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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • भूख पर कविता

    भूख पर कविताएं

    भूख पर कविता

    कविता 1.

    भूख केवल रोटी और भात नहीं खाती
    वह नदियों पहाड़ों खदानों और आदमियों को भी खा जाती है
    भौतिक संसाधनों से परे
    सारे रिश्तों
    और सारी नैतिकताओं को भी बड़ी आसानी से पचा लेती है भूख।

    भूख की कोई जाति कोई धर्म नहीं होता
    वह सभी जाति सभी धर्म वालों को समान भाव से मारती है।

    जाति धर्म मान सम्मान महत्वपूर्ण होता है
    जब तक भूख नहीं होती।

    दुनिया भर के आयोजनों में
    सबसे बड़ा होता है
    रोटी का आयोजन

    सच्चा कवि वही होता है
    जो रोटी और भूख के विरह को समझ ले।

    सबसे आनंददायक होता है
    भूख का रोटी से मिलन।

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    कविता 2.

    भूख !
    असीम को समेटे दामन में,
    हो गई है उच्चश्रृंखल।
    खोती जा रही अपना
    प्राकृतिक रूप।
    वास्तविक स्वरूप ।

    भूख बढ़ती चारों ओर,
    रूप बदल- बदल कर
    यहाँ -वहाँ जानें, कहाँ -कहाँ
    करने लगी है,आवारागर्दी।

    भूख होती जा रही बलशाली,
    दिन ब दिन,
    तन, मन, मस्तिष्क पर ,
    जमा रही अधिकार,
    और दे रही इंसान को पटखनी ।

    पेट की आग से भी बढ़कर,
    धधकती ज्वाला मुखी,
    लालच और वासना की भूख
    जो कभी भी ,कहीं भी ,
    फट सकती है।

    अब नहीं लगती किसी को,
    इंनसानियत ,धर्म, कर्तब्य और भाईचारे ,
    संस्कारों की भूख
    बौने होते जा रहे सब।

    दावानल लगी है, मनोमस्तिष्क में,
    विकारों में जलता मानव,
    अपनी क्षुधा तृप्ति के लिए,
    होते जा रहे हैवान ।
    और रोटी की जगह निगल रहे समूची मानवता को ।

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

    कविता 3.

    भीख माँगने में मुझे लाज तो आती है
    पर ये जालिम भूख बड़ी सताती है।
    सुबह से शाम दर दर खाती हूँ ठोकर
    दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती है।
    मैलै कुचैले वसन में बीतता है बचपन
    दिल की ख्वाहिश अधूरी ही रहती है।
    ताकि भाई खा सके पेट भर खाना
    बहाना बना पानी पी भूख सहती है।
    कहाँ आती है भूख पेट नींद भी ‘रुचि’
    आँखों से आँसू बरबस ही बहती है।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछियां, महासमुन्द, छ.ग.


  • लोकन बुढ़िया-नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    लोकन बुढ़िया

    स्कूल कैंपस के ठीक सामने
    बरगद के नीचे
    नीचट मैली सूती साड़ी पहनी
    मुर्रा ज्वार जोंधरी के लाड़ू
    और मौसमी फल इमली बिही बेर बेचती
    वह लोकन बुढ़िया
    आज भी याद है मुझे

    उस अकेली बुढ़िया को
    स्कूल के हम सब बच्चे जानते थे
    मगर आश्चर्य तो यह है
    उस बुढ़िया की धुंधली आंखें
    हम सबको पहचानती थी
    हम सबका नाम जानती थी उसकी स्मृति

    हमारे पाँच-दस पैसों की खरीदी से
    उसे कितना फायदा होता था
    हमें नहीं पता
    पर वह समय से रोज
    अपने ठीए पर बैठी मिलती थी

    अपार प्रेम और सहानुभूति से भरी
    वह लोकन बुढ़िया
    भांप लेती थी हमारे चेहरे के भाव
    पढ़ लेती थी हमारी आंखों की भाषा

    हमारे पास कभी पैसे ना होने पर
    वह भूल जाती थी
    अपना व्यावसायिक धर्म
    और हमारी दी हुई गालियां
    यूं ही दे देती थी खाने के लिए लाड़ू

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • मातृ दिवस पर हिंदी कविता (Martee Divas Par Kavita )

    मातृ दिवस पर हिंदी कविता (Martee Divas Par Kavita) : मातृपितृ पूजा दिवस भारत देश त्योहारों का देश है भारत में गणेश उत्सव, होली, दिवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, नवदुर्गा त्योहार मनाये जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व मातृ पितृ पूजा दिवस प्रकाश में आया। आज यह 14 फरवरी को देश विदेश में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में रमन सरकार द्वारा प्रदेश भर में आधिकारिक रूप से मनाया जाता है

    मातृ दिवस पर हिंदी कविता (Martee Divas Par Kavita )
    माँ पर कविता

    मातृ दिवस पर हिंदी कविता (Martee Divas Par Kavita) :Table of Contents

    मातृ दिवस पर हिंदी कविता (Martee Divas Par Kavita ):

    ममा मेरी है बहुत प्यारी

    ममा मेरी है बहुत प्यारी,
    लगे दिखने में राजकुमारी।

    रंग बिरंगी महक बिखेरे,
    सुंदर फूलों की है क्यारी।

    जी भर कर लाड़ लड़ाती,
    लगती मुझको सबसे न्यारी।

    दिनभर करती मेरा काम,
    मेरी माता बहुत दुलारी।

    सेवा मेरी करती रहती,
    लगे न उनको कोई बीमारी।

    सबका वो रखती है ख्याल,
    करवाती मुझको घुड़सवारी।

    मनसीरत को करती प्यार,
    मदर डे पर देता हूँ पारी।


    शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
    बागोड़ा जालोर राजस्थान

    माँ पर रचित कुंडलिनी

    जननी माँ माता कहें , ममता का भंडार।
    ईश्वर का प्रतिरूप है,माँ जग का आधार।। 
    माँ जग का आधार , माँ  है दुख मोचिनी।
    माँ  की शक्ति अपार,माँ है जगत जननी।।
                     

    माँ जैसा कोई नही, माँ का हृदय विशाल।
    वात्सल्य से भरपूर है,माँ रखती खुशहाल।।
    माँ रखती खुशहाल, माँ त्याग की मूरत है। 
    माँ देवी का रूप ,  बड़ी  भोली  सूरत  है।।              

    पूजा  वरदान है माँ , गीता  और  कुरान।
    माँ का प्यारअमूल्य है,माँ सृष्टि में महान।।
    माँ सृष्टि में महान , माँ  जैसा  नही दूजा।
    लो माँ काआशीष,माँ भगवान की पूजा।।
                     


    चाहे पूत कपूत हो, मात न होय कुमात।
    ईश्वर ने  दी है हमे, यह अद्भुत सौगात।।
    यह अद्भुत सौगात , माँ ही प्रथम गुरु है।
    प्रेमऔर विश्वास,यह सृष्टि माँ से शुरु है।।


        ©डॉ एन के सेठी

    सौम्य-स्वरूपा माँ

    सौम्य-स्वरूपा माँ मेरी,    
                 तुम वो शीतल चंदन हो।
    जिसके आँचल के साया में,  
                  लहरता नंदनवन हो।
    छीर-सुधा रसपान कराके,   
                  पुष्ट बनाया मेरा तन मन।
    पाला-पोषा तूने मुझको,   
                 करके सौ-सौ स्नेह जतन।
    अपने त्याग-तपस्या से माँ, 
                  तूने मुझे बनाया कंचन।
    बिन मांगे सब पाया मैने,
                चरणों को छू करते ही वंदन।
    निश्छल ममता भरे हृदय में,     
                तुम वो निर्मल गंगाजल हो।
    मुझको जग दिखलाने वाली,   
               तुम सुरभित पावन संदल हो।
    सौम्य स्वरूपा माँ मेरी,
                 तुम वो शीतल चंदन हो।

            “मेरी माँ”

           रविबाला ठाकुर”सुधा”
                  (शिक्षिका)

    माँ फिर याद आई

    मैं जब भी
    इस असंख्य भीड़ से
    अलग हुआ
    या
    तिरस्कृत कर ठुकराया गया
    मैं जब भी ….
    जीवन के अवसादों से घिरा
    या लोगों द्वारा
    झुठलाया गया
    तब-तब
    माँ के विचारों का
    संबल मिला
    किसी दैवीय प्रतिमा की तरह
    यथार्थ के धरातल पर
    वह मेरा पथ ….
    आलोकित करती रही
    जब-जब
    जीवन की विपत्तियाँ
    कुलक्षिणी रात की तरह
    मुझे मर्माहत करने लगीं
    जब कभी ..
    दैत्याकार परछाइयाँ
    मुझे अँधेरे में
    धकेलने लगीं
    तब ..
    बचपन की लोरियों ने
    उस आत्मविश्वास को
    ढूंढ निकाला
    जिसे
    कहीं रख छोड़ा था मैंने
    और
    अब तो ….
    उस माँ रुपी भगवान से
    इतनी सी प्रार्थना है
    कि
    उसके चरणों की धूल
    मेरे मस्तक में
    शोभायमान हो
    उसके
    आँचल का बिछौना
    मुझ अबोध की दुनिया का
    एक मात्र सराय हो
    उस ममतामयी मूरत को
    याद करते-करते
    आँखें नम हो आई
    वक्त के
    पथरीले रास्तों पर
    आज
    माँ फिर याद आई – – – – – –

      प्रकाश गुप्ता ”हमसफ़र” रायगढ़ ( छत्तीसगढ़ )

    अमिय स्वरूपा माँ

    अन्तर में सुधा भरी है पर, नैनों से गरल उगलती है,
    मन से मृदु जिह्वा से कड़वी, बातें हरदम वो कहती है,
    जीवन जीने के गुर सारे, बेटी को हर माँ देती है,
    बेटी भी माँ बनकर माँ की,ममता का रूप समझती है।


    जब माँ का आँचल छोड़ दिया, उसने नूतन घर पाने को,
    जग के घट भीतर गरल मिला,मृदुभाषी बस दिखलाने को,
    जो अमिय समान बात माँ की, तूफानों में पतवार बनी,
    जीवन का जंग जिताने को, माता ही अपनी ढाल बनी।


    जीवन आदर्श बनाना है, अविराम दौड़ते जाना है
    बेटी को माँ की आशा का, घर सुंदर एक बनाना है,
    मंथन कर बेटी का जिसने, गुण का आगार बनाया है,
    देवी के आशीर्वचनों से,सबने जीवन महकाया है।


    भगवान रूप माँ धरती पर ,  ममता की निश्छल मूरत है
    हर मंदिर की देवी वो ही, प्रतिमा ही उसकी सूरत है
    जो नहीं दुखाता माँ का मन, संसार उसी ने जीता है
    वो पुत्र बात जो समझ सके,जीवन मधुरस वो पीता है।


    डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”
    तिनसुकिया,असम

    माँ पर कविता

    उत्सव  फाग  बसंत तभी
    जब मात महोत्सव संग मने।

    जीवन  प्राण  बना  अपना,
    तन माँ अहसान महान बने।

    दूध  पिये  जननी  स्तन  का,
    तन शीश उसी मन आज तने।

    धन्य  कहें  मनुजात  सभी, 
    जन मातु सुधीर सुवीर जने।

    भाव  सुनो  यह  शब्द महा,
    जनमे सब ईश सुसंत जहाँ।

    पेट  पले  सब  गोद  रहे,
    अँचरा लगि दूध पिलाय यहाँ।

    मात  दुलार  सनेह  हमें,
    वसुधा मिल मात मिसाल कहाँ।

    मानस  आज  प्रणाम  करें,
    धरती बस ईश्वर मात जहाँ। 
     
    पूत  सुता  ममता  समता,
    करती सम प्रेम दुलार भले।

    संतति  के  हित  जीवटता,
    क्षमता तन त्याग गुमान पले।

    आँचल  काजल  प्यार  भरा,
    शिशु  देय पिशाच बलाय टले।

    आज  करे  पद  वंदन  माँ,
    पद पंथ निशान पखार चले।

    पूत  सपूत  कपूत  बने,
    जग मात कुमात कभी न रहे।

    आतप  शीत  अभाव  घने,
    तन जीवन भार अपार सहे।

    संत  समान  रही  तपसी,
    निज चाह विषाद कभी न कहे।

    जीवन  अर्पण  मात  करे,
    तब क्यों अरमान तमाम बहे।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, “बौहरा”
    सिकंदरा, 303326

    माँ की याद में-

    सारा घर
    घर के सारे कमरे
    अंदर-बाहर सब
    खुशबुओं से लिपटा रहता था
    तुम्हारे जाने के बाद
    बाग है वीरान-सा
    खुशबू सब चली गई 
    तुम खुशबू थी माँ ।

        2
    आंगन के एक कोने पर
    तुम चावल से कंकड़ निमारती
    तुम्हारे पास ही बाबूजी
    पुस्तक लिए कुछ पढ़ रहे होते थे

    आंगन के उस कोने पर
    बाबूजी आज भी पढ़ते हैं
    तुम चली गई
    सूपे में रखा है चावल

    खाने में जब-जब कंकड़ आता है
    तुम याद आती हो माँ ।

          3
    तुम्हें सोने के जेवरों से बेहद प्यार था
    मेरे सामने ही तुम्हारे देह से
    सारे जेवर उतारे जा रहे थे
    तुम चुप क्यों थी ?
    मना क्यों नहीं की माँ ?

        4
    भाई-बहनों में तीसरा हूँ
    सबसे छोटा नहीं
    फिर भी मुझे 
    पूरे घर में ‘छोटू’ कहा जाता है
    काश मैं बड़ा होता
    पहले पैदा हुआ होता
    तुम्हारा साथ मुझे ज्यादा मिला होता माँ ।

        5
    तेरह साल बाद दशहरे में आया था गांव
    इस बार भाइयों में कोई नहीं थे
    अकेला ही था माँ के पास 

    दशहरे की शाम 
    पीढ़े पर खड़ाकर
    दही का तिलक लगाकर
    तूने उतारी थी मेरी आरती
    विजय पर्व पर 
    छुए थे मैंने तुम्हारे पांव
    विजय का दी थी आशीर्वाद
    और पाँच सौ के दो नोट

    न तुम्हें पता था
    न मुझे पता था
    कि दशहरे के तीसरे दिन 
    तुम चली जाओगी

    तुम चली गई
    पर विजय कामना और असीस रूप में
    साथ रहती हो हमेशा माँ ।

        6
    तुम्हारे मृत देह को
    चूमा था कई बार
    तुम निस्पंद थी

    घर के पास 
    बाड़ी के पीछे
    खेत के मेढ़ पर
    अग्नि दी गई थी तुम्हें

    तुम राख हो चुकी थी
    तीसरे दिन राख के ढेर से
    तुम्हारी अस्थियों को बीना था
    भीतर भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था
    बह रहे थे आँसू मेरे
    विश्वास नहीं हो रहा था
    कि तुम नहीं हो अब

    विश्वास तो अब भी नहीं होता
    याद कर उस दिन को
    आँखे अब भी भर आती है

    जब भी जाता हूँ घर
    मेरे कदम ख़ुद ब ख़ुद
    चल पड़ते हैं उस जगह
    जहां तुम्हारी चिता बनाई गई थी
    जहां अग्नि दी गई थी तुम्हें
    वहां खड़ा होकर तुम्हें याद करना
    तुम्हें महसूस करना अच्छा लगता है माँ ।

    – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    माँ की ममता

    माँ की ममता का इस जग में मोल नहीं।
    तौल सके इस ममता को,वह बना आज तक तौल नही।

    रख नौ मास कोख में सुत को,
    सौ सौ जतन किया।
    प्रसव वेदना सही असनिय,
    पुञ को जनम दिया।
    उस जननी के लिए कभी कडवे बचन तू बोल नही।।

    तौल सके इस…..

    जागी रातों में माँ ने पलकों में,
    तुझे बिठाया।
    खुद गीले में सोकर के तुझे,
    सुख की नींद सुलाया।

    उस माँ की अमिमय आंखों में,
    आँसू कभी तू घोल नही।।

    तौल सके इस….

    हुआ कभी कष्ट सुत को,
    मां व्याकुल हो जाती।
    देवी देव मनाया करती,
    झर झर अश्रू बहाती।
    उस माँ की ममता को कभी,
    अंहकार से तौल नही।।

    तौल सके इस…..

    अपनी रक्त को दूध बनाकर  ,
    माँ ने तुझे पिलाया।
    खुद भूखी रह अपना निवाला,
    माँ ने तुझे खिलाया।
    माँ शब्द से बढ़कर.,
    जग में दूजा कोई बोल नहीं।।

    तौल सके इस….

    घूप छाँव से तुझे बचाया,
    फूल बिछाये राहों में।
    धूल धूसरित था तब भी,
    तुझे उठाया बाँहों में।
    उस रहबर की राहों में,
    आने देना शूल नही।।

    तौल सके इस….

    पहली बार मुँह खोला तब तू,
    माँ शब्द ही बोला।
    उँगली पकड़ माँ बाप चलाते,
    जब जब था तू ड़ोला।
    ईश्वर भी माँ को नमन करे,
    इस बात को तू भूल नहीं।।

    तौल सके इस ममता को,
    वह बना आज तक तौल नही।
    तौल सके इस ममता को,वह बना आज तक तौल नही।।।

    केवरा यदु मीरा

    सब कुछ भूल जाती है माँ

    इतनी बड़ी हवेली में
    इकली कैसे रहती माँ
    बड़ी बड़ी संकट को भी
    चुप कैसे सह लेती माँ ।।


    कमर झुकी है जर जर काया
    फिर भी चल फिर लेती माँ
    मुझे आता  हुआ देख कर
    रोटी सेक खिलाती माँ ।।


    खाँसी आती है माँ को
    चादर  मुँह ढक लेती माँ
    मेरी नींद न खुल जाए
    मुँह बंद कर लेती माँ ।


    जब उलझन में होता हूं
    चेहरा देख समझती माँ
    पास बैठ कर चुपके से
    शीश हाथ धर देती माँ ।।


    खुद भुनती बुखार में पर
    मेरा सिर थपयाती  माँ
    गर्म तवे पर कपड़ा रख
    छाती सेकती मेरी माँ ।।

    कभी न मांगे मुझसे कुछ
    जीवन कैसे जीती माँ
    थोड़ा थोड़ा बचा बचा कर
    मुझे सभी दे देती माँ ।।


    किसी बात के न होने पर
    चुप हो कर रह जाती माँ
    अगले पल लिपट गले से
    सब कुछ भूल जाती है माँ ।।


    सुशीला जोशी
    मुजफ्फरनगर

    माँ पर कविता

    meri maa
    meri maa

    ममता मेरी मात की,
    है जी स्वर्ग समान।
    जिनके चरणों में शीश,
    हैं मेरे भगवान।।
    मेरे हैं भगवान,
    कृपा है मुझपे माँ की।
    रखती हरपल ख्याल,
    यार सुन मेरे जां की।।
    कह कवि “अंचल” मित्र,
    और ना ऐसी क्षमता।
    माता सबकी पूज्य,
    श्रेष्ट है माँ की ममता।।

    अंचल

    माँ आखिर माँ होती है

    जब तुम हंसते वो हंसती है
    जब तुम रोते वो रोती है
    माँ आखिर माँ होती है।


    तुमको भूखा देख न पाए
    तुमको प्यासा कभी न छोड़े
    तुम संग खेले पीछे दौड़े
    तेरे सब नखरे सहती है
    माँ  तो आखिर माँ होती है।


    गा गा लोरी तुझे सुलाए
    करवट बदल कर रात बिताए
    तुझको कष्ट न होने देती
    गीले पर खुद सोती है
    माँ  आखिर माँ होती है।


    तेरी खातिर सब सहती है
    सारी दुनिया से लड़ती है
    तेरी खुशी में  उसकी खुशी
    बापू की भी न सुनती है
    माँ  आखिर माँ होती है।


    सोचो वो न होती
    तो तुम न होते
    जीवन उसने तुम्हें  दिया है
    तुमने उसका रक्त पिया है
    ये शरीर पर घमन्ड कैसा
    सारा तुमको ऋण मिला है
    कर्ज दूध का चुका सको तो
    जीवन अपना तार सकोगे
    कर्म करो ये गीता कहती है
    माँ  तो आखिर माँ  होती है


    राकेश नमित

    वह मां है – जतीन चारण की सुन्दर कविता

    जब चोट हमें लगे तो आंखें उसकी भर जाती है,
    जब आगे हम बढें तो हंसी उसके चेहरे पर छाती है…..

    हर घड़ी वह हमारे साथ रहना चाहती है;
    वह मां है तेरी बस तेरे पास रहना चाहती है।

    हमको एक इंसान माँ ही तो बनाती है,
    इस संसार में लाकर यह संसार हमें माँ ही तो दिखाती है….

    बाकी सभी तो अपना कह कर दूर हो जाते हैं

    बस एक माँ ही तो है जो हमें गले लगाती है:

    और कुछ नहीं बस वह तेरा साथ ही तो चाहती है,
    बुढ़ापे में तू बन जा उनका सहारा
    बस वो यह बात ही तो चाहती है।

    कभी मौका मिले माँ की सेवा करने का
    तो पीछे मत हटना मेरे दोस्त,
    क्योंकि नसीब वालों को ही यह नसीब होता है…

    और मां की कीमत उनसे पूछ लेना,
    जिनको माँ का साया तक नसीब नहीं होता है।

    मैंने वक्त को गुजरते देखा है….
    बहुतों को बदलते देखा है
    और बहुतों की जिंदगी में,
    मां की कमी को खलते देखा है।

    ✍जतीन चारण

    हाँ तू मेरी माता है- नेहा शर्मा



    क्या ही लिखूं उसकी खातिर
    जिसने खुद मेरी रचना कि,
    कुछ शब्द नहीं उसके खातिर
    जिसने खुद मुझको शब्द दिए।


    कुछ कह पाऊं उसके हित में
    उतना सामर्थ कहाँ मुझमे,
    उसके अर्थों को समझ सकूँ
    इतना भी अर्थ कहाँ मुझमे।


    तू संग मेरे ज़ब होती है
    हर मुश्किल राह बदलती है,
    मैं कर्ज तेरा भूलूँ कैसे
    जो बाहँ पकड़ तू चलती है।


    तू परमपिता मेरे खातिर
    तुझको मैं भूल सकूँ कैसे,
    मैं अंश तेरा ही हूँ जननी
    कलियों से फूल खिले जैसे।


    भले बुरे का ज्ञान सदा
    तुझसे हर कोई पता है,
    और धन्य धन्य मैं धन्य सदा
    कि हाँ तू मेरी माता है।।
    नेहा शर्मा…..

    मातृत्व की अभिव्यक्ति- रीना गोटे

    छोटे-छोटे हाथ
    नन्हें-मुन्हें पैर
    प्यारी-प्यारी आंखें
    धक् धक् धक्
    धड़कन की आवाजें
    महसूस होती रही।

    गर्भ में मेरे
    जुड़े रहे दोनों
    एक प्रणय बीज से
    सींचा था जिसे
    अपनी साँसों से
    कल्पना करते हुए।

    उसकी मासूमियत की
    आभास न हुई
    कोई पीडा़ कभी
    अब गोद में आया
    प्रणय बीज जीवंत
    नयनों से देखकर
    उसकी जीवन गति
    कोई सीमा नहीं।

    मातृत्व सुख की
    आज हो गया
    मेरा पूर्ण श्रृंगार
    प्रदत्त हुआ जो
    कुदरत का उपहार।

    रीना गोटे

    मेरी माँ -किरण अवधेश गुप्ता

    ‘माँ’ शब्द में ही छुपी है
    ममता भरी एक पुकार
    छुपा ले मईया आँचल में तू
    छोटी सी है यही गुहार।

    जब मैं आत्मा का स्वरुप थी
    ईश्वर ने ये कहा था मुझको
    गर दे दू मैं तुमको खुशियाँ
    क्या दोगी बोलो तुम मुझको।

    नासमझ थी उस समय मैं
    खुशियों का अर्थ समझ न पाई
    गर्भ में जब भेजा मुझको तब
    बात समझ में मुझे ये आई।

    हर पल रखती ध्यान मेरा तुम
    अपना हर पल मुझे दिया
    दुनिया में आने से पहले
    खुशियों से दामन मेरा भर दिया।

    जब संसार में आयी तब से
    हर पल हर क्षण मुझे दिया
    इसके बदले मैया मेरी
    मुझसे कुछना कभी लिया।

    मैं रोती तब तुम भी रोती
    मैं हंसती तुम हंस जाती
    चोट कभी जब मुझे थी लगती
    दर्द से मैया तुम घिर जाती।

    बड़ी हुई तब पता लगा ये
    यहां तो बेटी अनचाही है
    पर मैया तेरी नज़रों में
    बात नज़र ये कभी ना आई।

    जीवन के हर सुख-दुख का
    तूने मुझको पाठ पढ़ाया
    खुद निरंक थी फिर भी मैया
    तूने ज्ञान का मार्ग दिखाया।

    शादी करके मैया मेरी
    जब अपने ससुराल में आयी
    तेरे सिखाये संस्कार वो सारे
    जीवन में मेरे खुशियां ले आई।

    मैया मेरी जो भी हूँ मैं
    बस तेरी ही छाया हूँ
    ये रंग-रूप ,ये नयन-नक्श
    बस मै तेरी ही काया हूँ।

    मैं भी बनना चाहूँ मैया
    बस तेरे ही जैसी प्यारी
    छोटों को प्यार बड़ो को आदर
    तेरी जैसी ही बनूँ मैं न्यारी।

    जैसा प्यार मुझे मिल पाया
    मैं भी अपने बच्चों को दूँ
    मुझको भी प्यार करें वो उतना
    जितना मै करती तुमसे हूँ।

    चाहूँ ईश्वर से बस इतना
    खुश रहो तुम सदा यूं ही
    तेरे प्यार का आँचल मैया
    सदा रहे मुझ पर यूं ही।

    हर जनम में मैया मेरी
    तेरी बेटी बनकर जन्मू मैं
    बस यही तमन्ना रही हैं दिल में
    गर्व से सिर तेरा ऊँचा कर दूं मैं।

    लिखा है ये मात्तृत्व दिवस पर
    पर अंकित है ये दिल पर ये
    हर जनम में ईश्वर मुझको
    तेरी जैसी माँ ही दे।

    श्रीमती किरण अवधेश गुप्ता

    मां परमात्मा मां ही ईश्वर हमारा- शालिनी यादव

    मां संग बचपन अच्छा होता,
    हर सपना सच्चा होता ,
    हर मांग को पूरा करती ,
    हर इच्छा को पूरा करती।

    मैं उस समय की रानी होती
    महलों की राजकुमारी होती ।
    चाहे कुछ भी हो जाए
    चाहे यह समय भी रुक जाए ।

    पर मां के जैसा न कोई ,
    हमारे लिए वो रात भर न सोई ।
    सब रिश्ते दिखावे के मंदिर

    महजिस्द गिरजाघर गुरुद्वारा,
    मां के बिना कोई नहीं सहारा
    उसके आगे ईश्वर भी हारा
    उसके बिना कोई नहीं हमारा।
    उसके आगे फीका ये संसार सारा ।
    वो हमारी जन्मदाता वही स्वर्ग हमारा ,
    मां परमात्मा, मां ही ईश्वर हमारा।

    शालिनी यादव

    माँ है तो जहान है -अकिल खान

    माँ के बीना ये जिंदगी अधूरा है,
    माँ तुम हो तो ये सफर पुरा है।
    माँ की ममता से बढ़कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं,
    माँ की डांट को सह लेना

    माँ की इस दुआ से बढ़कर कुछ भी नहीं।।
    माँ हमारी जन्नत है माँ का हमपर अहसान है,
    माँ है तो जहान है माँ है तो हमारी पहचान है।।

    याद है वो बचपन की यादें सोए थे

    तुम सुखे में और माँ सोइ गीली पिशाब में,
    बड़े दुःख से पाला रे तुझको

    फिर भी शामिल करता तू अपनी माँ को

    लड़ाई झंझट के हिसाब में।
    आज तू दुनिया के चकाचौंध में फंस गया,
    किसी और के खातिर आज जहन्नम में तू धंस गया।
    सोंच जरा माँ है तो ये सफर कितना आसान है,
    माँ है तो जहान है माँ है तो हमारी पहचान है।।

    बुढ़ापे में छोड़ न देना कभी

    माँ को अपने दहलीज के गेट में,
    माँ की हर ख्वाहिश को करना पुरा

    क्योंकि माँ ने रखा है नौ महीने हमको पेट में।
    मेरे रब के बारगाह में माँ की दुआ टाली नहीं जाती,
    हर सपना तेरा होगा पुरा मांगले माँ से

    क्योंकि माँ की दुआ कभी खाली नहीं जाती।
    बाकी सब दिखावा है असल में माँ हमारी जान है,
    माँ है तो जहान है माँ है तो हमारी पहचान है।।

    माँ है तो संसार है माँ है तो बहार है,
    माँ है तो ख्वाहिश है माँ है तो खुशियाँ हजार है।
    माँ हमसे कभी न जाना तुम दूर,
    हम हैं तुम्हारे बच्चे हम हो जाएंगे मजबूर।
    मेरे रब गुनाहों को हमारी दिल से साफ करदे,
    अगर दुःखाया है दिल अपने माँ का

    हमने तो हमें भी माफ कर दे।
    तू ही संघर्षों का गाथा है तू ही आन बान और शान है,
    माँ है तो जहान है माँ है तो हमारी पहचान है।।

    _अकिल खान

    मां तू संपूर्णता का सार है हिन्दी कविता

    मां तू संपूर्णता का सार है!
    बिन मांगे तूने मुझको दिया जीवन का उपहार है।
    अंश मात्र को रूप देह दे कर तू ने बनाया यह सारा संसार है।

    9 महीने कोख में रखकर,
    बिन देखे मुझ पर लुटाया अपना सारा प्यार है।
    मां तू संपूर्णता का सार है!

    मां का बचपन:-

    खाना सिखाया, चलना सिखाया, सिखाया तूने सारा संस्कार है।
    आंख बंद करके दौड़ पड़ी तेरी और मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है।
    मेरा तुझ को परेशान करना कौतूहल से भरा हर एक काम करना,
    तू कहती यही तो तेरा ईनाम है ।
    मां तू संपूर्णता का सार है!

    मां की युवावस्था:-

    तेरा प्रेम शून्य से लेकर अनंत तक का विस्तार है।
    अब बदला मेरे जीवन का धार है,
    तेरा फिक्र करना अब लगता मुझे बेकार है ।
    अपनी बातों से मैंने पहुंचाया तुझे दुख हजार है ।
    फिर भी तेरा वह निश्चल प्रेम मानो सागर का अथाह जल धार है।
    मां तू संपूर्णता का सार है!

    मां की वृद्धावस्था:-

    अब तुझ में भी जागा एक नन्हा शैतान है ।
    नंगे पांव भागा करती थी तू मुझे खिलाने को ,
    अब करना मुझे भी यही काम है ।
    भुला नहीं मैं तेरे संस्कार तू ही मेरे जीवन का आधार है।
    आज भी कभी मुझे चोट लगे तो दर्द तुझे भी होता है ।
    इतने बरसों में ना तू बदली ना तेरे यह प्यार का एहसास है।
    मां तू संपूर्णता का सार है!

    मां:-बच्चे के साथ पैदा होती हर बार एक मां है ।
    कि मेरे साथ साथ बदला तेरा भी ये जीवन काल है।
    तुझसे अलग कहां हूं मैं मां,
    मुझे भी तुझसे तेरे जितना ही प्यार है।
    मां तू संपूर्णता का सार है!

    प्रांशु गुप्ता

    क्या लिखूं उसको जिसने खुद ही मुझको लिखा है

    सब की कमी पूरी कर देती, दुखों का सागर हर लेती,
    उसकी कमी कोई भर ना पाए,माँ सुखोँ का गागर भर देती,

    माँ ही खुशियां,माँ ही दुनिया,माँ जीने का तरीका है,
    क्या लिखूं उसको जिसने खुद ही मुझको लिखा है।

    रब का रूप माँ है,धूप में सदा वह छांव है,
    है जहां खुशियों की लहर सजी वह मेरी मां का पाँव है।

    माँ ही जिंदगी, माँ ही बंदगी, मां से सीखा सलीका है,
    क्या लिखूं उसको जिसने खुद ही मुझको लिखा है।

    हंसकर उसने नींदे भी हम पर वारी है
    हमारी गलतियों पर डांटा,थप्पड़ भी हमको मारी है ,
    पर उसकी डांट थी कितनी मीठी यारों जिसने हर खता हमारी सुधारी है ।।

    जिसके ना होने पर हमारा तो क्या रब का जहान भी फीका है,
    क्या लिखूं उसको जिसने खुद ही मुझको लिखा है।

    खुद चुप चुप के आंसू पी जाती है ,
    पर पूरी मुस्कान से हमें खाना खिलाती है,
    बच्चे हम बड़े हो गए हैं पर सीने से लगाकर सुलाती है ।

    उसके रोने से रब भी रोता दिखा है ,
    क्या लिखूं उसको जिसने खुद ही मुझको लिखा है।।

    Purnima Pramod Pradhan

    माँ का कोई मोल नहीं

    माँ के बारे में क्या लिखूँ ॽ
    माँ ने खुद मुझे लिखा है ,
    माँ वो खूबसूरत सितारा है
    जिसे खुदा ने खुद उतारा है

    माँ के कदमों में जन्नत है,
    जहाँ पूरी होती हर मन्नत है।
    माँ के लिए हर शब्द कम है,
    माँ शब्द में ही इतना दम है ॥

    माँ के लिए कोई एक दिन नहीं,
    हर दिन माँ के लिए होता है|
    माँ है तो भगवान पास है,
    माँ खूबसूरत एहसास है॥

    जो खुद ना खाके खिलाती ,
    जो रात भर जगकर सुलाती,
    ऐसी माँ का कोई मोल नहीं |
    हां!0माँ का कोई तोल नहीं |

    शिवांशी यादव

    सबसे सच्चा रिश्ता माँ का

    माँ की ममता मान सरोवर,
    आँसू सातों सागर हैं।
    सागर मंथन से निकली जो
    माँ ही अमरित गागर है।

    गर्भ पालती शिशु को माता,
    जीवन निज खतरा जाने।
    जन्मत दूध पिलाती अपना,
    माँ का दूध सुधा माने।

    माँ का त्यागरूप है पन्ना,
    हिरणी भिड़ती शेरों से।
    पूत पराया भी अपनाती
    रक्षा करती गैरों से।

    माँ से छोटा शब्द नहीं है।
    शब्दकोष बेमानी है।
    माँ से बड़ा शब्द दुनियाँ में,
    ढूँढ़े तो नादानी है।

    भाव अलौकिक है माता के,
    अपना पूत कुमार लगे।
    फिर हमको जाने क्यों अपनी,
    जननी आज गँवार लगे।

    भूल रहें हम माँ की ममता,
    त्याग मान अरमानों को।
    जीवित मुर्दा बना छोड़ क्यों,
    भूले माँ भगवानो को।

    दो रोटी की बीमारी से
    वृद्धाश्रम में भेज रहे।
    जननी जन्मभूमि के खातिर।
    कैसी रीति सहेज रहे।

    भूल गये बचपन की बातें,
    मातु परिश्रम याद नहीं।
    आ रहा बुढ़ापा अपना भी,
    फिर कोई फरियाद नहीं।

    वृद्धाश्रम की आशीषों में,
    घर की जैसी गंध नहीं।
    सामाजिक अनुबंधो मे भी,
    माँ जैसी सौगंध नहीं।

    माँ तो माँ होती है प्यारी,
    रिश्तों का अनुबंध नहीं।
    सबसे सच्चा रिश्ता माँ का,
    क्यों कहते सम्बंध नहीं।

    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    ममता की मूरत माँ

    सब दुःख सहने वाली,
    सब दुःख हरने वाली।
    सुख का सागर भरने वाली,
    ममता की मूरत होती है माँ।

    प्रेम का सागर ,भरने वाली,
    ममता की सरिता, बहाने वाली।
    हर कष्ट मिटाने वाली ,
    देवी की सूरत होती है मां।

    हर संकट ,पीड़ा सहने वाली,
    ममता रूपी खजाना लुटाने वाली,
    संतान को हर सुख देने वाली,
    पृथ्वी लोक की भगवान होती है मां।

    भूख सहकर, दो निवाले खिलाने वाली,
    धूप सहकर शीतल छांव दिलाने वाली।
    अपना खून सीचकर,दूध पिलाने वाली,
    साक्षात ईश्वर का प्रतिरूप होती है माँ।

    मां साक्षात ईश्वर का अवतार है,
    मां ही जीवन का आधार है।
    बिन इसके जीवन बेकार है,
    मां बिन सुख की कल्पना निराधार है।

    सब दुःख सहने वाली,
    हर दुःख हरने वाली।
    सुख का सागर भरने वाली,
    ममता की मूरत होती है माँ।
    संतान का हर पीड़ा सहने वाली,
    भगवान की मूरत होती है माँ।

    मां को कभी दुःख न देना,
    कभी इनके श्राप न लेना।
    माता होती जग की जननी,
    सर्वदा सेवा का सुख ही देना।

    महदीप जंघेल

    माँ पर कविता

    माता सम दाता नहीं,यह अनुभव कर गान।
    मन अति व्याकुल हो रहा,मौन अधर धर ध्यान।।

    तन-मन-धन सब कुछ दिया,सूरज चंदा दान।
    खुला गगन सिर पर दिया,भर ले जीव उड़ान।।

    पिता छाँव सिर पर दिया,आँचल छाँव महान।
    दूध पिला कर तृप्ति दी,कर ले जीव गुमान।।

    हाथ पकड़कर दी डगर,कदम-कदम का दान।
    संत-तीर्थ सेवा दिया,कर जीवन कल्यान।।

    जीव उसी का अंश यह,करे उसी का गान।
    खुशी-खुशी बाँटे सकल,खुशियाँ मिले महान।।

    जो भी जग में प्राप्त है,माँ का ही वह दान।
    माँ के चरणों में धरूँ,संकोची लघु मान।।

    माँ का ऋण तो ऋण नहीं,माता कुल है मान।
    माँ आँचल में सिर छिपा,माँ ऋण को पहचान।।

    उर में माता प्रेम भर,नित-प्रति माँ से मांग।
    कल्पनेश तू त्याग दे,उऋण रहे का स्वांग।।

    कौन उऋण माँ से हुआ,मन में करो विचार।
    गिरा भवानी का यही,सुन मन रे उद्गार।।

    नेक पंथ पर पाँव धर,चल आगे ही देख।
    माँ को खुशियाँ तब मिले,लख सुत खींची रेख।।

    हृदय फूल महुआ बने,मिष्टी भरे मिठास।
    माँ अधरों पर तब मिले,मधुर-मधुर नित हास।।

    हृदय फैल पृथ्वी बने,निज लालन को देख।
    माँ के मन में तोष हो,शास्त्र करें उल्लेख।।

    शिव निज मानस में रचें,करें चरित का गान।
    सुन-सुन सारा जग लखे,जग में होत विहान।।

    बाबा कल्पनेश

    माता मेरी भाग्य विधाता

    जिसकी दुनिया एक पहेली।
    होती सच्ची मातु सहेली ।।
    धरणी सी मॉं दुख है सहती।
    शिशु की सकल पीर है हरती।।

    प्रसव वेदना सहकर माता।
    शिशु की बनती जीवनदाता।।
    देती हमको नूतन काया।
    नेह भरी नव शीतल छाया।।

    मॉं की आँचल सुख की छाया।
    जिसको ढककर दूध पिलाया।।
    गीले बिस्तर पर मॉं सो कर।
    नींद चैन को अपना खोकर।।

    पाल पोषकर योग्य बनाती ।
    पढ़ा लिखाकर भाग्य जगाती।।
    माता की सब करना सेवा ।
    पाने जीवन में शुचि मेवा।।

    माता मेरी भाग्य विधाता ।
    बनी प्रथम गुरु जग की माता।।
    मॉं नित देती अविचल शिक्षा।
    गहन ज्ञान की देती दीक्षा।।

    सदा सिखाती सद्गुण सारे।
    देकर सद्गुण दुर्गुण टारे।।
    माता मेरी भाग्य सँवारे।
    हम सब उनकी राज दुलारे।।

    पद्मा साहू “पर्वणी”

    खुश में माँ दुख में माँ

    खुशियों का वरदान है माँ
    चमकती हुई सितारा है माँ
    बिना कहे सबकुछ समझती है माँ
    बिना कहे आंखों से सब पढ लेती है माँ ।
    मेरी माँ…प्यारी माँ…
    खुशी में माँ….दुख में माँ…

    जीवन जीने की रास्ता दिखाती है माँ
    मेरी पूरी की पूरी दुनिया है माँ
    मेरे लिए खाना बनाकर खिलाती है माँ
    मेरे लिए अपने हाथों को चूल्हे में जलाती है माँ।
    मेरी माँ…. प्यारी माँ…
    खुशी में माँ …दुख में माँ…

    सबकुछ मिलता है दुनिया में
    मगर…..
    मां-बाप कभी नहीं मिलते…
    याद रखना जरा….
    कभी कम नहीं होता मां का प्यार
    मेरी माँ…. प्यारी माँ….
    खुशी में माँ…दुख में माँ….

    जिन्दगी की पहली शिक्षक है माँ
    जिन्दगी की पहली दोस्त है माँ
    जिन्दगी में साथ देने वाली भी माँ
    जन्नत से भी खूबसूरत है माँ।
    मेरी माँ…. प्यारी माँ….
    खुशी में माँ….दुख में माँ…

    ममता और आशीर्वादों का सागर है माँ
    घर को आलोकित सुन्दर निष्कंप दीपक है माँ
    धरती पर ईश्वर का अवतार है माँ
    सिर्फ माँ नहीं मेरी भगवान है माँ
    मेरी माँ… प्यारी माँ….
    खुशी में माँ…दुख में माँ….

