Tag: Poem on 5 June World Environment Day

  • प्रकृति पर कविता

    प्रकृति पर कविता

    सप्त सुरीला संगीत है , प्रकृति का हर तत्व ।
    सजा देता यह जीवन राग, भर देता है महत्त्व।

    एक एक सुर का अपना ,अलग ही अंदाज है ।
    समझना तो पड़ेगा हमें ,अब तो इसका महत्व ।।

    समय आने पर सब कुछ जता देती है ये हमें
    कहीं गुना ज्यादा राज ,अनंत शक्ति है इसमें ।।

    कभी हो जाता आभास, पा लिया हमने सत्व।
    पर कुछ नहीं जानते कितना इसका महत्व।।

    हमारे ज्ञान विज्ञान भी इसके आगे नतमस्तक।
    अंदर तक खिल जाते हैं ,जब देती यह दस्तक।।

    आपदाएं ही बताती है , इसके बल का घनत्व।
    यह कितनी बलशाली ,कितना इसका महत्व।।

    इसके हर एक सुर में, सुर तो मिलाना पड़ेगा।
    अपने जीवन राग को ,सुरीला बनाना पड़ेगा ।।

    धीरज व संयम से ही , पाना है इसका सत्व।
    यह तो सर्वशक्तिमान, बड़ा ही इसका महत्व।।

    मधुसिंघी
    नागपुर

  • बाल कविता- धरती पर कविता (आचार्य गोपाल जी)

    धरती पर कविता

    सभी से धरती करे गुहार ।
    हृदय के कष्ट मिटाओ यार ।
    मन में कुछ तो करो विचार ,
    छोड़ो करना तुम अत्याचार।।


    विटप बिलखते मेरे द्वार ।
    मत कर तरु पर तू वार।
    पादप पावन करे संसार,
    तुम तरु लगाओ घरवार।।


    पर्यावरण से कर तू प्यार ।
    स्वच्छ बनाओ तुम ये संसार।
    देख अपनी करनी का भार,
    रोगों का यहां फैला है अंबार।।


    मेरी व्यथा ना समझे संसार ।
    करनी फल पाता हर बार।
    कब बदलेगा तु व्यवहार,
    संभल जरा अब नर-नार।।


    ये दिवस से न होगा उद्धार
    पेड़ लगाओ हर दिन यार।।



    आचार्य गोपाल जी
    उर्फ
    आजाद अकेला बरबीघा वाले
    प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार

  • पेरा ल काबर लेसत हो

    पेरा ल काबर लेसत हो

    तरसेल होथे पाती – पाती बर, येला काबरा नइ सोचत हो!
    ये गाय गरुवा के चारा हरे जी , पेरा ल काबरा लेसत हो !!

    मनखे खाये के किसम-किसम के, गरुवा बर केठन हावे जी !
    पेरा भुसा कांदी चुनी झोड़ के, गरुवा अउ काय खावे जी !!
    धान लुआ गे धनहा खेत के, तहन पेरा ल काबर  फेकत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत हो।।

    अभी सबो दिन ठाढ़े हावे,जड़काला में नंगत खवाथे न  !
    चईत-बईसाख  खार जुच्छा रहिथे, कोठा में गरुवा अघाथे न !!
    वो दिन तहन तरवा पकड़हू, अभी पेरा ल काबर फेकत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत  हो !!

    काय तुमला मिलत हे ,पेरा ल आगी लगाए म !
    एक मुठा राख नई मिले, खेत भर भुर्री धराये म।।

    अपने सुवारथ के नशा म, गरुवा काबर घसेटत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत हो !!

    झन लेसव झन बारव रे संगी,लक्ष्मी के चारा पेरा ल !
    जोर के खईरखाडार में लाओ, खेत के सबो पेरा ल !!
    अनमोल हवे सबो जीव बर, येला काबर नई सरेखत हो !
    तरसेल होथे पाती-पाती बर, येला काबर नइ सोचत हो !!

    शब्दार्थ –  तरसथे = तरसना, पाती=पत्ती, पेरा = पैरा, लेसना = जलाना, बरिक दिन = बारह माह,  किसम-किसम= अनेक प्रकार के, भुर्री= ऐसी आग जो छड़ भर में बुझ जाए,  कांदी =घास, जुच्छा = खाली , तरवा = सीर, खईरखाडार = गऊठान
    सरेखना = मानना/समझना !

    दूजराम-साहू “अनन्य “
    निवास -भरदाकला 
    तहसील -खैरागढ़ 
    जिला-राजनांदगांव (छ .ग. ) 

  • पर्यावरण पर कविता-बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    पर्यावरण पर कविता-बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    पर्यावरण पर कविता

    save nature
    prakriti-badhi-mahan

    पर्यावरण खराब हुआ, यह नहिं संयोग।
    मानव का खुद का ही है, निर्मित ये रोग।।

    अंधाधुंध विकास नहीं, आया है रास।
    शुद्ध हवा, जल का इससे, होय रहा ह्रास।।

    यंत्र-धूम्र विकराल हुआ, छाया चहुँ ओर।
    बढ़ते जाते वाहन का, फैल रहा शोर।।

    जनसंख्या विस्फोटक अब, धर ली है रूप।
    मानव खुद गिरने खातिर, खोद रहा कूप।।

    नदियाँ मैली हुई सकल, वन का नित नाश।
    घोर प्रदूषण जकड़ रहा, धरती, आकाश।।

    वन्य-जंतु को मिले नहीं, कहीं जरा ठौर।
    चिड़ियों की चहक न गूँजे, कैसा यह दौर।।

    चेतें जल्दी मानव अब, ले कर संज्ञान।
    पर्यावरण सुधारें वे, हर सब व्यवधान।।

    पर्यावरण अगर दूषित, जगत व्याधि-ग्रस्त।
    यह कलंक मानवता पर, हो जीवन त्रस्त।।


    (सुजान २३ मात्राओं का मात्रिक छंद है. इस छंद में हर पंक्ति में १४ तथा ९ मात्राओं पर यति तथा गुरु लघु पदांत का विधान है। अंत ताल 21 से होना आवश्यक है।)


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • प्लास्टिक मिटा देंगे हम

    प्लास्टिक मिटा देंगे हम

    दुनिया से प्लास्टिक मिटा देंगे हम.

    हम तुम सनम चलो खाले कसम |
    दुनिया से प्लास्टिक मिटा देंगे हम |

    ये गलता नही मिट्टी मे मिलता नही |
    खाती गाये पेट उनके पचता नहीं | 
    मरती गायों को मिल बचाएंगे हम |
    हम तुम सनम चलो खाले कसम |

    इसके बर्तन बोतल इस्तेमाल न करो |
    छोड़ो प्लास्टिक घर से बेग ले चलो |
    बचाना धरती हमारा परम धरम |
    हम तुम सनम चलो खाले कसम |

    कागज बेग थैला कपड़ा अपनाएंगे |
    हर हाल प्लास्टिक हाथ ना लगाएंगे |
    बिना प्लास्टिक आए काहे की शरम |
    हम तुम सनम चलो खाले कसम |

    रहेगी धरती जिंदा हम भी रहेंगे |
    मिट्टी सलामत फल फूल फलेंगे |
    जन जन संदेश सुना दो सजन |
    हम तुम सनम चलो खाले कसम |
    हम तुम सनम चलो खाले कसम |

    श्याम कुँवर भारती [राजभर]

    कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

    मोब /वाहत्सप्प्स -995550928  

    ईमेल- [email protected]

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद