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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०डा० डॉ एन के सेठी के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • दान पर दोहे / डॉ एनके सेठी

    दान पर दोहे / डॉ एनके सेठी

    दान पर दोहे

    देवें दान सुपात्र को,यही न्याय अरु धर्म।
    तज दें मन से मोह को,सत्य यही है कर्म।।1।।

    न्याय दानऔर धर्म का,अब हो रहाअभाव।
    आज जगत से मिट रहा,आपस का सद्भाव।।2।।

    सत् का जीवन में कभी, होता नहींअभाव।
    होता है जो भी असत,रहे न उसका भाव।।3।।

    करता जो भी दान है, वह पाता सम्मान।
    अनासक्ति के भाव का, मन से करता ध्यान।।4।।

    जीवन में हर दान ही, त्याग बिना है व्यर्थ।
    स्वार्थ भाव होता जहाॅं, वहाॅं न कोई अर्थ।।5।।

    पाता जो भी दान है, मन से होय प्रसन्न।
    दाता का बढ़ता रहे,खुशियाॅं अरु धन अन्न।।6।।

    बढ़े दान से धन सदा, खुशियाॅं मिले अपार।
    ईश्वर का आशीष भी, मिलता बारंबार।।7।।

    डॉ एनके सेठी

  • राम अयोध्या आते है /डॉ एन के सेठी

    राम अयोध्या आते है /डॉ एन के सेठी

    राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्ररामायण के अनुसार,रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मणभरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।

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    राम अयोध्या आते है /डॉ एन के सेठी

    पूरा कर वनवास सिय संग,
    राम अयोध्या आते है।
    भ्राता लखन साथ में उनके
    अनुपम शोभा पाते हैं।।

    हुई अयोध्या भी सनाथ थी
    रामसिया के आने से।
    चारों भाई एक साथ थे
    वन से फिरआ जाने से।।

    थी धरती की शोभा वे सब
    देख सभी हर्षाते थे।
    लंका जीत अवध में आकर
    राजा राम कहाते थे।।

    वन में जाकर श्रीराम ने,
    दानव मार गिराए थे।
    नारी को सम्मान दिलाने
    धनु भी हाथ उठाए थे।।


    अतुलित बलशाली शूरवीर
    उनकी शोभा न्यारी थी।
    जन जन के मन मे बसी हुई
    सूरत सबको प्यारी थी।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • बदलते परिवेश पर कविता

    बदलते परिवेश पर कविता

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    बदल रहा है आज जमाना डॉ एनके सेठी द्वारा रचित बदलते परिवेश पर कविता है। आज समय के साथ साथ रिश्तों की परिभाषा बदल चुकी है।

    बदल रहा है आज जमाना

    भौतिकता के नए दौर में
    बदल गया सब ताना बाना।
    रिश्तों की मर्यादा टूटी
    बदल रहा है आज जमाना।।

    चौपालें सूनी हैं सारी
    संस्कारों का मान घटा है।
    रिश्तों में अब पड़ी दरारें
    मानव अपने तक सिमटा है।।
    लाज शर्म सब छूट गई अब
    बदल गया सब रहना खाना।
    रिश्तों की मर्यादा टूटी
    बदल रहा है आज जमाना।।

    हॉट डॉग पिज्जा बर्गर ही
    करे पसंद युवा पीढ़ी अब।
    छोड़ पियूष गरल अपनाया
    दूध दही घी भूले हैं सब।।
    भूल गए अब चूल्हा चौका
    होटल ढाबों पर है खाना।
    रिश्तों की मर्यादा टूटी
    बदल रहा है आज जमाना।।

    छोटे छोटे वस्त्र पहनकर
    करे दिखावा नंगे तन का।
    साड़ी को भी भूल गए अब
    करे प्रदर्शन खुल्लेपन का।।
    एकाकी जीवन है सबका
    काम करे सब ही मनमाना।
    रिश्तों की मर्यादा टूटी
    बदल रहा है आज जमाना।।