    ममता का सागर है माँ

    ममता का सागर है माँ
    जन्नत का फूल है माँ
    ईश्वर का सबसे बेहतरीन सृजन है माँ
    सिर्फ एक शब्द नहीं एक दुनिया है माँ।

    खुद रोकर भारत हमेशा मुझे हसाया है माँ
    मेरेलिए हर वक्त दुआ मांगती है माँ
    साया बनकर हमेशा साथ रहती है माँ
    संस्कार हम पर भरती है माँ।

    बच्चे की पहली गुरु होती है माँ
    सारी उम्र अपने परिवार केलिए समर्पित कर देती है माँ
    अगर मैं रोती हूँ तो सीने से लगाती है माँ
    दया और प्यार की प्रतिमूर्ति है माँ।

    जीवन की पहली सीढी होती है माँ
    बच्चों की जिंदगी को स्वर्ग बनाती है माँ
    ममता की मूरत है माँ
    जिन्दगी की पहली दोस्त है माँ।

    सुरक्षा कवच की तरह होती है माँ
    ईश्वर का सबसे कीमती तोफा है माँ
    मेरे जीवन की मजबूत स्तंभ है माँ
    नींद अपनी भुलाकर सुलाया है माँ।

    अपने आंसू गिराकर हसाया है माँ
    मेरी सबसे बड़ी मार्गदर्शक है माँ
    मेरी जड और नींव है माँ
    भगवान का दूसरा नाम है माँ।

    ममता का भंडार है माँ
    हमारे जीवन को प्राण देती है माँ
    माँ को खुश रखा करो
    माँ का दिल मत दुखाना
    ममता का सागर है माँ
    जन्नत का फूल है माँ

    Beena .M

    माँ आखिर माँ होती है.

    पालने में रोये लाल मात का,
    माँ लोरी उसे सुनाती है.
    गिरने पर माँ सम्भाल लेती,
    माँ उंगली पकड़ चलाती है.
    माँ ही प्रथम गुरु है,
    माँ ही भाषा सिखलाती है.
    नेक राह पर चलो सदा,
    ये माँ ही हमें बताती है.
    चोट लगे बच्चे को गर,
    उस दर्द से माँ रोती है.
    माँ आखिर माँ होती है,
    माँ आखिर माँ होती है.

    माँ ने बच्चों की खातिर,
    मेहनत और मजदूरी की.
    स्वयं सहे संकट हजार,
    बच्चों की ख्वाहिश पूरी की.
    खुशियाँ भर दीं झोली में,
    बच्चों से गमों की दूरी की.
    मेरा बच्चा है स्वस्थ आज,
    इतने से ही माँ ने सबूरी की.
    बच्चों को खाना देकर,
    जो स्वयं भूखी सोती है.
    माँ आखिर माँ होती है,
    माँ आखिर माँ होती है.

    निज माँ को कभी दुख न देना,
    ओ! माताओं के दुलारे लाल.
    करो सदा माँ की सेवा,
    समझा रहा है आज कवि विशाल.
    माँ बिन हर घर लागे सूना,
    माँ से घर में है खुशहाली.
    माँ घर में हो तो घर में,
    हर रोज है ईद दीवाली.
    माँ की एक उम्मीदें बेटों से,
    न जाने पूरी क्यों नहीं होती है?
    माँ आखिर माँ होती है,
    माँ आखिर माँ होती है.

    विशाल श्रीवास्तव.

    माँ के बिना कोई भी दिन नहीं होता

    कौन कहता है कि साल में एक दिन
    माँ का दिन होता है …
    सच पूछो तो यारो
    माँ के बिना कोई भी
    दिन नहीं होता माँ के बिना कोई भी दिन नहीं होता।

    न दिन होता है न रात होती है
    न सुबह होती है न शाम होती है ,
    या हम ये कहें कि माँ के बगैर
    तो ये जीवन ही नहीं होता है !
    उस इंसान से पूछिए जिसके सर से
    माँ का साया बचपन से छीन गया हो ,
    वो बताएगा कि माँ की क्या अहमियत है ,
    किसी के जीवन में माँ की क्या कीमत है !
    जीवन में माँ का नहीं है कोई मोल ,
    माँ है तो जीवन हो जाता है अनमोल !
    ममता और वात्सल्य की मूर्ति होती है माँ,
    दया,करुणा और क्षमा की प्रतिमूर्ति है माँ !

    रात रात को जागकर ,कभी भूखे पेट रहकर ,
    हमें जीवन देती है खुद दुःख कष्ट सहकर !
    जिसने जीवन में पायी हो माँ की दुआ ,
    क्या बिगाड़ेगी उसको किसी की बद्दुआ !
    जिसको मिला हो जीवन में माँ का आशीर्वाद ,
    उसका जीवन हो जाता है खुशियों से आबाद !
    जिसने कर लिया जीवन में माँ बाप की पूजा ,
    उसे जाने की जरुरत नहीं मंदिर न और दूजा !

    माँ की दुवाओं का वैसे तो कोई रंग नहीं होता पर,
    जब ये रंग लाती हैं तो जीवन खुशियों से भर जाता !
    दुनिया का सबसे खूबसूरत अगर कोई रिश्ता है,
    माँ का बच्चे के प्रति निस्वार्थ स्नेह भरा रिश्ता है!
    बच्चा चाहे कर ले जितने भी सितम उस पर ,
    माँ कहेगी बेटा आज कुछ खाया कि नहीं दिन भर !
    पता नहीं कितने सख्त और पत्थर दिल वो होंगे ,
    जो जीते जी माँ बाप को वृद्धाश्रम में भेजते होंगे !
    क्या दुनिया में इससे बड़ा कोई पाप होगा ,
    जिसे जीवन में लगा माँ बाप का श्राप होगा !

    दुनिया में इससे बढ़कर नहीं कोई है सेवा ,
    माँ यदि खुश तो जीवन भर मिलेगी मेवा!
    इसलिए आज से रोज रखें माँ का ख्याल ,
    तभी सबका जीवन होगा सुंदर और खुशहाल !

    एस के नीरज

    माँ को समर्पित रचना

    ज़ख्म भर जाता नया हो, या पुराना गोद में,
    हाँ खुशी से पालती है, माँ ज़माना गोद में।

    वो दुलारे वो सँवारे, वो निहारे प्यार से,
    लोरियाँ भी हैं ऋचाएँ, गुनगुनाना गोद में।

    चाँद तारे खेलते हैं, सूर्य अठखेली करे,
    आसमां भी ढूँढता है, आशियाना गोद में।

    मैं सुखी था मैं सुखी हूँ, और होगा कल सुखद,
    मिल गया आनंद का है, अब खज़ाना गोद में।

    क्यों कहूँ मैं स्वर्ग जैसा, मात का आँचल लगे,
    देवता भी चाहते हैं, जब ठिकाना गोद में।

    ढाल बनती है सदा तू, संकटों से जब घिरूँ,
    आसरा है एक तेरा, माँ सुलाना गोद में।

    गीता द्विवेदी

    माँ का मन शुचि गंगाजल है

    सकल जगत की धोती मल है।
    माँ का मन सुचि  गंगाजल  है।।

    हित – मित   संसार  में   स्वार्थ,
    भ्राता,पत्नि  के प्यार में स्वार्थ।
    बेटा – बेटी  आदि   जितने  भी-
    सबके सरस व्यवहार में स्वार्थ।

