सूख गई कुओं की मीठी जल । प्यासी हो गई हमारी भूतल । थम गई पनिहारों की हलचल । क्या यही था विकास का पहल ? क्या यही है अपना प्रोग्रेस ? हाय रे! मेरे गांवों का देश ।
भूमि बनती जा रही बंजर । डीडीटी यूरिया का है असर । कृषि यंत्र बना रहे बेकार के अवसर । क्या यही है विकास का सफर? हम हार चुके अपना रेस । हाय रे !मेरे गांवों का देश ।
सुबह ने मुर्गे की बांग भूली। और शाम नहीं अब गोधूलि । पेड़ भी कट रहे जैसे गाजर-मूली । गांव का विकास बना सचमुच पहेली । क्या यही है भावी पीढ़ी को संदेश। हाय रे !मेरे गांवों का देश।
-मनीभाई नवरत्न
पैसा क्या है ?
पैसा क्या है ? उत्तर पाने के लिए जाओ सन्यांसी के पास तो कहेंगे – पैसा मोह है , माया है । दुनिया को जिसने खुब भरमाया है ।
पर आपने ये भी सुना ही होगा कि यह, शेयर होल्डर्स के लिए कंपनी के शेयर हैं. स्ट्रगलर के लिए संघर्ष के समय डेयर है.
कामगारों के लिए टपकती माथे की पसीना है। बीमारों के लिए आगामी घड़ियों का जीना है॥
वेश्याओं के लिए अपने आबरु की दाम है । शराबियों के लिए , छलकता हुआ जाम है ।
व्यापारियों का ये पल पल का हिसाब है । याचकों के लिए ये राम नाम की जाप है ।
एक बाप के लिए जवान बेटी की डोली है । दीवालियों के लिए नीलाम घर की बोली है ।
पर सबकी बात कितनी छोटी है । बड़ी और सबसे सच्ची ये तो भूखे के लिए रोटी है।
मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़
मत हो उदास
जिन्दगी अभी तू, मत हो उदास।
छूना है तूम्हें ,सारा आकाश।।
1.
जुड़ेंगे तेरे भी, नसीब के धागे। आसान नहीं पल, मंजिल से आगे। बदकिस्मती हर दिन होती नहीं पास।
जिन्दगी अभी तू, मत हो उदास।
2.
लाया नहीं कुछ तो, खोना क्या? बेवजह किस बात पे ,रोना क्या? हंस ले गा ले जरा, जब तक सांस।
जिन्दगी अभी तू, मत हो उदास।
-मनीभाई नवरत्न
अब यही मंजिल
ना कोई परवाह ना कोई डर । तेज रफ्तार में है ,यह सफर । जिंदगी का यह मस्ती है । बनती है अब हर खुशी ।
यहां हर पल सुबह हर पल में शाम है । यहां पल पल में काम ,चैन और आराम है । करते हैं जो मन चाहे वही अपना ले । कुछ पल ले मजा और खुद को दफना ले । अब यही मंजिल और यही अपना घर ।।
एक पल के लिए भी हमको फुर्सत नहीं । कहीं पर रुक जाना हमारी कुदरत नहीं । फिर भी इंतजार रहता है क्या याद ना आता है ? कब से पलक बिछाएं मां की नजर ।।
क्या ऐसा होता है ?तेरे लिए जीना। खाना तो कम होता ज्यादा होता पीना । हालत तेरी होता पस्त है । आदत तेरी बड़ी सख्त है । क्या करें जवानी कमबख्त है । ना रखें किसी की खबर।।।
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
सही कहते हैं
वह कहते हैं हमें ,हम को एक होना है। अपने विचारों से कर्मों से नेक होना है।
जातीयता और क्षेत्रीयता से ऊपर उठना है। आतंक और नक्सल के खिलाफ जीतना है।
हर संकट की घड़ी में , हौसला रखना है। गुलामों की जंजीरों में ,न सोना है ।
अमीरी गरीबी की खाई को भरना है। हाथ से हाथ मिला कर विकास करना है ।
जन जन की अशिक्षा को दूर करना है । हम हर भारतवासी को स्वस्थ रहना है ।
गांव कस्बे तक बिजली पहुंचानी है । हर प्यासों की प्यास बुझानी है ।
यह सब जो कहते हैं ,बिल्कुल सही कहते हैं।
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
करले योग
करले योग ,करले योग ,ए दुनिया के लोग । करले योग ,करले योग, रहना है अगर निरोग।
यूं तो जिंदगी का ठिकाना नहीं । फिर हम कही , जमाना कहीं । जब तक जीना है, सुख से जीना है । सुख के लिए तू मत करना भोग।।
यहां की हर चीज पर तेरा अधिकार है । पर मन में तेरा अज्ञान के अंधकार है । योग की शक्ति से ज्ञान की ज्योति जला । योग का ज्ञान से बनता है ऐसा संजोग ।।
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
सबका भगवान वही
सुख के क्षण में ,चाहे ना हो एक । पर दुख के क्षण सब होते नेक। चाहे अमीर देख, चाहे गरीब देख। दुख में रब को सब याद करते । सच्चे मन से फरियाद करते। कोई ना छोटा रहता कोई ना बड़ा रे। फिर आपस में तू कब से बिगड़ा रहे । सबका दिल वही और धड़कन एक । गरीब भाई तेरा कब से भूखा है ? उसका मन भी आज दुखा है। स्वामी जी कह गए दरिद्रनारायण है । जो सेवा करे वही धर्मपरायण है। सबका पेट वही और भूख एक । आज तेरे पास दौलत है । सब मालिक की बदौलत है। मालिक तुझमें भी ,मालिक मुझमें भी फिर काहे झूठे धन की लत है । सबका भगवान वही और ध्यान एक।
-, मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
उठ जा तू पगले
पत्थर में तू पारस है । तुझमें वीरता,साहस है । फिर क्यों मन को मारे बैठा है , उठ जा तू पगले ! क्यों लेटा है?
देख रात ,अभी गहराई नहीं। है चहलपहल, तहनाई नहीं । फिर क्यों भय से , खुद को समेटा है । उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है ?
मत खो; अपने अभिमान को। दांव पर ना लगा सम्मान को । भारत मां का तू स्वाभिमानी बेटा है । उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है ?
अभी सांसो की रफ्तार थमी नहीं लहु की धार नब्ज़ में जमी नहीं । फिर क्यों चुप है , किस बात पर ऐंठा है ? उड़ जा तू पगले !क्यों लेटा है?
हर खेल में जीतो
जीतो रे जीतो रे जीतो जीतो हर खेल में जीतो। हर दिल को जीतो ,जीत आखिर जिंदगी ही तो । कोई ना आगे तेरे टिक सके। जलवा ना कभी तेरा मिट सके। ऐसा दम लगा दो, बाजी ना कोई तेरा छीन सके । हर दांव को जीतो ,हर बार में जीतो ।। आखिर जिंदगी… वानरों ने जैसे जीता लंका है, फिर तुमको क्या शंका है? एकजुट जब हो जाओगे फिर जीत का डंका है । हर मन को जीतो हर पल तुम जीतो।। जीत आखिर… जीतो रे. .
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
कहलाए वही तो बाजीगर
आंखें जिसकी हो अपलक। सीखने की हो जिसमें ललक। अरे! वही तो मैदान मारता है । अपने किस्मत को संवारता है । जो रहे निर्भर अपने हाथों पर वही इनकी लकीरें निखारता है।।
समय का रहे जिसे ध्यान । रहता नहीं वो कभी गुलाम । हर दांव उसकी बाजी में । चाहे दुनिया रहे नाराजी में । कहलाए वही तो बाजीगर जो वक्त बिताये कामकाजी में ।।
जो मुश्किलों में खुश दिखे हर ठोकर से कुछ सीखें । वही छाते हैं इस जहां में नाम लिखते हैं आसमां में। जलते रहते हैं हर किसी के दिली दुआओं के कारवां में।।
✒मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़
चलते फिरते सितारे- मनीभाई
ये चलते फिरते सितारे धरती पे हमारे। आंखों में है रोशनी बातों में है चाशनी तन कोमल फूलों सी खुशबू बिखेरेते सारे।। ये चलते फिरते सितारे…
ना छल है ना छद्म व्यवहार बड़ी मोहक है इनकी संसार। हम ही सीखे हैं, खड़ा करना आपसे में दीवार। देख लेना एक दिन ला छोड़ेंगे इन्हें भी जहां होंगे बेसहारे।। ये चलते फिरते सितारे…
किलकारियों संग हंसतीे खेलती ये प्रकृति सारी। हमने तो बस घाव दिए हैं दोहन, प्रदूषण, महामारी। स्वर्ग होता प्रकृति इन बच्चों के सहारे। ये चलते फिरते सितारे…
ये रब के दूत ये होंगे कपूत-सपूत आंखों से तौल रहे हमारी करतूत। फल भी देंगे हमको पाप पुण्य का जो भी कर गुजारे। ये चलते फिरते सितारे…
मनीभाई नवरत्न
वरिष्ठता – मनीभाई
वैसे तो लगता है सब कल की बातें हो, मैं अभी कहां बड़ा हुआ? पर जो अपने बच्चे ही, कांधे से कांधे मिलाने लगे। आभास हुआ अपने विश्रांति का। उनकी मासुमियत, तोतली बातें सियानी हो चुकी है। वो कब मेरे हाथ से उंगली छुड़ाकर आगे बढ़ चले पता ही नहीं चला। मैं उन संग रहना चाहता हूं, खिलखिलाना चाहता हूं। पर क्यों ? वो मुझे शामिल नहीं करते अपने मंडली में। जब भी भेंट होती उनसे, बाधक बन जाता, उनकी मस्ती में। शांति पसर जाती मेरे होने से जैसे हूं कोई भयानक। अहसास दिलाते वो मुझे मेरे वरिष्ठता का। मैं चाहता हूं स्वच्छंदता पर मेरे सिखाए गए उनको अनुशासन के पाठ छीन लिया है हमारे बीच की सहजता। मैंने स्वयं निर्मित किये हैं जाने-अनजाने में ये दूरियां। संभवतः ढला सकूं अपना सूरज। और विदा ले सकूं सारे मोहपाश तोड़ के। जिससे उन्हें भी मिलें, अपना प्रकाश फैलाने का अवसर।
दुख की घड़ियां है ,दो पल की। फिर क्यों तेरी ,आंखें छलकी ।। याद ना कर ,बातें कल की …. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
माना दौर है , मुश्किल की । आदत नहीं तेरी ,महफिल की । मुस्कुरा तो जरा ,ख्वाहिश है दिल की…. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
हम भी तेरे अपने हैं ,साथ कभी न छोडेंगे। कर ले मेरा एतबार ,रुख ना कभी मोड़ेगे । तुझको जो पसंद हो, ऐसा रंग घोलेंगे । तुमको जो ना पसंद हो ,ऐसी बात ना बोलेंगे । काली रतिया है दो पल की… फिर आएंगी रातें झिलमिल की …. याद ना कर ,बातें कल की …. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
खा रहे हैं ये कसम ,मिलते रहेंगे हर जनम । प्यार ना होगा कम ,आंखें भी ना होंगे नम।। जो तू मेरे पास है ,जिंदगी तो खास है । जब तू होती उदास है ,इक पल भी ना रास है । रास्ते हमारे मिलोंमिल की …. फिर भी पता मंजिल की …. मुस्कुरा तो जरा ,ख्वाहिश है दिल की …. जाने जां …… जाने जां ….. जाने जां …… जाने जां …….
बहकने लगा हूं क्यों आजकल
बहकने लगा हूं क्यों आजकल महकने लगा हूं क्यों आजकल
तेरा संगत है या रंगत है इश्क का चमकने लगा हूं क्यों आजकल बहकने लगा हूं क्यों आजकल
तू ही हमसफ़र है तू ही मरहला तू ही रह बर है दूर करे हर बला तू ही अब जुनून मेरा मैं मनचला तुम से दिन हो शुरू तुमसे शाम ढला तेरी चाहत है या इशारत है इश्क का बदलने लगा हूं क्यों आजकल
तू ही दुआ है तू ही तमन्ना जब से तू छूआ है तू ही कामना तू रहे मेरे रूबरू जाओ कहीं ना तू मिली मुझे मानो रब का नजराना । तेरा नशा ज्यादा है या वादा है इश्क का बरसने लगा हूं क्यों आजकल।।
मनीभाई नवरत्न
लमहे खुशी के बेफिक्रे जिंदगी के
यह लमहे खुशी के बेफिक्रे जिंदगी के । आज मिला है सब सारे रंग घुल के । हर रंग में रंगूंगा हर संग में चलूंगा । जहां ले जाए कदम हर जंग में जीतूंगा। याद है वह बातें कल के । यह लमहे खुशी के … खोया जोश मिला मुझको बहा होश मिला मुझको । जो पल पल साथ दे ऐसा दोस्त मिला मुझको । अब तो जिंदगी है मुस्कुराने के । ये लमहे खुशी के ……
मनीभाई नवरत्न
कुछ ऐसे जुड़े किस्से मेरे तुमसे
कुछ ऐसे, जुड़े किस्से ,मेरे तुमसे । जैसे कागज का कलम से । जैसे पत्रों का शबनम से। कसम से हां कसम से ।।
यार जुड़ा मुझसे जैसे चंदा से रोशनी । यार जुड़ा मुझसे जैसे बरखा से दामिनी । जुड़ गया तुमसे साथी जैसे दिया संग बाती ।। कुछ ऐसे जुड़े किस्से मेरे तुमसे। जैसे दुनिया का जन्म से । जैसे चाहत का सनम से । कसम से हां कसम से ।
रहना मेरे संग जैसे राजा की रानी । करना मुझसे जंग जैसे आग से पानी। मिल जाना मुझसे दिलबर जैसे सागर से लहर ।। कुछ ऐसे जुड़े किस्से मेरे तुमसे । जैसे संतो का रहम से जैसे दुल्हन का शरम से ।। कसम से हां कसम से
गुलशन मेरे दिल के खिलने लगे
गुलशन मेरे दिल के खिलने लगे , जब वह हमसे मिलने लगे ।। मन के सारे दाग घुलने लगे , जब वह हमसे मिलने के लगे। कोई तो है ?
जो अपना है, मैं जिसमें खो जाऊं ऐसी कल्पना है । सोच कर ही जिसको मेरी जान मचलने लगे।।
प्यार से तू प्यारी है , खुशियां मैंने दिल के तुझपे वारी है। जाये तू जहां भी, हम संग जैसे चलने लगे।।
दुरियां घटा दी निगाहें मिलाने के लिए। आशिकी बढ़ा ली प्यार पाने के लिए । तूने छू लिया मुझको तो रूह पिघलने लगे।।
🖋मनीभाई नवरत्न
उसकी होंठ होठों में लाली
उसकी होंठ, होठों में लाली । उसकी आंखें, आंखों में काली । उसकी कान, कानों में बाली ।। उसकी चाल, चाल मतवाली ।। रात दिन तड़पा हूं मैं करता रहा उसको फरियाद । अब ना पीर सहा जाए करके उसका याद ।।
ढूंढा करता हूं मैं उसे हर चौराहे हर गली।
तारीफें करें क्या उनकी वो तो थी कुछ नई। देख होश उड़ा करते थे दिल दे बैठे कई। शायद इसलिए लिए तू न मिली सचमुच तू थी फुलझड़ी ।
गुम हो गई तुम हमसे जिस रात को थी दीवाली। वो चली गई दूर हमसे फिर भी दिल में यादें हैं । शौक ए दिल में सनम गूंजती तेरी हर बातें हैं । सचमुच यह जिंदगी है एक अजीब सी पहेली।।
मनीभाई नवरत्न
दुख की घड़ियां है दो पल की
दुख की घड़ियां है ,दो पल की। फिर क्यों तेरी ,आंखें छलकी ।। याद ना कर ,बातें कल की …. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
माना दौर है , मुश्किल की । आदत नहीं तेरी ,महफिल की । मुस्कुरा तो जरा ,ख्वाहिश है दिल की…. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
हम भी तेरे अपने हैं ,साथ कभी न छोडेंगे। कर ले मेरा एतबार ,रुख ना कभी मोड़ेगे । तुझको जो पसंद हो, ऐसा रंग घोलेंगे । तुमको जो ना पसंद हो ,ऐसी बात ना बोलेंगे । काली रतिया है दो पल की… फिर आएंगी रातें झिलमिल की …. याद ना कर ,बातें कल की …. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
खा रहे हैं ये कसम ,मिलते रहेंगे हर जनम । प्यार ना होगा कम ,आंखें भी ना होंगे नम।। जो तू मेरे पास है ,जिंदगी तो खास है । जब तू होती उदास है ,इक पल भी ना रास है । रास्ते हमारे मिलोंमिल की …. फिर भी पता मंजिल की …. मुस्कुरा तो जरा ,ख्वाहिश है दिल की …. जाने जां …… जाने जां ….. जाने जां …… जाने जां …….
गीतकार – मनीभाई नवरत्न
माना हम तेरे लायक नहीं
माना हम तेरे लायक नहीं मनचाहा फल दायक नहीं । तो भी हमसे मुख मोड़ो ना तन्हा छोड़ो ना ।। यूं तो रिश्ता अपना हर रिश्तों से बढ़कर है । फिर क्यों ये फासला हर फासलों से बढ़कर है। तू रह कर भी रहता नहीं और ना रह कर भी रहता है । मेरा दिल नाजुक शीशे का गिरा के तोड़ो ना तन्हा छोड़ो ना ।। तुमको पाकर पा लिया मैंने अपना हमसफ़र । कतरे कतरे को है पता बस तुझे ही ना खबर । तू कह कर भी कहता नहीं । और ना कहकर भी कहता है। यह जहां है खुदगर्जो का जिनके पीछे दौड़ो ना तन्हा छोड़ो ना।।
मेरे गीत अमर कर दो
मेरे गीत!…. मेरे गीत अमर कर दो… मेरे मीत…. मेरे मीत अमर कर दो …. मेरे प्रीत…..
कब से दिल ..बेचैन है कब से ये बेताब है …. मेरे हर सवाल का तू … इक हसीं जवाब है ।
तुझे चाहा करूं मैं नित… मेरे मीत… मेरे मीत अमर कर दो …. मेरे प्रीत।
मेरे प्रीत अमर कर दो …. मेरे गीत—-
कोई ना मेरा… तेरे बिना तेरे सहारे …अब है जीना मेरे सफर में..तू मंजिल तेरा साथ छुटे कभी ना।
तुम संग उमर, जाये रे बीत। मेरे मीत… मेरे मीत अमर कर दो …. मेरे प्रीत। मेरे प्रीत अमर कर दो …. मेरे गीत—-
जुड़ गये हैं …..प्रेम के धागे हम ना रहे ….कोई अभागे तेरी वफा के दीवाने हैं…. जाने कब…… नसीब जागे इस प्यार में है हार..है जीत मेरे मीत… मेरे मीत अमर कर दो …. मेरे प्रीत। मेरे प्रीत अमर कर दो …. मेरे गीत—-
दो पल के रिश्ते
दो पल के रिश्ते ,बिखरने के लिए ही बनते हैं । यादों में बस के हर पल दिल में ही रहते हैं । उन लमहों को सोचकर हम कभी हंसते हो कभी रोते रहते हैं । मिलते वक्त सोचा ना था कि बिछड़ जाएंगे । खिलते वक्त फुल भी लगे ना कि झड़ जाएंगे । पर समय के दरमियां हम सब गुजर जाना है। कुछ पाकर के कुछ खो जाना है। तो क्यों पीर को दबाए हुए सहते ही रहते हैं । खुशियां जाती है गम का आभास दिलाने को। हमको जिंदगी का कड़वा सच से मिलाने को । यह जानते हुए भी हम मेहमान चंद घड़ी के कभी चमकते कभी बुझते सितारे हैं फुलझड़ी के। मुरझाना है फूलों को तो क्यों यह महकते हैं?
ये कोई बात है ? जो तू साथ है
ये कोई बात है ?जो तू साथ है । और तनहा रात है ये कोई बात है ? शाम भी ढले, दिल भी जले आ लग जा गले । अधूरी मुलाकात है ये कोई बात है। तू है चंद्रमुखी तेरी आंखें झुकी पल भी देखो रुकी । तड़पे जज्बात है ये कोई बात है ? उठ जाए रवाँ मौसम है जवां मेरे दिलबर तू कहां। छुड़ाया जो हाथ है ये कोई बात है?
यह दुनिया हमारा ना होता
यह दुनिया हमारा ना होता, चांद सितारे का नजारा ना होता। अगर आप का सहारा ना होता।।
भटक जाते मेरे कदम जीवन की राह में । देखते हैं ना अगर तुम अपनी निगाह में। रखते ना तुम अगर चाह में तो मैं आवारा होता।।
जीने का मतलब है अब ,आप के खातिर । मरने का मकसद है अब, आप के खातिर । हम बने आपसे माहिर, बिन तेरे गुजारा ना होता।। अगर आपका ….यह दुनिया…..
रे पिया ! काहे न धीर धरे
रे पिया !काहे न धीर धरे। सोच-सोचके क्यों तिल-तिल मरे। कब तक छाये रहे दुख की बदली । कभी तो लेंगे अंगड़ाइयां । बदल जाएंगे जश्न में तेरी हर एक छोटी तनहाइयां। अनजानी अनसुनी आहट पर काहे तू डरे ।
रेत सा छूटता है हाथ से सब कुछ। पर मेरा नाम साथ छूटेगा। मायूस हो क्यों तुम ऐसे भला आखिर कब तक हालात रूठेगा । हर दिन पल छिन पंछी नई उड़ान भरे ।
रे पिया काहे ना धीर धरे…
पहली दफा जब नजरें मिली
पहली दफा जब नजरें मिली, लगने लगे थे पागल। धीरे- धीरे ये असर हुआ है , भूलने लगी मेरा कल। रंगने लगी, संवरने लगी, तेरे ही यादों में हर पल। मचलने लगी, संभलने लगी, तुमसे गई हूँ बदल। नकल …आजकल करने लगी तेरी नकल। अमल…. हरपल बातों पे तेरी हो अमल।
गुम हो गई मेरी चहुँ दिशाएं
गुम हो गई मेरी चहुँ दिशाएं । कोई आकर मुझे राह दिखाए । भटक ना जाऊं गम के भंवर में। सैलाब उमड़ रहा है हर एक लहर में । हाथ पकड़कर तूफान से लड़कर कोई मुझे पार लगाए ।
छा रहा है निराशा के बादल दिल में बढ़ रही है हलचल । न जाने किसका कोप छाया आशा की किरण न दिखे एक पल। अब तो कोई मुझे चाहकर पास आकर बुलाए ।।
धुआँ सा छा रहा मेरे चारों ओर जकड़ा मैं जा रहा न जाने किस डोर? खलबली सी मची मेरे आस पास एक घड़ी एक लम्हा ना आए मुझे रास। कोई दीवानी अपना बनाकर मुझको दीवाना बनाए।।
तेरी एक छुअन से
तेरी एक छुअन से दिल मेरा पिघल जाता है । तेरी एक छुअन से मन मेरा बहल जाता है । तेरी एक छुअन से मेरी सांसे रुक जाती है । तेरी एक छुअन से मेरे नैन झुक जाती है । तेरी एक छुअन से बदल गई मेरी दुनिया । तेरे इक छुअन से छा गई मदहोशियां । तेरी एक छुअन से चैन मेरा खोने लगा । तेरी एक छुअन से कुछ-कुछ होने लगा । तेरी एक छुअन से तन मेरा महक जाता है । तेरी एक छुअन से यह समाँ चहक जाता है। तेरी एक छुअन से मुझे खुशियां मिल जाती है । तेरी एक छुअन से ये हथेलिया खिल जाती है।
कैसे सुबह आज है ?
कैसे सुबह आज है ? रंग बिरंगी साज है । कुछ तो छुपी राज है। आज अलग अंदाज है।
जिया… जिया धड़क जाती है . पिया…. पिया गाती है . सिखलाती है मुझे ,मोहब्बत कैसे करूं । तिल तिल करके तुझ पर क्यों ना मरू । कभी शर्म आऊं कभी घबराएं कैसे मुझे लाज है? आज अलग अंदाज है ।।
होके ….होके तुमसे मैं दूर . लौटे….लौटे पांव मेरे मजबूर. कसूर नहीं सजना तेरा कुछ इसमें । मैं ही नहीं मेरे बस में । कभी गीत गाऊं कभी गुनगुनाऊं कैसे गले में राग है ? आज अलग अंदाज है।।
जाओ जी जाओ ढूंढ के लाओ
जाओ जी जाओ ,ढूंढ के लाओ। मोरे पिया को, ढूंढ के लाओ। रुठ गई है जो हमसे टूट गई है जो दिल से उनको तुम मनाओ ।।
बड़ी जिद्दी है ,दूर चली जाएगी । बड़ी जिंदगी है, उस से कटना पाएगी । मेरा कोई दोष नहीं, कोई तो समझाओ ।।
बड़ी झूठी है ,हम को तड़पा रही है। बड़ी मीठी है, अपना जी बहला रही है। जान गए हम उनकी शरारतें , इतना ना इतराओ ।। जाओ जी जाओ….
मनीभाई नवरत्न
मोहब्बत हुआ है हमको जरूरत नहीं किसी का
मोहब्बत हुआ है हमको जरूरत नहीं किसी का । शरारत हुआ है हमको इजाजत नहीं किसी का ।
अब तो सुहानी रातें होंगी । महबूब से प्यारी बातें होंगी । झुकेगी नहीं हमारी प्यार काबिलियत हमारी जोड़ी का
मोहब्बत हुआ है हमको जरूरत नहीं किसी का ।
चैन से बिता सकेंगे अब रात दिन । एक पल भी जी ना सकेंगे तेरे बिन। ऐसे ही प्यार में इजहार हुआ हम दोनों का मोहब्बत हुआ है….
दिलबर ने दिल से मेरे दिल को आँका है। मैंने भी इन आँखो से उनके दिल को झाँका है। अब तो इंतजार है दिलबर से मुलाकात का। मोहब्बत हुआ है ….
मनीभाई नवरत्न
मन की लालसा ये
मन की लालसा ये, पहचान बना ले ये तेरे दिल में । फिर चाहे मौत मिले मुझे, हंसते हुए लगा लूं उसको गले। मेरे चाहत का खुलासा ये, मन की लालसा ये।
बाजी हारना मुझे जितना आता है उससे ज्यादा जीत लेना आता है। फिर भी तुझे पाने में उलझन है कहीं तो नहीं निराशा ये। मन की लालसा ये।
तेरी ख्वाहिश हद से बढ़ जाए, ना डरता हूं । सारे पल तुझे रिझाने की कोशिश करता हूं। तेरी अनदेखी से झुकी पलकें, कहीं तो नहीं रूआसा ये। मन की लालसा ये
रातोरात शोहरत मिल जाए मुझको
रातोरात शोहरत मिल जाए मुझको। ऐसी मोहब्बत मिल जाए मुझको । फिर मरने का डर क्या है ? फिर ऊँची उमर में रखा क्या है ? जब मनचाहा चाहत मिल जाए मुझको ।। गुजरे जमाना, उजड़े फसाना। फिर भी सांस वैसी हैं । बिखरे मन, उजड़े चमन , फिर भी प्यास वैसी है । चाहे बार बार टूटे आस ,पर राहत मिल जाए मुझको ।। कई रातें ,अरमानों की बारातें ,गुजरे तनहाई में। कुछ पुराने कुछ नहीं अफसाने आज ही परछाई में । झूमे हम सारी रात ऐसी दावत मिल जाए मुझको ।। रातों रात शोहरत मिल जाए मुझको।।
तनहाइयां मिटने लगी
तनहाइयां मिटने लगी ,दुरियां घटने लगी। जब तुम मुझ से सिमटने लगी । अल्लाह मिल गया रे खुशियां सुभानल्लाह।
मिला मुझे यार ,प्यार का बुखार। मन बेचैन है दिल है बेकरार। जीवन का ये कगार, जवानी की इस पार । कब बदला बचपन बसंत ,कब आई बहार । सितारा छँटने लगी, अंधियारा हटने लगी । जब तुम मुझ से सिमटने लगी अल्लाह मिल गया रे खुशियां सुभानल्लाह।।
होश मुझे नहीं यह बेहोशी का दौर है । चुप रहले तू भी यह खामोशी का दौर है । झूम ले प्यार के लिए ये मदहोशी का दौर है। मिट ले यार के लिए सरफरोशी का दौर है । बेल सी लिपटने लगी खेल सी झपटने लगी । जब तुम मुझसे सिमटने लगी है । अल्लाह मिल गया रे खुशियां सुभानल्लाह
पर्दा उठेगा चेहरे दिखेंगे
पर्दा उठेगा चेहरे दिखेंगे। गोरे तन में काले दिल मिलेंगे। पहले अपना के प्यार करेंगे। फिर चुपके से दिल में वार करेंगे ।
पल पल पलकों में उसे बिठाया। खुश रहे वो, तो अपना गम छिपाया। पर अब ना किसी से हम मरेंगे । पर्दा उठेगा चेहरे दिखेंगे—
बीते लम्हें सोच के रोता हूं । अब ना मैं चैन से सोता हूं। तुम्हें याद करूं बार-बार आंखें भी आंसू से धोता हूं । अब दिल के गुलशन में फूल न खिलेंगे। पर्दा उठेगा चेहरे दिखेंगे—
नजरों से कर गई वो दिल की हर एक बात
नजरों से कर गई वो दिल की हर एक बात । कह गई वो कब होगी पहली मुलाकात ।। हम दिल थाम बैठे जागते रहे लेकर करवटें । बीती सारी रात ।। जवानी की रातें बेकरार की होती । हर बेकरारी प्यार की ना होती । फिर कैसे जाने इस दिल की हालात।। मन का क्या है? यह है बावरा। कुछ भला सोचे ?कुछ सोचे ये बुरा। उस लड़की से मेरी क्या होगी नात? फिर भी वह आए तो महकेंगे मेरे घर। चैन से कट जाएगी जीवन का सफ़र । पर मिलने से पहले हो जाए फेरे सात। नजरों से कर गई वो दिल की हर एक बात।।
तू ही मेरी जमीं
तू ही मेरी जमीं….तू है गगन। रे साजना……ं तुझे मांगू रब से….होके मगन। रे बालमा……. जलता हूँ …पिघलता हूँ….. तेरे यादों में ..तड़पता हूँ….. जितना सोचूं …उतना तरसूं यादें अगन बन…झुलसाये तन।।
ओ मेरे दिल के हूजूर
हां मैं हूँ ,तुमसे दूर पर मैं हूँ, बेकसूर । मुझे परवाह है तुम सबकी इसीलिए मैंने ये कदम ली मुझे दगाबाज ना समझना मैं हालात से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
वादा किया था जो तुमसे चांद तारे तोड़ लाऊंगा । दुनिया भर की खुशी को तेरे कदमों में बिछाऊंगा । तू भूल गई है शायद सब पर मैं ना अब तक भूला हूं …. मुझे दगाबाज ना समझना मैं हालात से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
है तू घर की आबरू, मेरे हृदय की रानी है । तेरे सपने हैं अधूरे से , कुछ चाहत भी पुरानी है । छोड़ो आया हूं मैं , कलेजे के टुकड़ों को । मेरे हिस्से के भी प्यार दे देना तू मुझे दगाबाज ना समझना मैं हालात से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
जानूं मेरे बिन तुझे तकलीफ होती है । पर सबकी नसीब कहां एक सी होती है ? मैं मेरी जिंदगी छोड़ आया तेरे पास जल्दी से आऊंगा, कर ले विश्वास । आस जगाए रखना दिल में , नैन बिछाए रखना है मेरी ये आरजू….. मुझे दगाबाज ना समझना मैं हालात से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
ऐ मेरे दिल! आके मेरे बाहों में खिल
ऐ मेरे दिल! आके मेरे बाहों में खिल । नहीं तो हो जाएगी बड़ी मुश्किल ।
प्यार करूं मैं तुझे, दिल देना तू मुझे । बिन तेरे जानेमन कुछ ना सूझे । प्यार में हम दोनों हो जाए हिलमिल ।। 1
तेरी मीठी मीठी बातें मुझ को भा गई। तेरी गोरी गोरी बाहें मुझ पर छा गई ।। ले चलूँ तुम्हें वहां, जहां हो सितारों की झिलमिल ।। 2
फिगर का दोष है, मेरे नजर का नहीं . तू सोचे मुझे जहां का ,मैं वहां का नहीं. हाय रे नखरा, उमर सतरा,लागे खतरा । चले पैंतरा, इस दिल पे, अब जरा जरा ।
मैग्नेट सा बदन ,खींचे मुझे,खिंचा चला जाऊं । चंचल ये चितवन, रोकना चाहूं, रोक ना पाऊं । बेसुर ताल है , बुरा हाल है ,अब तो मेरा . चले पैंतरा , इस दिल पे , अब जरा जरा.
कनेक्टिविटी दे हॉटस्पॉट से इंकार न कर वाईफाई ऑन पासवर्ड सेव डाटा ऑफ न कर लाइफ सेल्फोन है जिसमे रिंगटोन है तू ही मेरा चले पैंतरा , इस दिल पे , अब जरा जरा.
