“वीर उधम सिंह” जिन्होंने जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का बदला लिया / इतिहास स्मृति -13 मार्च 1940. अमर शहीद ऊधम सिंह ने 13 अप्रैल, 1919 ई. को पंजाब में हुए भीषण जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के उत्तरदायी माइकल ओ’डायर की लंदन में गोली मारकर हत्या करके निर्दोष भारतीय लोगों की मौत का बदला लिया था। जिस लिए 25 दिसंबर को वीर ऊधम सिंह पुण्यतिथि मनाई जाती है
इसे सुनेंगोपाल कृष्ण गोखले (9 मई 1866 – 19 फरवरी 1915) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविन्द रानडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ‘ग्लेडस्टोन’ कहा जाता है।
गोपालकृष्ण गोखले पुण्यतिथि पर कविता:
मानस्पद गोखले की मृत्यु पर
● गोपाल शरणसिंह
जो निज प्यारी मातृ-भूमि का सुख सरोज विकसाता था,
अन्धकार अज्ञान रूप जो हरदम दूर हटाता था ।
अतिशय आलोकित था सारा भरत खण्ड जिसके द्वारा,
हाय ! अचानक हुआ अस्त है वही हमारा रवि प्यारा ॥ १ ॥
था जिसका प्रकाश-पथ- दर्शक हम लोगों का सुखकारी,
था जिसका अभिमान सर्वदा देश बन्धुओं को भारी ।
भारत-रूपी नभ में अतिशय चमक रहा था जो प्यारा,
हाय सदा को लुप्त हो गया वहा अति दीप्तिमान तारा ॥२॥
भरतभूमि पर हाय ! अचानक बड़ी आपदा है आई,
जहां देखिये वहां आज है घटा उदासी की छायी।
उस नर – रत्न बिना भारत में अन्धकार छाया वैसा,
निशि में दीपक बुझ जाने से छा जाता, घर में जैसा ||३||
जिसको प्यारी मातृभूमि की सेवा ही बस भाती थी,
भोजन, वसन, शयन को चिन्ता जिसको नहीं सताती थी।
जो अवलम्ब रहा भारत का, जो था उसका दृग-तारा,
कुटिल काल ने छीन लिया वह उसका पुत्र रत्न प्यारा ॥४॥
भारत के स्वत्वों की रक्षा कौन करेगा अब वैसी-
निर्भयता के साथ सर्वदा उस नर वर ने की जैसी ।
उसे तनिक भी व्यथित देखकर कौन विकल हो जाएगा,
उसके हित अब उतने सच्चे सेवक कौन बनाएगा ||५||
विपत्काल में भारतवासी किसको सकरुण देखेंगे ?
किसको अपना सच्चा नेता अब वे हरदम लेखेंगे ?
राजनीति की कठिन उलझनें कौन भला सुलझावेगा ?
कौन हाय ! जातीय सभा (कांग्रेस) का बेड़ा पार लगावेगा ॥ ६ ॥
भारत माता के हित जो सब क्लेश सहर्ष उठाता था,
उसकी उन्नति-वेलि सींचकर जो सर्वदा बढ़ाता था ।
राजा और प्रजा दोनों को जो था प्यारा सुखकारी,
वह क्या है उठ गया, देश पर गिरा वज्र है दुखकारी ॥७॥
तृण सम त्याज्य जिसे स्वदेश हित अपना सुख-सम्मान रहा,
जिसके मृदुल हृदय में संतत देश-भक्ति का स्रोत बहा ।
सबसे अधिक लगी थी जिससे भारत की आशा सारी,
उस नरवर-सा कौन आज है भरत-भूमि का हितकारी ॥८॥
जिसने अपनी मातृभूमि को था अर्पण सर्वस्व किया,
विद्या – बुद्धि सहित जीवन था जिसने उस पर वार दिया।
ऐसा पुत्र रत्न निज कोई देश अभागा यदि खोये,
तो सिर धुनकर बिलख-बिलखकर क्यों न शोक से वह रोये ॥ ९ ॥
क्या कहकर भारत माता को हाय ! आज हम समझावें,
हों जिनसे उसका आश्वासन शब्द कहां ऐसे पावें ।
कभी धैर्य धारण कर सकती क्या वह जननी बेचारी,
खोई है जिसने निज अनुपम प्राणोपम सन्तति प्यारी ॥१०॥