धर्म की कृत्रिमता पर कविता-नरेंद्र कुमार कुलमित्र
धर्म की कृत्रिमता पर कविता कृत्रिम होती जा रही है हमारी प्रकृति-03.03.22—————————————————-हिंदू और मुसलमान दोनों कोठंड में खिली गुनगुनी धूप अच्छी लगती हैचिलचिलाती धूप से उपजी लू के थपेड़ेदोनों ही सहन नहीं कर पाते हिंदू और मुसलमान दोनोंठंडी हवा के झोंकों से झूम उठते हैंतेज आंधी की रफ्तार दोनों ही सहन नहीं कर पाते हिंदू … Read more