Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • फूफा रिश्ता पर कविता

    फूफा रिश्ता पर कविता

    ऐ दे !फूफा मोर, उमर म बुड़वा गिस ने।
    अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।
    चेहरा म नईये जी बहार ।
    लागे जइसे पड़गिस ने दियार।
    आगु-पाछु म बुलत हे दु-चार।
    करत फिरत हावे फूफा संग मनुहार ।
    थोरकिन हाँसी-ठिठोली म ओहर बमा गिस ने।
    अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।।
    कनी-कनी बात म तमकत हे।
    फूफी के गारी म चमकत हे।
    का बात म फरक खाईस हे?
    कोनहा म जाकें बमकत हे।
    खिसियाय अऊ तंगाय, भांटो ल मोर कवाँ दिस ने।
    अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।।
    ( रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर, बसना )

  • छतीसगढ़ दाई

    छतीसगढ़ दाई


    चंदन समान माटी
    नदिया पहाड़ घाटी
    छतीसगढ़ दाई।

    लहर- लहर खेती
    हरियर हीरा मोती
    जिहाँ बाजे रांपा-गैंती
    गावै गीत भौजाई।

    भोजली सुआ के गीत
    पांयरी चूरी संगीत
    सरस हे मनमीत
    सबो ल हे सुहाई।

    नांगमोरी,कंठा, ढार
    करधन, कलदार
    पैंरी,बहुँटा श्रृंगार
    पहिरे बूढ़ीदाई ।

    हरेली हे, तीजा ,पोरा
    ठेठरी खुरमी बरा
    नांगपुरी रे लुगरा
    पहिरें दाई-माई।

    नांगर के होवै बेरा
    खाये अंगाकर मुर्रा
    खेते माँ डारि के डेरा
    अर तत कहाई।

    सुंदर सरल मन
    छतीसगढ़ के जन
    चरित्र जिहाँ के धन
    जीवन सुखदाई।

    पावन रीति रिवाज
    अँचरा मां रहे लाज
    सबो ले सुंदर राज
    छत्तीसगढ़ भाई।




    रचना:—सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़

  • ननपन के सुरता (छत्तीसगढ़ी कविता)

    ननपन के सुरता (छत्तीसगढ़ी कविता)
    14 नवम्बर बाल दिवस 14 November Children’s Day

    ननपन के सुरता (छत्तीसगढ़ी कविता)

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    रचनाकार-महदीप जंघेल
    ग्राम-खमतराई,खैरागढ़
    जिला- राजनांदगांव(छ.ग)
    विधा-छत्तीसगढ़ी कविता

    पहली के बात, मोर मन ल सुहाथे।
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।

    होत बिहनिया अंगाकर रोटी ल,
    खाय बर अभर जावन।
    कमती खा के घलो,
    दाई के मया अउ
    दुलार ले अघा जावन।।
    दूध दही मही अउ घीव घलो,
    जम के खावन।
    दिन भर खेलकूद के ,
    सब्बो ल पचावन।।
    तिहार के ढिलबरा कोचई कढ़ी,
    मोला गजब सुहाथे।
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।

    स्कूल जावत जावत,
    हमन बिही बारी म खुसरन।
    चोरी के बिही खाके,
    गोल्लर कस भुकरन।।
    भात खाय के छुट्टी में,
    अमली बोइर गिराय ल जावन।
    देरी होय पर ले ,
    गुरूजी के मार गारी घलो खावन।।
    चना,लखोड़ी,राहर खेत में
    जाती खानी घुस जावन,
    बटरा ल आवत खानी खावन।।
    ददा के गारी घलो मोला,
    जलेबी कस मिठाथे।
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।

    मंझनी मंझना झांझ झोला में,
    आमा बगइचा, कोती जावन।
    पक्का पक्का आमा चोहक के,
    संझा बेरा आवन।।
    मन खुश राहय, त दिन भर इतरावन,
    लम्हरी लम्हरी खीरा के
    बारी में कूद जावन।।
    डोकरी दाई के खिसियई घलो
    काहेक मन ल मोर भाथे।
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।

    रुपिया दू रुपिया धरके,
    मेला मड़ई जावन।
    ढेलवा चक्का झुलके,
    कुशियार खात आवन।।
    तिहार बार जब आवय,
    त मन भर के मनावन।
    चीला बरा सोंहारी रोटी ल,
    पेट फूटत ले खावन।।
    सुरता करके मन मोर,सुघ्घर गीत गाथे
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।

