क्षुधा पेट की बीच सड़क पर
क्षुधा पेट की बीच सड़क पर क्षुधा पेट की, बीच सड़क पर।दो नन्हों को लायी है।।भीख माँगना सिखा रही जो।वो तो माँ की जायी है।।हाथ खिलौने जिसके सोहे।देखो क्या वो लेता है।कोई रोटी, कोई सिक्का,कोई धक्का देता है।।खड़ी गाड़ियों के पीछे…

हिंदी कविता संग्रह

हिंदी कविता संग्रह
क्षुधा पेट की बीच सड़क पर क्षुधा पेट की, बीच सड़क पर।दो नन्हों को लायी है।।भीख माँगना सिखा रही जो।वो तो माँ की जायी है।।हाथ खिलौने जिसके सोहे।देखो क्या वो लेता है।कोई रोटी, कोई सिक्का,कोई धक्का देता है।।खड़ी गाड़ियों के पीछे…
गरीबी का घाव आग की तपिस में छिलते पाँवभूख से सिकुड़ते पेटउजड़ती हुई बस्तियाँऔर पगडण्डियों परबिछी हैं लाशें ही लाशेंकहीं दावत कहीं जश्नकहीं छल झूठे प्रश्नतो कहीं …. आलीशान महलों की रेव पार्टियाँदो रोटी को तरसतेहजारों बच्चों परकर्ज की बोझ…
हादसों का शहर ये शहर हादसों का शहर हो न जाए।अमन पसंद लोगों पर कहर हो न जाए।।न छेड़ बातें यहां राम औ रहीम की,हिन्दू और मुसलमां में बैर हो न जाए।।अमृत सा पानी बहे इन दरियाओं में,आबो हवा बचाओ…
अब्र के दोहे मस्ताया मधुमास है, गजब दिखाए रंग।फागुन बरसे टूटकर, उठता प्रीत तरंग।। लाया फूल पलाश का, मस्त मगन मधुमास।सेमल-सेमल हो गया, फागुन अबके खास।। काया नश्वर है यहाँ, मत भूलें यह बात।कर्म अमर रहता सदा, भाव जगे दिन…
जीवन यही है मार्च के महीने मेंदेखता हूँ बिखरे पत्ते धरती की छाती पररगड़ते घिसतेहवा की सरसराहट के संगखर्र खर्र की आवाज बिखरती हैं कानों मेंयत्र तत्रटहनियों से अलग होने के बादमृत प्रायः, काली पीली काया बिखरे पत्तों की…छोड़ती है…
महादेवी वर्मा पर कविता हिंदी मंदिर की सरस्वती,तुम हिंदी साहित्य की जान।छायावादी युग की देवी,महादेवी महिमा बड़ी महान।।दिया धार शब्दों को,हिंदी साहित्य है बतलाता।दिव्य दृष्टि दी भारत को,साहित्य तुम्हारा जगमगाता।।प्रेरणास्रोत कलम की तुम,हो दर्पण झिलमिलाता।दशा दिशा इस भारत की,जो सबकुछ…
दहेज पर कविता बेटी कितनी जल गई , लालच अग्नि दहेज ।क्या जाने इस पाप से , कब होगा परहेज ।।कब होगा परहेज , खूब होता है भाषण ।बनते हैं कानून , नहीं कर पाते पालन ।।कह ननकी कवि तुच्छ…
हम तुमसे प्यार करते हैं हाँ यही सच है हम तुमसे प्यार करते हैंजानेजाना हाँ यही सच है तुमपे मरते हैंतुम न होते हो तो तस्वीर से बतियाते हैंदिल के नज़दीक ला हम धड़कन तुम्हें सुनाते हैंहोश खो देते हैं…
सुनो तुम आ जाओ न सुनो तुम आ जाओ नकुछ अपनी भी सुनाओ नखफ़ा खफ़ा से लगते होथोड़ा सही मुस्कुराओ नयहाँ लोग बातें बनाते हैंनिगाहों को नहीं मिलाओ नबेख़ौफ़ हम रहते हैं मगरतुम तन्हा नहीं बुलाओ नज़िक्र मेरा हर सू…
कुण्डलिया अंदर की यह शून्यता , बढ़ जाये अवसाद ।संशय विष से ग्रस्त मन , ढूढ़े ज्ञान प्रसाद ।।ढूढ़े ज्ञान प्रसाद , व्यथित मन व्याकुल होता ।आत्म – बोध से दूर , … खड़ा एकाकी रोता ।।कह ननकी कवि तुच्छ…
पानी के रूप धरती का जब मन टूटा तो झरना बन कर फूटा पानी हृदय हिमालय का पिघला जब नदिया बन कर बहता पानी ।। पेट की आग बुझावन हेतु टप टप मेहनत टपका पानी उर में दर्द समाया जब जब आँसू बन कर बहता पानी ।।…
मन की जिद ने इस धरती पर कितने रंग बिखेरे दिन गुजरे या रातें बीतीं ,रोज लगाती फेरे।मन की जिद ने इस धरती पर, कितने रंग बिखेरे।कभी संकटों के बादल ने, सुख सूरज को घेरा।कभी बना दुख बाढ़ भयावह ,मन…