Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • कतको दीवाना हे (छत्तीसगढ़ी गजल)

    कतको दीवाना हे (छत्तीसगढ़ी गजल)

    किस्मत के सितारा हा चमक जाही लगत हे ।
    मन तोर दीवाना हे भटक जाही लगत हे ।।

    खुशबू ले भरे तन मा रथे मन घलो सुंदर
    तोर तीर जमाना ये जटक जाही लगत हे ।

    कतको दीवाना हे अउ कतको अभी होही
    कतको इहाँ फाँसी मा लटक जाही लगत हे ।

    अब रोज नियम बनथे जाबे जे शहर मा
    आगू जब तैं आये भसक जाही लगत हे ।

    वादा तैं करे रोज मिले बर हे अकेला
    मौका जे मिले आज बिचक जाही लगत हे ।

    मन आज दरस माँगे नवा रोग लगे हे
    तोला देख सबो रोग दबक जाही लगत हे ।

    अब तोर भरोसा के इहाँ जरूरत हे मोला
    डोंगा ये भँवर बीच अटक जाही लगत हे ।

    ये ताजमहल मोर बनन दे ऐ मुदिता
    सब तोर बिना जोड़ी धसक जाही लगत हे ।

    माधुरी डड़सेना ” मुदिता “

  • दीपावली : सुवा गीत/ छत्तीसगढ़ी रचना

    यहाँ पर दीपावली अवसर पर गए जाने वाला सुवा गीतों का संकलन किया गया है . छत्तीसगढ़ में सुआ गीत प्रमुख लोकप्रिय गीतों में से है।

    सुआ गीत का अर्थ है सुआ याने मिट्ठु के माध्यम से स्रियां सन्देश भेज रही हैं। सुआ ही है एक पक्षी जो रटी हुई चीज बोलता रहता है। इसीलिए सुआ को स्रियां अपने मन की बात बताती है इस विश्वास के साथ कि वह उनकी व्यथा को उनके प्रिय तक जरुर पहुंचायेगा। सुआ गीत इसीलिये वियोग गीत है।

    प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं।

    सुवा गीत 1

    तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
    कइसे के बन गे वो ह निरमोही
    रे सुअना
    कोन बैरी राखे बिलमाय
    चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
    रे सुअना
    मन के लहर लहराय
    देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
    रे सुअना
    बाती संग जाहंव लपटाय

    सुवा गीत 2

    तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    बिनती करंव मय चन्दा सुरुज के
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव
    चोंच तो दिखत हवय लाले ला कुदंरु
    रे सुअना
    आंखी मसूर कस दार…
    सास मोला मारय ननद गारी देवय
    रे सुअना
    मोर पिया गिये परदेस
    तरी नरी नना मोर नहा नारी ना ना
    रे सुअना
    तिरिया जनम झन देव…….

    सुवा गीत 3

    तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
    तुलसी के बिरवा करै सुगबुग-सुगबुग
    रे सुअना
    नयना के दिया रे जलांव
    नयनन के नीर झरै जस औरवांती
    रे सुअना
    अंचरा म लेहव लुकाय
    कांसे पीतल के अदली रे बदली
    रे सुअना
    जोड़ी बदल नहि जाय

    सुवा गीत 4

    तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
    मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार
    रे सुअना तुलसी में दियना बार
    अग्धन महीना अगम भइये
    रे सुअना बादर रोवय ओस डार
    पूस सलाफा धुकत हवह
    रे सुअना किट-किट करय मोर दांत
    माध कोइलिया आमा रुख कुहके
    रे सुअना मारत मदन के मार
    फागुन फीका जोड़ी बिन लागय
    रे सुअना काला देवय रंग डार
    चइत जंवारा के जात जलायेंव
    रे सुअना सुरता में धनी के हमार
    बइसाख…….. आती में मंडवा गड़ियायेव
    रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय
    जेठ महीना में छुटय पछीना
    रे सुअना जइसे बोहय नदी धार
    लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका
    रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार
    सावन रिमझिम बरसय पानी
    रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय
    भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा
    रे सुआना कइसे के देईस बिसार
    कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय
    रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर
    कातिक महीना धरम के कहाइस
    रे सुअना आइस सुरुत्ती के तिहार
    अपन अपन बर सब झन पूछंय
    रे सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार

    दिवाली मनाबो

    सब के घर म उम्मीद के दिया जलाबो,
    युवा शक्ति के अपन लोहा मनवाबो,
    अपन शहर ल नावा दुल्हन कस सजाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    बेरोजगार ल रोजगार दिलवाबो,
    दू रोटी खाबो अउ सब ल खवाबो,
    रद्दा बिन गड्ढा, समतल बनाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    अमीर गरीब के फरक ल मेटा के,
    सब झन ल अपन अधिकार देवाबो,
    एक व्यक्ति-एक पेड़ के नारा ले,
    अपन शहर ल हरिहर बनाबो।

    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो,
    चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।

    © प्रकाश दास मानिकपुरी✒✍
    ? 8878598889 रायगढ़ (छ. ग.)

  • जिंदगी पर हरिगितिका छंद

    Submit : 16 Sep 2022, 10:56 AM
    Email : [email protected]

    1. रचनाकार का नाम
      दूजराम साहू अनन्य
    2. सम्पर्क नम्बर
      8085334535
    3. रचना के शीर्षक
      जीनगी
    4. रचना के विधा
      हरिगितिका छंद
    5. रचना के विषय
      जिनगी
    6. रचना
      हरिगितिका छंद

    ये जिंदगी फोकट गवाँ झन , बिरथा नहीं जान दे ।
    आँखी अभी मा खोल तयँ हा, आघू डहर ध्यान दे ।
    तन फूलका पानी सही हे , बनय हाड़ा माँस के ।
    अनमोल जिंदगी कर लेवव, भरोसा नइ साँस के ।।

    दूजराम साहू अनन्य🙏🙏🙏

    1. रचनाकार का पता
      दूजराम साहू अनन्य,
      निवास -भरदाकला,
      पोष्ट- – बलदेवपुर
      जिला-खैरागढ़ ( छ.ग.)
  • पोरा तिहार

    पोरा तिहार

    छत्तीसगढ़ के परब आगे,
    हिरदे मा ख़ुशी छा गे गा।
    माटी के बइला ला भरले,
    पोरा तिहार मना ले गा।
    काठा भर पिसान सान ले,
    ठेठरी खुरमी बना ले गा।
    पोरा तिहार के परम्परा ला,
    संगे- संग निभाले गा।
    मोटरा बांध के ठेठरी खुरमी,
    बहिनी घर अमराबे गा,
    किसिम किसिम लम्हरी बोदकु,
    ठेठरी सबला खवाबे गा।
    सगा सोदर गांव समाज मा,
    सुनता ल् बगराबे गा,
    छत्तीसगढ़िया के तिहार म,
    नाचबे अउ नचाबे गा।

    ✍️ महदीप जँघेल
    खमतराई ,जिला-खैरागढ

  • ऐसो के भादों अंधियारी म पोला मनाबो

    ऐसो के भादों अंधियारी म पोला मनाबो

    गीतकार: मनीभाई नवरत्न

    बैंइला के सींग म, बैईला के खूर म तेल लगाबो ।
    फेर वोला नवा झालर ओढ़ाबो ।
    ऐसो के भादों अंधियारी म पोला मनाबो।

    भोला के बैइला के बंदन करले ।
    जाता म चूल्हा म चंदन रंग ले ।
    ओमा ठेठरी खुरमी के भोग लगा ले ।
    चलव संगवारी बैइला ल भात खवाबो ।
    ऐसो के भादों अंधियारी म पोला मनाबो।

    बाबू बर माटी के, नंदिया बनगे ।
    ओमे घुनघुन बाजा, मोर मन भरगे ।
    गाड़ी के चार चक्का बैईला तनगे।
    चलव कमची म बांध के गाड़ी कुदाबो ।
    ऐसो के भादों अंधियारी म पोला मनाबो।

    नीनी बर माटी के चुकिया बनगे ।
    ओमे के दीया मानो चुल्हा जलगे।
    ऐदे ठगी मंझी के दार भात चुरगे ।
    बेटी तोर खुशी बर ओला हामन खाबो ।
    ऐसो के भादों अंधियारी म पोला मनाबो।

    गीतकार: मनीभाई नवरत्न