बाबूलाल बौहरा के कुण्डलियाँ छंद
बाबूलाल बौहरा के कुण्डलियाँ छंद संवेदना -कुण्डलिया छंद होती है संवेदना, कवि पशु पंछी वृक्ष।मानव मानस हो रहे, स्वार्थ पक्ष विपक्ष।स्वार्थ पक्ष विपक्ष, शून्य संवेदन बनते।जाति धर्म के वाद,बंधु आपस में तनते।भूल रहे संस्कार,खो रहे संस्कृति मोती।हो खुशहाल समाज,जब संवेदना होती। बढ़ती है संवेदना, राज धर्म संग साथ।व्यक्ति वर्ग समाज भी,रखें मनुजता माथ।रखें मनुजता माथ, … Read more