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  • रक्षाबन्धन पर दोहे – बाबूलाल शर्मा, बौहरा

    रक्षाबन्धन पर दोहे – बाबूलाल शर्मा, बौहरा

    रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।

    कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।

    रक्षाबन्धन पर दोहे

    Rakshabandhan
    श्रावण शुक्ल पूर्णिमा रक्षाबंधन Shravan Shukla Poornima Raksha Bandhan


    १.🌼
    रिश्तों का  अनुबन्ध शुभ, रक्षा बन्धन पर्व।
    सनातनी शुभ रीतियाँ, उत्तम संस्कृति गर्व।।
    २.🌼
    पूनम सावन  मास  में, राखी  का त्योहार।
    भाई का  रक्षा  वचन, हर्षे  बहिन  अपार।।
    ३.🌼
    विष्णु पत्नि लक्ष्मी शुभे, वे नारद मुनि रंग ।
    बलि को राखी भेजकर, लाई  हरि हर संग।।
    ४.🌼
    रीति सनातन काल से, बंधु बहिन का प्यार।
    सांसारिक शुभ रीति यह, परिवारी व्यवहार।।
    ५.🌼
    भक्त श्रवण को  पूजते, मान्य गेह प्रतिहार।
    रक्षा  बन्धन  कर  करे, पूजा  मय  मनुहार।।
    ६.🌼
    कर्मवती  मेवाड़  हित, भेजी    राखी  डोर।
    लाज हुमायू कब रखी, चुभती बात कठोर।।
    ७.🌼
    संग मने संस्कृत दिवस, राखी के दिनवार।
    पावन  भादौ  मास  में , त्योहारी   मनुहार।।
    ८.🌼
    खेत भरे मक्का हँसे, घर परिजन परिवार।
    पावस ऋतु मनमौज है, राखी का त्योहार।।
    ९.🌼
    बहन कहे अब रीति नव, सुन बीरा तू बात।
    पहली राखी देश हित, सैनिक तरुवर तात।।
    १०.🌼
    भाई  जब  राखी  बँधे ,  ढाई  टप्पा  बात।
    नवयुगीन नवरीतियाँ, प्राकृतहित सौगात।।
    ११.🌼
    कृषक और मजदूर को, दें  राखी सौगात।
    पकवानों की  मौज  हो, राखी संगत बात।।
    १२.🌼
    राखी डोर तिरंग शुभ, भारत माँ के चित्र।
    उन देशों में भेज दें , जो भारत के  मित्र।।
    १३.🌼.
    राखी यमुना गंग की, सागर नर समुदाय।
    चन्द्र सूर्य अंबर धरा, प्राकृत पानी  गाय।।
    १४.🌼
    राखी जननी तात की, बहिन भुवाएँ भ्रात।
    प्रीति  रीतियाँ डोर शुभ, सनातनी सौगात।।
    १५.🌼
    पशुधन धरा किसानहित, दीन हीन बीमार।
    बटुक फकीरा सन्त सब, राखी पर सत्कार।।
    १६. 🌼
    मानवता हित देश से , जिसको सच्ची प्रीत।
    राखी बंधन कर उसे , मानो  निज मनमीत।।
    १७.🌼
    राखी बंधन प्रीत का, पावन सत्य प्रतीक।
    रखिए तो राखी भली, नहीं रखे तो ठीक।।
    १८.🌼
    देश और  परदेश में,  हिन्दुस्तान  रिवाज।
    जग में  राखी भेज दो, प्रीत रीत परवाज।।
    १९. 🌼
    सुनो  सभी से  अर्ज  है, साँझ सवेरे भोर।
    देश सुरक्षा  हित  सभी, बाँधो  रक्षा  डोर।।
    २०. 🌼
    जड़ चेतन मय जीवजग, मानवीय हित मित्र।
    राखी के  हकदार सब, आन मान शुभ चित्र।।
    २१. 🌼
    नित्य यहाँ  त्योहार  हो, सतत  मंगलाचार।
    प्रेम  प्रीति सद्भावना, राखी भव  व्यवहार।।
    २२.🌼
    राखी की बातें अमित, कही सुनी हो माफ।
    शर्मा बाबू लाल का, मन कहता सच साफ।।
    .                    🌼🌼
    ✍©
    बाबूलाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा,

