इन गुलमोहरों को देखकर

कविता/निमाई प्रधान’क्षितिज’ इन गुलमोहरों को देखकर दिल के तहखाने में बंद कुछ ख़्वाहिशें…आज क्यों अचानक बुदबुदा रही हैं?महानदी की… इन लहरों को देखकर!! कि ननिहाल याद आता है..इन गुलमोहरों को देखकर!! शाही अपना भी रूतबा थामामाजी के गाँव में!!बचपन में…

चिड़िया पर कविता

थके पंछी थके पंछी आजफिर तूँ उड़ने की धारले,मुक्त गगन है सामनेतूँ अपने पंख पसारले। देख नभ में, नव अरुणोदयहुआ प्रसूनों का भाग्योदय,सृष्टि का नित नूतन वैभवसाथियों का सुन कलरवअब हौंसला संभाल ले । शीतल समीर बह रहासंग-संग चलने की…

भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद

भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद साधे बेटी मौन को, करती  एक गुहार।जीवन को क्यों छीनते ,मेरे सरजनहार।मेरे सरजनहार,बतायें गलती मेरी।कहँ भू पर गोविंद , करे जो रक्षा  मेरी।“कुसुम”कहे समझाय  , पाप   जीवन भर काँधे। ढोवोगे दिन रैन ,दुःख यह मौनहि  साधे। पुष्पा शर्मा…

पथ की दीप बनूँगी

पथ की दीप बनूँगी प्रिय तुम न होना उदास तेरे पथ की दीप बनूँगी ।फूल बिछा कर पग पर तेरे काँटे सदा वरण करूँ गी ।।तेरे पथ की दीप बनूँगी। ना  मन  हो  विकल  न उथल पुथल ।मनों भाव अर्पित…

भावी पीढ़ी का आगामी भविष्य

भावी पीढ़ी का आगामी भविष्य हमें सोचना तो पड़ेगा।परिवार की परंपरासमाज की संस्कृतिमान्यताओं का दर्शनव्यवहारिक कुशलताआदर्शों की स्थापना।निरुद्देश्य तो नहीं!महती भूमिका है इनकीसुन्दर,संतुलित और सफल जीवन जीने में। जो बढता निरंतरप्रगति की ओरदेता स्वस्थ शरीर ,सफल जीवन और सर्वहितकारी चिन्तन।हम…

एक बार लौट कर आ जाते

अगर वह एक बार लौट कर आ जाते तालाब के जल पर एक अस्पष्ट सा,उन तैरते पत्तों के बीचएक प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ा,तभी जाना… मेरा भी तो अस्तित्व है।झुर्रियों ने चेहरे पर पहरा देना शुरू कर दिया था।कुछ गड्ढे थे. जो…

प्रातःकाल पर कविता

morning

प्रातःकाल पर कविता श्याम जलद की ओढचुनरिया प्राची मुस्काई।ऊषा भी अवगुण्ठन मेंरंगों संग नहीं आ पाई। सोई हुई बालरवि किरणेअर्ध निमीलित अलसाई।छितराये बदरा संग खेलेभुवन भास्कर छवि छाई। नीड़ छोड़  चली अब तोपंछियों की सुरमई पाँत।हर मौसम में  रहें कर्मरतसमझा…

हम हलचल कर देंगे

हम हलचल कर देंगे         (प्रॉज शैली में)             तर्क,      कुछ निकलेंगे..कुछ अंधविश्वास टूटेंगे।  ज्ञान ग्रहण जो सार,    हम तुम खोजते,       ग्रहण जो,         करेंगे।             हर,       पक्ष विपक्ष,     हर पहलु का,  कोई न कोई सार,  निकलता है प्यारे,   अनुसंधान जो,        …

छूकर मुझे बसंत कर दो

छूकर मुझे बसंत कर दो – निमाई प्रधान तुम बिन महज़ एक शून्य-सा मैंजीकर मुझे अनंत कर दो ….। पतझर-पतझर जीवन हैछूकर मुझे बसंत कर दो ।। इन्द्रधनुष एक खिल रहा है, मेरे हृदय के कोने में…..बस जरुरत एक ‘हाँ’…

दिलीप कुमार पाठक सरस का ग़ज़ल

दिलीप कुमार पाठक सरस का ग़ज़ल जिंदादिली जिसकी बदौलत गीत गाना फिर नया |हँसके ग़ज़ल गाते रहो छेड़ो तराना फिर नया || है जिंदगी जी लो अभी फिर वक्त का कोई भरोसा है नहीं |पल भर ख़ुशी का जो मिले…

सेवा पर कविता

सेवा पर कविता – मानक छत्तीसगढ़िया ठंडी में गरीब को कपड़े दे दो,गर्मी में प्यासे को पानी।हर मौसम असहाय की सेवा,ऐसे बीते जवानी।। अशिक्षित को शिक्षित बना दो,कमजोर को बलशाली।भटके को सच राह दिखा दो,भीखारी को भी दानी।। दीन दुखियों…

दीपक पर कविता

नव्य आशा के दीप जले – मधु सिंघी नव्य आशा के दीप जले,उत्साह रूपी सुमन खिले।कौतुहल नवनीत जगाकर,नया साल लो फिर आया। मन के भेद मिटा करके,नयी उम्मीद जगा करके।संग नवीन पैगाम लेकर ,नया साल लो फिर आया। सबसे प्रीत…