    पावन  माँ  का  प्यार  अचल है।
    माँ  का  मन  सुचि  गंगाजल है।।

    कूछ भी हो कभी नहीं घबडा़ती,
    गजब  अनूठी   माँ   की   छाती।
    पति , पुत्र   हेतु   आगे   बढ़कर-
    माँ  यमराज से  भी  लड़  जाती।

    माता  सभी  प्रश्नों   का  हल  है।
    माँ का  मन  सुचि गंगा  जल  है।।

    सभ्यता,संस्कार कुबेटा में  बोती,
    माता कदापि कुमाता नहीं होती।
    दीनता,दुख ,विपत्ति को  सहकर-
    देती  जग   को  सत्य  की  मोती।

    सभय अभय करती  हर  पल है।
    माँ  का मन  सुचि  गंगा जल  है।।

    सुख – शान्ति   सरस   उपजाती,
    सबका   मान   सम्मान   बढा़ती।
    जग  सेवा  में   सर्वस्य   लुटाकर-
    मन  ही   मन   हरदम  मुस्काती।

    जग सर्वोपरि  सेवा  का  फल  है।
    माँ  का  मन सुचि  गंगा  जल  है।।


    बाबूराम सिंह

    माँ की ममता

    माँ की ममता, चमक चाँदनी,
    अमृत कलश लगे,
    माँ की ममता सात समंदर,
    गहराई से बढ़ कर लगे!

    माँ ममता का रूप,
    मस्तक पे चाँद सोहे,
    माँ पूजा का थाल,
    रोशन सृष्टि समस्त करें!

    चाहे प्यासा हो कितना सावन
    ममता हर प्यास बुझावे,
    शूलाे के दामन से कितने,
    फूल चुन चुन बिखेरे!

    अक्छर, अक्छर साझा करती,
    दुःख हरणी, दुःख है हरती,
    खुशियाँ पालने है झूलाती,
    अनुपम स्वप्नों का संसार सजाती!

    त्याग, समर्पण की बल्लेयाँ लेती,
    स्व जनों को मोतियन सा चमकाती,
    सर पर हाथ है हमेशा, चाहे बबंडर हो आंधी का!

    चारों तीर्थंधाम कदमों में तेरे,
    वंदन शीश करूँ मैं तेरे,
    जगत जननी भी तू,
    जन्नत भी तू है मेरे!

    ज्ञान भंडारी!

    मां एक ऐसा रिश्ता

    मां एक ऐसा रिश्ता जो दिल के करीब है
    जो दिल की धड़कन है
    मां आज भी तेरी बेटी भी एक मां है
    अब माँ बनकर कर समझी हूं
    जो समझ ना पाई थी कभी तेरी डांट
    सुनकर गुस्सा होती थी  
    कभी जो फिकर मेरे लिए करती थी
    तो मुझे डांट लगा कर 
    तो तुम भी छुप छुप कर रोती थी
    उस प्यार भरे एहसास को समझी हूं मैं अब
    कल तक तो थी मां तेरे आंचल में अब खुद मां हो गई मैं तूने जो   

    सींचा है मुझको प्यार दुलार किया जो मुझको
    बस वही करने लगी हूं मैं
    अपने ही बच्चों में खुद को तलाश रही
    मैं ममता की मूरत बन कर उनको पाल रही हूं
    तेरे दिए संस्कारों से उनको सवार रही हूं
    मां तेरी ही परछाई हूं मैं पर
    तेरे जैसी   ममता कहां
    तेरे बलिदानों के आगे झुकता है मेरा तो मस्तक  

    मां जन्म देकर जो सही थी पीड़ा तुमने
    कर्ज कभी ना चुका पाऊंगी
    प्यार सिखाने सबको ही शायद मां तुम आई हो
    निश्चल प्रेम करके ममता की मूरत कहलाई हो
    अपने दर्द भूल तुम  जीवन देने आई हो
    मां शब्द नहीं है मेरे पास तेरे गुणगान के लिए
    मां तुम हो अनमोल  ममता भरा दिल लाई हो।

    हरनीत कौर नैय्यर

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  • अनजान लोग – नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    अनजान लोग

    कितने अच्छे होते हैं अनजान लोग
    उनको हमसे कोई अपेक्षा नहीं होती
    हमें भी उनसे कोई अपेक्षा नहीं होती

    हम गलत करते हैं
    कि अनजानों से हमेशा डरे डरे रहते हैं
    हर बार अनजान लोग गलत नहीं होते
    फिर भी प्रायः अनजानो से दया करने में कतराते हैं

    हमारे दिल दुखाने वाले प्रायः जान पहचान के होते हैं
    हमें धोखा देने वाले भी प्रायः जान पहचान के होते हैं
    जान पहचान वाले आपसे जलते हैं
    जान पहचान वाले आपसे वादा खिलाफी करते हैं
    जान पहचान वाले आपके पीठ पीछे गंदे खेल खेलते हैं

    मैं उन सारे अनजानो के प्रति आभारी हूं
    जो मेरे जीवन में कभी दखलंदाजी नहीं करते हैं
    वे कभी झूठी सांत्वना देने नहीं आते
    वे कभी बेवजह मेरी प्रशंसा नहीं करते
    वे कभी मेरे रास्ते के रोड़े नहीं बनते हैं
    वे कभी मेरे लिए झूठी मुस्कान नहीं बिखरते
    वे कभी मुझसे प्यार और नफरत नहीं करते

    समाचार पत्र में छपी खबरें प्रायः झूठ होती हैं
    कि किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा चोरी या बलात्कार की गई
    जांच से पता चलता है
    चोर और बलात्कारी हमारे जान पहचान के होते हैं
    इसीलिए मैंने अब अंजानों से डरना छोड़ दिया है
    और जान पहचान वालों से संभलना शुरू कर दिया है

    ऐसा नहीं की मुझे अपनों से प्यार नहीं
    अपनों पर विश्वास नहीं
    मगर मुझे अपनों से खाए धोखे का इतिहास पल पल डराते रहता है
    अपने तो अपने होते हैं यह कहना हमेशा ठीक नहीं होता
    जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब अनजान अपने हो जाते हैं
    अनजान कम से कम अपने होने का दिखावा नहीं करते
    अनजान लोगों द्वारा छले जाने पर हमें दुख नहीं होता।

    —नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    9755852479

  • मौत की आदत – नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    मौत की आदत – नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    सुबह-सुबह पड़ोस के एक नौजवान की मौत की खबर सुना
    एक बार फिर
    अपनों की तमाम मौतें ताजा हो गई

    अपनी आंखों से जितनी मौतें देखी है मैंने
    निष्ठुर मौत पल भर में आती है चली जाती है

    हम दहाड़ मार मार कर रोते रहते हैं
    एक दूसरे को ढांढस बंधाते रहते हैं
    क्रिया कर्म में लगे होते हैं
    मौत को इससे क्या
    वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखती
    उसकी तो आदत है मारने की रोज-रोज प्रतिपल

    फर्क नहीं पड़ता उसे
    घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या…?

    — नरेंद्र कुमार कुलमित्र