दोहा मुक्तक-बापू पर कविता
सदी वही उन्नीसवीं, उनहत्तर वीं साल।
जन्मे मोहन दास जी, कर्म चंद के लाल।
बढ़े पले गुजरात में, पढ़ लिख हुए जवान।
अरु पत्नी कस्तूरबा, जीवन संगी ढाल।
भारत ने जब ली पहन, गुलामियत जंजीर।
थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।
हाल हुए बेहाल जब, कुचले जन आक्रोश।
देख दशा व्याकुल हुए, गाँधी जी मति धीर।
काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
गोली गाली साथ ही , भर देते थे जेल।
देशी राजा थे बहुत, मौज करे मदमस्त।
गाँधी ने आवाज दी, कर खादी से मेल।
याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
कायर डायर क्रूर ने, खेला खूनी फाग।
अंग्रेजों की दासता, जीना पशुता तुल्य।
छेड़ा मोहन दास ने, सत्याग्रह का राग।
मोहन, मोहन दास बन, मानो जन्मे देश।
पढ़लिख बने वकील वे, गुजराती परिवेश।
भूले आप भविष्य निज, देख देश की पीर।
गाँधी के दिल मे लगी, गरल गुलामी ठेस।
देखे मोहन दास ने, साहस ऊधम वीर।
भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।
शेखर बिस्मिल से मिले, बने विचार कठोर।
गाँधी संकल्पित हुए, मिटे गुलामी पीर।
बापू के आदर्श थे, लाल बाल अरु पाल।
आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।
फाँसी जिनको भी मिली, काले पानी मौत।
गाँधी सबको याद कर, करते मनो मलाल।
अफ्रीका मे वे बने, आजादी के दूत।
लौटे अपने देश फिर, मात भारती पूत।
किया स्वदेशी जागरण, परदेशी दुत्कार।
गाँधी ने चरखा चला, काते तकली सूत।
अंग्रेजों की क्रूरता, पीड़ित लख निज देश।
बैरिस्टर हित देश के, पहने खादी वेश।
सामाजिक सद्भाव के, दिए सत्य पैगाम।
ईश्वर सम अल्लाह है, सम रहमान गणेश।
कूद पड़े मैदान में, चाह स्वराज स्वदेश।
कटे दासता बेड़ियाँ, हो स्वतंत्र परिवेश।
भारत छोड़ो नाद को, करते रहे बुलंद।
गाँधी गाँधी कह रहा, खादी बन संदेश।
सत्य अहिंसा शस्त्र से, करते नित्य विरोध।
जनता को ले साथ में,किए विविध अवरोध।
नाकों में दम कर उन्हे, करते नित मजबूर।
गाँधी बिन हथियार के, लड़े करे कब क्रोध।
सत्याग्रह के साथ ही, असहयोग हथियार।
सविनय वे करते सदा, नाकों दम सरकार।
व्रत उपवासी आमरण, सत्य अहिंसा ठान।
गाँधी नित सरकार पर, करते नूतन वार।
गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
भारत का वो लाडला, गाँधी साधू वेश।
हुआ चकित इंग्लैण्ड भी, बापू कर्म प्रधान।
गाँधी भारत के लिए, सहते भारी क्लेश।
गोरे काले भेद का, करते सदा विरोध।
खादी चरखे कात कर, किए स्वदेशी शोध।
रोजगार सब को मिले, बढ़े वतन उद्योग।
गाँधी थे अंग्रेज हित, पग पग पर अवरोध।
मान महात्मा का दिया, आजादी अरमान।
बापू अपने देश का, लौटाएँ सम्मान।
देश भक्त करते सदा, बापू की जयकार।
गाँधी की आवाज पर, धरते सब जन कान।
गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी ध्वस्त।
दी आजादी देश को, पन्द्रह माह अगस्त।
खुशी मनी सब देश में, भाया नव त्यौहार।
गाँधी ने हथियार बिन, किये विदेशी पस्त।
बँटवारे के खेल में, भारत पाकिस्तान।
बापू जी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।
हुए पलायन लड़ पड़े, हिन्दू मुस्लिम भ्रात।
गाँधी ने कर शांत तब, दाव लगाई ज़ान।
आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
राष्ट्रपिता जनता कहे, बापू हुए महान।
खुशियाँ देखी देश में, बदला सब परिवेश।
गाँधी भारत देश में, जन्मे बन वरदान।
तीस जनवरी को हुआ, उनका तन निर्वाण।
सभा प्रार्थना में तजे, गाँधी जी ने प्राण।
शोक समाया देश में, झुके करोड़ों शीश।
गाँधी तुम बिन देश के, कौन करेगा त्राण।
दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
बापू तेरे देश का , अब रखवाला कौन।
कीमत जानेंगे नही, आजादी का भाव।
गाँधी तुम बिन हो गये, सूने भारत भौन।
महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी गान।
मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।
याद रखें नव पीढ़ियाँ, मान तेज तप पुंज।
गाँधी सा जन्मे पुन: , भारत भाग्य महान।
बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
धन्य भाग्य माँ भारती, गाँधी धीर महान।
राजघाट में सो रहे, हुए देव सम तुल्य।
गाँधी भारत देश की, है तुमसे पहचान।
शर्मा बाबू लाल ने, लिखे छन्द तेबीस।
बापू को अर्पित किये, नित्य नवाऊँ शीश।
रघुपति राघव गान से, गुंजित सब परिवेश।
गाँधी जी सूने लगें, अब वे तीनों कीस।
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान