट करने में आक्रोशी को जोर देना नहीं पड़ता । वह स्वतः स्थिति,स्थान और परिणाम का पूर्वानुमान लगाये बिना प्रकट हो जाता है।जो बाद में किसी की उपेक्षा का शिकार होता है । जिससे मानव जीवन का पतन होने लगता है। इस प्रकार का आक्रोश मानव के दुर्गुण पक्ष को उजागर करता  है और दूसरे प्रकार के आक्रोश प्रकटीकरण मानव अपने दिलोदिमाग से परदुःखकातरता भाव लेकर करता है यह मनुष्य को जिंदादिल इंसानियत की धनी बनाती है। इतिहास में उनका नाम  स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है ; जैसे कि मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकुमत के विरोध में आक्रोश व्यक्त किया था और अंग्रेजी शासन की नींव हिलाकर रख दी थी।

    आक्रोश के वशीभूत होकर व्यक्ति अपनी अमूल्य धन को खो देता है जिसका पछतावा उसे जिन्दगी भर होता है। जिस तरह मंथरा ने कैकेयी के मन में ईर्ष्या भरकर क्षण भर के लिए उसके प्रिय पुत्र श्री राम के प्रति आक्रोशित कर दिया था और कैकयी ने श्रीराम को वनवास का आदेश दे दिया था। वैसे “राम वनवास” के पश्चात कैकेयी का मन सबसे अधिक व्यथित हुआ था । आक्रोश के बारे में वर्णन करते हुए द्रोपदी की चित्रण करना आवश्यक हो गया है कि उसने किस तरह से पाण्डवों के मन में कौरवों के खिलाफ आक्रोश को अपना हथियार बनाकर अपने प्रति हुए अपमान का प्रतिशोध लिया था।वैसे महाभारत जैसे हर युद्ध के पर्दे के पीछे में किसी एक व्यक्ति विशेष के मन में  उपजे आक्रोश की भावना छुपी रहती है ।

    कई महापुरुषों ने आक्रोश पर अपने भिन्न भिन्न विचार प्रस्तुत किये हैं जैसे कीटो का कथन कि “एक आक्रोशित व्यक्ति अपना मुंह खोल देता है और आंख बंद कर लेता है।” इस पर महात्मा गांधी ने भी कहा है “आक्रोश और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं ।” परंतु आक्रोश ने अरस्तू के विचार में कुछ नयापन देखने को मिलता है ।उनका कहना था कि “कोई भी आक्रोशित  हो सकता है- यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से आक्रोशित  होना सभी के बस कि बात नहीं है और यह आसान नहीं है.”

    जब कभी मनुष्य को उसके सोच के अनुरुप कार्य होता प्रतीत ना हो और उस पर बदलाव लाने के लिए उसका मन उद्धत हो तो मन में आक्रोश भाव की उपज होने लगता है । जब कभी मनुष्य आक्रोशित होता है तो उसकी बुद्धि में आवेग भर जाता है और सही निर्णय कर पाने में अक्षम होता है फलस्वरुप उसकी कार्य की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है ।कभी कभी  बात बात में तिलमिलाना उसके सामाजिक स्थिति  को बिगाड़ने का कार्य करती है । आक्रोश में व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालता है । और कभी कभी आक्रोश की लपटें दूसरों को भी अपने चपेट में लेकर भस्म कर सकता  है ।

    आज आक्रोश प्रदर्शन का तरीका मात्र व्यक्तिगत न होकर सामुहिक रूप ले रहा है । किसी का विरोध करते हुए एक जनसैलाब जगह-जगह आक्रोश मार्च निकालते हैं । सड़क-जाम करके आवागमन को बाधित करके लोगों के परेशानी को बढ़ाते हैं  । कभी-कभी स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि भीड़ दंगे का रूप ले लेती है ,जिससे देश को जान माल की हानि उठानी पड़ती है । इस प्रकार के आक्रोश प्रदर्शन को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है । आक्रोश सहज नैसर्गिक मनोभाव है ।
    आक्रोश को विषम दशा में एक सहज अभिव्यक्ति प्रतिक्रिया के रूप में कहा गया है जिससे कि हम अपने ऊपर आरोपों से अपनी सुरक्षा कवच तैयार करते हैं ।
    तात्पर्य यह है कि अपनी वजूद की रक्षा के लिए आक्रोश भी जरुरी होता है ।आक्रोशित व्यक्ति का समाज में  स्थान क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित करता है।हर बुराईयों पर अपना विरोध प्रकट करता है। आज के युग को  व्यग्रता का युग कहा जाने लगा है।आक्रोश के वक्त दैहिक  स्तर पर हृदय की स्पंदन बढ़कर रक्तचाप बढ़ने लगता है ।इस प्रकार की घटना मानव के लिए हर तरह से हानिप्रद है ।अतः इस पर नियंत्रण नितांत आवश्यक है ।

