आक्रोश पर निबंध – मनीभाई नवरत्न
“कभी रोष है ,तो कभी जोश है।
मन में उफनता , वो ‘आक्रोश’ है।
मदहोश यह, तो कहीं निर्दोष है।
परदुख से उत्पन्न ‘आक्रोश’ है।”
“कभी रोष है ,तो कभी जोश है।
मन में उफनता , वो ‘आक्रोश’ है।
मदहोश यह, तो कहीं निर्दोष है।
परदुख से उत्पन्न ‘आक्रोश’ है।”
कोहिनूर की कलम से
यह दोहा एनके सेठी द्वारा बादल को आधार मान कर लिखी गई हैं
वक्ता पर कविता- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र हे मेरे प्यारे वक्तावाक कला में प्रवीणबड़बोला महाराजबातूनी सरदारकृपा करके हमें भी बताओकि तुम इतना धारा प्रवाहकैसे बोल लेते हो..?बिना देखे,बिना रुकेघंटों बोलने की कलाआख़िर तुमने कैसे सीखी है..?दर्शकों कोगुदगुदाने वाली कविताएँजोश भरने वाली शायरियांऔर नैतिक उपदेश वालेसंस्कृत के इतने सारे श्लोकतुमने भला कैसे याद किए हैं..?मुझे नहीं लगताकि … Read more