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  • बदलते रिश्ते पर दोहा

    बदलते रिश्ते पर दोहा

    बदलते रिश्ते

    दिन-दिन होता जा रहा,रिश्तों में बदलाव।
    प्यार रोज ही घट रहा ,दिखता हृदय दुराव।।

    नही लिहाज न शर्म है ,पिता पुत्र के बीच।
    माँ बेटी सम्बन्ध भी , निभे मुट्ठियाँ भींच।।

    पती- पत्नी सम्बन्ध भी ,रहते डाँवाडोल।
    आँखों में आँसू सदा , कहे कहानी बोल।।

    सास-बहू सम्बन्ध तो ,दो जोड़ो की सौत।
    छल कपट बस चाह रहे,इक दूजे की मौत।।

    हित-मित बन्धुभाव सभी,का बदला है रूप।
    रिश्तों के बदलाव से ,जीवन में भव कूप।।

    रिश्तों के बदलाव ही , देता कष्ट अपार।
    जिससे दुःखित हो रहा,देश गाँव परिवार।।

    प्रभु प्रदत रिश्ते जगमें ,हैं अतिशय अनमोल।
    रिश्तोंमध्य मिठासरखो,मधुरवचन नितबोल।

    आपस में मिलकर सभी,इसपर करो विचार।
    भेद मिटे सम्बन्ध के , बढ़े परस्पर प्यार।।

    जन मानस निर्मल बनें , बढ़े प्रेम सद्भाव।
    दुश्मन भी आदर करें ,सुखद बनें स्वभाव।।

    निज सुधार जन-जन करें,धरें धर्म पर पांव।
    बाबुराम कवि दे रहे ,अपने नेक सुझाव।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508

  • सनातन धर्म पर कविता

    सनातन धर्म पर कविता

    राम
    राम

    देश को देखकर आगे बढ़े

    सनातनधर्म हिन्दी भारतवर्ष महानके लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    स्वदेश की रक्षा में जन-जन रहे तत्पर।
    सदभाव विश्वबंधुत्व का हो भाव परस्पर।
    काम क्रोध मोह लोभ मिटे दम्भ व मत्सर।
    रहे सब कोई एकत्व समता में अग्रशर।
    उद्धत रहे पल-पल प्रभु गुणगान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    बाल विवाह बन्द युवा विधवा विवाह हो।
    दहेज दुष्परिणाम का विध्वंस आह हो।
    मिल-बांटकर खानेकी जन मन में चाह हो।
    सर्वत्र मानव धर्म मानवता की राह हो।
    जागरूक रहें नेकी धर्म दान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    गोबध शराब नशा अविलम्ब बन्द हो।
    महंगाई बेरोजगारी का रफ्तार मंद हो।
    देश द्रोही दुराचारी नहीं स्वछन्द हो।
    परोपकार प्यारका सफल वसुधापर गंध हो।
    अबला अनाथ दीन दुखी मुस्कान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।

    चोरी घूसखोरी भ्रष्ट नेताओं का नाश हो।
    सुख शान्ति सफलतका सर्वत्र विकास हो।
    साक्षरता सुशिक्षा का घर-घर प्रकाश हो।
    परोपकार प्रभु भक्ति की तीव्र प्यास हो।
    कवि बाबूराम सत्य शुभ अभियान के लिये।
    देश को देखकर आगे बढ़े उत्थान के लिये।


    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार

  • गणेश- मनहरण घनाक्षरी

    गणेश
    गणपति

    गणेश- मनहरण घनाक्षरी

    ब्रह्म सृष्टिकार दैव,
    भूमि रचि हेतु जैव,
    मातृभूमि भार पूर्ण,
    धारे नाग शेष है।

    शीश काटे पुत्र का वे,
    क्रोध मिटे हुआ ज्ञान,
    हस्ति शीश रोपे शिव,
    दैवीय निवेश हैं।

    पार्वती सनेह जान,
    दिए शम्भु वरदान,
    पूज्य गेह गेह नेह,
    देवता गणेश हैं।

    विष्णु शम्भु देव अज,
    भूप लोक दम्भ तज,
    पूजते गणेश को ही,
    स्वर्ग के सुरेश हैं।
    . —-+—
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • मच्छर पर कविता /पद्म मुख पंडा

    मच्छर पर कविता /पद्म मुख पंडा

    मच्छर पर कविता/ पद्म मुख पंडा

    मच्छर पर कविता /पद्म मुख पंडा
    कविता संग्रह

    ये मच्छर भी?

    न दिन देखते, न रात,
    ये आवारा मच्छर,
    करते हैं, आघात मुंह से,
    जहरीले तरल पदार्थ,
    मानव शरीर के अंदर,
    डालकर, चंपत हो जाते हैं!
    होती है खुजली,
    होकर परेशान , आदमी लेता है संज्ञान,
    मॉस्किटो क्वाइल जलाकर,
    आश्वस्त हो जाता है,
    मच्छर से बदला लेने का,
    यह तरीका भी फीका पड़ चुका है,
    मच्छर धुएं के साथ भी,
    राग भैरवी गाते हैं,
    पालने में सोए हुए बच्चे को भी,
    चिकोटी काट जाते हैं!
    बच्चा रोता है, मां को तकलीफ़ होती है,
    बच्चे को लेकर,
    मच्छर दानी के साथ सोती है।
    मलेरिया डेंगू के ओ जन्म दाता,
    तुमको बच्चों पर भी, तरस नहीं आता?
    तुम्हारा अंत हम करके रहेंगे
    बहुत हो चुका, अब न यह यातना सहेंगे!

    पद्म मुख पंडा,

    ग्राम महा पल्ली
    पोस्ट ऑफिस लोइंग
    जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • हरतालिका पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हरतालिका

    वर्षा में मन भावन,
    माह भाद्रपद पावन,
    उमा सा सुहाग संग,
    चाहे तिय बालिका।

    तृतीया शुक्ल पक्ष में,
    नक्षत्र हस्त कक्ष में,
    पूजे सबलाएँ सत्य,
    पार्वती प्रणपालिका।

    धारती कठोर प्रण,
    निर्जला चखे न तृण,
    पूर्ण दिन रात व्रती,
    तीज हरतालिका।

    नीलकण्ठ हैं अघोरी,
    उमा ही भवानी गौरी,
    धारती विविध रूप,
    दुष्ट हेतु कालिका।
    . —+—
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बोहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान