ऐ दे !फूफा मोर, उमर म बुड़वा गिस ने। अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने। चेहरा म नईये जी बहार । लागे जइसे पड़गिस ने दियार। आगु-पाछु म बुलत हे दु-चार। करत फिरत हावे फूफा संग मनुहार । थोरकिन हाँसी-ठिठोली म ओहर बमा गिस ने। अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।। कनी-कनी बात म तमकत हे। फूफी के गारी म चमकत हे। का बात म फरक खाईस हे? कोनहा म जाकें बमकत हे। खिसियाय अऊ तंगाय, भांटो ल मोर कवाँ दिस ने। अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।। ( रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर, बसना )
➖➖➖➖➖➖ रचनाकार-महदीप जंघेल ग्राम-खमतराई,खैरागढ़ जिला- राजनांदगांव(छ.ग) विधा-छत्तीसगढ़ी कविता
पहली के बात, मोर मन ल सुहाथे। ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
होत बिहनिया अंगाकर रोटी ल, खाय बर अभर जावन। कमती खा के घलो, दाई के मया अउ दुलार ले अघा जावन।। दूध दही मही अउ घीव घलो, जम के खावन। दिन भर खेलकूद के , सब्बो ल पचावन।। तिहार के ढिलबरा कोचई कढ़ी, मोला गजब सुहाथे। ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
स्कूल जावत जावत, हमन बिही बारी म खुसरन। चोरी के बिही खाके, गोल्लर कस भुकरन।। भात खाय के छुट्टी में, अमली बोइर गिराय ल जावन। देरी होय पर ले , गुरूजी के मार गारी घलो खावन।। चना,लखोड़ी,राहर खेत में जाती खानी घुस जावन, बटरा ल आवत खानी खावन।। ददा के गारी घलो मोला, जलेबी कस मिठाथे। ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
मंझनी मंझना झांझ झोला में, आमा बगइचा, कोती जावन। पक्का पक्का आमा चोहक के, संझा बेरा आवन।। मन खुश राहय, त दिन भर इतरावन, लम्हरी लम्हरी खीरा के बारी में कूद जावन।। डोकरी दाई के खिसियई घलो काहेक मन ल मोर भाथे। ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
रुपिया दू रुपिया धरके, मेला मड़ई जावन। ढेलवा चक्का झुलके, कुशियार खात आवन।। तिहार बार जब आवय, त मन भर के मनावन। चीला बरा सोंहारी रोटी ल, पेट फूटत ले खावन।। सुरता करके मन मोर,सुघ्घर गीत गाथे ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
नदिया तरिया बन जंगल, डोंगरी पहाड़ी ल घूमे जावन। नरवा तरिया के पानी अटावय, मछरी धरके आवन।। धान के दिन म होत बिहनिया , सिला बीने बर जावन। मिंज कूट के उत्ताधुर्रा, मुर्रा लाडू खावन।। भौरा बांटी रेस टिप, साँझ मुंधियार ले खेलन। दाई ददा के गारी मार ल अशीष समझ के झेलन।। लइकापन के जिनगी के , मोला बिकट भाथे। ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
न चिंता ,न फिकर, न टेंशन कोनो बात के। खेलकूद अउ घूम फिर के, आवन हमन रात के।। अइसन जिनगी अब कोनो ल, कहाँ ले मिल पाही। हरहर कटकट हाय परान म, जिनगी गुजर जाही। संगी जहुँरिया संग खेले घूमे में, मोर मन खुश हो जाथे। ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।। ननपन के ……………….
गोठ बात चलत हे,गाँव भर के मोटियारी के । काकर निंदा,काकर चुगली, कनहू के सुआरी के । सबो झन सबो ल, बात बात म दबावत हे। खिसियावथें कनहू ल, मन म कलबलावत हे। सबो हावे अपन आप म रोंठ । ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 1
माईलोगिन के भेद हर,तरिया घाट म खुलथें। इक कान ले दूसर कान म, ओ भेद हर बुलथें। “सोशल मीडिया” कस रोल म, होथें तरिया घाट । “कन्टरवरसी” होवत हे,कोनो ल कोनो संग करके साँठ। काकर जोही सांवर हे, काकरो हावे मोंठ। ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥2
काकर घेंच म कतका तोला, काकर माला हे कै लरी। काकर घर म मछरी चूरे, कोने दिन पहाये खाके बरी । काकर लुगरा कतक दाम के,अऊ कती दुकान के चूरी । कोनो मंदरस घोल गोठियाये, काकरो गोठ लागे छुरी । नवा बोहासिन कलेचाप सुनथे,ओकर सास करथे चोट । ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ ॥3
धोबिनिन कस सबो महतारी,निरमा ल डाल के। कपड़ा कांचे गोठ करत,पानी ल बने मताल के। गां के लबर्री के गोठ म जम्मो झन भुला गय हे। लागथे ओकर समधिन तको,तरिया नहाय आय हे। अब्बक होके सुने बपरी,समझें मोर समधिन हावे पोट। ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 4
-मनीभाई नवरत्न
( यह कविता कुछ ग्रामीण महिलाओं के स्वभाव को दर्शाती है जहाँ उनकी दिखावटीपन, आभूषण प्रियता, बातूनीपन और कुछ अनछुए पहलू को बताने की कोशिश की गई है ।)