    अच्छाई को छोड़ सभीअब
    नकल बुराई की करते है।
    धन दौलत के पीछे दौड़े
    अनासक्ति का दम भरते हैं।।
    निर्बल का धन लूट लूटकर
    ध्येय है केवल धन कमाना।
    रिश्तों की मर्यादा टूटी
    बदल रहा है आज जमाना।।

    माँं को कहने लगे मॉम सब
    डैड पिता को कर डाला।
    बाकी सब अंकल आंटी हैं
    संबंधों में भी घोटाला।।
    स्वारथ के रिश्ते नाते ही
    अब जीवन का है पैमाना।
    रिश्तों की मर्यादा टूटी
    बदल रहा है आज जमाना।।

    डॉ एनके सेठी

  • परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi)

    परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi)

    यहाँ पर परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi) का संकलन किया है जहाँ पर कवि यह बताने की कोशिश की हैं कि इस जीवन में हर रोज परीक्षा होती है.

    परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi)

    हर रोज परीक्षा होती है

    जीवन है संघर्ष सदा ही
    हर दिन ही एक चुनौती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    संघर्षों से क्या घबराना
    जीवन साथ सदा रहते हैं।
    हिम्मत से ही आगे बढ़ना
    सुख दुख जीवन को कहते हैं।।
    जीवन में पग पग पर चलते
    मानवता ही जब रोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    जब तक जीवन है दुनिया में
    पथ में बाधाएं आएंगी।
    हिम्मत से हम करें सामना
    बाधाएं सब मिट जाएंगी।।
    जीवन ज्योति चलेगी जब तक
    आशा कभी नहीं सोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    जीवन जीना बहुत कठिन है
    कष्ट सदा आते जाएंगे
    भय की पीड़ा को निकाल दो
    दुःख नहीं आने पाएंगे।।
    जीवन का परिणाम मृत्यु है
    अंतराल जीवन ज्योती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    मानव सपने देखे प्रतिदिन
    जीवन भर सोया रहता है।।
    आए उम्र बुढ़ापे की जब
    यादों को ढोए रहता है।।
    तन मन दोनों क्षीण हुए अब
    आत्मा उसकी अब रोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    कलयुग के इस कठिन काल में
    झूठ सत्य को दबा रहा है।
    न्याय दब गया धन के नीचे
    पैसा सब कुछ चला रहा है।।
    लोभ मोह मद कोप बढ़ा है
    धरा पाप को ढोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    ✍️ डॉ एन के सेठी

  • लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ मैं

    सीमा रक्षा करते,उनको झुककर शीश नवाऊँ।
    लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।

    जान हथेली पर रख, सैनिक सीमा पर डटे हुए।
    मातृ भूमि रक्षा में,वो सब अपनों से दूर हुए।।
    मेरी भी इच्छा है,दुश्मन से मैं भी लड़ जाऊँ।
    लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।

    फड़के आज भुजाए, नहीं बसंती रंग सुहाता।
    मां भू के चरणों में,मैं भी अपना शीश चढ़ाता।।
    बाट जोहती आंखे, उन आंखों में चमक जगाऊँ।
    लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।

    पहले देश हमारा,इसका ये कर्ज चुकाना है।
    शीश काट दुश्मन का, बासंती पर्व मनाना है।।
    उससे पहले कैसे,मैं गीत प्रेम के लिख पाऊँ ।
    लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।

    बंदूक थाम लूं मैं,अपनी इन वीर भुजाओं में।
    सीना छलनी कर दूं,घुसने दूं ना सीमाओं में।।
    तोप चलें सरहद पर,चैन कहीं मैं कैसे पाऊँ।
    लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।

    सूनी मां की गोदें,उजड़ा दुल्हन का श्रृंगार।
    बहन बिना भाई के, किससे पाए लाड दुलार।।
    कोयल का राग मधुर,मैं कैसे उसको सुन पाऊँ।
    लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।

    ✍️ डॉ एन के सेठी