    आक्रोश व्यक्त करना धैर्य क्षमता की कमी का संकेतक है । आज जीवनशैली तनाव ग्रस्त हो गई है। विलासिता की युग में सभी के मस्तिष्क पर बाजारीकरण हावी होने लगा है । लंबे समय तक कार्य और अनियंत्रित जीवनशैली से मानव में चिड़चिड़ापन आने लगी है ।अकेलापन में आदमी अपनी भावना दुसरों को प्रकट न कर पाने से आक्रोशित होने लगता है । हिंसात्मक बयानबाजी सुनकर और टीवी शो व मूवी देखकर युवा असंवेदनशील होने लगे हैं। जिससे युवाओं  में  आक्रोश बढ़ता जाता है । वैसे आक्रोश के मूल कारणों को समझे बिना यह बताना मुश्किल है कि आक्रोश का दमन और निदान कैसे संभव है? पर यथासंभव प्रयास यह की जानी चाहिए  कि जिससे हम पर आक्रोश की भावना हावी न होने पाये।किसी पर अति अपेक्षा करने से भी बचना   चाहिए, नहीं तो इच्छा के अनुरूप काम न होने से मन में आक्रोश सवार होने लगता है । अति आक्रोश से बचने हेतु धैर्य,ध्यान और विश्राम  का सहारा लेने का प्रयास करनी चाहिए।

    “आक्रोश संघर्ष का बिगुल है।

    आक्रोश खिलाफत का मूल है।

    आक्रोश युवाओं का  शक्ति है।

    विरोध, स्वर का अनुपम युक्ति है।”


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    ✒ निबंधकार :-
    मनीलाल पटेल “मनीभाई “
    भौंरादादर बसना महासमुंद ( छग )
    Contact : 7746075884
    [email protected]
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  • हिन्दी कविता: कारगिल विजय दिवस की गाथा

    हिन्दी कविता: कारगिल विजय दिवस की गाथा

    कारगिल विजय दिवस की गाथा

    हिन्दी कविता: कारगिल विजय दिवस की गाथा
    कारगिल-की-वीर

    फरवरी 1999 में हमने पाक से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था।
    पर नापाक हरकत से उसने कारगिल पर कब्जा जमाया था।
    तब भारतीय रणबांकुरों ने भारत का मान सम्मान बढ़ाया ।
    ऑपरेशन विजय को अंजाम दे कारगिल पर तिरंगा लहराया था।1।


    राष्ट्रीय रायफल के जवानों ने मोर्चा संभाला था।
    अटल जी के साहस व नेतृत्व का धधका ज्वाला था।
    बोफोर्स तोपों,मिग 27 व 29 से पाक के कई ठिकाने उड़ा डाले।
    कारगिल में लड़ने वाला हर जवान वीर हिम्मतवाला था।2।


    तोलोलिंग चोटी पर 2 जुलाई 99 को विजय फताका फहराया था।
    5 जुलाई 99 को योगेंद्र के नेतृत्व में टाइगर हिल को कब्जाया था।
    7 जुलाई 99 को मश्कोह घाटी में ऑपरेशन सफेद सागर कर डाला।
    26 जुलाई 99 को विक्रम बत्रा ने प्वाइंट5140 पर तिरंगा लहराया था।3।


    कारगिल के पहाड़ों पर हिन्द की सेना ने पराक्रम दिखाया था।
    3 मई 1999 को पाक ने कारगिल पर नापाक हरकत दिखाया था।
    26 मई 99 को “ऑपरेशन विजय” के साथ आगे बढ़ा भारतीय जवान।
    26 जुलाई 1999 को कारगिल की चोटी पर भारत का तिरंगा लहराया था।4।


    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.) 493558
    मोब.- 8103535652
    9644035652
    ईमेल- [email protected]

  • हिन्दी कविता: अब तो पाठ पढ़ाना है

    भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    हिन्दी कविता: अब तो पाठ पढ़ाना है

