समय पर कविता
तेरे पाँवों की जंजीरों को,
पाजेब बना दूँ !
हथकड़ियाँ तोड़ हथेलियों में,
मेहंदी रचा दूँ !
नाजुक कलाइयों में रंगीन,
चूड़ियाँ खनका दूँ!
माथे की शिकन पर,
झिलमिल बिंदिया सजा दूँ !
हे कर्मशील स्त्री आ तुझे,
वनिता बना दूँ!
न घबरा,भयभीत न हो,
न भूल अपनी शक्ति को,
न खामोशी से सहती रह,
जोर जबरदस्ती को! आ चल साथ मेरे,
तुझसे तेरी पहचान करा दूँ!
बदल कर भाग्य रेखाओं को,
मुक्ति का ताज पहना दूँ!
न देख कौतूहल से,
न संशय भरी दृष्टि से,
तुझे अपना परिचय बता दूँ!
मैं समय हूँ समय,
कब किसे, किस ओर घुमा दूँ! तू चल साथ मेरे,
तुझसे तेरी पहचान करा दूँ….
–-डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’,अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)