मनीभाई नवरत्न
आज तक पीछे थे तेरे अब हाथों में मेरे किताब होगी
अच्छा हुआ, ठुकरा दिया, नींदें ना मेरी खराब होगी।
आज तक पीछे थे तेरे, अब हाथों में मेरे किताब होगी।।
पहले होता था तेरे लिए बेचैन, तरसती रहती थी देखने को नैन। बन गया था पागल दीवाना, तेरे ही आस पास था मेरा ठिकाना।
अच्छा हुआ, बतला दिया, अब ना तेरे लिए ख्वाब होगी ।
आज तक पीछे थे तेरे, अब हाथों में मेरे किताब होगी।। माना कि तू खूबसूरत बेमिसाल,पर दिल के मामले में है बुरा हाल। मेरा तुमसे है आज ये सवाल , खुद के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल? आजकल मद मस्त हो गए हो, तुमने भी पी शराब होगी ।
आज तक पीछे थे तेरे, अब हाथों में मेरे किताब होगी।।
हम ना चाहे थे तुमसे बैर , पर जी लेंगे अब तेरे बगैर ।
कभी तो जिन्दगी होगी हरी, कभी तो जायेगी अंधेर ।।
तुम्हें छोड़कर अब किसी और के लिए गुलाब होगी।
आज तक पीछे थे तेरे, अब हाथों में मेरे किताब होगी।।
प्यार मेरा तेरे लिए, तेरे लिए मेरा प्यार । सबसे जुदा हसीन सबसे जुदा । तुझ पर जानिसार । तुझ पर जानिसार . मेरे यार मेरे यार. कदमों में तेरी पलके बिछा दूं। तू जो कहे तो खुद को सजा दूं । मिट जाऊ तेरे लिए आजमा ले हू तैयार। तुझ पर जानिसार । तुझ पर जानिसार . मेरे यार मेरे यार.
– मनीभाई नवरत्न
क्यों ना सुने हम दिल की
दिल जो प्यार कर बैठा तो क्यों ना सुने हम दिल की . हुई जिंदगी में पहली दफा तो क्यों ना सुने हम दिल की।
दिल तो अपना दिल है गैर नहीं । किस्मत आज अपनी है वक्त ये सही। आशिकी जैसे हुई हालात तो क्यों ना सुने हम दिल की । हुई जिंदगी में पहली दफा
तो क्यों ना सुने हम दिल की। इस दिल के किस्से सुने लाखों मगर अपना भी किस्सा बने हो जाए अगर। दिल अपना झूम रहा जैसे बारात । तो क्यों ना सुने हम दिल की ।। हुई जिंदगी में पहली दफा
तो क्यों ना सुने हम दिल की।
मनीभाई नवरत्न
महबूब से मिलने की तमन्ना
महबूब से मिलने की तमन्ना। हर पल जिसके लिए जीना। चुपके से उसके कानों में । दिल की हर बातें सुनाना। आज कहेंगे उनसे , दिल की छुपी बात। राह देखेंगे फिर चाहे, दे ना अपनी हाथ । अब एक भी बात उसने ना छिपाना ।। कहते ही दिल की बात आंखो में उनके आंसू आए। मुझको डर लगा शायद मेरी बातें दिल दुखाए।। ना कर सकूं मैं जिनसे आंख मिलाना।। मैं तो वही करता हूं जो दिल को अच्छी लगे। है बातें ना छुपाना किसी से यह मुझे सच्ची लगे । प्यार में हो गया पागल दीवाना ।। सांसो से पता ना चले, मुख से ना वह बोल सकें। शर्म से नजरें झुके मंजूरी से सिर डुले। सनम पूरे हो गए हैं मेरे सपना।। हां करके तू चली गई शाम भी ढल गई । चैन मेरा छूटा दिल मेरा टूटा जब तू खो गई। धड़ के अब तो गम से मेरा सीना।। खबर तेरी जब आई हो चुकी तू मुझसे जुदाई । कर दी क्यों जानम हां करके भी बेवफाई ।। अब ना किसी को दिल में बसाना । महबूब से मिलने की तमन्ना
-मनीभाई नवरत्न
गैर पर हो जाए बैर
गैर पर हो जाए बैर। अपने ना हो गैर । जान ले ओ मेरे यारा हो जाए ना देर । (अपने तो हैं अपने अपने के सपने सब अपने) घर का तू है हिस्सा, घर से जुड़ी है हर किस्सा। फिर क्यों नाराज है अपनों से थूँक दे तेरी गुस्सा । वरना जान ले ,ना होगी तेरी खैर।। बह चला है तू किस ओर ? तोड़ चला है तू ममता की डोर । आजा फिर उसी गली में बिठा ना दिल में चोर ।। कहना मान ले रोक ले अपने पैर ।। धोखा है उस पार, मौका है इस पार। लौट आ मेरे यार, सुन ले मेरी पुकार। बिछा दूंगा तेरे लिए खुशियों का ढेर ।। (सुनी हो जाए ना घर तेरे बगैर)
लिरिक्स : मनीभाई नवरत्न
चाहा है तुमको यह बात मेरी मान
चाहा है तुमको यह बात मेरी मान । हो सके तो माफ करना मेरी जान ।
पहली बार मिला था जब तुम थे सोई । तब से तुमने मुझ पर प्यार की बीज बोई । जब मैं सोता हूं तब दिल हो जाता बेचैन । जब तुम सामने आती तो देख ना पाती नैन। तुमको देखा तो मैंने यह जाना । तुम हो सबसे सुंदर मैंने ये माना । दिल धक धक करता है तुम्हारी यादों में । जब मैं तुम्हें देखूं लगता है तुम बाहों में । चाहा है तुम को यह बात मेरी मान।।
-मनीभाई नवरत्न
मेरा जो सनम है बड़ा बेरहम है
मेरा जो सनम है ,बड़ा बेरहम है। सब कुछ लुटाया मैंने; फिर भी कम है ।
मेरा जो सनम है ,तोड़े हर कसम है । प्यार में छोड़ गया वो, फिर काहे दम है । तेरे लिए शाम भी मेरे यार । तेरे लिए जान भी मेरे यार । झूठ है ,मत खा ऐसे कसम , समझ लिया मैंने तेरा प्यार ।। तुझे हुआ है धोखा ,तूने है जो सोचा ,सब भरम है । डेट की बातें करके ,हमको वेट कराते हो । ऐसे कोई शाम नहीं जो ना लेट आते हो ।। तेरे लिए हर पल, तेरा है हर कल , फिर यह मत बोलना ,इतना क्यों कमाते हो? तेरे संग रहूं ,तुमसे यह कहूं, आंखें जो तेरी नम है ।। छोड़ो मुझे तुम ,बेहाल रहने दो । आंखें जो तरसे थे इनको बहने दो । तेरे लिए हो आंसू ,मेरे लिए ये मोती । फकीर ना हो जाऊं हम को ये चुनने दो। तेरे इन्हीं बातों पे, इन्ही ख्यालातों पे आए तेरे गली ,मेरे कदम हैं।
-मनीभाई नवरत्न
चोरी चोरी इस दिल में आई
चोरी चोरी इस दिल में आई । हमको पता ना चल सका। आके मेरे तू दिल में समाई । हमको पता ना चल सका। दिल में समा के धड़कन बढ़ाके दिल को चुराई। हम को पता ना चल सका।
चलती है जैसे पवन, बहती है जैसे जल । तेरे छू लेने से ही, हुई दिल में हलचल ।। आज मौसम कुछ कह रहे हमें । हम को ना पता चल सका ।। मुरझाती है जैसे फूल, जम जाती है जैसे धूल। तोड़ देना ना तुम ,प्यार की सारे उसूल। आज धड़कन कुछ कह रहे हैं हमें । हम को ना पता चला ।। चोरी चोरी इस दिल में आई
–मनीभाई नवरत्न
तुझे देखा तो ना जाने
तुझे देखा तो ना जाने ,मुझे क्या होने लगा है ? बरसों से जिसकी चाहत थी,हमें वो होने लगा है ?
तनहाई के सागर में डूबने को थी कश्ती हमारी । तेरा सहारा मिला हमें लौटा दी तूने मस्ती सारी ।। तेरे आस से लौटा साहस फिर पतवार खोने लगा है। दुनिया के लिए मर चुका था अबके जीवन है तुम्हारी। कल के जीवन से बेहतर है अबकी जीवन है प्यारी ।। यम की दर से लौटाया तूने, अंसुवन मेरे ,चरण तेरे धोने लगा है ।। तूने देखा तो…..
मनीभाई नवरत्न
बारिश की झड़ी बदन पर पड़ी
बारिश की झड़ी ,बदन पर पड़ी । छा गई ताजगी छाने लगी दीवानगी। आने लगी याद पिया । ऐ बारिश !तूने क्या किया ? याद उन्हें हम करते ,आंखों में आती नमी । रब से दुआ यही करते,घ भूल जाएं उसकी छवि । पर होती ना कभी छवि धुंधली , वह दिखे सामने खड़ी ।। बारिश की झड़ी …
पत्थरों में बने हुए कोयले से बनी चित्रें। है प्यार की निशानी, उभारती हमारे रिश्ते । ये रिश्ते सदा लिए इनके रंग ना कभी उड़ी।। बारिश की झड़ी …
मरते थे एक दूजे के लिए , भूल ना सकती मुझे वो। मुझसे ज्यादा जानती मेरी बातें, पर छोड़ गई मुझे वो। पर भुला ना मैं जुदाई , जिसकी पीर हर दिन बढ़ी ।। बारिश की झड़ी…..
मनीभाई नवरत्न
राहों में खड़े हैं तेरा इंतजार है
राहों में खड़े हैं ,तेरा इंतजार है । तुझको क्या बताएं ,हमें कितना प्यार है ?
क्या हाल कर दिया तूने मेरा । छाने लगी है बस तेरा चेहरा । कभी तो जान जाओ मेरा प्यार गहरा। कभी तो मिलने आओ आशिकों का डेरा । काबू नहीं है खुद पर काबू नहीं है , तू मेरे जिया से खेले, लागू नहीं है । आवारा नहीं है ये आशिक आवारा नहीं है। तेरे सिवा नजरों में नजारा नहीं है । तेरा ही तो है मेरे दिल में बसेरा । कभी तो मिलने आओ आशिकों का डेरा । रोष नहीं है तुझसे रोष नहीं है । मेरे प्यार का तुझे होश नहीं है। सहारा नहीं है बाहों का सहारा नहीं है , तुम मिल लम्हों का गुजारा नहीं है। तेरे आने का इंतजार रहे हर सवेरा। कभी तो मिलने आओ आशिक़ों का डेरा।।
-मनीभाई नवरत्न
बेदर्द जमाने तू क्या जाने
बेदर्द जमाने तू क्या जाने ? तू क्या जाने ? तू न जाने मन में प्रेम जगाने ।।
होती कैसी इश्क का उफान ? होती कैसी दिल का फरमान ? तू न जाने मन में प्रेम जगाने ।। बेदर्द जमाने ….
ऐ जब तू सोती ,दीवाने जगते हैं। आंखों में बस प्रेम के ख्वाब बसते हैं। जलते हैं खुद से चाहत के परवाने । बेदर्द जमाने ….
चलता है तू राहों में अपनी खुशी के लिए । अपनी खुशी तो बस अपने दिलबर के लिए । आया फिर भी तू देखो प्यार जताने । बेदर्द जमाने ….
तू रहता है, ऊंची नीची मंजिल में। हम रहते हैं एक दूजे के दिल में । बूनते हैं सारी रात मोहब्बत के अफसाने । बेदर्द जमाने….
🖋मनीभाई नवरत्न
ये सफ़र प्यार का सुहाना
ये सफ़र प्यार का सुहाना, मरते दम तक प्यार को निभाना। रोक ले चाहे हमको जमाना, दिलबर से अब दिल है लगाना ।
अब सह न सकूं एक पल जुदाई , सनम से जो है दिल लगाई । सीधी सादी सच्ची है जानेमन , जिनसे करना नहीं हमको बेवफाई । प्यार में सब कुछ कर जाना पिया के हैं जो प्रेम में दीवाना ।।
प्यार है एक तो जादू दिल हो जाता बेकाबू । प्यार से सामना कर सके ना कोई सच्चे मन ही इसमें लागू । आज खुशनुमा मौसम में उनको सताना प्रेमजल से उनके तन को भिगाना ।।
प्यार की एक तू नाजुक कली, खुशियां भरी आंगन में तुम पली । चांदनी से खूबसूरत तुम लली यही धुन गूंजता अब हर गली । अब तो दिल को दिल से मिलाना प्यार क्या होती सब को दिखाना । ये सफ़र प्यार का सुहाना….
मनीभाई नवरत्न
तुम हो मुझसे सुदूर
तुम हो मुझसे सुदूर ,पर मन में तेरा सुरूर । ओ बेवफा ओ मगरूर ,बन गई हो मेरा गुरुर। तुम्हें क्या बताएं ,कैसे समझाएं, पास भी तो नहीं हो। तुम हो अगर खफा तो मनाए पर उदास भी तो नहीं हो। खत तुम्हें भेजता हूं होके मजबूर ।
तुम भी खत भेजना मेरा प्यार होता हो जो मंजूर ।। जब सहता हूं मैं जुदाई तुम ही तुम याद आती हो । जब सुनता हूं मैं शहनाई तुम ही तुम मुझको भाती हो। कहीं देखी नहीं आंखों में ऐसा नूर । मुझमें मिल जाओ ए मेरे हुजूर ।। तुम हो मुझसे…
मनीभाई नवरत्न
उग आई है दिलों में प्यार के बीज
उग आई है दिलों में प्यार के बीज। प्रेमी तेरे नैनों की पानी से सींच । ताकि बढ़ जाए प्यार की यह बेल । और फल लाए रिश्तो का मेल । यूं ना तू अपने आंखों को मींच। प्रेमी तेरे नैनों की पानी से सींच।।
तरस रहा हूं प्यार को मैं । यार को मैं दिलदार को मैं । बरस रहा हूं खामोशी से मैं । हंसी से मैं खुशी से मैं । मेरे हाल से तू हाल मिलाना सीख। प्रेमी तेरे नैनों की पानी से सींच।।
रिश्ता रहेगा मेरा तेरे आहों से । तेरी निगाहों से तेरी राहों से । मिलता रहूंगा सदा ,चाहे प्यार दे । चाहे करार दे चाहे बेक़रार दे । कभी ना कभी तो ,जानेगी मैं हूं क्या चीज़? प्रेमी तेरे……
मनीभाई नवरत्न
तेरे दिल में मेरा प्यार बसाले
तेरे दिल में मेरा प्यार बसाले । तेरे नैनो में मेरा दीदार बसाले । सुनी अगर हो तुम्हारी बाहें, तो मुझे गले का हार बना ले ।
कुछ भी ना कर सोनिए , मुझे नहीं होना तुमसे जुदा । तू ही मेरा दिलबर मेरा सनम मेरी खुदा । और तुमसे क्या कहूं आकर के मेरी रूह में । अपना अधिकार जमा ले ।।
आप के आगोश में आए जब से जीने का मकसद मिला है । कल तक था जो सुखी दरिया उसमें फूल खिला है । अब तुम चाहो तो मेरे सुनापन को फिर से महका दे।। तेरे दिल में….
तेरी मुस्कान ले गई रे जान
तेरी मुस्कान ले गई रे जान। तुझे पाने को गोरी , क्यों ना हो दिल में अरमान।
यह लाल दुपट्टा तेरे सर से अटका। तेरी इन अदाओं से दिल को लगे झटका। प्यार की इकरार को थम जाता है दो जुबान।।
तेरी गाल को चुमूँ , होठों के लाल छू लूं। तुझको मैं हसीना अब कैसे भूलूं । तुझसे मिला कर खुदा भी मुझ पर मेहरबान । तेरी मुस्कान….
दिल में किसने मारा हथोड़ा -मनीभाई नवरत्न
दिल में किसी ने मारा हथोड़ा । और इसे चकनाचूर करके छोड़ा। हर किसी ने रूख इससे मोड़ा । सबसे दूर करके तनहा छोड़ा।
पागल बना देती है यह दुनिया, जो जुदा हो साथी । दिल घायल हो जाती है , जो खफा हो साथी। घुट रहा दिल इस तरह जैसे किसी ने इसका गर्दन मरोड़ा।
बातें अब तो खुद से करने लगी है जैसे दिल बावला हो । डगमगा कर चलने लगी है जैसे कोई मतवाला हो. । शीशा समझ के इसे किसी ने, हाय पत्थर से तोड़ा।।
मनीभाई नवरत्न
आ भी जा रे मेरे दिल
आ भी जा ,आ भी जा ,आ भी जा रे मेरे दिल । तुझको पुकारे मेरा दिल । आ भी जा ,आ भी जा ,आ भी जा रे मेरे दिल । सुनी तुम बिन महफ़िल ।
अब पहले जैसे ना दिन है ,ना पहले जैसे रातें । सारा जग मुझे खामोश लगे ,खामोश हर बातें। मैं जन्मों का प्यासा, प्यास बुझाओ बनके साहिल।।
कोई ना अपना लगता है ,बस तुम ही हमराही । फिर भी तू मेरे पास ना आए क्या तुमने है चाही। मैं राहों से भटका मुझको दिखाओ तुम मेरी मंजिल।।
चोरी चोरी नजर मिली
चोरी चोरी नजर मिली धीरे धीरे असर हुई . तुझको क्यों ना खबर मिली मुझको मगर हो गई . तन्हा तन्हा यह मौसम तन्हा हुआ मन . अब तन्हाई में क्या करें तन्हा हुआ जीवन . तनहाई का मुझे अब तो डर हुई . चोरी चोरी नजर मिली ….. प्यार में होश कहां है हम पर तुमसे खामोश कहां हैं . तू जहां पर हम वहां पर इसमे मेरा दोष कहां है । तेरे सूरत से घायल जिगर हुई । चोरी चोरी नजर मिली ….. लाखों पाए हमने खुशी पर ना तुझ सा कोई हंसी . तेरी मुझ पर क्या जादू ओ दिलरुबा ओ हमनशी । आंखों से उतर कर तू दिलबर हुई । चोरी चोरी नजर मिली …. आप मेरे पास आ तुझको प्यार दूं . सच कहता हूं मैं तुझे जिंदगी सवार दूं . तेरे लिए तो मस्ताना शहर हुई . चोरी चोरी नजर मिली. ….
उसमें सादगी है उसमें ताजगी है
उसमें सादगी है उसमें ताजगी है । वह कर देती मुझे दीवाना उसमें दीवानगी है । राहों में जब कदम मिल जाते थे । नजर मिल जाती थी दिल मिल जाते थे । रातों में जो सितारे खिल जाते थे। वो आती मिलने और मन खिल जाते थे। मैं लुटाऊँ उसमे प्यार ऐसा, मानो मेरी यह अदाएगी है।। बाहों में जब हम मिल जाते थे । गम गल जाते और मरहम मिल जाते थे । बागों में जब कलियां खिल जाते थे । वह लगते महकने और तन खिल जाते थे । मैं मिटाऊं उसमें खुद को ऐसा , मानो वह मेरी जिंदगी है।।
यह असर है दोस्ती का तेरा
आती है खुशी, थोक में ,तेरे आने से । झरती है हंसी, लबों में, मुस्कुराने से । यह असर है ,दोस्ती का तेरा
जो दी है तुने , तुमसे दिल लगाने से ।।
इंतजार रहता है, तेरा सबसे ज्यादा । भूलूंगा कैसे अब, तुमसे की वादा । कब छुपी है ये प्यार, लाख छुपाने से ।।
यह असर है ,दोस्ती का तेरा जो दी है तुने , तुमसे दिल लगाने से ।।
यह असर है ,दोस्ती का तेरा जो दी है तुने , तुमसे दिल लगाने से ।।
दिल मेरा क्यों परेशान है ?
कोई नहीं मेरा यहाँ….2
सुना सुना जहान है…..
दिल मेरा क्यों परेशान है ?
1.
जो थे सपने …वो थे अपने ….
आज वो भी बिखर गया है….
अब जीने की…वजह नहीं……
ख्वाहिशें मेरी, मर गया है……
सांसे मेरी उलझी हुई ….2
जीना मेरा मौत समान है…..
कोई नहीं मेरा यहाँ….
सुना सुना जहान है…..
दिल मेरा क्यों परेशान है ?
2.
कल थे हमारे…. चांद सितारे
आज कहीं वो खो गया है।
बोलूं मैं किससे, राज खोलूँ कैसे
मुझे छोड़ जग, सो गया है।
चाल मेरी बहकी हुई
बुझी बुझी अब ये मुस्कान है….
कोई नहीं मेरा यहाँ….
सुना सुना जहान है…..
दिल मेरा क्यों परेशान है ?
दुख की घड़ियां है दो पल की
दुख की घड़ियां है ,दो पल की। फिर क्यों तेरी ,आंखें छलकी ।। याद ना कर ,बातें कल की …. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां… माना दौर है , मुश्किल की । आदत नहीं तेरी ,महफिल की । मुस्कुरा तो जरा ,ख्वाहिश है दिल की…. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
हम भी तेरे अपने हैं ,साथ कभी न छोडेंगे। कर ले मेरा एतबार ,रुख ना कभी मोड़ेगे । तुझको जो पसंद हो, ऐसा रंग घोलेंगे । तुमको जो ना पसंद हो ,ऐसी बात ना बोलेंगे । काली रतिया है दो पल की… फिर आएंगी रातें झिलमिल की …. याद ना कर ,बातें कल की …. जाने जां …जाने जां … जानेजां …जानेजां…
खा रहे हैं ये कसम ,मिलते रहेंगे हर जनम । प्यार ना होगा कम ,आंखें भी ना होंगे नम।। जो तू मेरे पास है ,जिंदगी तो खास है । जब तू होती उदास है ,इक पल भी ना रास है । रास्ते हमारे मिलोंमिल की …. फिर भी पता मंजिल की …. मुस्कुरा तो जरा ,ख्वाहिश है दिल की …. जाने जां …… जाने जां ….. जाने जां …… जाने जां …….
ओ मेरे दिल के हूजूर
हां मैं हूँ ,तुमसे दूर पर मैं हूँ, बेकसूर । मुझे परवाह है तुम सबकी इसीलिए मैंने ये कदम ली मुझे बेवफ़ा ना समझना
मैं फर्ज़ से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
वादा किया था जो तुमसे चांद तारे तोड़ लाऊंगा । दुनिया भर की खुशी को तेरे कदमों में बिछाऊंगा । तू भूल गई है शायद सब पर मैं ना अब तक भूला हूं …. मुझे बेवफ़ा ना समझना
मैं फर्ज़ से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
है तू घर की आबरू, मेरे हृदय की रानी है । तेरे सपने हैं अधूरे से , कुछ चाहत भी पुरानी है । छोड़ो आया हूं मैं , कलेजे के टुकड़ों को । मेरे हिस्से के प्यार दे देना तू ।
मुझे बेवफ़ा ना समझना मैं फर्ज़ से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
जानूं तुझे तकलीफ होती है । पर हमारी तकदीर ऐसी होती है । मेरी जिंदगी छोड़ आया तेरे पास जल्दी से आऊंगा, कर ले विश्वास । आस जगाए रखना अपने दिल में , नैन बिछाए रखना, है ये आरजू….. मुझे बेवफ़ा ना समझना मैं फर्ज़ से हूँ मजबूर । ओ मेरे दिल के हूजूर……..
रचना:- मनीभाई
तू जिंदगी बने तू ही दास्तां
जब मैं जागूं ,तुझे पाऊं । सात सुरों के गीत सुनाऊं । तुझे रिझाऊं, तुझे मनाऊं । तुझे रिझाऊं, तुझे मनाऊं ।
हो तुमसे ही वास्ता … तू जिंदगी बने तू ही दास्तां तू जिंदगी बने तू ही दास्तां तू जिंदगी बने तू ही दास्तां तू जिंदगी बने तू ही दास्तां
मैंने ख्वाहिशें ,अपनी छोड़ दी जीना मुझे, तेरे ख्वाहिशों में । मैंने बंदिशें , सारी तोड़ दी रहना नहीं ,मुझे बंदिशों में । अब एक नजर है ,बस मेरा तू मंज़िल बने , तू ही रास्ता।।
तू जिंदगी बने तू ही दास्तां तू जिंदगी बने तू ही दास्तां तू जिंदगी बने तू ही दास्तां तू जिंदगी बने तू ही दास्तां
मोहब्बत हुआ है हमको
मोहब्बत हुआ है हमको जरूरत नहीं किसी का । शरारत हुआ है हमको इजाजत नहीं किसी का ।
अब तो सुहानी रातें होंगी । महबूब से प्यारी बातें होंगी । झुकेगी नहीं हमारी प्यार काबिलियत हमारी जोड़ी का मोहब्बत हुआ है हमको जरूरत नहीं किसी का ।
चैन से बिता सकेंगे अब रात दिन । एक पल भी जी ना सकेंगे तेरे बिन। ऐसे ही प्यार में इजहार हुआ हम दोनों का मोहब्बत हुआ है….
दिलबर ने दिल से मेरे दिल को आँका है। मैंने भी इन आँखो से उनके दिल को झाँका है। अब तो इंतजार है दिलबर से मुलाकात का। मोहब्बत हुआ है ….
मनीभाई नवरत्न
तेरा प्यार पाके
तेरा प्यार पाके मैंने इस जहां को पा लिया। अब तो कोई चाह नहीं दिल को सुकून मिल गया। हां अब कुछ गम नहीं कोई भी डर नहीं जब से मिला तेरा आसरा तब से मैं बेघर नहीं। यह क्या कम है जो तूने मुझे दे दिया । तेरा प्यार पाके …. आज भी मुझे याद है जब तुम मुझे मिली थी। जीने की चाह न थी उस दिन ऐसी आग लगी थी। धीरे-धीरे तूने ही वह आग बुझा दिया । तेरा प्यार पाके …. आप तो जो कहे वही तो करना है । कर लो जितना सितम आपके दिल में रहना है । तेरे खातिर हर ग़म हंसकर सह लिया। तेरा प्यार पाके …..
मुझसे कुछ ना बोलो
मुझसे कुछ ना बोलो राज ए दिल ना खोलो सब हो रही है बयां इन आंखों से । रिश्तो में ना तोलो, किस्तों में ना मोलो । सबसे होती है जुदा हर बातों से। एहसास प्यार का, पास यार का । कब सुबह हुई कब शाम आई। जब हम मिले जीक्रो मे तेरे नाम आई। मैं बन गया हूं मतवाला पी गया हूं तेरे नाम का प्याला। महक गई यह मंजर सारा का सारा । तेरे सांसों से..
बेकरार दिल
बेकरार दिल बेकरार दिल बेकरार दिल तुझे हुआ क्या ? तुझे देख कर ही ,जिंदगी हुई रंगीन . दीदार हुआ चांद का, चेहरा तेरा आफरीन . आफरीन तेरी अदा , आफरीन सबसे जुदा आफरीन माशा अल्लाह ,आफरीन मेरे खुदा . बेकरार दिल …. तेरी खूबसूरती …अब तलक थी मस्तूरी तू न जाने हिरनी… कहाँ तेरी कस्तूरी । बन गई मेरे लिए कल मेरा सजदा मेरा दीन आफरीन तेरी अदा
जो तुमसे हो गया है प्यार
जिंदगी हर बार आती नहीं , यादों में आकर तुम जाती नहीं । तुम ना कर जाना इंकार जो तुमसे हो गया है प्यार ।।
यादों में तेरे मैं हर पल छाया रहता । सोचकर मैं तुमको हरदम मुसकाया रहता। अब तो दिल हो गया बेकरार जो तुमसे हो गया प्यार । पूछो यह तुम मेरे सांसो से। सुनो ये तुम कहती है लबों से । जो बजती कहे तुम्हारी पायल की झंकार । जो तुमसे हो गया प्यार ।
अब तो दिल कहता है बार बार । जो मिल गया तुमसे यार । जुदा नहीं कर पाएंगे कोई । कुछ नहीं कर सकेगा हमको संसार । जो तुमसे हो गया प्यार । जो तुमसे हो गया प्यार ।
रे बदरा
रे बदरा !उड़ चला है किस ओर ? रे बदरा !खींचे चला है किस डोर ? मेरे आंसू ले जा नैनों से , बरसा दे उन गलियों पे। जहां छुपा बैठा है दिल का चोर । रे सांवरा !आई ना तेरी शोर ।। रे बदरा!….. भीगा दे उसे, तेरा रंग गहरा । सुध आये छत सा मोरा अंचरा। पाये ना बैरन कही ठौर। रे बावरा! रात हुई रे अब भोर। रे बदरा!…….
छोटी उम्र की मुलाकात
छोटी उम्र की मुलाकात, याद आती है तेरी बात । तुझको ही मैं पुकारूं, क्या करूं जो तू नहीं है साथ ।
दो पल में ही प्यार हो जाएगा हमें कब था मालूम ? जीवन के लम्हे तुम से जुड़ जाएगा हमें कब था मालूम ? कब था मालूम छूट जाएंगे हमारे हाथ।
जुदा होकर फिर मिलेंगे क्या ऐसा होगा? कदमों के तेरे निशान में चलेंगे क्या ऐसा होगा ? क्या ऐसा होगा ,कोई करामात।।
तेरे नैना जब आंसू टपकाती है
तेरे नैना जब आंसू टपकाती है। ओ दिलरुबा ये आंसू जिगर जलाती हैं। अब कैसे बताऊं मैं क्यों हूं हैरान ? याद कर कर के मैं हूं हो गया हूं परेशान। तेरी खामोशियां ये तन्हाईयां हमको रुलाती है। ओ दिलरुबा ये आंसू जिगर जलाती है। कभी यहां तो कभी वहां । कभी इस पार तो कभी उस पार । ढूंढती तुझको ही मेरे हमसफ़र मेरे दिलदार। जाने जा तुझसे नज़दीकियां खुशियां दिलाती है।। ओ दिलरुबा तेरे आसूं जिगर चलाती हैं।।
खो दिया मैंने पाके तुझे
खो दिया मैंने पाके तुझे । इस से अच्छा यह होता मिलती ना तू मुझे । कोई तरकीब अब ना मुझको सुझे। इस से अच्छा यह होता मिलती है ना तू मुझे । होश मैंने खो दिया ,सुकून मैंने खो दिया। जोश मैंने खो दिया जुनून मैंने खो दिया । खो दिया है मैंने तुझसा कीमती धन , अब एक पल भी मुझसे ना रुचे। गुमसुम हो गए सब ओझल हो गए सब । जिंदगी भी पहले से बोझल हो गई अब। बेआबरू होकर बैठा हूं कोने में कल क्या हो मेरे साथ कुछ ना कुछ ना बुझे ।।
गोरी तेरा है रंग सुहाना
गोरी तेरा है रंग सुहाना । उठने लगी प्यार का तराना । कौन हो क्या हो न जाना । फिर भी लगे जैसे रिश्ता पुराना।
तेरा रंग तो लगता है ऐसा जैसा होता है सोने का । आंखों से ओझल ना होने दूं मन नहीं करता तुझे खोने का । चोरी चोरी चैन चुराना मस्ती में मैं मस्ताना । गोरी तेरा है रंग सुहाना….
नैनों में काली गाल गुलाबी। ये रंग भी प्यारे हैं । होठों पर है जो शबनमी लाली । जिसके लिए दिल हारे हैं। भाये मुझको तेरी मुस्कुराना । सो अब मिलने को करता बहाना । गोरी तेरा है रंग सुहाना ….
बहके बहके कदम हैं
बहके बहके कदम हैं बहके हुए हम। जवानी की इस दौर में दीवाने हुए तेरे हम । चंचला है तेरा मन तितलियों की तरह । नजरें हैं तेरा सनम बिजलियों की तरह । सांसो की सरगम में आ साथ दे जरा ।। बहके बहके कदम हैं….
ख़ामोशी में क्यों है दिल के झरोखे में आजा। साथ दूंगा मैं तेरा अपनी हाथ थामा जा । डरना नहीं करना सनम तू मेरा ऐतबार । बहके बहके कदम है …
जब से तुझे देखा है तब से कुछ ना जाना. छुप छुप के देखा करता हूं तेरी मुखड़ा सुहाना. जवां दिलों की तस्वीर है तू सनम . बहके बहके कदम है …..
दिल तो मेरा यही चाहता है
दिल तो मेरा यही चाहता है । तू अपनी हो , रब से यही मांगता है।
तिरछी नजरों से जाने क्या कर दी तूने? तुझ पर डूबा हूं मैं , चैन खो दिया मैंने। अकेले में ये आहें भरता है । दिल तो मेरा यही चाहता है….
तू सामने होती हर अदा बदलता हूं । तेरे करीब मैं न जाने क्यों बहकता हूं ? यह असर मुझे प्यार का लगता है । दिल तो मेरा यही चाहता है …
पास आने में कैसे डरूँ मैं कोई बतादे कैसे करूं मैं। सुन ले आंखों की बातें यह कुछ कहता है। दिल तो मेरा यही चाहता है….
मैं ऩवासाज तू ही मेरा नवाज
कोरे कागज पे करूं, तारीफों से तेरा साज। हमराही तू मेरा तू ही …मेरा नवाज। रुचता नहीं मुझे अब कोई काज जब से बना हूं मैं नवासाज। (नवासाज )x3 मैं नवासाज . तू ही …मेरा नवाज । तू ही अब मेरी रोजी तुझसे ही जुटेगी रोटी एहसान तेरा मुझ पे.. बस मेरी.. नसीब छोटी। कभी तो भरेगा , दामन खुशियों से कभी तो करेगी ये दुनिया नाज . (नवासाज )x3मैं नवासाज तू ही मेरा नवाज ।
घड़ी ..मुझसे बोले काहे, पर ना खोले । आंखों में बसे तेरे , अंगारे और शोले। हौंसलों की चाबी जरा कस ले .. उम्मीदों से टिकी है दुनिया आज । (नवासाज) x3 मैं नवासाज तू ही मेरा नवाज।
मनीभाई नवरत्न
खिलते हैं होंठ मगर
खिलते हैं होंठ मगर ,हिलते नहीं। दिल में है बात मगर कहते नहीं । वो बेकरार है जानकर अच्छा लगा । मुझसे प्यार है जानकर अच्छा लगा।। चाहते हैं दिल से मगर , जानते नहीं।।
मुझ पर तेरी अदा हमको सच्चा लगा। प्यार से मिलाते होंगे खुदा सच्चा लगा । तरसते हैं मुझ पर, मगर बरसते नहीं ।।
खिलते हैं होंठ मगर…..
मनीभाई नवरत्न
बेकरार दिल हुआ बे अख्तियार
कैसा दर्द है ? कैसा एहसास है? मुझसे दूर है तू लगता फिर भी पास है । बेकरार दिल …हुआ बे अख्तियार। आ जा एक बार .. तू सुनले पुकार ..।
मेरा मजहब मेरा ईमान मेरा सब कुछ तू । मेरा मकसद मेरा इनाम मेरा हूबहू तू। तू जो मिला मुझे मैं हुआ दीनदार। बेकरार …
लम्हा लम्हा बीत रहा है तेरे इंतजार में फांसला भी बढ़ रहा है तेरे तकरार में । प्यार में हो गई मेरी यह कैसी हार । बेकरार….।
Lyrics By : मनीभाई नवरत्न
तूने भुला दिया यार को कैसी हो दीवानी
तूने भुला दिया यार को कैसी हो दीवानी तूने भुला दिया यार को ,कैसी हो दीवानी ? कल जो अपना रहा ,आज हुई वह बेगानी । चांदनी …चांदनी ……बन जाओ मेरी रानी। छोड़ो मनमानी ।। एक सफर है, एक जहां है, एक ही रास्ता । तूने ही जो साथ छोड़ा तो मेरा क्या वास्ता ? क्या गुनाह रहा जो, कर रही हो बेईमानी ।। चांदनी…. चांदनी…. बन जाओ मेरी रानी । छोड़ो मनमानी ।।
कसमें लिए थे जो रब के सामने। ना तोड़ो उन कसमों को सबके सामने।। जानबूझकर बनती हो क्यों अनजानी? चांदनी …चांदनी ….बन जाओ मेरी रानी । छोड़ो मनमानी।। तूने भुला दिया…..
मनीभाई नवरत्न
ओ सजनी चली आ मेरे द्वार
मेघ ने गाई है मल्हार , सावन की आई है बहार।
रह ना जाये अधूरा मेरा प्यार, ओ सजनी, चली आ चली आ मेरे द्वार।
कोयल कूके , मन हिलोरे खाये जाये। बार बार राह निहारुं, अब तो आ जाये। खबर लूं तेरे, अब तो दरस दें एक बार। ओ सजनी, चली आ चली आ मेरे द्वार।
बसंत ने मारी पिचकारी, लगा प्रेम का रंग। चाल मेरी मतवाली हुई, पी गया कैसा भंग। छोड़ दूं मैं रीत जग की, तोड़ सारी दीवार। ओ सजनी, चली आ चली आ मेरे द्वार।
मनीभाई नवरत्न
ओ प्यारी ओ प्यारी
ओ प्यारी , ओ प्यारी जीत ली तुमने दिल हमारी । आ मिलकर प्यार करें हम देखते रह जाए दुनिया सारी। ओ प्यारी, ओ प्यारी ना मैंने किसी से चाहा था । ना तुमने किसी से प्यार की। मैं अभी तक कुंवारा हूं तू अभी तक है कुंवारी। ओ प्यारी, ओ प्यारी
चंदन जैसी खुश्बू ,पवित्र है गंगा जैसी तू । जिस गली से गुजरेगी वहां की हट जाए महामारी । ओ प्यारी, ओ प्यारी मैं तो अभी तक जवां हूं ,है तू सुंदर कलियों जैसी। मैं कितना मीठा हूं तू है कितनी खारी । आई एम सॉरी ओ प्यारी ओ प्यारी
मेरा दीवानापन कह रहा है
मेरा दीवानापन कह रहा है तुझे । ख्वाब सजा दे पलकों में मेरे ।
मेरी बस यही रजा कि तुझे हो रजा मेरा बसर पर तेरा असर आ रहा है । तेरा इश्क है बाअसर मुझे भा रहा है ।
आने लगी मुझे फिर से जीने का मजा । मेरी बस मैं यही रजा कि तुझे हो रजा।
मनीभाई नवरत्न
प्यार ही प्यार है
प्यार ही प्यार है ….. इस दिल में तेरे लिए । जानेमन मेरी जान है कुर्बान तेरे लिए । होश चुराया तुमने ही जानेमन चैन चुराया तुमने ही जानेमन आज खा के कसम कहते हैं दीवाने हुए तेरे सनम। फूलों की बहार है तेरे लिए। दुआएं हजार है तेरे लिए । प्यार ही प्यार है …. नफरत ना कर तू दिल में आग लगे । प्यासा हूं मैं मुझको तेरा प्यास लगे । प्यार में यूं तो अक्सर होता है जो ना प्यार करे उसका दिल रोता है। मेरे दिल की पुकार है तेरे लिए मेरा इंतजार है तेरे लिए। प्यार ही प्यार है….
इश्क तुझे मेरे साथ ऐसा ना करना था
चैन लिया, दर्द दिया यादों में आंखे भर दिया .
दो पल ही सही, संग मेरे चलना था । इश्क तुझे, मेरे साथ,ऐसा ना करना था।
अभी अभी तो, दोस्ती हुई थी खुलके मैंने ,बातें ना की थी बुझ गया दीया ,रोशनी से पहले उजाले मेरे , रातें ना थी धुआं धुआं ,मैं हुआ ,अधूरा ना जलना था।
इश्क तुझे मेरे साथ, ऐसा ना करना था।
तुमसे ही तो जीने की वजह मिली थी तुम ही नहीं तो जीना क्या? बुझती नहीं प्यास इन आंखो की, तुम ही नहीं तो ,पीना क्या? हाथ मेरा थामा क्यों ? जब सफ़र में छोड़ना था।
इश्क तुझे ,मेरे साथ, ऐसा ना करना था।
मुझसे नजरें ना मिला..
तूने मुझे दर्द दिया है। हां बड़ा बेरहम पिया है। चला आया , मुंह उठाके तुमसे मुझे शिकवा गिला मुझसे नजरें ना मिला…….)×4
देखें तेरे जैसे …आशिकों के रेले प्यार के बहाने… दिल से जो खेले हंसी तेरी फरेबी….नजरें भी शराबी चैन मेरा ले ले…..देके सौ मुश्किलें तुझे पता कैसे ना होगा, जानूँ मैं सब लीला… मुझसे नजरें ना मिला…….)×4
मनीभाई नवरत्न
मांगू तुझे रब से – हिंदी कविता
हर पल हर लम्हा मांगू तुझे रब से । तेरी अदा है नया लागे जुदा सबसे।।
मांगू तुझे रब से…. कभी तेरी नजर मुझसे मिल जाए। कभी तेरी डगर मुझ तक आए ।। इंतजार यही मुझको अब से…
मांगू तुझे रब से… बदन तेरे ऐसे जैसे कोई सितारा पहले ना देखी है तुझ सा नजारा ।। आई है तू परी बन के …
मांगू तुझे रब से… आजा पिया आजा और ना तरसा प्यार करता हूं तुझे काफी अरसा ।। मैं भी चाहूं तुम्हें दिल से …
मांगू तुझे रब से…
मेरा दीवानापन कह रहा है
मेरा दीवानापन कह रहा है तुझे । ख्वाब सजा दे पलकों में मेरे ।
मेरी बस यही रजा कि तुझे हो रजा मेरा बसर पर तेरा असर आ रहा है । तेरा इश्क है बाअसर मुझे भा रहा है ।
आने लगी मुझे फिर से जीने का मजा । मेरी बस मैं यही रजा कि तुझे हो रजा।
मनीभाई नवरत्न
मैं गलतियों पर गलती करता हूं
मैं गलतियों पर …गलती करता हूं । फिर चुपके से छुपकर ..आहें भरता हूं। ये क्या हो जाता मुझे समझ में ना आता मुझे ना जाने क्यों ….मैं ऐसा करता हूं ।
पहले अनजान था अपने गलतियों से । सबक सीखा मैंने ये …सिर्फ तुमसे । जब तुम उदास होती , कुछ भी ना भाता मुझे । तेरी बेरुखी बड़ा तड़पाता मुझे। मैं कैसे कह दूं… मैं तुमको डरता हूं ।
मेरी खामोशियों की जुबान समझो , कहता दिल मेरा, मुझे माफ कर दो मेरे सांसो में तुम ही तुम हो चाहो तो आजमा कर देख लो मुझे रहने दे पास तेरे..मैं तुमपे मरता हूं….
मनीभाई नवरत्न
मेरा प्यार है मेरा खुदा
मेरा प्यार है मेरा खुदा । पर ना जाने क्यूँ .. तू है खफा।। हरेक सांस तुम पे फिदा । बिन तुमसे ….अब क्या रखा? माना इश्क है जिंदगी … हर खुशी आगे इसके बेरंग सी इश्क़ ना रहे यहां तो, हर पल काटना लगे कोई जंग सी।
मैं ना यहाँ इश्क़ बिन रह सका ।
पर मैं तुम्हें ना कह सका । मेरा प्यार है मेरा खुदा पर ना जाने वो क्यों खफा हर एक सांस जिस पे फिदा पर ना जाने वो क्यों खफा बिन उसके मुझ में .अब क्या रखा
तुझमें बातें ऐसी कितनी खास है
तुझमें बातें ऐसी कितनी खास है , जो मेरे दिल के पास है ।। तुमसे ही सारी खुशी के आस है , जो मेरे दिल के पास है ।।
तुमको कैसे बताना, तुमको कैसे समझाना ? तू मेरी चाहत है ।। तेरी हंसी में मेरी खुशी है ,इस जिंदगी है, जिस पर तेरा इनायत है ।। तुझसे ही मेरे गम का नाश है । तुझमें बातें ऐसी खास है…..
आंखों की भाषा से कह दे सारी बात,जोड़ ले सारे नात। तेरे अदा पर मरने वाले, करले मुलाकात, तोड़ ना जज्बात ।। तुम ही हो दिल पर, हम हुए तेरे दास है ।। तुझ में बातें ऐसी खास है ….
एक मौका दे मुझको चाहत दिखा दूँ। प्यार होती है क्या सबको सीखा दूँ। लिख ले अपने लब्ज पर तुझको पता दूँ। मेरी हालत हो गई है क्या ?आ तुझे बता दूं । बिन तेरे कैसे दिल मेरा उदास है । तुझ पर बातें ऐसी कितनी खास है….
मनीभाई नवरत्न
मेरी जो अरमान है वह कम नहीं
मेरी जो अरमान है वह कम नहीं मेरे जो अरमान ,पूरे ना हो तो गम नहीं ।। मेरे अरमान खुशियां दिलाएंगी, यह मुझे ना सताएगी। कभी तो बुलाएगी मुझे ,इसमें कोई उलझन नहीं । हमें बढ़ाना है रोज एक कदम , कभी ना पीछे हटेंगे हम ।। कोई आफत आ जाए फिर भी ना झुकेगे हम । जब मन में है दम ,कोई शरम नहीं ।। कड़ी कड़ी जुड़ने से बनती है, कोई चीज बड़ी । समझ ले जो इस पहेली को, सुंदर चीज उसी ने गढ़ी। तुम चीज बनाओ जमाने को दिखाओ। दिखाने में कोई बंधन नहीं । मंजिल पाने तक ना रहे कोई चैन से ख्वाब टूटे अगर कुछ गिरे नैन से । क्या ऐसा सफर अच्छा है? जिसमें रहो तुम बेचैन से । यह बचपन है कोई यौवन नहीं।। मेरे जो अरमान है ……
मनीभाई नवरत्न
तुम एक अनार हम सौ बीमार
तुम एक अनार ,हम सौ बीमार । किसको चाहोगी यार किसको दोगी प्यार ।। हम एक थैली के चट्टे बट्टे । कुछ कुछ मीठें कुछ है खट्टे । एक एक की रग जान लो, फिर करना इकरार ।। यूं तो एक और एक ग्यारह होते हैं , पर इस बात से सब किनारा होते हैं। कौन होगा सहारा ,करोगी किसको किनारा , इसका है इंतजार।। हां एक हाथ से ताली नहीं बजती, पर एक म्यान में दो तलवार नहीं रहती। सबको एक आंख से देखूँ मगर सबको करूं तकरार ।। मैं एक अनार तुम सौ बीमार । सबको करूं बेकरार सबको करूँ इनकार।।
यहाँ पर मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न की 50 कवितायेँ एक साथ दिए जा रहे हैं आपको कौन सी कविता अच्छी लगी हो ,कमेंट कर जरुर बताएँगे.
कविता 1 क्यों टोकाटाँकी करते हैं ?
बच्चे अपने मन से जब जब कुछ नया करते है। असफलता भय से, बुजुर्ग उन्हे, क्यों ? टोकाटाँकी करते हैं। जिस राह पर स्वयं चला था वही राह दिखलाते हैं असफलता भय से, बुजुर्ग उन्हे, क्यों ? टोकाटाँकी करते हैं। ऐसा हुआ तो कोई अन्वेषण सम्भव न हो पायेगा किंतु घर के बड़े बुजुर्ग प्रोत्साहित कहाँ कर पाते हैं असफलता भय से, बुजुर्ग उन्हे, क्यों ? टोकाटाँकी करते हैं। नव मस्तिष्क का रोपण पोषण संरक्षण अक्सर ही नहीं कर पाते हैं असफलता भय से, बुजुर्ग उन्हे, क्यों ? टोकाटाँकी करते हैं। उन्हें करने दो स्वअनुरूप ही प्रयोग भी होता है स्कूली ज्ञान स्वरूप ही व्यर्थ डांटना नहीं चाहिए बच्चे भी डरते हैं असफलता भय से, बुजुर्ग उन्हे, क्यों ? टोकाटाँकी करते हैं। दिशा उन्हे ही तय करने दो अनुभव का सागर ये जहाँ पतवार भी उनके हाथ मे दे दो देखो बस क्या करते हैं असफलता भय से, बुजुर्ग उन्हे, क्यों ? टोकाटाँकी करते हैं। हम बड़े भी तो बच्चे हैं, प्रकृति हमारी माँ । जो सीखाने को आतुर ,कृत्रिमता से परे होके। पर हम सीख न पाये शीघ्र, नौनिहालों जैसे, चूंकि हम हो चुके हैं ,ज्यादा अप्राकृतिक ।
✒ मनीभाई’नवरत्न’
कविता 2 मैं सत्य मान बैठा
मैं सत्य मान बैठा प्रकाश को , पर वह तो रवि से है। जैसे काव्य की हर पंक्तियां कवि से है । धारा, किनारा कुछ नहीं होता । नदी के बिन। नदी का भी कहां अस्तित्व है? जल के बिन। प्राण है तो तन है । ठीक वैसे ही, तन है तो प्राण है । भूखंड है तो विचरते जीव। वायु है तो उड़ते नभचर । मानव है तो धर्म है । वरना कैसे पनपती जातियां , भाषाएं ,रीति-रिवाजें, खोखली परंपराएं । रात है तो दिन है । सुख का अहसास गम से है । मूल क्या है ? खुलती नहीं क्यों ? रहस्यमयी पर्दा। असहाय,बेबस दे देते ईश्वर का रूप। कुछ जिद्दी ऐसे भी हैं जो थके नहीं ? तर्क- वितर्क चिंतन से। खोज रहे हैं राहें , अंधेरी गलियों में सहज व सरल । कुछ खोते ,कुछ पाते। विकास की नींव जमाते। फिर भी सत्य अभी दूर है । जाने कब सफर खत्म हो और मिल जाए हमें, सत्य रूपी ईश्वर.. ईश्वर रूपी सत्य… ✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 3 कोई साल..आख़िरी नहीं होता
कोई दिन , कोई महीना, या कोई साल.. आख़िरी नहीं होता। जब हमारी आँखें खुलतीं.. नींद के गहरे सन्नाटों से कोई बांग-सा बिगुल बजाता जिसके ज्ञान तरंगों से खुल जाते हमारे मनोमस्तिष्क के पर्दे.. जैसे किसी निर्जीव ताल में लुढ़क जाता हो कोई पत्थर और चोट पाकर वह हो जाता हो सजीव ! तब होती जीने की शुरुआत एक उत्सव की भांति । चाहे कोई दिन कोई महीना या कोई साल ।
✒️ मनीभाई’नवरत्न’
कविता 4 भारती के माथे में बिंदी – हिन्दी
मां भारती के माथे में , जो सजती है बिंदी। वो ना हिमाद्रि की श्वेत रश्मियां , ना हिंद सिन्धु की लहरें , ना विंध्य के सघन वन, ना उत्तर का मैदान। है वो अनायास, मुख से विवरित हिन्दी।
जननी को समर्पित प्रथम शब्द ‘मां’ हिन्दी । सरल ,सहज ,सुबोध , मिश्री घुलित हर वर्ण में । सुग्राह्य, सुपाच्य हिंदी मधु घोले श्रोता कर्ण में । हमारा स्वाभिमान ,भारत की शान । सूर तुलसी कबीर खुसरो की जुबान। मिली जिससे स्वतंत्रता की महक। विश्वभाषा का दर्जा दूर अब तलक । चलो हिंदी को दिलाएं उसका सम्मान। मानक हिंदी सीखें , चलायें अभियान।। (✒मनीभाई ‘नवरत्न’ )
कविता 5 उठ जा तू पगले क्यों लेटा है ?
पत्थर में तू पारस है । तुझमें वीरता,साहस है । फिर क्यों मन को मारे बैठा है , उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है?