    अब तो पाठ पढ़ाना है

    फिर सीमा में आ जाए तो,
    गलवान को याद दिलाना है।
    दुस्साहस कर न सके वह,
    ऐसी सबक सिखाना है।
    ए वीर जवानों सुन लो,
    सबको यह बताना है।
    कब तक चीनी विष घोलेंगे,
    अब तो पाठ पढ़ाना है।
    प्राण जाय पर वचन न जाय,
    ऐसी कसम जो खाना है।
    थर थर काँप उठे रूह उनका,
    ऐसी सजा दिलाना है।
    कलाम की परमाणु याद दिला दो,
    बासठ का अब नही जमाना है।
    कब तक चीनी विष घोलेंगे,
    अब तो पाठ पढ़ाना है।
    ★★★★★★★★★★★★

    रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
    मो. 8120587822
  • दोहे करते बात – बाबू लाल शर्मा

    दोहे करते बात – बाबू लाल शर्मा, बौहरा,’विज्ञ’

    भाषा की व्याकता व सम्पन्नता उसके व्याकरण – छंद व अलंकारों से समझी जा सकती है। इस दृष्टि से हिंदी आज विश्वभाषा के रूप में अपनी छाप व पहचान रखती है। मुझे गर्व है कि इस मर्त्य जीवन में हिंदुस्तान में जन्म मिला,नीड़ मिला और हिंदी साहित्य सृजन सेवा का सौभाग्य मिला। मातृभूमि और मातृभाषा की सेवा के अवसर प्राप्ति हेतु माँ भारती का आजन्म ऋणी हूँ।
    हिन्दी साहित्य की विलक्षणता इसके अगाध छंद सागर में निहित है। छंद सागर में विविध छंदों में सबसे लोकप्रिय व व्यापक छंद ‘दोहा छंद’ का अपना ही महत्व है। साहित्य पुरोधा , संत कबीरदास, तुलसीदास एवं संत दादू दयाल जी ने अपनी कृतियों से ‘दोहा छंद’ की लोकप्रियता को बुलन्दियों तक पहुंचाया था। प्रभु गिरधर के प्रेम व माँ शारदे की कृपा से ही इस सरस छंद पर लेखनी चली, तो कवि गुरुजन व साथियों के सतत प्रोत्साहन से ही मेरी यह छंद यात्रा जारी है।

    आत्म विचार

    साहित्य समाज का दर्पण होता है। परन्तु छंद, साहित्य व साहित्यकार दोनो का ही दर्पण होता है। और छंद का दर्पण देखना हो तो दोहा छंद में सहज ही दृष्टव्य होगा। एक एक दोहा कवि की आत्मा से बात करता हुआ निकलता है। इसीलिए इस पुस्तक का शीर्षक “दोहे करते बात” समीचीन लगा। मानव, परिवार, देश धर्म, समाज, राजनीति,एवं वैश्विक जीवन के विविध यथार्थ एवं समस्याओं को दोहा छंदों के माध्यम से कहीं कुरेदा तो कहीं उकेरा गया है।
    आज मानव जीवन की गुत्थियों,मन की घुण्डियों को समझना बहुत जटिल हो रहा है, इन जटिलताओं को समझने का प्रयास इन दोहा छंद रचनाओं में कर रहा हूँ। हिंदी साहित्य पुरोधा ,साहित्य सारथी,साहित्य प्रेमी, साहित्य पाठक, नवोदित साहित्यकार , हिन्दी साहित्य के विद्यार्थीगण आप सभी की राय ही इस पुस्तक की सार्थकता सिद्ध और प्रसिद्ध करेंगे।

    “मैने तो बस कलम घिसी है, मन के भाव शारदे देती।”

