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  • मनहरण घनाक्षरी -दशहरा

    किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

    मनहरण घनाक्षरी -दशहरा

    durgamata

    नवरात्रि अतिकान्त,
    दैत्यगण भयाक्रांत,
    तिथि विजयदशमी,
    सब को गिनाइए।

    राम जैसे मर्यादित,
    रहो सखे शांतचित,
    धीर वीर देश हित,
    गुण अपनाइए।

    यथा राम शक्ति धार,
    दोष द्वेष गर्व मार,
    तिया के सम्मान हेतु,
    पर्व को मनाइए।

    आसुरी प्रतीक मान,
    सनातनी रीति ज्ञान,
    दानवी बुराई रूप,
    रावण जलाइए।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • चिरनिन्द्रा-विनोद सिल्ला

    चिरनिन्द्रा

    जीत कर चुनाव
    हमारे राजनेता
    सो जाते हैं चिरनिंद्रा में
    चार वर्ष बाद
    चुनावी वर्ष में ही
    खुलती है इनकी जाग
    जागते ही
    लग जाते हैं फिर से
    साम-दाम-दण्ड-भेद
    आजमाने में

    छल-बल करके
    जीत जाते हैं पुन: चुनाव
    उठाते हैं फायदा
    आम जनमानस की
    चिरनिन्द्रा का

    जाने यह चिरनिन्द्रा
    कब खुलेगी ?

    -विनोद सिल्ला

  • नवदुर्गा पर दोहा – बाबूलाल शर्मा

    नवदुर्गा पर दोहा – बाबूलाल शर्मा

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। ]शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं।

    माँ दुर्गा

    नवदुर्गा पर दोहा

    ~ १ ~
    मात शैल पुत्री प्रथम, कर पूजन नवरात।
    घट स्थापन पूजा करें, मिले सर्व सौगात।।
    . ~ २ ~
    ब्रह्मचारिणी रूप माँ, दिवस दूसरे जान।
    शक्ति मिलेगी भक्ति से, माता का वरदान।।
    . ~ ३ ~
    मात चन्द्रघंटा भजें, दिन तृतीय का रूप।
    मानस रहे चकोर सा, करिए भक्ति अनूप।।
    . ~ ४ ~
    कुष्मांडा चौथे दिवस, पूजन रूप विशेष।
    ध्यानमग्न उपवास कर, शुभ्र धारिए वेष।।
    . ~ ५ ~
    पूज्य स्कंदमाता सखे, दिवस पाँचवे मान।
    मातृशक्ति आराधना, पूजें सहित विधान।।
    . ~ ६ ~
    छठवें माँ कात्यायनी, पूजन मय उपवास।
    कृपा करें माँ भक्त पर, करती पूरी आस।।
    . ~ ७ ~
    कालरात्रि दिन सातवें, पूजें भक्त सुजान।
    मिटे कष्ट मन गात के, राग द्वेष अज्ञान।।
    . ~ ८ ~
    कृपा महागौरी करे, दिवस आठवें मान्य।
    धर्म शील संतोष दे, भरे गेह धन धान्य।।
    . ~ ९ ~
    ‘विज्ञ’ सिद्धिदात्री नवें, मान रूप नौ ज्ञात।
    शर्मा बाबू लाल पर, रखे कृपा जग मात।।


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    निवासी – सिकन्दरा, दौसा
    राजस्थान ३०३३२६

  • राष्ट्र भाषा पर छंद- बाबूराम सिंह

    राष्ट्र भाषा पर छंद

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सुखद हिन्द महान बनाइए।
    मधुर बोल सदैव अपनाइए।
    प्रगति कारक भारत हो तभी।
    सरस काम करें अपना सभी।

    अजब ज्ञान भरें शुभदा लिए।
    सहज भावभरोस भव्य किए।
    गुण सभी इसमें जग आगरी।
    लखअमोलक है लिपि नागरी।

    महक मानवतामय है सिखो।
    मन लगाकर जागउठी लिखो।
    सँवर जाय तभी जग जानिये।
    बढ़ उठे शुचि भारत मानिये।

    जगत हिंद सु-बोल जगाइए।
    सरलता शुभ है अपनाइए।
    जगउठो सब भारत वासियों।
    निकल छोड़ सभी उदासियों।

    हक भव्य जब भारत पायेगा।
    जगत में सुख मोहक लायेगा।
    सकल विश्व गुरु जय भारती।
    सरस भाव सदा कर आरती।

    कविकला गुणभी सब बोलते।
    रस नवों कविता बिच घोलते।
    अभय ज्ञान अकूत सु-पाइये।
    झट सभी निजध्यान लगाइये।

    भरम भाव यहीं सब लायेगा।
    रम सभी इसमें शुचि पायेगा।
    चुकहुआ फिर तो सबजायेगा।
    सजग बिना फिर पछतायेगा।

    लगन से सब कोइ सँवारिये।
    भरम भेद सभी कु-सुधारिये।
    अलख भारत नेक जगाइये।
    हिन्द जुबान अमल में लाइये।

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    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
    मोबाइल नम्बर – 9472105032

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  • शिक्षा ज्ञान का दीपक है कविता -बाबूराम सिंह



    शिक्षा ज्ञान का दीपक है कविता

    सौभाग्यसे मिलाहै नरतन इसे सुफल बनाओ।
    शिक्षा ज्ञान का दीपकहै सरस सदा अपनाओ।।

    बिनविद्या नर पशु समहै कहती दुनियां सारी
    छाया रहता जीवन है में चहुँदिश अँधियारी।
    ज्ञान ध्यान भगवान बिना माया रहती है घेरे-
    सबकुछ होता ज्ञान बिना मति जाति है मारी।

    अतः ज्ञानालोक हेतु शिक्षा को सेतु बनाओ।
    शिक्षा ज्ञान का दीपक है सरस सदा अपनाओ।।

    शिक्षाका संसार अनूठा सुख-शान्ति जग देता।
    तम गम हम मानव जीवनसे सचमुच हरलेता।
    प्रगति पथ प्रशस्त कराके आगे सतत बढाता-
    विद्या ज्ञान वैभव से नर जीवन को भर देता।

    घर परिवार समाज देशको विद्यासे हीं सजाओ।
    शिक्षा ज्ञानका दीपक है सरस सदा अपनाओ।।

    शिक्षा हीं देनेवाला है सत्य शुचि का संगत।
    बेटियाँ भी पढ-लिख विद्या में बने पारंगत।
    समता एकता विश्वबंधुत्व कायम रहे हमेशा-
    तभी निखर पायेगा भारत वर्ष का रंगत।

    विश्वगुरु गरिमाआगेबढ़अक्षुण्ण सभी बनाओ।
    शिक्षा ज्ञान का दीपक है सरस सदा अपनाओ।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
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