देख रात अभी गहराई नहीं। है चहलपहल तहनाई नहीं । फिर क्यों भय से ,खुद को समेटा है । उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है ?
मत खो अपने अभिमान को। दांव पर ना लगा सम्मान को । भारत मां का तू स्वाभिमानी बेटा है । उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है ?
अभी सांसो की रफ्तार थमी नहीं लहु की धार नब्ज़ में जमी नहीं । फिर क्यों चुप है , किस बात पर ऐंठा है ? उड़ जा तू पगले !क्यों लेटा है?
✒️ मनीभाई’नवरत्न’
कविता 6 समता बिन मानवता
यह सोच हैरान हूं कि इंसान है सबसे बेहतर । हां मैं परेशान हूं, इंसान मानता खुद को श्रेष्ठतर। क्या सचमुच में हम महान हैं? या फिर निज दशा से अनजान हैं। अन्य प्राणियों में नहीं है धर्म,जाति देश काल की भेदभाव। अन्य प्राणियों में कहां है ? रंग-रुप भाषाई अनुरूप बर्ताव । हम इंसानों की उपज है अमीरी गरीबी की रेखा । क्या सृष्टि में हम सा कोई अजब प्राणी देखा । निंदनीय है संपन्न वर्ग जिसके नजरों में भुखमरी,गरीबी है । चिंतनीय है यह मुद्दा जिसके पलड़ेे में लाचारी, बदनसीबी है । ये कैसी व्यवस्था बनाया हमने गुलामी का भयंकर रूप है । भाग्य में किसी का आजीवन छांव तो किसी दामन में तपती धूप है । समता बिन मानवता , मृग मरीचिका तुल्य है । कहीं हो ना जाए जीवन संघर्ष आखिर सबके लिए जीवन बहुमूल्य है।
✒️मनीभाई ‘नवरत्न’छत्तीसगढ़
कविता 7 साल नया आ गया
नई प्रभात की नई किरण । नई खुशबू भरा नई पवन । नई उल्लास से नया जीवन । नई उमंग भरा नई यौवन ।
सब लागे नया नया । हाँ!साल नया आ गया । नई ठौर पर नई निगाह । नया जोश संग नई उत्साह।
नया होश लेके नई चाह । नई मंजिल के लिए नई राह। सब कुछ लागे नया नया । हाँ! साल नया आ गया ।
नई मोड़ से नई दिशा । नई कदम और नई आशा। नया दिन और नई निशा। नया जाम में नया नशा ।
सब कुछ लागे नया नया । हाँ! साल नया आ गया।
मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़,
कविता 8 जहां भी जाऊंगा छा ही जाऊंगा
जहां भी जाऊंगा ,छा ही जाऊंगा बादल की तरह ,आंचल की तरह। जहां भी जाऊंगा, वहां सजाऊंगा गुलशन की तरह, दुल्हन की तरह ।।
राहों के पड़े कचरे , डस्टबीन में । हरियाली बिखेरेंगे इस जमीन में। जरूरतमंद की करूँ मैं सहायता । सिवा इसके, मैं कुछ ना चाहता ।
जहां भी जाऊंगा खुशियां लाऊंगा बहार की तरह , प्यार की तरह।।
छोटे छोटे बच्चे , जो पढ़ ना सके । गरीबी हालत में,आगे बढ़ ना सके । उन सबको बुलाके,मैं कक्षा लगाऊँ । मेहनत सिखाके,जिन्हें पास कराऊँ।
जहां भी जाऊंगा ,सबको हंसाऊँगा । जोकर की तरह , लाफ्टर की तरह।
सूखे सूखे बीज, मिट्टी में डाल के। भोजन उन्हें दूँ ,पानी व खाद के । बढ़े वो मुझसे आगे बनकर के पेड़, रोटी कपड़ा और मकान देते हैं पेड़।
जहां भी जाऊंगा धाक जमाऊँगा चहेता की तरह, फरिश्ता की तरह।।
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
कविता 9 रोटी की तलाश- मनीभाई नवरत्न
मुझे उस रोटी की तलाश है , जिसे अभी-अभी अमीर के कुत्ते ने खाना छोड़ दिया था। पर लगता है डर यह जानकर कि कहीं अमीर दुत्कार ना दे , कि मैंने छीन लिया निवाला उसके वफादार के मुख का ।।
अंधेरे गुमनाम गलियों में भटकता कूड़े कचरे में बांचता अपनी जिंदगी । मुझे ख्वाहिश नहीं कि बांध लूं सपनों की गठरी । मेरी भूख ही मेरा अस्तित्व । हां !मैं कुपोषित हूं । पर मुझे परवाह नहीं। ना मैं किसी घर का चिराग। ना आंखों का तारा । ना ही किसी अंधे की लाठी ।
हां ! मैं वही असंस्कारी हूं । जिसके मां ने फेंक दिया, नोंचकर अपने तन से , अपने संस्कार की दुहाई देकर । और सभ्य समाज में मिल गई मुझे जिन्दगी भर की तन्हाई देकर ।
सच मानो तो मेरा तन एक सजीव लाश है । एक जिद है उसमें जान भरने की इसलिए तो मुझे उस रोटी की तलाश है जिसे अभी-अभी अमीर के कुत्ते ने खाना छोड़ दिया था।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 10 सच की राहें- मनीभाई नवरत्न
यह किसने कह दिया कि सच की राहें मुश्किल है ? जबकि झूठ और फरेब से कुछ भी नहीं हासिल है ।
बहक जाते ,कुछ पल के लिए पाने को चंद खुशियां । यही चुभे फिर ,पूरे सफर तक जैसे पांवों में पड़े बेड़ियां । तिल-तिल मारे, सारी रात जगाए, हर सांस बने ,मानो कातिल है । यह किसने कह दिया कि सच की राहें मुश्किल है ?
एक झूठ बचाने को बनाया सौ झूठ की कहानी। विश्वास खोया जग का फिर आंखों से उतरे पानी । ठहर जरा और सोच बेख़बर तेरे कदम जाते किस मंजिल है ? यह किसने कह दिया कि सच की राहें मुश्किल है ?
सच्चाई में सुख है , और मिले सहज शांति । फरेबी में पल-पल खतरा और पग-पग में है भ्रांति । नजर उठा ,कर सच का सामना तेरा दिल भी सच के काबिल है । यह किसने कह दिया कि सच की राहें मुश्किल है ?
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 11 ऐसा मेरा गणतंत्र है-मनीभाई ‘नवरत्न’
इंसानों को मानवता सिखाएं ऐसा मेरा गणतंत्र है । लोगों को मिलकर रहना सिखाए ऐसा मेरा गणतंत्र है ।
सब अपने सपने पूरे कर सकें । हर कोई अधिकारों को पा सकें। हर डगर पर हर शहर पर हर नर नारी स्वतंत्र है। आगे बढ़ने का हौसला बढ़ाएं ऐसा मेरा गणतंत्र है ।
दासता से हमें मुक्ति मिली है । सत्यमेव जयते की सुक्ति खिली है। यही अपना कर्म रहे यही अपना मंत्र है । सबको एक लक्ष्य दिखाएं ऐसा मेरा गणतंत्र है।
-मनीभाई ‘नवरत्न’
कविता 12 झांसी की रानी-मनीभाई नवरत्न
वाराणसी में जन्मी झांसी की रानी । आओ सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।। मनु, मणिकर्णिका और वो छबीली। मोरोपन्त भागीरथी की गोद में पली। शौक जिसका तीरंदाजी घुड़सवारी । आओ सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।।
नाना साहब के साथ जो पली बढ़ी। पुरुषों को भी चित कर दे ऐसे लड़ी। देख जिसे सबको होती थी हैरानी । आओ सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।। सात वर्ष में कर दी गई मनु की शादी। गंगाधर राव की बन गई जीवनसाथी। हाय रे नियति ! क्यों विधवा हुई रानी । आओ सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।।
अंग्रेज समझे लावारिस हुई ये झांसी। दामोदर को पाके,पर अड़ी हुई झांसी। अंग्रेजी मनसूबे को, फेर दी जो रानी। आओ ,सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।। सिंहनी लक्ष्मीबाई क्रोध से गरज उठी । “मैं नहीं दूँगी अपनी झाँसी” कह उठी। विद्रोह कराके अंग्रेजों ने की मनमानी। आओ ,सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।।
सदाशिव को परास्त किया करोरा में। नत्थे खां को ,तारे दिखा दिये दिन में। फिरंगियों से लड़ने को जो थी ठानी। आओ ,सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।। अब आगे जनरल ह्यू रोज की बारी । सर कफ़न सजाके ,रानी की तैयारी। पीठ पे बंधा दामोदर, भिड़ गई रानी। आओ ,सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।।
जब झांसी की बागडोर,तात्या संभाले। रानी युद्ध को कालपी से ग्वालियर चले। जून अन्ठावन को वीरगति हुई रानी। आओ ,सुनाऊं तुम्हें उसकी कहानी।। लक्ष्मीबाई है महान, तोड़ दिया मिथ्या। स्त्री होती नहीं अबला, सबको बताया। वो वीरांगना-साहसी , साक्षात् भवानी। आओ ,सुनायें सबको उसकी कहानी।।
मनीभाई”नवरत्न”, बसना, महासमुंद,छग
कविता 13 खुजली- मनीभाई नवरत्न
(1)
मैं खोजता हूं कहां है मुझे खुजली ? मैं खुजाता रहता हूं । कभी हाथ पैर, तो कभी सिर। इसका मतलब यह कतई नहीं कि मुझे खुजली है या नहीं । पर जब जब बैठता हूं निठल्ले भाव से। मैं खुजाता रहता हूं खोजता रहता हूं कहां है मुझे खुजली? हां! मुझे पता है खुजाना ही खुजली का निदान है। तभी तो अनवरत जारी है मेरे प्रयोग । लेकिन मैं अब भी अनजान न जान पाया मेरे खुजली का स्थान। है इसलिए अब भी बाकी मेरी तकलीफ, मेरी खुजली।
(2)
अब मैं संभल गया हूं खुजली से पहले । खोजता हूं कहां है खुजली? क्यों है खुजली ? जानने लगा हूं खुजाना ही नहीं एकमात्र निदान । कई बार बिना समझे कर जाना उपाय समाधान के बजाय बन जाती है नई समस्या । जो धारण कर लेती है अपना विकराल रूप। अब ठहरता हूं जाया नहीं करता प्रयास। सही स्थान पर हमारी एक खरोच ही काफी है खुजली को छूमंतर करने के लिए।।
–मनीभाई नवरत्न
कविता 14 प्रेम और सच्चाई -मनीभाई नवरत्न
मैं तुमसे दूर हूं तो मतलब नहीं कि तुमसे दूर हूं। है अब भी मेरे जेहन में उतना ही प्रेम जितना कि हुई थी जिस दिन तुमसे प्रेम ।
मैं तारीफ भी तेरी उतना ही करूंगा। जितना तुम लायक हो । तुमसे नहीं करूंगा वो वायदा जो मुझसे हो ना सके।
जितना तुम उठोगे संग संग तेरे मैं भी उठूंगा । या विपरीत इसके मैं जितना उठ पाऊं अपने शिखर पर चाहूंगा तुम भी रहो मेरे पास ।
तुम चाहती होगी दुनिया भर की दौलतें शोहरतें, ऐशोआराम बताऊंगा तुम्हें कुछ भी नहीं इनमें मेरी दुनिया बस तुम हो । तुम जिद करोगी , बदलना चाहोगी मुझे शायद । अपने खातिर। मैं छोड़ूंगा नहीं सच्चाई अडिग रहूंगा हम दोनों के खातिर ।
तुम भुलाना चाहोगी मुझे तुम्हें पसंद होगी तुम्हारे अपने मैं कैसे भुला दूं तुम्हें जो मुझमें है वह तुझ में है मेरा अपना तुम जितना भागोगी मुझसे मेरे करीब उतना ही होगी।
🖍️ मनीभाई नवरत्न
कविता 15 अब तू ये जान ले
जीवन डोरी थाम ले, थोड़ी घूम घाम ले । आराम पाना हो तो तन से अपने काम ले. आएगा ना ये पल , अब तू ये जान ले ।
तू ना रुका कर राह में , कभी ना झुक निगाह में । संतों की नीति अपना तू बरकत जिनकी सलाह में । मुट्ठी में है तेरी किस्मत , अब तू ये जान ले ।
वो जो दिखा रहा , सब कुछ है दिखावा। तेरी काबिलियत को, समझ ना कोई छलावा । तेरा रंग है सबसे गहरा, अब तू ये जान ले।
धीमी तेरी रफ्तार है, नजरें तेरी उस पार है धीरे धीरे ही बढ़ आगे । देर से ही नसीब जागे। दिशा ही सच्ची सफलता अब तू ये जान ले।
जी भर जी ले तू पछताना ना पड़े । अगली बार के लिए तुझे आना ना पड़े। एक जीवन एक मौका अब तू ये जान ले।
मनीभाई नवरत्न
कविता 16 आज़ादी और बंधन
मैं खोज रहा आजादी जो मिला है मुझे उपहारस्वरूप जन्म से। फिर कहाँ तलाशता चारों ओर ? भटकता उसके लिए।
अरे! यही मानवीय दशा कि होता जो पास में रहता नहीं मूल्य उसका । क्या ऊँचे कद आदमी के लिए आसान होता देख पाना अपने पैरों तले जमीन जिस पर वह टिका है।
तार्किक वन में छलांग लगाता बैचेन मृग कस्तूरी पाने को नाहक। फिरता समझदार बन , खास होने की नशा में। जो आम है वो भी असल चीज “आजादी” छोड़ खास होने की रंग में रंगने के लिए कतार बद्ध खड़े हैं। क्या संभव है? राजसी ठाट बाट में जिसे वह खोजना चाहता ।
मैं होना चाहता सच्चा सामाजिक बन देश सिपाही पहचान चाहता हूँ भीड़ में। चिंता मुझे अपने व्यक्तित्व का। एक रस हो जाना चाहता हूँ दुनिया पिंजर में ।
क्या भला ! पक्षी भर सकता उड़ान बंद पिंजरों में।
सत्य अमर है, उसमें बनावट नहीं सादा स्पष्ट और सरल। वैसे ही जैसे आजाद होना । दुनिया के सारे कर्म , बंधन के हैं। जिसने माना इसे , असल जीवन आनंद के। वह फंसता गया कारागार में।
यहाँ सुख है उतना ही , जितना दुख है। यहाँ भोजन भी है, चूँकि जिह्वा में स्वाद है और पेट में भूख भी।
आसान नहीं , छप्पन भोग के सामने उपवास का विचार । गर ऐसा कर सके तो मिल सकती है आजादी।
मैं झूलता ही पाया अपने को पेंडुलम की भांति आजादी और बंधन के बीच। मैं रहना चाहता हूँ , अपनों के संग। पर घुल नहीं पाता। तली में बैठ जाता हूँ अवक्षेप भांति I यही मेरी मौलिक प्रवृत्ति जो मिला है मुझे उपहार में I मूलतः मैं आजाद हूँ। बंधक तब-तब बन जाता हूँ जब मैं खोजना चाहता इसे अपनों के बीच।
मनीभाई नवरत्न
कविता 17 चल लिख कवि ऐसी बानी
चल लिख कवि , ऐसी बानी । नहीं दूजा कोई, तुझसा सानी । चल प्रखर कर, अपनी कटार । गर मरुस्थल में लाना है बहार। अब देश मांगता, तेरी कुर्बानी । चल लिख कवि , ऐसी बानी । ईश का गुणगान छोड़ , मत बन मसखरा । जन को सच्चाई बता,मत बन अंधा बहरा। देश का है लाल तू,माटी की बचा ले लाज। दरबारी कवि नहीं,खोल दे पापी का राज़। मनोभाव भरे जिसने,कर उसपे मेहरबानी। चल लिख कवि ,ऐसी बानी । जब बिक चुका मीडिया,कौड़ी के भाव में । जिम्मेदारी बढ़ी है तेरी , आ जाओ ताव में । छेड़ अभियान चल , जन जागृति पैदा कर। अन्याय आगे ईमान का,कभी ना सौदा कर। समाज को नेक राह दिखा,करके अगवानी। चल लिख कवि ,ऐसी बानी।
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
कविता 18 उसे होश नहीं
उसे होश नहीं किसके नाम की कागज के टुकड़े में कैद है तबाही मचा रखी है कारोबार के क्षेत्र में । जाने कितने भाइयों के संबंध तोड़े हैं इसे याद नहीं । लेकिन इसकी किसी से बैरता नहीं । नदियां बहती है इसे रौंदते हुए । मानव पलता है इसे खोदते हुए । यह खजाना है रत्नों का खनिजों का पानी का । हमको खाना खिलाती पानी पिलाती बिना भेदभाव किये। मां से बड़ी ममतामयी है । तभी तो आज लड़ पड़े हैं इसे अपना बनाने के खातिर पर उसे होश नहीं है….