    इस छंद को सहज और सरस बनाने हेतु सरल सुबोध भाषा शब्दों के साथ कुछ प्राचीन अर्वाचीन शब्दों के सुमेल से भाव गाम्भीर्यता पाठक को आनंदित व अचंभित करेगी। भाषा में चमत्कार हेतु एक ही वर्णाधारित शब्दों से दोहा रचने का कठिन मार्ग भी कई छंदों में आपको दर्शित होगा तो सुगम्य सहज भाव युक्त छंद भी पाठक के मन को उद्देलित करेंगे। वहीं दोहा छंद रचना विधान विद्यार्थियों व नवोदित रचनाकारों के लिए उपयोगी साबित होगा।
    मुझसे मानवीय स्वभाव वश त्रुटियाँ अवश्यंभावी हैं, साहित्य के इस संक्रमण काल में- आप सभी सम्मानीय पाठकगण की राय पर ही मेरा विश्वास और मेरी आशा आस्था व साख आधारित है, आप ही जताएँगे कि मेरा यह प्रयास, हिंदी, साहित्य, छंद शास्त्र , विद्यार्थी, एवं आमजन हेतु सार्थक रहा। आपके प्रोत्साहन से मेरा कठिन काव्य पथ प्रकाशित होता रहेगा।

    दोहा छंद विधान

    आओ दोहा सीखलें, शारद माँ करि ध्यान।
    सीख छंद दोहे रचें, श्रेष्ठ सृजन श्री मान।।


    ग्यारह तेरह मात्रिका, चरण विषम सम जान।
    चार चरण का छंद है, दोहा भाव प्रधान।।


    प्रथम तीसरे चरण में, तेरह मात्रा ज्ञान।
    दूजे चौथे में सखे, ग्यारह गिनो भवान।।


    चौबिस मात्रिक छंद है, कुलअड़तालिस मात्र।
    सुन्दर दोहे जो लिखे, वह साहित्यिक छात्र।।


    दोहा आदि काल से ही हिंदी में लोक प्रिय छंद रहा है। दोहा चार चरणों का विषम मात्रिक मापनी मुक्त छंद होता है।
    विषम चरण- प्रथम व तृतीय चरण में १३,१३ मात्राएँ होती है।
    सम चरण- द्वितीय व चतुर्थ चरण में ११,११ मात्राएँ होती है।


    1. प्रथम व तीसरे चरणांत में २१२ (जैसे-मान है ) या २ १११(जैसे –है कमल)
    2. दूसरे व चौथे चरणांत में २१ गुरु लघु (जैसे आव,मान,आमान अवसान)
    3. चरणों की शुरूआत कभी भी ५ मात्रा वाले शब्द (पचकल) से न हो।
    4.तर्ज में गुनगुना कर देखें लय भंग हो तो बदलाव करें। मात्रा स्वतः ही सही हो जाएगी।
    5. चरणों की शुरुआत जगण से (१२१) न हो। महेश,सुरेश,दिनेश ,गणेश आदि देव नाम मान्य है बाकी नही।।

    उदाहरण

    ऋचा बड़ा शुभ नाम है, वेदों जैसी भाष।
    १२ १२ ११ २१ २, २२ २२ २१ (१३ , ११)
    हिन्दी बिन्दी सम रखे,हरियाणा शुभ वास।।
    २२ २२ ११ १२, ११२२ ११ २१ (१३ , ११)

    इस तरह सीखे

    मात शारदा लें सुमिर, सुमिरो देव गणेश।
    दोहा रचना सीखिए, कविजन सुमिर ‘महेश।।
    दोहा छंदो मे लिखो ,कविजन अपनी बात।
    तेरह ग्यारह मात्रिका, अड़तालिस हो ज्ञात।।
    प्रथम तीसरे रख चरण , तेरह मात्रा ध्यान।
    गुरु लघु गुरु चरणांत हो,भाव कथ्य पहचान।।
    विषम चरण के अंत गुरु, लघु लघुलघु का भार।
    लय में गाकर देख लो, होगा शीघ्र सुधार।।
    द्वितीय चौथे रख चरण, ग्यारह मात्रा ध्यान।
    सम चरणों के अंत में, गुरु लघु सत्य विधान।।
    पचकल से शुरु मत करो,कभीचरण कविवृंद।
    भाषा भावों में भरो, मिटे छंद भय द्वंद।।
    चरणों के प्रारंभ में, जगण मानते दोष।
    नाम देव के होय तो, जगण करो संतोष।।
    सम से ही चौकल सजे, त्रिकल त्रिकल से मान।
    भाव भरे मन में रचे, दोहे सुन्दर शान।
    समचरणों के अंत में, जो पचकल का योग।
    दोहा भी सुन्दर लगे, सृजन सुघड़ संजोग।।
    दोहा छंदो में लिखा ,दोहा छंद विधान।
    शर्मा बाबू लाल ने, सीखें रहित गुमान।।

    © बाबू लाल शर्मा,”बौहरा” विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

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