सीमा रक्षा करते,उनको झुककर शीश नवाऊँ।
लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।
जान हथेली पर रख, सैनिक सीमा पर डटे हुए।
मातृ भूमि रक्षा में,वो सब अपनों से दूर हुए।।
मेरी भी इच्छा है,दुश्मन से मैं भी लड़ जाऊँ।
लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।
फड़के आज भुजाए, नहीं बसंती रंग सुहाता।
मां भू के चरणों में,मैं भी अपना शीश चढ़ाता।।
बाट जोहती आंखे, उन आंखों में चमक जगाऊँ।
लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।
पहले देश हमारा,इसका ये कर्ज चुकाना है।
शीश काट दुश्मन का, बासंती पर्व मनाना है।।
उससे पहले कैसे,मैं गीत प्रेम के लिख पाऊँ ।
लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।
बंदूक थाम लूं मैं,अपनी इन वीर भुजाओं में।
सीना छलनी कर दूं,घुसने दूं ना सीमाओं में।।
तोप चलें सरहद पर,चैन कहीं मैं कैसे पाऊँ।
लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।
सूनी मां की गोदें,उजड़ा दुल्हन का श्रृंगार।
बहन बिना भाई के, किससे पाए लाड दुलार।।
कोयल का राग मधुर,मैं कैसे उसको सुन पाऊँ।
लगी आग सरहद पर,कैसे राग बसंती गाऊँ।।
✍️ डॉ एन के सेठी