मनीभाई नवरत्न
कविता 19 मुझे आंचल में पलने दे
मम्मी तेरी सखी बनूंगी मुझे आंचल में पलने दे, साया बन तेरे साथ रहूंगी…. हाथ पकड़ के चलने दे। मुझे आंचल में पलने दे।
होके बड़ी मैं तेरी , मान बढ़ाऊंगी, संग संग काम करके, हाथ बटाऊँगी। बोझ नहीं मैं , माँ तेरी , मुझे भी, कल का सूरज देखने दे, साया बन तेरे साथ रहूंगी. हाथ पकड़ के चलने दे। मुझे आंचल में पलने दे।
मौत ना दे मुझे, हाथ ना रंग खून से मेरा ये जीवन ,ये तन, तेरे ही खून से. मैं बनूंगी , तेरी सपना. मुझे तेरी कोख से, जमी पर उतरने दे. साया बन तेरे साथ रहूंगी. हाथ पकड़ के चलने दे। मुझे आंचल में पलने दे।
कल्पना बन जग में, नाम बनाऊँगी. सानिया बन जग में , तिरंगा लहराऊंगी। माँ तू भी बेटी नानी की जिंदगी मुझे भी, गढ़ने दे।। साया बन तेरे साथ रहूंगी. हाथ पकड़ के चलने दे। मुझे आंचल में पलने दे।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 20 भोलू की दिवाली
जगमग जगमग करे दीवाली, पर भोलू के मन में है सवाली। “किसी की कोठी भरी हुई है, तो किसी की झोली है खाली।”
“दीये की कुप्पी में तेल भरी है, अरे!आधी नहीं बहुत गहरी है पूरा गाँव लगती रोशन-रोशन अब रंग ढंग बिल्कुल शहरी है। “
पड़ोसी का घर महक रहा है। बच्चों का झुंड चहक रहा है। पर भोलू को है किसकी चिंता? ओहो! भुख से वो बहक रहा है।
भाग रहा है भोलू , डर के मारे। तंग करते हैं उसको ,बच्चे सारे। पटाखों से वो ,डरता है बेचारा दूर से देखे, दीवाली के नजारे।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 21 कोलाहल में जिन्दगी
प्रार्थना मन से , अजान दिल से की जाये तो सारी मन्नतें पूरी हो जाती है। तो फिर रब का घर दूर है क्या ? जो लाउडस्पीकर से पुकारी जाती है।
विवाह तो दो दिलों का मेल हैं जिसमें , विदाई की मधुर शहनाई बजाई जाती है । आजकल तो डीजे में एल्कोहालिक शोर में दुल्हे के संग दुल्हन को नचाई जाती है।
जीत का उत्सव हर्षोल्लास मनाना हो तो एक दूजे को गले मिल, बधाई दी जाती है। कान के पर्दे फाड़ू आतिशबाजी करके क्यूँ कोलाहल में ध्वनि प्रदूषण की जाती है ।
माना सरकार के शोर नियंत्रण कानून हैं सार्वजनिक स्थलों में मनाही की जाती है । पर हम महामानव को अपने हित की बातें जल्दी समझ में कब और कहाँ आती है ?
शोर शराबे से मानव स्वास्थ्य बिगड़ता तनाव और चिड़चिड़ेपन का होता शिकार है । अब हर पल कोलाहल में जिन्दगी बीते तो समझो ,ऐसे जीवन को जीना बेकार है ।
क्यूँ हम निजी स्वार्थ के वशीभूत होके दूसरों की शांति छीनने को बेकरार हैं । अब वो समय है आ गया कि चिन्तन करें जब ध्वनि, श्रवण क्षमता के सीमा पार है।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 22 कागज की कश्ती
कागज की कश्ती, सदा नहीं ठहरती। कभी ना कभी तो यह डूब के रहती। कागज की कश्ती….
यह सागर कितना गहरा है. उस पर तूफानों का पहरा है . इनके लहरों में कितनी हलचल है. डूबने का खतरा पल पल है . यह जीवन भी है वही कश्ती . समझ ले अपनी हस्ती ।।
कहने को तो ये जहां हरा भरा है। पर यह तो दुखों से भरा है । चारों तरफ कोहराम मचा है दुनिया वाले ने क्या अजब रचा है ? है यह दुनिया भी है वही कश्ती समझ ले अपनी हस्ती ।।
रिश्ते तो प्यार का बंधन है । पर निभाता कोई नहीं उलझन है। यहां तो अपने भी गैर हैं प्यार का दिखावा अंतर्भाव बैर है । यह रिश्ते भी हैं वही कश्ती । समझ ले अपनी हस्ती ।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 23 जिंदगी की घड़ी
चाहे हो खुशियों की लड़ी। हो चाहे दुखों की घड़ी । चलती रहती है जिंदगी की घड़ी ।
तू ना थम जाना होके बेकरार हर पल मुस्कुराना हो चाहे दिल के आर पार। रहना अडिग राह पर तेरे मुश्किल हो चाहे आन पड़ी ।
आज तेरे चेहरे हो खिले । कल हो सकते हैं फीके । हर बात पर ले तजुर्बा मीठे हो सकते हैं हर तीखे। सोचे तो किस बात पर हो कर खड़ी।।
अधिक भरोसा हो तुझे खुद पर बाकी भरोसे के लायक नहीं । मन की संतोष है बड़ी सुख बाकी कोई सुखदायक नहीं। रखना अपना होश सदा चाहे हो जोश चढ़ी ।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 24 पापा मैं तेरी, प्यारी सी गुड़िया
पापा मैं तेरी, प्यारी सी गुड़िया मन की भोली हूँ,जादू की पुड़िया देख लेना मैं उड़ जाऊंगी एक दिन फुर्र से आसमान में बनके चिड़िया. पापा मैं तेरी, प्यारी सी गुड़िया
बड़ी फिक्र है तुम्हें मेरी, कसम से. ढूंढते हैं मुझे तेरे नैना. कहते नहीं हो अपने मुख से , पर सोचते हो ये हर पल रैना…. हूँ आपकी मैं जिन्दगी, और ये दुनिया. पापा मैं तेरी, प्यारी सी गुड़िया.
सुबह उठाते हो मुझे हर रोज. नहलाते खाना खिलाते हो रोज।। स्कूल से आती मैं करते मौज, देखती हूँ आप कमाते हो रोज।। तेरे पसीने से खिलूंगी , मैं फूल बन बगिया।। पापा मैं तेरी, प्यारी सी गुड़िया
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 25 खोया बचपन
याद करती है मेरी धड़कन । लौटा दे कोई मेरा खोया बचपन। सुहाता नहीं मुझे अबका जीवन। लौटा दे मेरा कोई खोया बचपन । तितली भौरों से थी दोस्ती । पानी में चलती कागज की कश्ती । घूमा करते थे बस्ती-बस्ती । झुंड झुंड में होती धींगामस्ती। गांव मेरा लगता था मधुबन। लौटा दे कोई मेरा खोया बचपन ।
खेलों में होती सुधि ना भूख की । मां को सताया शैतानी भी खूब की । जाने ना थे बातें सुख दुख की । चिंता ना थी अपने वजूद की । अपने हाथों से लगाये पांव में बंधन । लौटा दे कोई मेरा खोया बचपन ।
पहले जैसे सोचना अब मैंने छोड़ दिया । बुना हुआ सपना अपने हाथों से तोड़ दिया। हकीकत की दुनिया में अपना नाम जोड़ लिया। पहचान मेरी ना हो तो काला कपड़ा ओढ़ लिया। बनके कोई मसीहा मुझे दिखलाये दर्पण। लौटा दे कोई मेरा खोया बचपन।
मनीभाई नवरत्न
कविता 26 बचकर चलो हर जगह शहर है
देखता तुझे कोई किसी की नजर है। बच कर चलो हर जगह शहर है ।
तुम खुद को तन्हा समझो, पर कोई ना अजनबी। दो पल में रिश्ते बनते हैं , जुड़ जाते जिनसे जिंदगी। अभी आई खुशियों का लहर , अभी गुजरा ग़मों का भंवर है । बचकर चलो हर जगह शहर है ।
सारी तकलीफें सारी कसक दिल में थामें फिरता है। दूसरों को उठाने के बहाने खुद सड़क में गिरता है । यहां चाल पर चाल चले हैं चालबाजों का बवंडर है । बचकर चलो हर जगह शहर है ।
अभी जन्मा और अभी तारे छूने की बात करते हैं । सारी सुधि छोड़कर अपनी धुन में रहते हैं । यहां महत्वाकांक्षियों के समंदर है । बचकर चलो हर जगह शहर है ।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 27 क्या करना चाहिए ?
जब जुबा पे आती मोहब्बत-ए-वतन का ख्याल । दिल बेकरार हो जाती और फरमाती क्या करना चाहिए? ना बनी है अपनी कोई शान। ना देने को दान । ना चलती है अपनी पैनी जुबान । फिर कोई कैसे ऐतबार करेगा कि बंदा हाजिर है वतन के लिए । पर करनी तो पड़ेगी पहल । आज नहीं तो कल। तो रखा पहले शरीर का ध्यान । क्योंकि जान है तो जहान । फिर किया लोगों का सम्मान । इनसे होती सुरक्षा का भान। फिर बढ़ाई मैंने पुस्तकीय ज्ञान। जिसे प्रकट हुआ मेरा स्वाभिमान । फिर छेड़ दी मैंने अन्याय के खिलाफ अभियान। और अभी संघर्ष जारी है । पूरे नहीं हुए काम। मगर मन में सुविधा नहीं है कि क्या करना चाहिए?
कविता 28 किस्तों की जिंदगी
किस्तों की जिंदगी एक -एक किस्तों में बीत जाएगी। रिश्तो की दुनिया आखिर कब तक रिश्तो में बंध पाएगी।
हम चलते हैं निहारते अपनी छाप। रेत के समंदर में जो नहीं रह पायेगी।। हम छुपाते हैं सबसे अपनी कमाई को बटुए का धन बटुए में ही रह जाएगी ।।
हम कहते हैं अब तो मौज लेते हुए जीना । नहीं पता मौजों के लिए , क्या दुनिया में रह जाएगी?
कविता 29 समय प्रबंधन
हर लम्हाँ कुछ कहता है , पर शायद कोई सुन पाए । जो न सुन पाता इसकी बोली, ढूंढता रहता उसे हर लम्हाँ ।।
जिसने जाना समय की कीमत समय ने उसे कीमती बना दिया समय के दायरे में रहकर जो पला रहा ना कभी वो, जीवन में तन्हा।।
वैसे हर कोई पैदा हुआ है समय की गिनती लेकर । और उल्टी गिनती शुरु है यह बताती घड़ी की सुइयां ।। समय कैसे देती है घाव? पुछे मरणासन्न व्यक्ति को बता देगा हर पल की घात। खोई हुई पल की कहानियां ।।
यह समय ही तो है जो राजा को रंक बना दे। पतित को शिखर पहुंचा दे। बिना एक पल भी देर किए। गर समय पर सवार होना हो और मनमाफिक काम लेना हो तो एक ही राह नजर आती है वो है “समय प्रबंधन”।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 30 वो बेबाक कवि है
कभी कल्पना की पर लगाये। कभी भटके को डगर दिखाये। कभी करें हंसी ठिठोली , कभी करें क्रांति की बोली। वह कोई नहीं समाज का उगता रवि है । हां ! वो बेबाक कवि है ।।
चारण बन, राजा का गुणगान किया। आत्मविश्वास भर, चरित बखान किया । भक्तिधारा बहा के, मानव मूल्य संजोया। काव्य श्रृंगार करके प्रेम बीज बोया। रंजन किया जग का, मन में जिसकी छवि है । हां ! वो बेबाक कवि है ।।
खादी-कुर्ता,कलम दवात, कांधे में झोली । साहित्य सृजनकर्ता वो, किताब हमजोली। गुदगुदाया जी भर के, कभी संग हमारे रो ली । कुरीति दूर करने को , सहे ताने की गोली । जिसकी रचना कोई खोज , हर पुरातन से नवी है । हां ! वो बेबाक कवि है ।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 31 अनमोल है बेटियां
चहकती हैं , महकती हैं, बनके मुनिया। तेरी खूबसूरती से ,खूबसूरत है दुनिया। रंगीन कर दे समां को , ये फुलझड़ियां। अनमोल है बेटियां, अनमोल है बेटियां।।
चाहे ये समाज , लगा दें जितनी बेड़ियां। पर आगे बढ़ निकलेंगी, हमारी बेटियां । तू अभिमान है , मेरे देश की सम्मान है। तेरी हंसी से झरती हैं मोती की लड़ियां। अनमोल है बेटियां, अनमोल है बेटियां।।
बेटी में समझ है , है दया-प्रेम-विश्वास। बेटी के अपमान से ,है जग का विनाश। सबको एकता सूत्र में,बाँधकर रखती ये इनसे जुड़ती हैं , हर रिश्तों की कड़ियां। अनमोल है बेटियां, अनमोल है बेटियां।।
माता-पिता के खुशी का,तुझे अहसास । और हर कष्टों में ,माता-पिता के साथ । धूप लगे तो, बनती छाया जिनके लिये । आखिर क्यों ?हो जाती विदाई,बेटियां । अनमोल है बेटियां, अनमोल है बेटियां।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 32 कृषक मेरा भगवान
मैंने अब तक जब से भगवान के बारे में सुना । न उसे देखा,न जाना , लेकिन क्यों मुझे लगता है कि कहीं वो किसान तो नहीं।।
उस ईश्वर के पसीने से बीज बने पौधे, पोषित हुये लाखों जीव। फसल पकने तक चींटी,चूहे,पतंगों का वही एकमात्र शिव।। किसान तो दाता है इसीलिए वो विधाता है। पर वो आज अभागा है। कुछ नीतियों से , कुछ रीतियों से और कुछ अपने प्रवृत्तियों से।।
वह सब सहता है इस हेतु कुछ ना कहता है। गांठ बना लिया है मन में त्यागी होने की। आंखों में पट्टी बांध लिया है जिससे लुट रहे हैं उसे साधु के भेष में अकर्मण्य लोग।।
संसार का सारा सौदा किसानों पर है निर्भर। सब लाभ में है केवल किसान को छोड़कर। कठिन लगता है उसे अपने अधिकारों से लड़ना। आसान लगता है उसे दो घड़ी मौत से छटपटाना।।
सारा दृश्य देख,जान मैं नहीं इस बात से अनजान। इस जग में पत्थर सा नहीं खुशनसीब कृषक मेरा भगवान।
रचनाकाल:-२६दिस.१८,२:५०
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 33 शादी एल्बम
रचनाकाल :- २२दिसम्बर २०१८,६ बजे
आज ना जाने , मन ने शादी एल्बम देखने की लालसा की। मैंने वक्त की दुहाई दी पर वो माना नहीं। एल्बम देखते ही लगा लिया जिन्दगी की रिवर्स गियर और रोका ऐसी जगह जहां मुझे मिले हंसते चिढ़ाते मेरे दोस्त। ना जाने कहां खो गये थे जीवन के आपाधापी में। या मैंने ही मुंह फेर लिया था उनसे चूंकि अक्सर बदल जाते हैं लोग जिनकी शादी हो जाती है। इस पल सजीव हो उठा हूं बहुत दिनों बाद लबों की टेढ़ी नाव बह रही है यादों के समन्दर में। अचानक आती है कहीं से आंधी और छा जाती है गहरा सन्नाटा यारों से बिछड़ जाने के ग़म से लहरें टकराकर छलक जाती है पलकों के किनारे से नदी बह जाती है सुर्ख गालों के मैदान में। ये जीवन अजीब रंगमंच है जहां हम व्यस्त हैं अनेकों किरदार की भूमिका में। जहां कोई रिटेक नहीं, भावी सीन का पता नहीं मैं अपने फिल्म का हीरो। यादों के दलदल में और फंसता इससे पहले कि मेरी हीरोइन की आवाज आई “काम पे नहीं जाना क्या?” और मैं खड़ा हो गया अगली शूटिंग में जाने को नये किरदार निभाने को।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 34 काव्य विषय की विराटता
ये काव्य युग, सम्मान का युग है। चलो अच्छी बात है। हमें खुशी है एक कवि के होने के नाते, समाज के कुछ तो काम आते। पर ध्यान रहे , सारा श्रेय मुझे ही लेना बेमानी है। चूंकि सम्मान की पीछे और भी कहानी है। कंगूरा सा कवि लालायित है चमकने को जमाने में। नींव सा रचना अभी भी छटपटा रही है पहचान पाने में। बिन नींव के कंगूरे की एक अधूरी दास्तां है। कवि का वजूद भी तो कविता से ही वास्ता है। और कविता का वास्ता ईश्वर, प्रकृति से, सामाजिक रीति से। दीन-हीन की दशा से मौसम-रंग-दिशा से। कवि तो बौना है उस अर्जुन की भांति जो यह समझ लेता कि महाभारत युद्ध अपने दम पर जीता। जानके अनजान रहता काव्य विषय की महत्ता उसका विराट स्वरूप।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 35 भारत !तुझे आज तय करना है
भारत !तुझे आज तय करना है । किस दिशा में उड़ान भरना है ?
अपने पूरब में सूरज उगे, और पश्चिम में ढल जाता है । अब तू ही बता , पश्चिमी रीतियों में क्यों ढलना है ? भारत !तुझे आज तय करना है ।।
तेरा संस्कृति ही तेरा अस्तित्व , जिसमें बसी सभ्यता का सौंदर्य । फिर पाश्चात्य को विकसित मान , संस्कृति का अपमान क्यों करना है? भारत !तुझे आज तय करना है ।।
पवित्र संस्कारों की ओढ़नी बिन आभूषणों की श्रृंगार होता है अधूरा । तो फिर नवीनता के चक्कर में अपनी लोक मर्यादा क्यों खोना है ? भारत !तुझे आज तय करना है ।।
माना सच का आसमान देखना है तो खुला मैदान जाना ही होगा । पर जग में मानवता पाने को , हे भारत! तुझे भारत पर ही आना है। भारत !तुझे आज तय करना है । किस दिशा में उड़ान भरना है ?
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 36 संघर्ष और सुरक्षा
दो नन्हें नन्हें पौधे, पास-पास में थे उगे। एक दूजे के सुख-दुख में ,सदा से लगे।
एक दिन आई जंगल में भीषण आंधी। चंद वृक्ष ही बच पाये, उखड़ गए बाकी।
दोनों पौधों को अबसे ,होने लगा था डर। यहीं जमें रहे तो एकदिन,जायेंगे बिखर।
एक बोला -“नियति पर अपना वश नहीं। मेहनत से जड़ें मजबूत करें, यही है सही।”
दूसरा पौधा यह सुनके जोर जोर से हंसा । उसको अपने शक्ति पर, नहीं था भरोसा ।
बोला-“बेहतर होगा, ढूंढले सुरक्षित स्थान । बड़े वृक्ष के बीच रहे तो, बची रहेगी जान।”
पहला बोला- “मैं करूंगा सच का सामना । सुरक्षा में जीने से श्रेष्ठ ,संघर्ष में मर जाना।”
मतभेद हो जाने से, टूट गई उनकी मित्रता। एक घने वन के बीच, दूजा खुला में रहता ।
खुली हवा में सहता, वह रोज हवा थपेड़े । होती बारिश बौंछारें और तेज सूर्य किरणें ।
पर हार न माना , करता रोज ऊर्जासंचार । जीवन में चुनौती, कर चुका था स्वीकार ।
जीत लेकर आती ,जीवन में हरेक चुनौतियां। आत्मविश्वास बढ़ाये,और आंतरिक शक्तियां।
विकासयात्रा में पौधा,एक दिन वृक्ष बन गया । उसी जगह में मजबूत होके ,अडिग तन गया ।
दूजे पौधे को मिली, माना जंगल की सुरक्षा । हवा तेज धूप न पाये, रह गया बीमार बच्चा ।
कहीं हम तो नहीं चाहते,ऐसी सुरक्षा घेराव । बिना संघर्ष किये हो जाये, खुद का बचाव।
मानव जीवन को होना पड़ेगा संघर्ष प्रधान। वरना रह जायेंगे , अपने शक्ति से अनजान।
सुरक्षा की खोज, हमें बना देती है कमजोर। सब आसान हो जाएगा, जब लगायेंगे जोर।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 37 ये कैसा संसार है ?
इस दुनिया में कोई लाचार है,कोई बेकार है । यहां रोटी के लिए ,मरने मारने को तैयार हैं । ये कैसा संसार है ?
इस भीड़-भाड़ जिन्दगी में सबने मेले सजाये, यहां अच्छे खासों की आबरू,हुई शर्मशार है। ये कैसा संसार है ? बनके बहुरूपिया, खेल दिखाये बाजीगर के , असली जिन्दगी में जिनकी,हरओर से हार है। ये कैसा संसार है ?
बड़े जताते छोटों पर ,अपनी मालिकाना हक अपनापन कोसों दूर, मतलब का परिवार है। ये कैसा संसार है ? दिनोंदिन चकाचौंध होता रहा ,मेरा ये शहर दिल के कोने तो सबके,फरेब का अंधकार है। ये कैसा संसार है ?
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 38 मुझे तो जीना है
चलो आज हो चलें तन्हा। कब से तड़प रहा है, कुछ कहने को; ये दिल नन्हा।
शहर से दूर सागर किनारे, मिलने जाना है खुद से। जो पास होके भी होता नहीं छू कर आना है वजूद से।
कब तक दौड़ूगां आखिर किस मंजिल की तलाश है? वो सब छोड़ जाना है जो भी मेरे पास है। तरंगों के जाल में मैं महसूस करता हूं फंसा हुआ। मुझे याद करने हैं वो पल जब था हंसा हुआ ।
मेरी रफ़्तार रूकती क्यों नहीं चाहता हूं थम जाना किनारों का मोह टूटा मेरी इच्छा-सूची में शामिल चुकी है, बह जाना। क्या ये सूचक है? आत्मघात के पर मुझे तो जीना है वो जिंदगी जो अब तक जी न सका हूं।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 39 गर हम कहते हैं
गर हम कहते हैं कोई ऊंच-नीच नहीं है। तो फिर हम डरे क्यों किसी से ?
सबका सरकार एक है । सबका अधिकार एक है । सबका रिश्ता इंसानियत का सबका आधार एक है । गर हम कहते हैं भारत माँ के सब बेटे हैं तो फिर उलझे क्यूँ किसी से ?
सबका भगवान एक है । सबकी मुस्कान एक है । सबकी भावना एक सी सबकी जुबान एक है । गर हम कहते हैं इस देश के रखवाले हैं । तो फिर बँटे क्यों एक दूसरे से ?
संघ समाज एक है रीति रिवाज एक है । एक है रंग रुप भाषा वेशभूषा साज एक है । गर हम कहते हैं कि हम स्वतंत्र हैं तो फिर हम दबकर रहे क्यों किसी से?
आओ भर लें उड़ान। देखें हमें सारा जहान। स्वयं को लें पहचान। देश को करें महान।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 40 मां भारती की बिंदी: हिंदी
मां भारती के माथे में , जो सजती है बिंदी। वो ना हिमाद्रि की श्वेत रश्मियां , ना हिंद सिन्धु की लहरें , ना विंध्य के सघन वन, ना उत्तर का मैदान। है वो अनायास, मुख से विवरित हिन्दी। जननी को समर्पित प्रथम शब्द ‘मां’ हिन्दी । सरल ,सहज ,सुबोध , मिश्री घुलित हर वर्ण में । सुग्राह्य, सुपाच्य हिंदी मधु घोले श्रोता कर्ण में । हमारा स्वाभिमान ,भारत की शान । सूर-तुलसी-कबीर-खुसरो की जुबान। मिली जिससे स्वतंत्रता की महक। विश्वभाषा का दर्जा दूर अब तलक । चलो हिंदी को दिलाएं उसका सम्मान। मानक हिंदी सीखें , चलायें अभियान।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 41 ये प्यार भी अजीब
जमी चलती हुई, आसमां की राहों में, ढूंढने अपने साथी को । उसे क्या खबर है ? अपना हमसफर उसी के करीब हो ।
सारा जग ढूंढा , देखे कई सूरज तारे । मिले ना कोई उसे , जिसपे वो दिल हारे । उसे क्या ख़बर है ? उसकी चंदा ही उसी का नसीब हो ।
जमी देखे सूरज को, जिसके आशिक अनेक हैं। चंदा देखे जमी को , जिसके इश्क नेक है । जमीन पे क्या असर है ? ये प्यार हो भी, तो अजीब हो ।
जमी चलती हुई, आसमां की राहों में, ढूंढने अपने साथी को ।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 42 ये भी मनुस्मृति की देन है
तथाकथित उच्च वर्ग जवाब मांग रहा है निम्न वर्ग से – “रे अछूत! तुझे लज्जा नहीं आती आरक्षण के दम पर इतरा रहा है , हमारे हक का खा रहा है तेरी औकात क्या ? तेरी योग्यता क्या ? भूल गया अपना वर्चस्व । लांघ दी तूने , मनुस्मृति की लक्ष्मण रेखाएं । संविधान कवच ने तुझे उच्छृंखल कर दिया है। पैरों की दासी ! अपने पैर में खड़ा होने की कोशिश मत कर, हिम्मत है तो द्वन्द्व कर । आरक्षण का बाना हटाके मुझसे शास्त्रार्थ कर।” व्यंग्य बाणों से जख्मी तथाकथित दलित ने प्रत्युत्तर दिया – “हे उच्चकुलीन श्रेष्ठ ! तू ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ है तेरे श्रीमुख से कुटिल बातें शोभा नहीं देती । तूने कहा कि जातियां जन्मजात है हमने मान लिया। फिर कहा प्रत्येक जाति के वर्ग है हमें स्वीकार लिया। जनसेवा करके अपना सौभाग्य माना नवनिर्माण कर , जग का श्रृंगार किया अति प्राचीन , भारतीय संस्कृति को आधार दिया। तूने सामाजिक नियमों में बांधा जी भर शोषण किया । कभी धर्म ,कभी ईश्वर का भ्रम फैला कर भयभीत किया । नियम तूने लचीला रखें , जब अपनी स्वार्थ पूरी करनी थी हमने जब सीमाएं तोड़ी तो नर्क का दंड विधान किया खुशकिस्मत हैं जो बाबा ने संविधान बनाया दलित अपने विकास के लिए एक अवसर को पाया । कष्ट तुम्हें इस बात की है कि हमने ज्ञानामृत चखा वर्षों से छीना गया अधिकार को परखा । आज तुम्हें तकलीफ क्यों ? हम क्यों सेवाक्षेत्र में आरक्षित हैं तो सुन कुलश्रेष्ठ ! सेवाक्षेत्र शूद्र के लिए हो, ये भी मनुस्मृति की देन है।”
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 43 सख्त कार्यवाही हो
अब बस भी करो वह चर्चे जिसमें नेता की वाहवाही हो । जो रक्षक भक्षक बन जाए, उस पर सख्त कार्यवाही हो ।।
बेटी विकास की बातें , देश में नारा बनके रह गया। इज्जत लूट ली दरिंदे ने आंचल जलधारा लेके बह गया । पकड़े गए हैं व्यभिचारी पर कब उन पर सुनवाई हो । जो रक्षक भक्षक बन जाए, उस पर सख्त कार्यवाही हो ।।
जिस्मफरोशी का धंधा , देश संस्कृति को ले डूबेगा । फिर किसपे इतराओगे जब जग में बदनामी चुभेगा। हाथ पे हाथ धरे ना बैठो कि आनेवाला कल दुखदाई हो। जो रक्षक भक्षक बन जाए, उस पर सख्त कार्रवाई हो ।।
छापे मारो देश का कोना, जहां ऐसे जुल्म पलते हैं ? क्या ऐसे गोरखधंधे भी, नेताओं के दम से चलते हैं ? नहीं तो फिर, क्यों ठंडा खून जैसे राज़ की बात दबायी हो जो रक्षक भक्षक बन जाए, उस पर सख्त कार्रवाई हो ।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 44 पिता की अहमियत
एक अव्वल दर्जे का युवक नेक और होशियार । नौकरी पाने की चाहत में देने पहुंचा साक्षात्कार ।।
कंपनी डायरेक्टर ने पूछा युवक का अध्ययनकाल । कैसे पढ़ाई में की , उसने ढेर सारे कमाल ।।
बिन छात्रवृत्ति के गुदड़ी के लाल , कैसे हुआ शिक्षा से मालामाल? जानने को वह पूछा , उसके पिता का हालचाल ।।
युवक ने बताया वह है धोबी का बेटा । पर पिता ने उसको , अपने काम में नहीं समेटा।
डायरेक्टर ने जानकर देना चाहा जिंदगी का सबक। पहले छुके आओ हाथ पिता का, तब मिलेगा नौकरी पे हक।
घर पहुंचते ही हँसती आंखें झरझर बहने लगे। पुत्र के भविष्य खातिर पिता के रेगमाल हथेली संघर्ष गाथा कहने लगे ।।
युवक को एहसास हुआ आज पहली बार। बिन व्यवहारिक ज्ञान के सैद्धांतिक है बेकार ।।
ना बन पाता आज वह इतना काबिल । पिता के संघर्ष बिन , कुछ होता ना हासिल ।।
डायरेक्टर ने पहले ही दिन भर दी भावी मैनेजर में काबिलियत। जानो तुम भी संघर्ष और त्यागमूर्ति पिता की अहमियत।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 45 देश मांग रहा बलिदान
ये देश तुझे ,मांग रहा बलिदान । चीत्कार सुनके जाग जा इंसान ।
भेदभाव बढ़ रहे जन-जन में । बँट गए हैं बन अमीर फकीर । मां ना चाहेगी, बच्चों में ये , जानो रे तुम ,मां की पीर ।
भ्रष्टाचार का है बोल बाला और मजे लूट रहे बेईमान।। समझते हैं जो खुद को सेवक असलियत में है स्वार्थ की खान ।
अब स्वार्थ छोड़ दे बंधु, परमार्थ पर लगा जरा ध्यान । एकजुट होकर फिर से पा ले भारत मां का सम्मान।
पाई नहीं हमने पूरी आजादी , क्या पालन होता अपना संविधान? नेताओं की सांत्वना बस कब बदलेंगे ये अपनी जुबान ?
छुपी रहती विरोध व क्रांति में प्रगति, खुशहाली और अमन । छोड़कर अपनी भेड़चाल तू ढूंढ ले सच्चाई का दामन।
दगाबाजों की सभा में , सच को करें मतदान । तभी बन सकता है हमारा भारत महान।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 46 इनसे सीखें
सुबह जल्दी उठती है इसी बहाने कि मुझे आराम मिले और आराम मिलती है हमेशा की तरह रात को सुबह का नाश्ता दोपहर का लंच से होते हुए रात का डिनर अपना ख्याल , बेबी की परवरिश से लेकर परिवार वालों का फिक्र । कौन सी चीजें कहां है किसको कब करना है किसको क्या कहना है सब है पता लेकिन कहती नहीं ना जाने क्यों रखती है बोझ अपने दिल पर । अपनी जिंदगी को सिमटा दी है किचन में बेडरुम में और घर में कुछ मांगे हैं उनकी पर प्यार के आगे सब फीके । हम भी इनसे प्रेम, त्याग जिम्मेदारी की परिभाषा सीखें।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 47 चमकीले मोती
ये पानी नहीं , चमकीले मोती हैं। बारिश होते देखा तो होगा ? ये पानी नहीं, अमृत की बूंदें हैं ।
तूने प्यास कभी बुझाया तो होगा? ये पानी प्रभु का प्रसाद है। इस पानी में जीने का स्वाद है। धरा पर अमूल्य ये, पर है सबसे कीमती। बेरंग होकर भी, खुशियों के सारे रंग भरती।
कलकल छलछल सात सुरों के सरगम जीवन के हर संगीत संजोए हुये बहती। जड़ होते हुए चेतनायुक्त बेजुबान होते हुए भी आगाह करती हमको। कभी सूखा, कभी बाढ़ समन्दर की लहरों से बताती मानव को उसका अस्तित्व।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 48 मैं भी किसान
मेरी कलम , ये मेरा हल । मेरे कागज, ये मेरे खेत । जलता लैंप बना सूरज । स्याह की धारा , सींचे कोना कोना। करता हूं खेती , भावों की ,विचारों का । हां! मैं भी किसान, पर किसका पेट भर सका ? औरों का ? खुद का ?
मनीभाई “नवरत्न”, बसना, छत्तीसगढ़
कविता 49 अकेला वारिस
मैं हूं अपनी राहों का , अकेला वारिस। ठहरू कहीं ना , धूप हो चाहे बारिश। मेरा रिश्ता ना किसी से मेरी मंजिल, मेरी चाहत, मेरी ख्वाहिश ।
ढूंढ रहा हूं खुद को मैं मेरी पहचान जाने कहां मिले? वहां तक चलूं , गिर संभलू जिस ओर सपनों का जहां मिले। संग-संग मेरे हौसला रहे संग-संग मेरा ईश। मैं हूं अपनी राहों का , अकेला वारिस।
सांसें जब तक चले, जिंदगी पर कर्ज है । मुट्ठी में भर लूं आसमां यही तो मेरा फर्ज है । हौले-हौले जल रहा मैं आग से हो रही, मेरी परवरिश । मैं हूं अपनी राहों का , अकेला वारिस।
✍मनीभाई”नवरत्न”
कविता 50 अभी और बची स्याही है
अभी और कोरे कागज है अभी और बची स्याही है ।
अभी बचा है शब्दों का खेल, अभी और सजेंगे भावों का मेल । अभी जीवन नहीं हुई आधी, अधूरा सफर किया हुआ राही है । अभी और बची स्याही है ।
अभी होंगे राजनीति में बवाल अभी और होंगे रणनीति में कमाल । अभी सुनाएंगे दुनिया की हाल। अभी फिर कुछ दिल ने चाही है अभी और बची स्याही है ।।
अभी चश्मा लगाने के दिन है । करिश्मा दिखाने के दिन है । दिन नहीं हुई लाठी उठाने की। अभी हाथों में कलम ही सही है। अभी और बची स्याही है।।