दोहे करते बात – बाबू लाल शर्मा

दोहे करते बात – बाबू लाल शर्मा, बौहरा,’विज्ञ’

भाषा की व्याकता व सम्पन्नता उसके व्याकरण – छंद व अलंकारों से समझी जा सकती है। इस दृष्टि से हिंदी आज विश्वभाषा के रूप में अपनी छाप व पहचान रखती है। मुझे गर्व है कि इस मर्त्य जीवन में हिंदुस्तान में जन्म मिला,नीड़ मिला और हिंदी साहित्य सृजन सेवा का सौभाग्य मिला। मातृभूमि और मातृभाषा की सेवा के अवसर प्राप्ति हेतु माँ भारती का आजन्म ऋणी हूँ।
हिन्दी साहित्य की विलक्षणता इसके अगाध छंद सागर में निहित है। छंद सागर में विविध छंदों में सबसे लोकप्रिय व व्यापक छंद ‘दोहा छंद’ का अपना ही महत्व है। साहित्य पुरोधा , संत कबीरदास, तुलसीदास एवं संत दादू दयाल जी ने अपनी कृतियों से ‘दोहा छंद’ की लोकप्रियता को बुलन्दियों तक पहुंचाया था। प्रभु गिरधर के प्रेम व माँ शारदे की कृपा से ही इस सरस छंद पर लेखनी चली, तो कवि गुरुजन व साथियों के सतत प्रोत्साहन से ही मेरी यह छंद यात्रा जारी है।

आत्म विचार

साहित्य समाज का दर्पण होता है। परन्तु छंद, साहित्य व साहित्यकार दोनो का ही दर्पण होता है। और छंद का दर्पण देखना हो तो दोहा छंद में सहज ही दृष्टव्य होगा। एक एक दोहा कवि की आत्मा से बात करता हुआ निकलता है। इसीलिए इस पुस्तक का शीर्षक “दोहे करते बात” समीचीन लगा। मानव, परिवार, देश धर्म, समाज, राजनीति,एवं वैश्विक जीवन के विविध यथार्थ एवं समस्याओं को दोहा छंदों के माध्यम से कहीं कुरेदा तो कहीं उकेरा गया है।
आज मानव जीवन की गुत्थियों,मन की घुण्डियों को समझना बहुत जटिल हो रहा है, इन जटिलताओं को समझने का प्रयास इन दोहा छंद रचनाओं में कर रहा हूँ। हिंदी साहित्य पुरोधा ,साहित्य सारथी,साहित्य प्रेमी, साहित्य पाठक, नवोदित साहित्यकार , हिन्दी साहित्य के विद्यार्थीगण आप सभी की राय ही इस पुस्तक की सार्थकता सिद्ध और प्रसिद्ध करेंगे।

“मैने तो बस कलम घिसी है, मन के भाव शारदे देती।”

इस छंद को सहज और सरस बनाने हेतु सरल सुबोध भाषा शब्दों के साथ कुछ प्राचीन अर्वाचीन शब्दों के सुमेल से भाव गाम्भीर्यता पाठक को आनंदित व अचंभित करेगी। भाषा में चमत्कार हेतु एक ही वर्णाधारित शब्दों से दोहा रचने का कठिन मार्ग भी कई छंदों में आपको दर्शित होगा तो सुगम्य सहज भाव युक्त छंद भी पाठक के मन को उद्देलित करेंगे। वहीं दोहा छंद रचना विधान विद्यार्थियों व नवोदित रचनाकारों के लिए उपयोगी साबित होगा।
मुझसे मानवीय स्वभाव वश त्रुटियाँ अवश्यंभावी हैं, साहित्य के इस संक्रमण काल में- आप सभी सम्मानीय पाठकगण की राय पर ही मेरा विश्वास और मेरी आशा आस्था व साख आधारित है, आप ही जताएँगे कि मेरा यह प्रयास, हिंदी, साहित्य, छंद शास्त्र , विद्यार्थी, एवं आमजन हेतु सार्थक रहा। आपके प्रोत्साहन से मेरा कठिन काव्य पथ प्रकाशित होता रहेगा।

दोहा छंद विधान

आओ दोहा सीखलें, शारद माँ करि ध्यान।
सीख छंद दोहे रचें, श्रेष्ठ सृजन श्री मान।।


ग्यारह तेरह मात्रिका, चरण विषम सम जान।
चार चरण का छंद है, दोहा भाव प्रधान।।


प्रथम तीसरे चरण में, तेरह मात्रा ज्ञान।
दूजे चौथे में सखे, ग्यारह गिनो भवान।।


चौबिस मात्रिक छंद है, कुलअड़तालिस मात्र।
सुन्दर दोहे जो लिखे, वह साहित्यिक छात्र।।


दोहा आदि काल से ही हिंदी में लोक प्रिय छंद रहा है। दोहा चार चरणों का विषम मात्रिक मापनी मुक्त छंद होता है।
विषम चरण- प्रथम व तृतीय चरण में १३,१३ मात्राएँ होती है।
सम चरण- द्वितीय व चतुर्थ चरण में ११,११ मात्राएँ होती है।


1. प्रथम व तीसरे चरणांत में २१२ (जैसे-मान है ) या २ १११(जैसे –है कमल)
2. दूसरे व चौथे चरणांत में २१ गुरु लघु (जैसे आव,मान,आमान अवसान)
3. चरणों की शुरूआत कभी भी ५ मात्रा वाले शब्द (पचकल) से न हो।
4.तर्ज में गुनगुना कर देखें लय भंग हो तो बदलाव करें। मात्रा स्वतः ही सही हो जाएगी।
5. चरणों की शुरुआत जगण से (१२१) न हो। महेश,सुरेश,दिनेश ,गणेश आदि देव नाम मान्य है बाकी नही।।

उदाहरण

ऋचा बड़ा शुभ नाम है, वेदों जैसी भाष।
१२ १२ ११ २१ २, २२ २२ २१ (१३ , ११)
हिन्दी बिन्दी सम रखे,हरियाणा शुभ वास।।
२२ २२ ११ १२, ११२२ ११ २१ (१३ , ११)

इस तरह सीखे

मात शारदा लें सुमिर, सुमिरो देव गणेश।
दोहा रचना सीखिए, कविजन सुमिर ‘महेश।।
दोहा छंदो मे लिखो ,कविजन अपनी बात।
तेरह ग्यारह मात्रिका, अड़तालिस हो ज्ञात।।
प्रथम तीसरे रख चरण , तेरह मात्रा ध्यान।
गुरु लघु गुरु चरणांत हो,भाव कथ्य पहचान।।
विषम चरण के अंत गुरु, लघु लघुलघु का भार।
लय में गाकर देख लो, होगा शीघ्र सुधार।।
द्वितीय चौथे रख चरण, ग्यारह मात्रा ध्यान।
सम चरणों के अंत में, गुरु लघु सत्य विधान।।
पचकल से शुरु मत करो,कभीचरण कविवृंद।
भाषा भावों में भरो, मिटे छंद भय द्वंद।।
चरणों के प्रारंभ में, जगण मानते दोष।
नाम देव के होय तो, जगण करो संतोष।।
सम से ही चौकल सजे, त्रिकल त्रिकल से मान।
भाव भरे मन में रचे, दोहे सुन्दर शान।
समचरणों के अंत में, जो पचकल का योग।
दोहा भी सुन्दर लगे, सृजन सुघड़ संजोग।।
दोहा छंदो में लिखा ,दोहा छंद विधान।
शर्मा बाबू लाल ने, सीखें रहित गुमान।।

© बाबू लाल शर्मा,”बौहरा” विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

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