Category: अन्य काव्य शैली

  • अभिलाषा पर दोहे – बाबूराम सिंह

    अभिलाषा पर दोहे

    मेरा मुझमें कुछ नहीं ,सब कुछ तेरा प्यार।
    तू तेरा ही जान कर ,सब होते भव पार।।

    क्षमादया तेरी कृपा,कण-कण में चहुँ ओर।
    अर्पण है तेरा तुझे ,क्या लागत है मोर।।

    सांस-सांस में रम रहा ,तू है जीवन डोर।
    माया मय पामर पतित ,मै हूँ पापी घोर।।

    तार करूणा कर मुझे ,हे दीनों के नाथ।
    शरण तुम्हारे आ पड़ा ,सब कुछ तेरे हाथ।।

    सेवा शुचि सबका करूँ,धरूँ धर्मपर पांव।
    नेकी में नित मन बसे, तुझसे रहे लगाव।।

    दान पुण्य में सुख मिले,खिले सुमंगल ज्ञान।
    जन-जन को देता रहूँ,शान्ति सुख मुस्कान।।

    भक्ति भाव लवलीन हो,भजूँ सदा भगवान।
    नाम नाथ मुख में रहे ,जब छुटे मम प्रान।।

    वरद हस्त शर पर रखो,दो प्रभु जी वरदान।
    आप सबल सुजान सदा ,मै मतिमन्द महान।।

    शुचि आश विश्वास लिये,धरूँ चरण पर शीश।
    कृपा कोर अजोर करो ,मन मेरे जगदीश।।

    जहाँ रहूँ भूले नहीं , नाथ आपका नाम।
    आरत मम पुकार सुनी ,दुख हर मेरे राम।।

    आशा अभिलाषा यहीं ,धरूँ चरण पै माथ।
    नाथ पतित पै कृपाकरो,शिरपर रखदो हाथ।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032

    “””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””

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  • हिंदी की है अद्भुत महिमा – उपमेंद्र सक्सेना

    हिंदी की है अद्भुत महिमा

    हिंदी की है अद्भुत महिमा

    गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    जिसको जीवन में अपनाया, उसपर हम होते बलिहारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी का गुणगान करें हम, हिंदी के गीतों को गाएँ
    हिंदी की मीठी बोली से, सबके मन को अब हम भाएँ

    सदा फले- फूले यह भाषा, लगती है यह हमको न्यारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी को जो लोग यहाँ पर, कभी न देखें निम्न दृष्टि से
    स्वयं देव करते हैं स्वागत, मानो उनका पुष्प- वृष्टि से

    बनी आज जन-जन की भाषा, सदा जन्म से रही हमारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी में सब काम करें हम, बच्चों को हिंदी पढ़वाएँ
    सोने में तब लगे सुहागा, जब वे खुद आगे बढ़ जाएँ

    हीन भावना कभी न आए, इतनी आज करें तैयारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    बाबा-दादी, नाना- नानी, से हम सुनते रहे कहानी
    हिंदी ने ऐसा रस घोला, याद हुईं वे हमें जुबानी

    करते बातें बहुत प्रेम से, हिंदी में इतने नर- नारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली( उ०प्र०)
    मोबा.- 98379 44187

    ( आकाशवाणी, बरेली से प्रसारित रचना- सर्वाधिकार सुरक्षित)

  • मन हो रहा हताश – बाबूलाल शर्मा

    मन हो रहा हताश

    kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah


    . ✨✨१✨✨
    हम ही दुश्मन मीत, अपनी भाषा के बने।
    बस बड़ बोले गीत, सोच फिरंगी मन वही।।
    . ✨✨२✨✨
    बदलें फिर संसार, निज की सोच सुधार लें।
    दें शिशु हित संस्कार,अंग्रेजी की कार तज।।
    . ✨✨३✨✨
    चलें धरातल जान, उड़ना छोड़ें पंख बिन।
    तब ही हो पहचान, हिन्दी हिन्दुस्तान की।।
    . ✨✨४✨✨
    ज्ञान मरघटी तात, नशा उतरता शीघ्र ही।
    वही ढाँक के पात, गया दिवस हिन्दी मना।।
    . ✨✨५✨✨
    गाते हिन्दी फाग, एक दिवस त्यौहार बस।
    अपनी ढपली राग, बारह महिने फिर वही।।
    . ✨✨६✨✨
    अपनी हर सरकार, हम सब हैं दोषी बड़े।
    हिन्दी का प्रतिकार, स्वार्थ सनेही कर रहे।।
    . ✨✨७✨✨
    वृद्धाश्रम की शान, कहने को माता महा।
    हिन्दी का सम्मान, एक दिवस ही कर रहे।।
    . ✨✨८✨✨
    हो हिन्दी हित पुण्य, हिन्दी बिन्दी सम रखें।
    मत कर हिन्दी शून्य, ऊँचे उड़ कर स्वार्थ मे।।
    . ✨✨९✨✨
    मन हो रहा हताश, मातृभाष अवमान से।
    सत साहित्यिक मान, हिन्दी नेह प्रकाश हो।।
    . ✨✨१०✨✨
    हिन्दी कवि मन प्यास, लिखे सोरठे दस खरे।
    हिन्दी हित की आस, कवियों से ही बच रही।।
    . ✨✨🌞✨✨
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
    ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

  • जीवन पर कविता – नीरामणी श्रीवास

    सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक
    जीवन

    जीवन के इस खेल में,कभी मिले गर हार ।
    हार मान मत बैठिए , पुनः कर्म कर सार ।।
    सार जीवनी का यही , नहीं छोड़ना आस ।
    आस पूर्ण होगा तभी , सद्गुण हिय में धार ।।

    जीवन तो बहुमूल्य है , मनुज गँवाये व्यर्थ ।
    व्यर्थ मौज मस्ती किया , नहीं समझता अर्थ ।।
    अर्थ समझ आया तभी , जरा अवस्था देख ।
    देख -देख रोता रहा , बीते समय समर्थ ।।

    जीवन छोटा सा मिला , बहुत जगत के काम ।
    काम-काम करता रहा , लिया न प्रभु का नाम ।।
    नाम याद रखते सभी ,मिट जाता है देह ।
    देह मोह फँसता रहा, गुजरे उम्र तमाम ।।

    नीरामणी श्रीवास नियति
    कसडोल छत्तीसगढ़

  • प्रात: वन्दन – हरीश बिष्ट

    जन-जन  की रक्षा है  करती |
    भक्तजनों  के दुख भी हरती ||
    ऊँचे   पर्वत   माँ   का   डेरा |
    माँ   करती   है  वहीं  बसेरा ||

    भक्त   पुकारे   दौड़ी   आती |
    दुष्टजनों   को   धूल  चटाती ||
    भक्तों   की करती  रखवाली |
    जगजननी  माँ  खप्परवाली ||

    भक्त सभी जयकार लगाते |
    चरणों में नित शीश नवाते ||
    मनोकामना    पूरी   करती |
    खुशियों से माँ झोली भरती ||

      हरीश बिष्ट “शतदल”
       स्वरचित / मौलिक
    रानीखेत || उत्तराखण्ड ||