छत्तीसगढ़ी कविता – जड़कल्ला के बेरा

जड़कल्ला के बेरा -छत्तीसगढ़ी कविता आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥ रिंगीचिंगी पहिरके सूटर,नोनी बाबू ल फबे हे।काम बूता म,मन नई लागे, बने जमक धरे हे।देहे म सुस्ती छागय हे,घाम लागे बड़ मजा के।दाँत ह किटकिटावथे,नहाय लागे बड़ सजा … Read more

महिमा मोर छत्तीसगढ़ के..गीत पद्मा साहू पर्वणी

महिमा मोर छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ महतारी मोर, तोर महिमा हे बड़ भारी।गजब होवत हे नवा बिहान, छत्तीसगढ़ के संगवारी। ये भुइयाँ के नाम हे पहिली दक्षिण महाकोसल,अउ हे छत्तीस किला ले एकर छत्तीसगढ़ नाम।लव-कुश के जनम इही भुइयाँ मा संगी,कौशिल्या के मईके, अउ ननिहाल हरे प्रभु राम ।मध्यपरदेश के दुहिता, दाई मोर छत्तीसगढ़,हरियर लुगरा पहिने … Read more

मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां- पदमा साहू

मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां मोर जनमभूमि के भुंईयां मा माथ नवावंव गा।मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां मा माथ नवावंव गा।।जनम लेंव इही माटी मा ,,,,,2इही मोर संसार आवय गा–मोर………………… इंहा किसम- किसम के बोलबाखा मय छत्तीसगढ़िया हावंव।छत्तीसगढ़ म मोर जनम भूमि,मय एला माथ नवावंव।पले- बढे हों इही माटी मा,,,,2एला कईसे मय भुलावंव गा —मोर……………………… संगवारी मन … Read more

गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता

गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता किंदर किंदर के आवथें बड़ेर,“धुर्रा-माटी-पैरा-पान” सकेल।खुसर जाय कुरिया कोती अन,लकर-लकर फेरका ल धकेल।हव! आगे ने दिन बिन-बूता पसीना के।ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।। डम-डम डमरू बजावत,आवत हे ठेलावाला।रिंगी-चिंगी चुसकी धरे,दिखत हे भोलाभाला।लईका कूदे देखके ओला।पईसा दे दाई जल्दी से मोला।अऊ दाई देय चाउर,भर-भर गीना के।ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी … Read more

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता सुधारू केहे-“कस रे मितान!तोला सफई के,नईये कछु भान।तोर आस-पास होवथे गंदगीइही च हावे सब्बो बीमारी के खान।” बुधारू कहे-“मय रेहेंव अनजान।लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों कान।लेकम येकर सती, का करना चाही संगी ?अहू बात के,  कर दो बखान। सुधारू कहे-“हमर सरकार लमहतारी मोटियारी के चिंता हावे।शौचालय बना लेवो जम्मोये मे अब्बड़ … Read more