    नदिया तरिया बन जंगल,
    डोंगरी पहाड़ी ल घूमे जावन।
    नरवा तरिया के पानी अटावय,
    मछरी धरके आवन।।
    धान के दिन म होत बिहनिया ,
    सिला बीने बर जावन।
    मिंज कूट के उत्ताधुर्रा,
    मुर्रा लाडू खावन।।
    भौरा बांटी रेस टिप,
    साँझ मुंधियार ले खेलन।
    दाई ददा के गारी मार ल
    अशीष समझ के झेलन।।
    लइकापन के जिनगी के ,
    मोला बिकट भाथे।
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।

    न चिंता ,न फिकर,
    न टेंशन कोनो बात के।
    खेलकूद अउ घूम फिर के,
    आवन हमन रात के।।
    अइसन जिनगी अब कोनो ल,
    कहाँ ले मिल पाही।
    हरहर कटकट हाय परान म,
    जिनगी गुजर जाही।
    संगी जहुँरिया संग खेले घूमे में,
    मोर मन खुश हो जाथे।
    ननपन के सुरता मोला अब्बड़ आथे।।
    ननपन के ……………….

    🌹महदीप जंघेल
    खमतराई,खैरागढ़

  • छत्तीसगढ़ी कविता – तरिया घाट के गोठ

    छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    तरिया घाट के गोठ – छत्तीसगढ़ी कविता

    गोठ बात चलत हे,गाँव भर के मोटियारी के ।
    काकर निंदा,काकर चुगली, कनहू के सुआरी के ।
    सबो झन सबो ल, बात बात म दबावत हे।
    खिसियावथें कनहू ल, मन म कलबलावत हे।
    सबो हावे अपन आप म रोंठ ।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 1

    माईलोगिन के भेद हर,तरिया घाट म खुलथें।
    इक कान ले दूसर कान म, ओ भेद हर बुलथें।
    “सोशल मीडिया” कस रोल म, होथें तरिया घाट ।
    “कन्टरवरसी” होवत हे,कोनो ल कोनो संग करके साँठ।
    काकर जोही सांवर हे, काकरो हावे मोंठ।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥2

    काकर घेंच म कतका तोला, काकर माला हे कै लरी।
    काकर घर म मछरी चूरे, कोने दिन पहाये खाके बरी ।
    काकर लुगरा कतक दाम के,अऊ कती दुकान के चूरी ।
    कोनो मंदरस घोल गोठियाये, काकरो गोठ लागे छुरी ।
    नवा बोहासिन कलेचाप सुनथे,ओकर सास करथे चोट ।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ ॥3

    धोबिनिन कस सबो महतारी,निरमा ल डाल के।
    कपड़ा कांचे गोठ करत,पानी ल बने मताल के।
    गां के लबर्री के गोठ म जम्मो झन भुला गय हे।
    लागथे ओकर समधिन तको,तरिया नहाय आय हे।
    अब्बक होके सुने बपरी,समझें मोर समधिन हावे पोट।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 4

    -मनीभाई नवरत्न

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    ( यह कविता कुछ ग्रामीण महिलाओं के स्वभाव को दर्शाती है जहाँ उनकी दिखावटीपन, आभूषण प्रियता, बातूनीपन और कुछ अनछुए पहलू को बताने की कोशिश की गई है ।)

  • छत्तीसगढ़ी कविता – जड़कल्ला के बेरा

    छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    जड़कल्ला के बेरा -छत्तीसगढ़ी कविता

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    रिंगीचिंगी पहिरके सूटर,नोनी बाबू ल फबे हे।
    काम बूता म,मन नई लागे, बने जमक धरे हे।
    देहे म सुस्ती छागय हे,घाम लागे बड़ मजा के।
    दाँत ह किटकिटावथे,नहाय लागे बड़ सजा के।

    नानकून दिन होगे रे संगी, संझा पहिली अंधेरा॥1॥

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    हाथ कान बरफ होगे, सरीर ल कँपकँपावत हे।
    सेहत बर बिहनियाँ घुमई, अब्बड़ मजा आवत हे।
    लईकामन के दसा मत पुछ “मनीभाई” परीक्षा दिन आगे।
    पर नीचट टूरामन अलसूहा हावे,रजई म जाके सकलागे।

    अऊ चेतभूत के सूरता नईये , मुहु म लांबत हे लेरा॥2॥

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    फेर ए सीतहा मौसम, हावे रे अब्बड़ सुहाना।
    गरमागरम चाहा सुरक, अऊ भजिया गबागब खाना।
    बजार म, ताजा साग सब्जी के, सस्ती होगे न।
    नालीडबरा सुखाके, साफ सुथरा बस्ती होगे न।

    ऐसो फेर मनाबो तिज तिहार, देवारी अऊ छेरछेरा॥3॥

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

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    Manibhai Navratna