  • सृष्टि कुमारी की कवितायेँ

    सृष्टि कुमारी की कवितायेँ

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    आज की नारी

    मैं आज की नारी हूं, इतिहास रचाने वाली हूं,
    पढ़ जिसे गर्व महसूस करे वो इतिहास बनाने वाली हूं।
    नारी हूं आज की, खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं मैं,
    बांध अपने जिम्मेदारियों का जुड़ा, अपने सपनों को पूरा करना चाहती हूं मैं।
    अब अपने जुल्मों का शिकार नहीं बना सकता कोई मुझे,
    अपने गगन को सितारों से सजने वाली किरण बेदी हूं मैं।
    न मजबूर समझो, न लाचार हूं मैं,
    अंतरिक्ष में परचम लहराने वाली कल्पना चावला हूं मैं।
    न डरती अब मैं खाई से, न डरती ऊंचाई से,
    पर्वत के शिखरों पर तिरंगा लहराने वाली अरुणिमा सिन्हा हूं मैं।
    हां, मैं आज की नारी हूं, आवाज उठाने वाली हूं।
    हो गई अति अब जुल्म नारी पर,अब इंसाफ की बारी है।
    बहुत हो गया त्याग नारियों का,
    अब नहीं होगा बलात्कार नारियों का।
    पतन होगा अब दरिंदों और अत्याचारियों का,
    मैं आज की नारी हूं, इंसाफ दिलाने आई हूं।
    अब अबला नहीं, सबला है नारी,
    अपने पैरों पर खड़ी स्वतंत्र जिंदगी जीने वाली है,
    खुले आसमान में उड़ने वाली है।
    मैं नारी हूं, अपने समाज का निर्माण करने वाली हूं,
    अपने कर्तव्यों और आदर्शों की रक्षा करने वाली हूं मैं।
    हां, मैं आज की नारी हूं, नारी को सम्मान दिलाने वाली हूं।
    …………………………………………………..
    ( सृष्टि कुमारी)

    कसम हिन्दुस्तान की

    ऐ देश के वीरों तेरी कुर्बानी को अब व्यर्थ न जाने दूंगी,
    तेरे खून के एक एक बूंदों का मैं गिन गिनकर बदला लूंगी।
    सौगंध मुझे उस मातृभूमि का है, जिसने मुझे है जन्म दिया,
    सौगंध है हर एक मांओं का, जिसने अपना बेटा खोया है।
    ऐ आतंकियों को पालने वाले, कब तक छुपकर वार करोगे तुम?
    तेरे कायराना हमले से भारतमाता ने बेटा खोया है।
    ऐ वतन के दुश्मनों, तुझे हिसाब चुकाना होगा,
    हर सुहागन के सिंदूर की कीमत तुझे चुकानी होगी।
    तू छीनना चाहते हो कश्मीर को? जो भारत का स्वर्ग है,
    अब कैसे मैं यह सहन करूं, ये भारतवर्ष हमारा है।
    सौगंध मुझे उन शहीदों का है, मैं देश नहीं झुकने दूंगी,
    मेरा वचन है उन वीरों को, कश्मीर नहीं मैं लूटने दूंगी।

    ।। सृष्टि कुमारी।।

    सफर मंजिल का

    चाहत है मेरी आसमां छूने की, पर पंख नहीं है उड़ने को।
    दिल चीख रहा है मेरा, लेकिन चेहरा खामोश है।

    न चाहत है मेरी अमीरों-सी , न चाहत है मेरी फकीरों-सी,
    बस एक मंजिल पाने की चाहत है, दौलत नहीं शोहरत की प्यासी हूं।

    है शौक मुझे कुछ लिखने का, पर कलम उठने को तैयार नहीं,
    रोक रही है परिस्थितियां मुझे, एक नई इबारत लिखने से।

    जंग की इस दुनिया में, मंजिल पाना आसान कहां,
    संघर्ष के बिना जीवन भी, सुपुर्द ऐ खाक हो जाती है।

    पर, मैं कायर नहीं, झुकने को तैयार नहीं,
    हर मुश्किल से लड़ने की ताकत है।
    झुक जायेगी हर मुसीबत मेरे जज्बों के आगे,
    संकल्प मेरा ये, मेरे सपनों के नाम है।
    ……………………………………………………
    ।। सृष्टि कुमारी।।

