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  • विश्वास के पुल – सन्त राम सलाम

    विश्वास के पुल

    उफनती नदी में उमड़ता सैलाब,
    पुलिया के नीचे पानी गहरा है।
    बीच मझधार में फँसा है जीवन,
    विश्वास के पुलिया पर ठहरा है।।

    जीवन मृत्यु दो छोर जीवन के,
    जहाँ पर पाँच तत्वों का पहरा है।
    सजग हवा सोते हैं साँसों पर,
    तब तब ही यह जीवन कहरा है।।

    धूप और छाँव में बीतता है जीवन,
    कहीं कहीं पर ही बहुत कोहरा है।
    आसमानी ओस टपकती जमीं पर,
    ठंड लगने पर तो कम्बल दोहरा है।।

    दिल की धड़कन है उफनती नदी,
    प्रेम – मोहब्बत की एक दहरा है।
    देख कर उतरना पैर न फिसले,
    गोता लगाएँ वो पल सुनहरा है।।

    सुन लो आवाज साँसों के तार से,
    दिल की नहीं सुनता कान बहरा है।
    दोनों नयन ही विश्वास के है पुल,
    इसीलिए दिमाग ऊपर में फहरा है।।

    स्वरचित मौलिक रचना,,,,
    ✍️ सन्त राम सलाम
    जिला -बालोद, छत्तीसगढ़।

  • खुद से वादा – सुशी सक्सेना

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    खुद से वादा

    साहिब, खुद से भी एक वादा करना है।
    मंजिल तक पहुंचने का इरादा करना है।
    नित नए संघर्ष होंगे, जीवन के पथ पर,
    मगर सवार हो कर, उत्साह के रथ पर।
    कांटों भरा हो या फूलों भरा, जारी ये सफ़र रखना,
    कदम जमीं पर हो, और आसमां पर नजर रखना।
    मुश्किलें सर झुका दें, तेरे कदमों पर,
    नित नए तुफां होंगे, जीवन के पथ पर,
    नईया जब डगमगाने लगे तो धैर्य न खोना,
    कदम जब लड़खड़ाने लगे तो तुम मत रोना।
    खुद पे विश्वास और खुदा का जो साथ होगा,
    सफलता का दामन, फिर तेरे हाथ होगा।
    लहरा तो दुनिया में अपने साहस का परिचम
    दिखला दो कि हम नहीं हैं, किसी से कम
    झुकना नहीं है, किसी भी तुफान के आगे,
    बस मंजिल तक पहुंच जाएं, ऐसे बढ़ाओ कदम।

    Sushi….

  • शीतल छाया दे रहे – विनोद सिल्ला

    शीतल छाया दे रहे

    शीतल छाया दे रहे, परउपकारी पेड़।
    हरे पेड़ को काट कर, कुदरत को ना छेड़।।

    पेड़ दे रहे औषधी, ले के रहो निरोग।
    पेड़ लगाने चाहिए, काट रहे हैं लोग।।

    पालन पोषण कर रहे, देकर के फल फूल।
    पेड़ लगा उपकार कर, पींग डाल कर झूल।।

    पेड़ सलामत जब तलक, सोओ लंबी तान।
    पेड़ धरा पर ना रहें, हो जाए सुनसान।।

    उपयोगी पत्ता तना, उपयोगी फल-फूल।
    सकल पेड़ हैं काम के, गुणकारी हैं मूल।।

    जीवन दाता पेड़ हैं, ऑक्सीजन की खान।
    पेड़ों को हो काटते, खतरे का ना भान।।

    सिल्ला अपना पेड़ से, मन का नाता जोड़।
    पेड़ हमारे मित्र हैं, सदा रहें बेजोड़।।

    -विनोद सिल्ला

  • कहाँ गई कागज की कश्ती – प्यारेलाल साहू

    कहाँ गई कागज की कश्ती – प्यारेलाल साहू

    कहाँ गई कागज की कश्ती।
    कहाँ गई बचपन की मस्ती।।

    बचपन कितना था मस्ताना।
    कभी रूठना और मनाना।।

    साथ साथ खेला करते थे।
    आपस में फिर हम लड़ते थे।।

    साथ साथ पढ़ने जाते थे।
    बाँट बाँट कर हम खाते थे।।

    छुट्टी के दिन मौज मनाते।
    अमराई से आम चुराते।।

    कभी पकड़ में जब आते थे।
    खूब डाँट फिर हम खाते थे।।

    माँ कहती थी मुन्ना राजा।
    पिता बजा देते थे बाजा।।

    कभी घूमने मेला जाते।
    चाट पकौड़े खूब उड़ाते।।

    बचपन की जब याद सताती।
    मन को ‘प्यारे’ खूब रुलाती।।

    *प्यारेलाल साहू*

  • निवेदन करें हम महादेव प्यारे – उपमेंद्र सक्सेना

    निवेदन करें हम महादेव प्यारे – उपमेंद्र सक्सेना

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    गीत- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    बने आप भोले जहर पी लिया सब, लगें आप हमको सब से ही न्यारे
    निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।

    बजे हर तरफ आपका खूब डंका, न होती किसी को कहीं आज शंका
    भवानी की चाहत हो क्यों न पूरी, बनी थी तभी तो सोने की लंका

    मिली दक्षिणा में जिसे एक दिन वह, नहीं फिर रही थी उसी के सहारे
    निवेदन करें हम महादेव प्यारे,न डूबें कभी भी हमारे सितारे।

    रखें सोम के दिन यहाँ लोग व्रत जब, भला कोई तेरस वे क्यों भुलाएँ
    करें आपका जाप जो लोग हर दिन, सदा आप उनको सुखों में झुलाएँ

    सदा पूजते सुर- असुर आपको सब, बनें आपकी वे आँखों के तारे
    निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।

    सदा से रही आस्था आप पर ही, बहाते रहें प्यार से खूब गंगा
    मिले सज्जनों को न अब कष्ट कोई, रहे मन सभी का यहाँ आज चंगा

    रहे आपकी ही कृपा- दृष्टि हम पर, लगेगी तभी नाव अपनी किनारे
    निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।

    गमों से हमें दूर रखना सदा ही, न बीमारियाँ भी हमें अब सताएँ
    जलें आज हमसे रखें बैर जो भी, कभी भूल से भी नहीं पास आएँ

    मिले चैन की नींद हमको यहाँ पर, न धन की कमी हो बनें काम सारे
    निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ. प्र.)