दान पर दोहे
देवें दान सुपात्र को,यही न्याय अरु धर्म।
तज दें मन से मोह को,सत्य यही है कर्म।।1।।
न्याय दानऔर धर्म का,अब हो रहाअभाव।
आज जगत से मिट रहा,आपस का सद्भाव।।2।।
सत् का जीवन में कभी, होता नहींअभाव।
होता है जो भी असत,रहे न उसका भाव।।3।।
करता जो भी दान है, वह पाता सम्मान।
अनासक्ति के भाव का, मन से करता ध्यान।।4।।
जीवन में हर दान ही, त्याग बिना है व्यर्थ।
स्वार्थ भाव होता जहाॅं, वहाॅं न कोई अर्थ।।5।।
पाता जो भी दान है, मन से होय प्रसन्न।
दाता का बढ़ता रहे,खुशियाॅं अरु धन अन्न।।6।।
बढ़े दान से धन सदा, खुशियाॅं मिले अपार।
ईश्वर का आशीष भी, मिलता बारंबार।।7।।
डॉ
एनके सेठी