  • आगे आगे तीजा तिहार आगे – मनीभाई नवरत्न

    आगे आगे तीजा तिहार आगे – मनीभाई नवरत्न

    आगे आगे तीजा तिहार आगे – मनीभाई नवरत्न

    आगे आगे तीजा तिहार आगे - मनीभाई नवरत्न

    ऐ दीदी ओ,  ऐ बहिनी ओ।
    आगे आगे तीजा तिहार आगे।।

    सावन भादों सुख के देवय्या।
    झमाझम बादर चले पुरवय्या।।
    डारा पाना ह सबो हरियागे।
    आगे आगे तीजा तिहार आगे।।

    झूलेना बने हे  सुग्घर पटनी।
    धरे रहव जी दवरा के गठनी।
    ठेठरी खुरमी अउ खारा कटनी।
    भजिया सुहाथे लहसून के चटनी।
    नोनी बाबू ऐदे खाये झपागे।
    आगे आगे तीजा तिहार आगे।।

    सवनाही गीत गाथे सहेली।
    ताली बजा के ,पुछे पहेली।
    कोधार कोधार के पूछत हे।
    उत्तर मोला नइ सुझत हे।
    धनी के सूरता म ऐदे बुधि गंवागे।
    आगे आगे तीजा तिहार आगे।।

    हाथ रचे बर मेंहदी पीसागे।
    तीजा लय बर लुगरा बिसागे।
    सुग्घर सुग्घर पोरा के बैइला
    बेचाय बर देखव जल्दी लेसागे।
    धानी चुनरिया ओढ़े भुंइया मन मोहागे।
    आगे आगे तीजा तिहार आगे।।

    मनीभाई नवरत्न बसना महासमुंद छत्तीसगढ़

  • बछ बारस पर कविता – दोहा छंद

    बछ बारस पर कविता – दोहा छंद

    बछ बारस पर कविता – दोहा छंद

    बछ बारस सम्मानिए, गौ बछड़े की मात।
    मिटे पाप संताप तन, दैव प्रमाणित बात।।

    पावस सावन में मनें, बछ बारस का पर्व।
    गौ सेवा कर नर मिले, मेवा मंगल गर्व।।

    भिगो मोठ को लीजिए, उत्तम यह आहार।
    गौ को मीठे में खिला, बछ बारस व्यवहार।।

    गौ माताएँ हिन्द हित, बछ सौभाग्य किसान।
    बछ बारस पर दीजिए, इन्हे सत्य सम्मान।।

    गौधन खेत किसान है, भारत के अभिमान।
    बछ बारस पर ‘बोहरा’, कर इनके यशगान।।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    निवासी – सिकन्दरा, दौसा

  • मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद

    मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद

    आ.मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान म़े सादर समर्पित

    मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद

    व्यक्तित्व विशेष कविता संग्रह
    Premchand


    प्रेम चन्द साहित्य में , भारत की त़सवीर।
    निर्धन,दीन अनाथ की,लिखी किसानी पीर।।

    सामाजिकी विडंबना , फैली रीति कुरीति।
    चली सर्व हित लेखनी, रची न झूठी प्रीत।।

    गाँव खेत खलिहान सब,ठकुर सुहाती मान।
    गुरबत में ईमान का , पाठ लिखा गोदान।।

    बूढ़ी काकी आज भी, झेल रही दुत्कार।
    कफन,पूस की रात भी,अब भी है साकार।।

    छुआछूत मिटती नहीं, जाति धर्म के द्वंद।
    मुन्शी जी तुमने लिखा, हाँ बेशक निर्द्वंद।।

    गिल्ली डंडा खेलते, गबन करे सरकार।
    नमक दरोगा अफसरी,आज हुई दरकार।।

    ऐसी रची कहानियाँ, पढ़िए निकले आह।
    ईदगाह हामिद पढे, भाग्य अमीना वाह।।

    उपन्यास सम्राट या, कह दो धनपत नाम।
    प्रेम चंद्र मुंशी कहूँ , शत शत बार प्रणाम।।

    युग का लेखक मानते, हम सब के आदर्श।
    उनकी यादों को करें, तन मन यादें स्पर्श।।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा 303326
    दौसा,राजस्थान