आज पंछी मौन सारे
आज पंछी मौन सारे नवगीत (१४,१४) देख कर मौसम बिलखताआज पंछी मौन सारेशोर कल कल नद थमा हैटूटते विक्षत किनारे।। विश्व है बीमार या फिरमौत का तांडव धरा परजीतना है युद्ध नित नवव्याधियों का तम हरा कर छा रहा नैराश्य नभ मेंरो रहे मिल चंद्र तारे।।।देख कर…………….।। सिंधु में लहरें उठी बसगर्जना क्यूँ खो गई … Read more