Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • महिमा मोर छत्तीसगढ़ के..गीत पद्मा साहू पर्वणी

    महिमा मोर छत्तीसगढ़ के

    छत्तीसगढ़ महतारी मोर, तोर महिमा हे बड़ भारी।
    गजब होवत हे नवा बिहान, छत्तीसगढ़ के संगवारी।

    ये भुइयाँ के नाम हे पहिली दक्षिण महाकोसल,
    अउ हे छत्तीस किला ले एकर छत्तीसगढ़ नाम।
    लव-कुश के जनम इही भुइयाँ मा संगी,
    कौशिल्या के मईके, अउ ननिहाल हरे प्रभु राम ।
    मध्यपरदेश के दुहिता, दाई मोर छत्तीसगढ़,
    हरियर लुगरा पहिने एकर अलग हाबे चिन्हारी ।
    छत्तीसगढ़ महतारी मोर, तोर महिमा हे बड़ भारी,,,,

    इहांँ के लोगन मन हाबे बड़ सिधवा,
    मया पिरित हिय म हाबे बड़ भारी ।
    हमर छत्तीसगढ़ी गुरतुर बोली भाखा,
    सबला रबले अपन बना लेथे संगवारी ।
    छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहिथे भईया ,
    इहांँ जांगर वाला मेहनत करइया हे भारी ।
    छत्तीसगढ़ महतारी मोर, तोर महिमा हे बड़ भारी,,,,

    वीर नारायण, गुंडाधुर छत्तीसगढ़ के मान हरे,
    हे पावन भुइयाँ तीरथ दामाखेड़ा, गिरोधपुरी।
    भोरमदेव खजुराहो, चित्रकूट, सिरपुर, कुटुंबसर,
    साल ,गेंदा, मैना, वन भईसा, कटहल हे चिनहारी।
    बमलई दाई, महामाया, समलाई के मनौती,
    लगथे मेला मोहंदी, रतनपुर, राजिम,खल्लारी।
    छत्तीसगढ़ महतारी मोर, तोर महिमा हे बड़ भारी,,,,

    पद्मा साहू पर्वणी
    खैरागढ़ राजनांदगांव

  • मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां- पदमा साहू

    मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां

    मोर जनमभूमि के भुंईयां मा माथ नवावंव गा।
    मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां मा माथ नवावंव गा।।
    जनम लेंव इही माटी मा ,,,,,2
    इही मोर संसार आवय गा–
    मोर…………………

    इंहा किसम- किसम के बोलबाखा मय छत्तीसगढ़िया हावंव।
    छत्तीसगढ़ म मोर जनम भूमि,
    मय एला माथ नवावंव।
    पले- बढे हों इही माटी मा,,,,2
    एला कईसे मय भुलावंव गा —
    मोर………………………

    संगवारी मन के मया बंधे
    संग मा खेले- कुदे जावंव।
    मया पिरित के डोरी ला,
    कईसे मय बिसरावंव।
    दाई- ददा के कोरा इही भुंइयां मा,,,2
    एकर करजा कईसे चुकावंव गा –
    मोर……………….……………

    बाग- बगीचा अउ अमरईया,
    खेती -खार मय जावंव।
    दाई -बबा के संग नइ छोड़ेंव,
    पीछु – पीछु मय जावंव।
    पढ़े लिखेंव इही भुंइयां मा,,,2
    ग्यान के गठरी बांधेंव गा-
    मोर………………..……………

    श्रीमती पदमा साहू
    खैरागढ़, जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़।

  • गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता

    गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता

    किंदर किंदर के आवथें बड़ेर,
    “धुर्रा-माटी-पैरा-पान” सकेल।
    खुसर जाय कुरिया कोती अन,
    लकर-लकर फेरका ल धकेल।
    हव! आगे ने दिन बिन-बूता पसीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।


    डम-डम डमरू बजावत,आवत हे ठेलावाला।
    रिंगी-चिंगी चुसकी धरे,दिखत हे भोलाभाला।
    लईका कूदे देखके ओला।
    पईसा दे दाई जल्दी से मोला।
    अऊ दाई देय चाउर,भर-भर गीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।

    सुटूर-साटर घूमत घामत,
    लईका कहत आथें-“ए माँ!”
    सील-लोड़हा म नून-मिरचा पीसदे
    कुचरके खाहा कइचा आमा।
    अऊ ताश खेले मंझनिया पहाये।
    तरिया म डुबकत संझा नहाये।
    नोनी-बाबू के सुध नईये खाना-पीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।

    मोहरी बाजत हे कनहू कोती,
    अऊ डीजे म छत्तीसगढ़ी गाना।
    बर-बिहा के सीजन आगिस
    मौजमस्ती म बेरा पहाना।
    गंवई घूमे बर नवा कुरता सिलात हें।
    घाम बाँचे बर टोपी-चसमा बिसात हें।
    फैन्सी समान के गादा होगे हसीना के।
    ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।।

    (रचयिता :-मनी भाई,
    भौंरादादर,बसना,महासमुन्द)

  • शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

    शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

    सुधारू केहे-“कस रे मितान!
    तोला सफई के,नईये कछु भान।
    तोर आस-पास होवथे गंदगी
    इही च हावे सब्बो बीमारी के खान।”

    बुधारू कहे-“मय रेहेंव अनजान।
    लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों कान।
    लेकम येकर सती, का करना चाही संगी ?
    अहू बात के,  कर दो बखान।

    सुधारू कहे-“हमर सरकार ल
    महतारी मोटियारी के चिंता हावे।
    शौचालय बना लेवो जम्मो
    ये मे अब्बड़ सुभीता हावे ।


    रात-बिकाल के संशो नी,बिछी-कुछी के डर।
    सफ्फा रेहे हामर घर, अऊ सफ्फा रेहे डहर।
    बीमारी होही अब्बड़ दूर ,खुसियाली छाही।
    देस-बिदेस म हामर गाँ भी प्रसिद्धि पाही।”

    सुधारू के कहे म बुधारू
    एक चीज मन म पालय हे।
    अऊ चीज हावे रे संगी
    “जहाँ सोच हे वहाँ शौचालय हे।”

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    (रचयिता:- मनी भाई)

  • सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

    सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

    सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य)

    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।
    अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”
    बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे मितान ।फुफा के समधी ह सादा व्यवस्था करे हे अऊ गौंटिया के दमाद ह आज रंगीन व्यवस्था करे हे।अऊ बिहाव म मोला रोना-धोना बिलकुल पसंद नईये।तिकर पाय आज रंगीन प्रोग्राम बन  गय हावे “
    बुधारू के  गोठ सुनके सुधारू ह असल बात ल समझ गय रहिस कि आजकल रिश्ता-नता के अहमियत ले जादा बिहाव म खानापीना के व्यवस्था म वजन रईथे ।


    (लिखैय्या :- मनी भाई )